धर्म समाज

पर्स में इस तरह रखें चावल के दाने, कभी कम नहीं होगा पैसा

वास्तु शास्त्र में सही दिशा व चीजों का बहुत अधिक महत्व होता है। इससे आपके जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है, माना जाता है कि चीजों के सही जगह पर होना ना होना आपके ऊपर सकारात्मक प्रभाव डालता है। ऐसे ही एक जगह है आपका पर्स, जिसमें रखी हर एक चीज का आपके धन की स्थिति पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
दरअसल, वास्तु के अनुसार आपके पर्स में पैसों के अलावा भी बहुत-सी चीजें रखी होती हैं और कई सारी चीजें तो ऐसी होती है जिनका कोई इस्तेमाल नहीं होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, जो चीजें उपयोग नहीं आती है उन चीजों को तुरंत पर्स से बाहर कर देना चाहिए। क्योंकि इन चीज़ों से आस-पास निगेटिव ऊर्जा बढ़ती है। हालांकि कुछ चीजें ऐसी भी हैं जिन्हें पर्स में रखना बहुत शुभ माना जाता है और इनसे घर में बरकत भी रहती है। तो आइए जानते हैं कौन-कौन सी हैं वो चीजें- पर्स में भूलकर भी ना रखें कटे-फटे नोट- कभी भी अपने पर्स में कटे-फटे व पुराने नोट नहीं रखना चाहिए। क्योंकि इससे आपके पास से धन की बरकत जा सकती है। इससे पैसों की आवक भी कम होने लगती है। पर्स जितना साफ-सुथरा होगा आपके पास धन उतना ज्यादा होगा।
पर्स में ना रखें चाबी- वास्तु के अनुसार पर्स में कभी भी चाबी नहीं रखनी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को धन की कमी का सामना करना पड़ता है।
पर्स में रखें लक्ष्मी माता की कागज की फोटो- अपने पर्स में हमेशा लक्ष्मी माता के कागज की फोटो रखना चाहिए। इससे आपके पास कभी पैसों की आवक बंद नहीं होगी। लेकिन ध्यान रहे कि समय-समय पर यह फोटो चेंज करते रहें। इसके साथ ही अपने पर्स में श्रीयंत्र भी रखना चाहिए। यह लक्ष्मी का रूप माना जाता है।
पर्स में चावल के दाने- अपने पर्स में 21 अखंडित चावल के दाने बांधकर रखना बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे आपके पास हमेशा धन की आवक रहेगी और पैसों की तंगी नहीं होगी।
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शनि जयंती के दिन अपनी राशि के हिसाब से करें ये उपाय

दिनांक 19 मई दिन शुक्रवार को ज्येष्ठ अमावस्या तिथि के दिन शनिदेव का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन शनि जयंती मनाई जाती है. अगर आपके कुंडली में शनि ग्रह कमजोर स्थिति में हैं और पाप ग्रह के साथ होने से शनि दोष बना रहे हैं या फिर आपके ऊपर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रभाव है, तो अपनी राशि के हिसाब से इन ज्योतिष उपाय को जरूर करें. इससे अगर आपके जीवन में कोई कष्ट आ रही होगी, तो वह भी दूर हो जाएगी और व्यक्ति को सभी कार्यों में तरक्की मिलती है. तो ऐसे में आइए आज हम आपके लिए कुछ उपायों को भी लेकर आए हैं, जिससे आपके सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा.
शनि जयंती के दिन अपनी राशि के हिसाब से करें ये उपाय
मेष राशि
मेष राशि के जातकों को शनि जयंती के दिन सरसों के तेल या फिर काले तिल का दान करना चाहिए. इस दिन हनुमान जी और शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनि चालीसा और हनुमान चालीसा का पाठ करें.
वृष राशि
वृष राशि के जातकों को काला कंबल दान करना चाहिए और पूजा के समय शनि चालीसा का पाठ करें. ऐसा करने से आपको शनिदेव के आशीर्वाद की प्राप्ति होगी और कष्टों से भी मुक्ति मिल जाएगी.
मिथुन राशि
मिथुन राशि के जातकों को शनि जयंती के दिन बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना चाहिए और उन्हें कुछ गिफ्ट करना चाहिए. इसके अलावा इस दिन शनि मंदिर में जाकर काले कपड़े और उड़द का दान करना चाहिए. इससे आपको शनि की पीड़ा से तुरंत मुक्ति मिल जाएगी.
कर्क राशि
कर्क राशि वाले जातकों को शनि जयंती के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए. इससे शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से आपको मुक्ति मिल जाएगी.
सिंह राशि
सिंह राशि वालों को शनि जयंती के दिन हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए. उसके बाद शनिदेव का दर्शन कर लोहा, काला तिल, छाता का दान करना चाहिए. इससे व्यक्ति को शनि दोष से मुक्ति मिलती है और शनि मंत्र का जाप करना भी शुभ फलदायी साबित होता है.
कन्या राशि
कन्या राशि वाले जातकों के लिए शनि जयंती शुभ रहने वाला है. आपको शनि मंदिर जाकर पूजा-पाठ करना है. उसके बाद एक कटोरे में तेल भरकर अपनी छाया देखें और उसे दान करें. छाया दान करने से शनि दोष दूर होता है और इस दिन शनि मंत्र का जाप करना बेहद शुभ माना जाता है.
तुला राशि
तुला राशि वालों को शनि जयंती के दिन मंदिर जाकर शनि देव की पूजा करनी चाहिए. उसके बाद काला या नीला वस्त्र, तिल, कंबल आदि का दान गरीबों को करना चाहिए. इससे आपके करियर में उन्नति होगी.
वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि जयंती शुभ फलदायी साबित होगा. इस दिन हनुमान जी की पूजा करें, फिर पूजा के बाद काले कुत्ते की अवश्य सेवा करें.
धनु राशि
धनु राशि के जातकों के लिए शनि जयंती शानदार रहने वाला है. आपको शनि जयंती के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए. साथ ही पीले वस्त्र का दान अवश्य करें.
मकर राशि
मकर राशि वाले जातकों को शनि जयंती के दिन विधिपूर्वक शनिदेव की पूजा करनी चाहिए. उनके प्रिय वस्तु जैसे कि लोहा, काले कपड़े, जूता, चप्पल आदि का दान करना चाहिए. इससे आपके ऊपर शनिदेव की कृपा बनी रहेगी.
कुंभ राशि
कुंभ राशि वाले जातकों को शनि जयंती के दिन काले कंबल, छाता, जूता आदि का दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है और शनिदेव बेहद प्रसन्न रहते हैं. उनकी कृपा से सबकुछ अच्छा होता है.
मीन राशि
मीन राशि वालों को शनि जयंती के दिन पीले कपड़े, हल्दी, केसर का दान करना चाहिए, साथ ही विष्णु चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए. इससे शनिदेव जल्द प्रसन्न होते हैं.
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महिलाओं ने वट सावित्री व्रत रखकर पूजा-अर्चना की

