धर्म समाज

गणगौर पूजा में शामिल हुई कई महिलाएं, जानिए...महत्व

जांजगीर। अग्रवाल समाज की महिलाओं ने गुरुवार को विधि​ विधान से गणगौर पूजा की। यह पूजा पूरे 18 दिनों तक चलती है, इस पूजा में सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु की कामना करतीं हैं, तो कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने की मनोकामना के साथ गणगौर की पूजा करतीं हैं।
अग्रवाल समाज में महिलाओं के लिए इस पूजा का विशेष महत्व रहता है। नव विवाहित महिलाएं विवाह के बाद पहली गणगौर पूजा अपने मायके में ही करतीं हैं। गणगौर पूजा होली के दूसरे दिन से ही आरंभ हो जाती है, जो नवरात्रि के तृतीया तिथि तक चलती है। गणगौर पूजा के लिए होलिका की राख से 16 पिंडियां बनाई जाती है। प्रत्येक दिन दूध के साथ इन पि​ंडियों को विधि विधान से स्नान करवा कर शिव पार्वती के रूप में इसकी पूजा की जाती है। गणगौर पूजा के लिए घरों में हलवा, पूरी आदि मिष्ठान्न बनाए जाते हैं।
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चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों तक करें लौंग कपूर का ये उपाय

  • दूर होगी परेशानी
सनातन धर्म में कई सारे पर्व मनाए गए हैं लेकिन देवी साधना को महापर्व नवरात्रि को अहम माना गया है जो कि देवी साधना का महापर्व होता है यह पूरे नौ दिनों तक चलता है इसमें मां दुर्गा के नौ अलग अलग स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है और व्रत आदि भी रखा जाता है माना जाता है कि ऐसा करने से देवी मां की असीम कृपा प्राप्त होती है
इस साल चैत्र नवरात्रि का आरंभ 9 अप्रैल दिन मंगलवार से हो चुका है और समापन 17 अप्रैल को हो जाएगा। ऐसे में इन नौ दिनों में पूजा पाठ और व्रत के साथ ही अगर लौंग कपूर के उपायों को किया जाए तो माता रानी प्रसन्न हो जाती है और धन समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती हैं तो आज हम आपको इन्हीं उपायों के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
लौंग कपूर के आसान उपाय-
ज्योतिष अनुसार चैत्र नवरात्रि के दिनों में अगर नियमित रूप से लौंग के साथ कपूर जलाते है तो ये आपके ग्रहों की स्थिति को ठीक करने में मदद करता है अगर किसी जातक की कुंडली में पितृदोष या काल सर्प दोष है तो नवरात्रि में घी के साथ कपूर को जरूर जलाएं। ऐसा करने से आपको लाभ मिलेगा। वही नवरात्रि के दिनों में सूर्यास्त के समय लौंग और कपूर जलाने से घर में सुख समृद्धि आती है और नकारात्मकता दूर हो जाती है।
अगर आपके घर में आए दिन क्लेश होता रहता है और आप इससे छुटकारा पाना चाहते हैं तो ऐसे में नवरात्रि में कपूर जरूर जलाएं। ऐसा करने से नकारात्मकता सकारात्मकता में बदल जाती है और खुशहाली आती है। वही अगर आपका कार्य नहीं ​बन रहा है या फिर बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो नवरात्रि में रात्रि के समय कपूर और लौंग जलाएं। ऐसा करने से आपको लाभ मिलेगा।
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चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन पढ़े आरती, मां चंद्रघंटा होंगी प्रसन्न

आज यानी 11 अप्रैल दिन गुरुवार को चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन है जो मां दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा को समर्पित किया गया है इस दिन भक्त माता के इस रूप की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं।
मान्यता है कि आज के दिन मां चंद्रघंटा की उपासना और आराधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा के दौरान उनकी प्रिय आरती का पाठ जरूर करें माना जाता है कि बिना आरती के माता की पूजा पूरी नहीं होती है और पूर्ण फल की भी प्राप्ति नहीं होती है तो ऐसे में आज हम नवरात्रि के तीसरे दिन लेकर आए हैं मां चंद्रघंटा की आरती।
यहां पढ़ें मां चंद्रघंटा की आरती-
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम
पूर्ण कीजो मेरे काम
चंद्र समान तू शीतल दातीचंद्र तेज किरणों में समाती
क्रोध को शांत बनाने वाली
मीठे बोल सिखाने वाली
मन की मालक मन भाती हो
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो
सुंदर भाव को लाने वाली
हर संकट मे बचाने वाली
हर बुधवार जो तुझे ध्याये
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं
शीश झुका कहे मन की बाता
पूर्ण आस करो जगदाता
कांची पुर स्थान तुम्हारा
करनाटिका में मान तुम्हारा
नाम तेरा रटू महारानी
'भक्त' की रक्षा करो भवानी
मां चन्द्रघंटा का स्तोत्र
ध्यान वन्दे वाच्छित लाभाय चन्द्रर्घकृत शेखराम।
सिंहारूढा दशभुजां चन्द्रघण्टा यशंस्वनीम्घ
कंचनाभां मणिपुर स्थितां तृतीयं दुर्गा त्रिनेत्राम।
खड्ग, गदा, त्रिशूल, चापशंर पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम्घ
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्यां नानालंकार भूषिताम।
मंजीर हार, केयूर, किंकिणि, रत्‍‌नकुण्डल मण्डिताम्घ
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुग कुचाम।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटिं नितम्बनीम्घ
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अयोध्या में श्री रामलला का 17 अप्रैल को होगा सूर्य तिलक