खरोरा। छत्तीसगढ़ में महिलाओं ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत रखकर पूजा-अर्चना की। महासमुंद जिले खरोरा सहित आस-पास के इलाके में भी महिलाओं ने तपती धूप और गर्मी के बीच पति की लंबी उम्र की कामना के लिए वट सावित्री व्रत रखकर बरगद के वृक्ष की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा की। फिर मौली धागे को लेकर 7 और 108 फेरे लेकर व्रत पूरा किया।
व्रत कर रही महिलाओं ने बताया कि, वट सावित्री व्रत की कथा के अनुसार, अश्वपति की बेटी सावित्री का विवाह सत्यवान से हुआ। सत्यवान के पिता का राजपाट छीन गया था इसलिए ही उनके पति अपने माता-पिता के साथ जंगल में रहते थे। जंगल में सत्यवान लकड़ियां काटने जाया करते थे और सावित्री अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करती थीं। एक दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ जंगल में लकड़ियां काटने गई। लकड़ियां काटते समय सत्यवान को चक्कर आने लगा तो वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण हरने आए। सावित्री ने उन्हें पहचान लिया और उनसे कहा कि, आप मेरे सत्यवान के प्राण न लें। बदले में मेरे प्राण ले लें।
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प्रदीप मिश्रा का मशहूर गीत, सुनकर झूमे भक्त

सीहोर वाले भागवताचार्य पंडित प्रदीप मिश्रा को लेकर उनके भक्तों की दीवानगी देखते ही बनती हैं। यही वजह हैं की देश के किसी कोने में जहाँ कही भी पंडित श्री मिश्रा द्वारा भागवत कथा कहा जाता हैं खुद ब खुद लाखो लोगों की भीड़ जुट जाती हैं। पंडित प्रदीप मिश्रा की लोकप्रियता ने देश की सरहदों को भी पार कर दिया हैं। पिछले दिनों छग के भिलाई में उनके महाभागवत का आयोजन हुआ। यह आयोजन पूरी तरह सफल रहा। इस शिव महापुराण का रसपान करने छत्तीसगढ़ के अलग अलग जिलों के अलावा बिहार, एमपी, यूपी और महाराष्ट्र से भी उनके भक्त पहुंचे हुए थे। एक आंकड़े के मुताबिक़ इस महापुराण को सुनने वालो की तादात ने 4 लाख की संख्या को भी पार कर दिया।
आयोजन के दौरान भक्त तब मंत्रमुग्ध हो उठे जब छत्तीसगढ़ी जुबान नहीं होने के बावजूद उनको मशहूर गीत जप हर हर भोला गया। हालांकि इससे पहले उन्होंने यह भी कहा कि वह छत्तीसगढ़िया गीत गाने की कोशिश कर रहे हैं। यदि उन्हें समझ आ गया तो ठीक, बाकि भोलेनाथ तो समझ ही जायेंगे।
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रामकथा की कलात्मक प्रस्तुति के आरंभिक दृश्य ओंगना पहाड़ियों में

  • रायगढ़ की ओंगना पहाड़ियों में अंकित है श्रीराम-दशानन के बीच युद्ध जैसा चित्र
  • 1 से 3 जून तक रामलीला मैदान में आयोजित हो रहा राष्ट्रीय रामायण महोत्सव
  • राष्ट्रीय रामायण महोत्सव में होगा रामायण का विराट मंचन
रायपुर। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल रायगढ़ में राष्ट्रीय महोत्सव का आयोजन करा रहे हैं इसके माध्यम से देश-विदेश में प्रचलित रामायण के विविध रूपों और भगवान श्रीराम के आदर्श की झलक महोत्सव के माध्यम से देखने मिलेगी। मुख्यमंत्री द्वारा की जा रही यह पहल उस विशिष्ट परंपरा को ऊंचाई देने की दिशा में सार्थक पहल है जिसकी सबसे पहले शुरूआत उन शैलचित्रों से हुई जो रायगढ़ के ओंगना में दिखते हैं। यहां लोकअनुश्रुति है कि ओंगना की पहाड़ियों में रामकथा का चित्रण है। यहाँ दस सिरों वाले एक व्यक्ति का युद्ध एक युवक से होता दिखाया गया है। लोक अनुश्रुति है कि दस सिर वाला व्यक्ति रावण है और उनसे युद्ध कर रहे व्यक्ति श्री राम। इस  तरह रामकथा की कलात्मक प्रस्तुति का जो बीज ओंगना में शैल चित्रकारों ने रोपा, अब उसकी विशिष्ट कलात्मक प्रस्तुति रामायण महोत्सव के रूप में होगी।
संस्कृतिधानी रायगढ़ अपने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहर के लिए प्रदेश ही नहीं पूरे देश में विशिष्ट स्थान रखता है। रायगढ़ कला की नगरी है। यहां के मूर्धन्य कला साधकों ने देश विदेश के कला क्षितिज पर अपनी प्रतिभा से विशेष लालिमा बिखेरी है। रायगढ़ में रामायण को कहे और सुने जाने के साथ रामलीला मैदान में उसके जीवंत मंचन की एक समृद्ध परंपरा रही है। कला का यह स्वरूप रायगढ़ के इतिहास से भी जुड़ाव रखता है। रायगढ़ की ख्याति यहां की पहाड़ियों में हजारों वर्षाे पूर्व के बने शैल चित्रों के लिए भी है। जो तत्कालीन समाज के जीवनशैली से परिचय कराते हैं। शैल चित्रों की इन्हीं श्रृंखला के बीच रायगढ़ जिले के सुदूर वनांचल में बसे धरमजयगढ़ विकासखंड से 8 किमी दूर ओंगना पहाड़ी स्थित है। यहां पर भी कई शैल चित्र बने हुए हैं। जिनमें एक चित्र है जिसमें दस सर वाला व्यक्ति अंकित है जो दूसरे व्यक्ति से युद्ध करता दिखाई देता है। पास ही एक महिला खड़ी है। जनश्रुतियों के अनुसार यह रामायण के राम रावण युद्ध प्रसंग से समानता रखता है।
शैल चित्र प्राचीन कालीन समाज और जीवनशैली का जीवंत पुलिंदा है। हजारों वर्ष पूर्व बने ओंगना पहाड़ी के इन शैलाश्रयों में बने चित्र जनश्रुतियों के अनुसार तब के समाज में रामायण के प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं। रामायण की गाथा पीढ़ियों से कही और सुनी जा रही है। देश के विभिन्न भागों में इसके विभिन्न स्वरूप प्रचलित हैं। किंतु पुरातात्विक अवशेषों के रूप में रामायण प्रसंग का उल्लेख दुर्लभ है। छत्तीसगढ़ की धरा से भगवान के राम के जुड़ाव के कई प्रसंग मिलते हैं। छत्तीसगढ़ को भगवान श्री राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि माना जाता है। इस नाते उन्हें छत्तीसगढ़ में भांजे का दर्जा प्राप्त है। प्रदेश में माता कौशल्या भी आराध्य हैं। चंदखुरी में देश का इकलौता कौशल्या माता का मंदिर निर्मित है। वनवास के दौरान भी भगवान श्री राम छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों से गुजरे थे। जिन्हें चिन्हांकित कर राम वन गमन परिपथ के रूप में विकसित किया जा रहा है।
रायगढ़ से रामायण के जुड़ाव की इस अमूल्य विरासत को आगे बढ़ाने के क्रम में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की विशेष पहल पर रायगढ़ के रामलीला मैदान में 01 से 03 जून तक प्रदेश का पहला राष्ट्रीय रामायण महोत्सव का भव्य आयोजन होने जा रहा है। जिसमें देश विदेश की मंडलियां रामायण के अरण्य काण्ड पर प्रस्तुति देंगी। इस विराट आयोजन की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं। रामायण प्रसंग के मंचन के साथ ही कार्यक्रम में हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ और केलो महाआरती व दीपदान का कार्यक्रम भी आयोजित है।

 

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शुभ मुहूर्त में करें अखंड सौभाग्य के लिए वट वृक्ष की पूजा

सनातन धर्म में कई ऐसे व्रत हैं जिन्हें करना सौभाग्य माना जाता है। वट सावित्री व्रत का विशेष महत्व है। 19 मई शुक्रवार को सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए (बरगद) के वृक्ष की पूजा करेंगी। (अमावस्या) 18 मई गुरुवार रात 09:42 पर शुरू होकर 19 मई की रात 09:22 बजे तक होगी। उदया तिथि के अनुसार (वट सावित्री व्रत) 19 शुक्रवार को रखा जाएगा।
वट वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में शिव का वास
वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। बरगत के पेड़ में त्रिदेव जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में भगवान शिव का वास होता है। मान्यता के अनुसार इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत करती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन माता सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान को छीन कर ले आईं थी, कहते हैं इस व्रत को जो भी सुहागिन महिला करती है उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
व्रत पूजन की सरल विधि
वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिला सूर्योदय से पूर्व उठें। प्रातः जल्दी स्नानादि करने के बाद नए वस्त्र धारण करें श्रंगार करें। बरगद के पेड़ की जड़ को जल अर्पित करें, गुड़ चना अक्षत फूल इत्यादि भी अर्पित करें। कच्चे सूत से वट के वृक्ष में सात बार परिक्रमा करते हुए बांध दें। परिक्रमा के समय पति की लंबी आयु की कामना करें। वट सावित्री व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। इसके बाद घर के बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करें।
व्रत के दिन क्या करें, क्या न करें
वट सावित्री व्रत के दिन दान करना अति लाभकारी माना गया है। इस दिन किसी सुहागन स्त्री को सुहाग का सामान दान करना शुभ माना गया है। वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाओं को काले नीले कपड़े पहनने से बचना चाहिए। इस दिन व्रत उपवास का पालन करना चाहिए। दूध- फल का सेवन करें। एक समय भोजन करके भी उपवास कर सकते हैं। इस दिन तामसिक भोजन व लहसुन प्याज आदि का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इस दिन ज्यादा से ज्यादा मौन का पालन करें और अपने ईष्ट प्रभु के मंत्रों का जप करें।

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इस लेख में दी गई जानकारी/ सामग्री/ गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ ज्योतिषियों/ पंचांग/ प्रवचनों/ धार्मिक मान्यताओं/ धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें।
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गुरुवार के दिन इन कार्यों की क्यों? है मनाही, जाने...