अयोध्या स्थित राम मंदिर में रामनवमी पर्व को ऐतिहासिक बनाने की तैयारियां भी चल रही हैं। एक ओर जहां इसी साल राम मंदिर का उद्घाटन हुआ है, वहीं अब राम मंदिर में विज्ञान का चमत्कार भी रामनवमी को देखने को मिलेगा।
राम नवमी को राम जन्मोत्सव के दिन रामलला का सूर्य तिलक भी किया जाएगा। 17 अप्रैल को दोपहर में ठीक 12:00 बजे राम लला का सूर्य अभिषेक किया जाएगा। इसके लिए खास तैयारी की गई है। सूर्य तिलक का ट्रायल भी सफल हो चुका है।
ट्रस्ट ने इसकी सूर्य तिलक के प्रबंधन व संयोजन का दायित्व रुड़की के सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों को सौंपा है। इस आयोजन को प्रोजेक्ट ‘सूर्य तिलक’ का नाम दिया गया है। वैज्ञानिकों ने एक पद्धति विकसित की, जिसमें मिरर, लेंस व पीतल का प्रयोग किया जाएगा। प्रत्येक वर्ष रामनवमी पर रामलला का सूर्य तिलक होगा।
रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे रामलला का ढाई से पांच मिनट तक सूर्य की किरणों से अभिषेक होगा। इस अवधि में सूर्य की किरणें सीधे रामलला के ललाट पर गिरेंगी। मंदिर की व्यवस्था से जुड़े विहिप नेता गोपाल ने परीक्षण की सफलता की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि रविवार को भी इसका परीक्षण हुआ था, जिसमें सफलता प्राप्त हुई।
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भिलाई के मां जगदम्बा मंदिर में अमेरिका निवासी भक्त ने जलाई ज्योत

भिलाई। चैत्र नवरात्रि में देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है। सेक्टर छह स्थित मां जगदंबा मंदिर में इस वर्ष 1251 ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए गए है। खास बात यह है कि इस मंदिर में केवल दुर्ग ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश देश और विदेश में बसे देवी भक्तों की आस्था है।
यहां अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया से भक्त अपनी मनोकामना पूरी करने यहां ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए हैं। सेक्टर 6 के पोस्ट ऑफिस कॉलोनी के अंदर स्थित मां जगदम्बा मंदिर में डोंगरगढ़ वाली माता बम्लेश्वरी की प्रतिमा स्थापित है।
इस मंदिर की स्थापना जोनजाड़कर परिवार ने की है। वह परिवार ही इस मंदिर की सेवा कर रहा है। सदस्यों का कहना है कि परिवार के यादवराव जोनजाड़कर को सपने में मां बम्लेश्वरी ने अपने यहां होने का इशारा किया था जिसके बाद यहां मंदिर स्थापित किया गया। इस मंदिर में खासकर पंचमी के दिन माता की गोदभराई करने भक्तों की कतार लगी रहती है और जो भक्त डोंगरगढ़ तक नहीं जा पाते, वे यहां माता के दर्शन करने आते हैं।
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भारत में ईद आज, जानिए...चांद देखना क्यों जरूरी