सनातन धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित होता हैं वही गुरुवार का दिन विष्णु पूजा के लिए उत्तम माना जाता हैं। इस दिन भक्त भगवान की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
मान्यता है कि ऐसा करने से प्रभु की कृपा व आशीर्वाद मिलता हैं लेकिन इसी के साथ कुछ ऐसे काम है जिन्हें गुरुवार के दिन करना वर्जित माना गया हैं अगर कोई इन कार्यों को करता हैं तो उसे कई तरह की समस्याओं का सामना जीवन में करना पड़ सकता हैं, तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि गुरुवार के दिन किन कार्यों को करने की मनाही हैं तो आइए जानते हैं।
गुरुवार को न करें ये काम-
आपको बता दें कि गुरुवार के दिन भूलकर भी हाथ और पैरों के नाखून को नहीं काटना चाहिए इससे सेहत पर बुरा असर पड़ता है साथ ही साथ कुंडली का गुरु रूभी कमजोर होकर अशुभ फल प्रदान करता हैं इसके अलावा गुरुवार के दिन सिर के बाल, दाढ़ी भी नहीं कटवाना चाहिए। अगर कोई ऐसा करता हैं तो उसे संतान सुख में समस्याओं का सामना करना पड़ता है इसके अलावा आज के दिन भूलकर भी कान की सफाई नहीं करनी चाहिए।
ज्योतिष अनुसार आज के दिन महिलाओं को अपने बाल नहीं धोने चाहिए ऐसा करने से कमजोर गुरु वैवाहिक जीवन, संतान सुख पर बुरा असर डालता हैं इसके अलावा आज के दिन वस्त्रों को धोना, पोछा लगाने जैसे कार्य को भी करना मना होता हैं ऐसा करने से माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु क्रोधित हो सकते हैं जिससे जातक को दरिद्रता का सामना करना पड़ सकता हैं।
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मंगल दोष से मुक्ति के लिए करें स्कंद षष्ठी का व्रत

जानें इसकी तिथि और पूजन विधि
सनातन परंपरा में हर महीने शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि भगवान कार्तिकेय को समर्पित होती है। भगवान कार्तिकेय को स्कंद, मुरुगन और सुब्रमण्यम के नाम से जाना जाता है। स्कंद भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र हैं और गणेश के बड़े भाई हैं। भगवान कार्तिकेय की पूजा के लिए स्कंद षष्ठी व्रत को बहुत ज्यादा शुभ माना गया है। मई महीने में यह पावन तिथि 25 मई 2023 को पड़ेगी। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस व्रत को रखने और विधि-विधान पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है और संतान की उन्नति होती है। वहीं मंगल दोष से मुक्ति के लिए भी स्कंद षष्ठी का व्रत करना चाहिए।
स्कंद षष्ठी का महत्व
हिंदू धर्म में भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र, भगवान कार्तिकेय की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। भगवान श्री गणेश की तरह भगवान कार्तिकेय की पूजा भी जीवन से जुड़ी सभी बाधाओं को दूर करके सुख, सौभाग्य और सफलता दिलाती है। मान्यता है कि इसी पावन तिथि पर भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान कार्तिकेय देवताओं के सेनापति हैं, और अपने भक्तों को बड़े से बड़े संकट से पलक झपकते बाहर निकाल लाते हैं। इनकी पूजा से मंगल दोष भी दूर होते हैं। बता दें कि ज्योतिष में मंगल को ग्रहों का सेनापति माना जाता है। दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को मुरुगन के नाम से पूजा जाता है।
स्कंद षष्ठी तिथि पर सुबह सूर्यादय से पहले उठें और स्नान-ध्यान करने के बाद भगवान कार्तिकेय के बाल स्वरूप की फोटो या मूर्ति को स्थापित करें। इसके बाद उन्हें पुष्प, चंदन, धूप, दीप, फल, मिष्ठान, वस्त्र, आदि चढ़ाएं और स्कंद षष्ठी व्रत की कथा पढ़ें। भगवान कार्तिकेय के साथ माता पार्वती और महादेव की पूजा जरूर करें। हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान कार्तिकेय को मोरपंख बहुत पसंद है, क्योंकि मोर उनकी सवारी है। इसलिए स्कंद षष्ठी की पूजा में विशेष रूप से भगवान कार्तिकेय को मोर पंख अर्पित करना चाहिए।

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उपवास रखने वालों के लिए केवीटी फूड कोर्ट परोसेगा भोजन

वाराणसी (आईएएनएस)। काशी विश्वनाथ धाम मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को फूड कोर्ट की सुविधा का आनंद मिलेगा, जहां विशेष रूप से उपवास के दौरान खाया जाने वाला भोजन उपलब्ध होगा। शिवरात्रि, सावन और अन्य धार्मिक त्योहारों के दौरान व्रत रखने वाले भक्त यहां 'व्रत की थाली' का स्वाद ले सकते हैं। प्रबंधन द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, बाबा काशी विश्वनाथ के कई भक्त शिवरात्रि और सावन के महीने में उपवास रखते हैं। उनकी सुविधा के लिए मंदिर परिसर में फूड कोर्ट खोला गया है। सावन और शिवरात्रि के दौरान यहां व्रत के लिए विशेष भोजन परोसा जाता है। अन्य दिनों में भी व्रत रखने वाला कोई भी व्यक्ति यहां मनपसंद भोजन कर सकता है। उनकी मांग के अनुसार भोजन कराया जाएगा।
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पूजा घर में इसलिए रखा जाता है तांबे के कलश में पानी...

वास्तु शास्त्र में पूजा घर से जुड़े भी क नियमों का बारे में विस्तार से बताया गया है। यदि आपके घर में भी पूजा घर स्थित है तो कुछ नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। वास्तु के मुताबिक पूजा घर में जल रखना जरूरी माना जाता है। पूजा घर में तांबे में कलश में जल रखना शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पूजा घर में रखे जल का काफी सकारात्मक प्रभाव होता है। पूजा घर में हम पूजन सामग्री के अलावा शंख, गरुढ़ घंटी, कौड़ी, चंदन बट्टी, तांबे का सिक्का, आचमन पात्री, गंगाजल और पानी का लोटा आदि रखते हैं। कुछ लोगों के घरों में लोटे के स्थान पर चांदी या तांबे के कलश भी होते हैं। इसी जल से भगवान की मूर्ति को स्नान कराने के बाद पूजा की जाती है और उस पवित्र जल को घर में छिड़का भी जाता है।
जल के रूप में होती है वरूण देव की स्थापना
धार्मिक मान्यता है कि जिस प्रकार पूजा घर में गुरुड़ देव की स्थापना गरुड़ घंटी के रूप में की जाती है, वैसे ही वरुण देव की स्थापना जल के रूप में की जाती है। जल को तांबे के कलश में रखना ज्यादा शुभ माना जाता है क्योंकि तांबे के पात्र में ऐसे गुण होते हैं जो जल को शुद्ध करता है। धार्मिक मान्यता है कि वरुण देव दुनिया की रक्षा करते हैं। पूजा घर में जल में तुलसी के कुछ पत्ते डाल कर रखने से वह जल पवित्र हो जाता है। जल से पूजा स्थल को शुद्ध करने पर देवी-देवता प्रसन्न होते हैं।
ऐसे करें पूजाघर में जल की स्थापना
पूजा घर में जल कलश की स्थापना करते समय कुछ बातों की सावधानी रखनी चाहिए। तांबे का कलश उत्तर और ईशान कोण में स्थापित करना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। वास्तु के अनुसार पूजा घर में जल रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। आर्थिक उन्नति के द्वार खुलते हैं और जीवन में सभी संकट दूर होते हैं।

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बुधवार के दिन करें ये उपाय, व्यवसाय में होती वृद्धि

हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित होता हैं वही बुधवार का दिन गौरी पुत्र गणेश की आराधना व पूजा के लिए उत्तम माना जाता हैं। इस दिन भक्त भगवान की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं मान्यता है कि इस दिन अगर सच्चे मन से श्री गणेश की आराधना की जाए तो भगवान जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों के सभी कष्टों का निवारण कर देते हैं।
ऐसे में हर कोई आज के दिन प्रभु की आराधना करता हैं अगर आप भी श्री गणेश का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो बुधवार के दिन पूजा पाठ और व्रत के अलावा संकट नाशन गणेश स्तोत्र का पाठ जरूर करें मान्यता है कि इस पाठ को करने से व्यवसाय में वृद्धि होती हैं और आर्थिक स्थिति में भी सुधार देखने को मिलता हैं। तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं संकट नाशन गणेश स्तोत्र पाठ।
संकटनाशन गणेश स्तोत्र-
॥ श्री गणेशायनमः ॥
नारद उवाच -
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम ।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये ॥1॥
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम ।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम ॥2॥
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ॥3॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम ॥4॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर: ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो ॥5॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ॥7॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ॥8॥
॥ इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ॥
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इन राशि वालों के लिए बेहद खास रहेगा जून का महीना

पदोन्नति-धन लाभ के प्रबल योग
ग्रह नक्षत्रों की चाल का प्रभाव सभी राशि वालों पर देखने को मिलता है। हर ग्रह एक निश्चित समय अवधि के बाद अपना स्थान परिवर्तन करता है। हर माह में ग्रहों का गोचर सभी राशियों के जीवन पर असर डालता है। जून का महीना जल्द ही शुरू होने वाला है। ऐसे में कई ग्रह अपना स्थान परिवर्तन करने वाले हैं। 7 जून को बुध, मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में गोचर करेंगे। वहीं 24 जून को वृषभ से निकलकर मिथुन में गोचर करेंगे। वहीं शनि भी 17 जून को अपनी ही राशि में वक्री होंगे। माह के अंत में 30 जून को मंगल, सिंह राशि में गोचर कर जाएंगे। इस दौरान इन ग्रहों के गोचर से कुछ राशि वालों को जमकर लाभ होने वाला है।
मेष राशि
जून माह में 4 ग्रहों के गोचर का लाभ मेष राशि वालों को मिलने वाला है। नौकरीपेशा लोगों के पदोन्नति की संभावना है। ग्रहों की स्थिति से नौकरीपेशा लोगों को शुभ परिणाम मिल सकते हैं। इस समय अवधि में परिवार में खुशियों का आगमन होगा। भूमि, भवन और वाहन की खरीदारी कर सकते हैं। यदि आप किसी विदेशी कंपनी के साथ डील करने विचार बना रहे हैं तो वह सफल हो सकती है।
मिथुन राशि
मिथुन राशि वालों के लिए ग्रहों का ये गोचर काफी खास रहने वाला है। सहकर्मियों का सहयोग प्राप्त होगा। कार्यक्षेत्र में तरक्की के नए अवसर प्राप्त होंगे। कुल मिलाकर ये माह काफी सुखद रहने वाला है। कार्यक्षेत्र और व्यापार में भी बड़ा लाभ होने की संभावना है। आर्थिक मामलों में उन्नति मिलेगी। पिता के साथ संबंध मजबूत होंगे। छात्रों के लिए यह समय अच्छा है। धार्मिक कार्यों में आपका मन लगेगा।
कन्या राशि
कन्या राशि वालों का भाग्य जून में चमक उठेगा। परिवार के लोगों के साथ आपके संबंध मजबूत होंगे। इस माह आपके रुके हुए काम बन सकते हैं। कारोबारियों को भी विशेष लाभ होने की संभावना है। इस दौरान किसी नए काम की शुरुआत कर सकते हैं। अचानक कहीं से धन लाभ होने के योग बन रहे हैं। अविवाहित लोगों को पार्टनर मिल सकता है। सरकारी योजनाओं से लाभ मिलेगा।
तुला राशि
ग्रहों के गोचर से तुला राशि के जातकों को काफी फायदा होने वाला है। ये महीना करियर में काफी सफलता दिलाएगा। इस राशि के जातकों को करियर में भी काफी लाभ होगा। लंबे समय से अटके हुए काम पूरे होंगे। आर्थिक रूप से लाभ होगा। परिवार के सदस्यों के बीच प्यार बढ़ेगा। इस समय आपके सुख-साधन बढ़ेंगे। वाहन और प्रॉपर्टी खरीद सकते हैं। जीवनसाथी के साथ अच्छे संबंध बनेंगे।

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'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'
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कब है गंगा दशहरा पर्व, जानिए तारीख

हिंदू धर्म में वैसे तो कई सारे पर्व त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन गंगा दशहरा बेहद ही खास होता हैं जो कि हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मनाया जाता हैं इस दिन मां गंगा की विधिवत पूजा की जाती हैं और उपवास आदि भी रखा जाता हैं धार्मिक तौर पर गंगा को बेहद पवित्र और पूजनीय माना गया हैं मान्यता है कि इस पवित्र नदी में अगर स्नान किया जाए तो जातक के सभी पापों का नाश हो जाता हैं।
गंगा जल का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठान व पूजा पाठ में अधिक किया जाता हैं। गंगा दशहरा के पावन दिन पर लोग गंगा नदी में स्नान करके मां गंगा की पूजा आराधना करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि गंगा दशहरा के शुभ दिन पर ही गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई थी। इस बार गंगा दशहरा का पर्व 30 मई को मनाया जाएगा। तो आज हम आपको इस पर्व से जुड़ी जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
गंगा दहशरा पर्व-
धार्मिक पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि का आरंभ 29 मई को दोपहर 11 बजकर 49 मिनट से हो रहा हैं और इस तिथि का समापन 30 मई को दोपहर 1 बजकर 7 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में उदया तिथि की मानें तो गंगा दशहरा का पर्व इस बार 30 मई को मनाना उत्तम रहेगा।
कहा जाता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान के बाद मां गंगा की विधिवत पूजा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं। इस दिन अगर शुद्ध मन से गंगा में डुबकी लगाई जाए तो मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और दस तरह के विकारों का नाश होता हैं।
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विवाह तय करते वक्त इन शुभ नक्षत्रों का रखें ध्यान

हमेशा सुखमय रहेगा वैवाहिक जीवन
हिन्दू परंपरा में सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली का मिलान और विवाह की शुभ तिथि को बड़ा महत्व दिया जाता है। आजकल कई लोग कुंडली मिलान को ज्यादा महत्व नहीं देते, लेकिन पंचांग के अनुसार विवाह के लिए शुभ तिथि और मुहूर्त का ध्यान जरुर रखते हैं। ज्योतिष में विवाह की तिथि की गणना में नक्षत्रों की स्थिति और उनकी शुभता का विशेष ध्यान जाता है। इनमें से कुछ शुभ नक्षत्र ऐसे होते हैं, जिनसे शादी के बाद भविष्य में आने वाली खुशियों के बारे में अनुमान लगाया जाता है। विवाह के लिए सही नक्षत्र का चयन महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह पति-पत्नी के आपसी सामंजस्य, स्वास्थ्य और समृद्धि को प्रभावित कर सकता है। तो चलिए आपको बताएं विवाह के लिए कौन से नक्षत्र सबसे शुभ और जरूरी माने जाते हैं।
रोहिणी नक्षत्र
रोहिणी नक्षत्र विवाह के लिए सबसे शुभ नक्षत्रों में से एक माना जाता है। यह देवता ब्रह्मा द्वारा शासित है और चंद्रमा ग्रह से जुड़ा है। रोहिणी को विकास, प्रचुरता और प्रजनन शक्ति का नक्षत्र माना जाता है। रोहिणी नक्षत्र के दौरान शादी करना जोड़े के लिए सौभाग्य, सद्भाव और समृद्धि लाने वाला माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि रोहिणी नक्षत्र में शादी करने से वैवाहिक जीवन में समृद्धि, खुशी और लंबे समय तक चलने वाला प्यार आता है।
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, आर्यमान देवता द्वारा शासित है और यह सूर्य ग्रह से जुड़ा हुआ है। वैदिक ज्योतिष में इसे भी विवाह के लिए शुभ माना जाता है। यह नक्षत्र समृद्धि, खुशी और सफलता का नक्षत्र माना जाता है। उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के दौरान विवाह करना जोड़े के लिए सौभाग्य, स्थिरता और खुशी लाने वाला माना जाता है। इस नक्षत्र में विवाह करने से वैवाहिक जीवन में सुख, प्रेम और समृद्धि आती है।
हस्त नक्षत्र
हस्त नक्षत्र सावित्री देवी द्वारा शासित है और चंद्रमा ग्रह से जुड़ा हुआ है। यह नक्षत्र रचनात्मकता और शिल्प कौशल का नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र में पैदा हुए लोग प्रतिभाशाली, मेहनती और कल्पनाशील माने जाते हैं। हस्त नक्षत्र के दौरान शादी करना जोड़े के लिए खुशी, समझ और समृद्धि लाने वाला माना जाता है।
स्वाति नक्षत्र
स्वाति नक्षत्र पर वायु देवता का शासन है और यह राहु ग्रह से जुड़ा हुआ है। यह नक्षत्र स्वतंत्रता और लचीलेपन का नक्षत्र माना जाता है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोगों को साहसी, आकर्षक और नवीन कहा जाता है। स्वाति नक्षत्र के दौरान शादी करने से जोड़े में सद्भाव, संतुलन और खुशी आती है।
अनुराधा नक्षत्र
अनुराधा नक्षत्र पर मित्र देवताओं का शासन है और यह शनि ग्रह से जुड़ा है। इस नक्षत्र को मित्रता, निष्ठा और भक्ति का नक्षत्र माना जाता है। अनुराधा नक्षत्र के दौरान शादी करने से जोड़े में स्थिरता, परिपक्वता और आपसी सम्मान आता है। अनुराधा नक्षत्र के दौरान शादी करने से वैवाहिक जीवन में खुशी, सफलता और लंबे समय तक चलने वाला प्यार मिल सकता है।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र पर विश्वदेव का शासन है और यह सूर्य ग्रह से जुड़ा है। यह नक्षत्र विजय, सिद्धि और सफलता का नक्षत्र माना जाता है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में विवाह करने से दांपत्य जीवन में समृद्धि, वृद्धि और सुख-समृद्धि आती है।
रेवती नक्षत्र
वैदिक ज्योतिष मेंरेवती नक्षत्र को विवाह के लिए अनुकूल नक्षत्र माना गया है। इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोगों को एक आध्यात्मिक और दार्शनिक प्रकृति का कहा जाता है। माना जाता है कि इस नक्षत्र के तहत पैदा हुए लोग प्यार करने वाले, दयालु और पालन-पोषण करने वाले होते हैं। ये सभी गुण एक सफल विवाह में योगदान कर सकते हैं।

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त्रयोदशी तिथि पर करें प्रदोष व्रत, भगवान शिव होंगे प्रसन्‍न

त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्‍न होते हैं। विशेष उपाय करें जिससे आपका भाग्योदय हो सकता है। प्रत्येक महिने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत करते हैं। इस बार बुधवार को प्रदोष व्रत है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने से आपका भाग्योदय हो सकता है।
प्रदोष व्रत के दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान शंकर, पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराएं।इसके बाद बेल पत्र, गंध, चावल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची भगवान को चढ़ाएं। पूरे दिन निराहार (संभव न हो तो एक समय फलाहार) कर सकते हैं) रहें और शाम को दोबारा इसी तरह से शिव परिवार की पूजा करें।
भगवान शिवजी को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। भगवान शिवजी की आरती करें। भगवान को प्रसाद चढ़ाएं और उसीसे अपना व्रत भी तोड़ें। उस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद तांबे के लोटे से सूर्यदेव को अर्ध्य देें। पानी में आंकड़े के फूल जरूर मिलाएं। आंकड़े के फूल भगवान शिवजी को विशेष प्रिय हैं। ऐसा करने से सूर्यदेव सहित भगवान शिवजी की कृपा बनी रहती है।
कर्ज से मुक्ति के लिए उपाय
सूर्यास्‍त के समय गुरु काे याद करते हुए शिवजी का स्मरण कर 17 मंत्र ॐ शिवाय नम:,ॐ सर्वात्मने नम:,ॐ त्रिनेत्राय नम:,ॐ हराय नम:, ॐ इन्द्र्मुखाय नम:, ॐ श्रीकंठाय नम:, ॐ सद्योजाताय नम:, ॐ वामदेवाय नम:, ॐ अघोरह्र्द्याय नम:, ॐ तत्पुरुषाय नम:, ॐ ईशानाय नम:, ॐ अनंतधर्माय नम:, ॐ ज्ञानभूताय नम:, ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नम: ॐ प्रधानाय नम:, ॐ व्योमात्मने नम: व ॐ युक्तकेशात्मरूपाय नम: बोलें, जिनके सिर पर कर्जा ज्यादा हो, वो शिवजी के मंदिर में जाकर दिया जलाकर ये मंत्र बोले।इससे कर्जा से मुक्ति मिलेगी।
आर्थिक परेशानी से बचने के लिए उपाय
जिनके घर में आर्थिक कष्ट रहते हैं वो कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शाम के समय जप-प्रार्थना करें एवं शिवमंदिर में दीप-दान करें और रात को जब 12 बजे थोड़ी देर जाग कर जप और एक श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें। शाम को बराबर सूर्यास्त हो रहा हो उस समय एक दिया पर पांच लंबी बत्तियां अलग-अलग उस एक में हो शिवलिंग के आगे जला के रखना। बैठ कर भगवान शिवजी के नाम का जप करना प्रार्थना करने से कर्जा जल्दी उतरता है।

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कब है निर्जला एकादशी मंगलवार 30 मई को, जानिए नियम...

हिंदू धर्म में वैसे तो कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं लेकिन एकादशी का व्रत बेहद ही खास होता हैं जो कि हर माह में पड़ता हैं। धार्मिक पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर निर्जला एकादशी का पावन व्रत किया जाता हैं जो कि इस बार 30 मई दिन मंगलवार को पड़ रही हैं।
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा आराधना को समर्पित होता हैं इस दिन भक्त भगवान की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं मान्यता है कि एकादशी के दिन प्रभु की आराधना करने से जीवन के सभी कष्टों का निवारण हो जाता हैं और सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता हैं। लेकिन इसी के साथ ही एकादशी के दिन कुछ नियमों का पालन करना जरूरी होता हैं तो आज हम आपको बता रहे हैं कि निर्जला एकादशी के दिन क्या करें और क्या नहीं।
निर्जला एकादशी के नियम-
निर्जला एकादशी के व्रत को सबसे अधिक कठिन माना गया हैं क्योंकि इस दिन व्रत रखने वाले को जल का त्याग करना होगा। इस दिन जल की एक बूंद भी ग्रहण करना ​वर्जित होता हैं। एकादशी व्रत के एक दिन पहले से ही मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा एकादशी व्रत के पारण के बाद भी सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।
एकादशी का व्रत करने वाले को संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दिन दान पुण्य के कार्य करना भी उत्तम माना जाता हैं। निर्जला एकादशी पर आप जल से भरे कलश का दान कर सकते हैं और इस दिन पानी पिलाना भी उत्तम माना जाता हैं। निर्जला एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए इससे छोटे जीवन मर सकते हैं जिससे जातक पर जीव हत्या का दोष लग सकता हैं।
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मंगलवार को पूजा में पढ़ें ये आरती, हनुमान जी होंगे प्रस्न्न

हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता की पूजा को समर्पित किया गया हैं वही मंगलवार का दिन हनुमान पूजा के लिए उत्तम माना जाता हैं इस दिन भक्त भगवान को प्रसन्न करने के लिए पूजा पाठ करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
मान्यता है कि ऐसा करने से प्रभु अपनी कृपा साधक पर बरसाते हैं लेकिन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किसी भी देवी देवता की पूजा बिना आरती के पूर्ण नहीं मानी जाती हैं और ना ही व्रत पूजन का कोई फल मिलता हैं। ऐसे में अगर आप मंगलवार के दिन भगवान की पूजा और व्रत कर रहे हैं तो ऐसे में आप हनुमान जी की आरती जरूर पढ़ें। ऐसा करने से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं और साधक के सभी दुख परेशानियों का अंत कर देते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं श्री हनुमान जी की आरती पाठ।
श्री हनुमान जी की आरती-
॥ श्री हनुमंत स्तुति ॥
मनोजवं मारुत तुल्यवेगं,
जितेन्द्रियं, बुद्धिमतां वरिष्ठम् ॥
वातात्मजं वानरयुथ मुख्यं,
श्रीरामदुतं शरणम प्रपद्धे ॥
॥ आरती ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥
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वृद्धाश्रम के बुजुर्ग हुए भक्तिभाव से हुए ओतप्रोत

रायपुर। वृद्धाश्रम के बुजुर्ग भक्तिभाव से ओतप्रोत हुए. आनंद आश्रम प्रभारी सुनील नारवानी कार्यक्रम प्रभारी प्रेम प्रकाश मध्यानी नें बताया कि संजीवनी वृद्धाश्रम कोटा एवं आंनद आश्रम अवंति विहार के बुजुर्ग माता पिताओं के स्वास्थ्य लाभ एवं जनकल्याण के उद्देश्य से भजन संध्या एवं हनुमान चालीसा का पाठ की प्रस्तुति संतोष सारथी एण्ड पार्टी द्वारा एवं समाजसेवी सी ए अमित चिमनानी के द्वारा दी गई. साथ ही चिमनानी द्वारा अपनी बिटिया व पत्नी के जन्मदिवस की खुशियां बुजुर्ग माता पिताओं के बीच केक काटकर मनाईं।
भक्तिमय और आनंदमय कार्यक्रम को स्वादिस्ट बनाना चंदनानी परिवार नें,जिन्होनें सभी अतिथियों एवं आश्रमवासी बुजुर्ग माता पिताओं के लिए स्वल्पाहार की व्यवस्था कराई। संस्था सभी जनमानस से अपील करती है कि अपने या अपने किसी प्रियजन के जन्मदिवस, सालगिरह एवं अन्य कोई भी पारिवारिक खुशियों के अवसर पर आश्रम निवासी बुजुर्ग माता पिताओं के बीच आकर उनका स्नेह और आशीर्वाद जरूर ग्रहण करें।
संस्था द्वारा परमानंद चिमनानी, मनोहर चंदनानी एवं भजन मंडली प्रमुख सारथी का शाल एवं श्रीफल से सम्मान किया गया,आभार व्यक्त किया गया। भजन संध्या एवं हनुमान चालीसा के भक्तिमय कार्यक्रम में प्रमुख रूप से इंद्र कुमार डोडवानी, नँदलाल मुलवानी, अशोक गुरुबक्षाणी,डॉ. गोपालदास चांवला, प्रेम प्रकाश मध्यानी, अजय वलेचा, सुनील छतवानी, धनेश मटलानी, रमेश मनकानी, कमल लखानी, जय बजाज, रतन सोनी, मनोहर, दिलीप अमर, संजय, अनिल ,संदीप चंदनानी एवं संस्था के सदस्य महिला सेवादारियाँ की टीम उपस्थित थी।
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