  • ईद के दिन क्या करें और क्या न करें...
ईद-उल-फितर का त्योहार, जिसे मीठी ईद और ईद-अल-फितर के नाम से भी जाना जाता है, रमजान के पवित्र महीने, उपवास के इस्लामी पवित्र महीने के अंत का प्रतीक है। हिजरी के 10वें महीने शव्वाल के पहले तीन दिनों में मनाया जाता है। चांद रात एक शब्द है जिसका इस्तेमाल दक्षिण एशियाई संस्कृतियों में, विशेष रूप से भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में, ईद-उल-फितर या ईद अल-अधा की पूर्व संध्या को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह शब्द उर्दू से लिया गया है, जहां "चांद" का अर्थ चंद्रमा और "रात" का अर्थ रात है, इस प्रकार रात का अनुवाद होता है जब चंद्रमा देखा जाता है। यह रात मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रमज़ान के पवित्र महीने, ज़ुल-हिज्जा के महीने के अंत और शव्वाल महीने की शुरुआत का प्रतीक है। भारत और दक्षिण ऐशियाई देशों में मुस्लिम समुदाय को रोजा रखे हुए 10 अप्रैल को पूरे 30 दिन हो । भारत में आज 11 अप्रैल को ईद का जश्न मनाया जा रहा है। यह पर्व त्याग और अपने मजहब के प्रति समर्पण को दर्शाता है। यह बताता है कि एक इंसान को अपनी इंसानियत के लिए इच्छाओं का त्याग करना चाहिए, जिससे कि एक बेहतर समाज का निर्माण हो सके।
चांद देखना क्यों जरूरी?-
इस्लाम धर्म के अनुसार, ईद मनाने से पहले मुसलमान समुदाय के लिए चांद देखना जरूरी होता है। मान्यता है कि शरीयत में अपनी आंखों से देखने और गवाही से ही सुबूत का एतबार है। इसलिए शब-ए-बारात, शब-ए-कद्र, ईद और ईद-उल-अजहा जैसे त्योहार से पहले लोग चांद देखते हैं। चांद रात में चांद देखने के बाद मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह से दुआ मांगते हैं। रमजान के आखिरी दिन नया चांद देखने के बाद ही ईद का त्योहार शुरू होता है।
ईद के दिन क्या करें-
ईद के दिन होने वाली नमाज में जरूर शामिल हों। 
इसके बाद जकात अल-फित्र यानी दान निकालें।  
ईद के मौके पर नए कपड़े पहनें और आपस में एक-दूसरे को मुबारकबाद दें।  
ईद पर मीठी सेवईंयां और स्वादिष्ट भोजन के साथ जश्न मनाएं।  
इसके बाद दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलकर एक-दूसरे को ईद की बधाई दें।
ईद के दिन क्या न करें
ईद की नमाज से न चूकें, मस्जिद में नमाज अदा करने की व्यवस्था करें। 
ईद की नमाज से पहले जकात-उल-फितर देना न भूलें। ईद के दौरान यह दान  एक महत्वपूर्ण दायित्व है। 
दिखावा करने से बचें। इस्लाम धर्म के अनुसार कोई भी पोशाक शालीनता से पहने जाने वाली होनी चाहिए। 
ईद के दिन व्यक्तिगत स्वच्छता बनाएं रखें। 
ईद के दिन किसी भी व्यक्ति को अपमान न करें और न ही किसी का मजाक उड़ाएं।  

 

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राम नवमी पर करें ये काम, आएगी सुख समृद्धि

हिंदू धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन रामनवमी को बेहद की खास माना जाता है जो कि चैत्र मास की नवमी तिथि पर मनाई जाती है धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी पावन दिन पर मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। जिसे भक्तगण हर राम नवमी के तौर पर मनाते हैं इस दिन पूजा पाठ और व्रत आदि का विधान होता है इस साल रामनवमी का पावन पर्व 17 अप्रैल को मनाया जाएगा।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रामनवमी के दिन श्रीराम, लक्ष्मी, सीता और हनुमान जी की आराधना करने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और सुख समृद्धि आती है लेकिन इसी के साथ ही अगर रामनवमी की पूजा के दौरान प्रभु राम की आरती का पाठ भक्ति भाव से किया जाए तो जीवन में कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है और वैवाहिक जीवन में भी मधुरता बनी रहती है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं भगवान श्रीराम की आरती पाठ।
भगवान राम की आरती-
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
छंद
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
।।सोरठा।।
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
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मां चंद्रघंटा को समर्पित है नवरात्र का तीसरा दिन

  • जानिए... इनका स्वरूप, महत्व और मंत्र
9 अप्रैल से चैत्र नवरात्र का शुभ समय शुरू हो चुका है। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। ऐसे में नवरात्र का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित माना जाता है। मां चंद्रघंटा शांति और दयालुता का प्रतिनिधित्व करती हैं। मां का स्वरूप अत्यंत कल्याणकारी और शांति देने वाला है। धार्मिक मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करने से आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। इस दिन साधक का मन 'मणिपुर' चक्र में रहता है। आइए, जानते हैं माता का स्वरूप, पूजा विधि और महत्व।
मां चंद्रघंटा का स्वरूप-
माता चंद्रघंटा का वाहन सिंह है। मां की दस भुजाएं अस्त्र-शस्त्रों से सुशोभित हैं। घंटे के आकार का अर्धचंद्र मां के माथे पर सुशोभित होता है। इसलिए मां को चंद्रघंटा कहा जाता है। मां राक्षसों का वध करने के लिए प्रकट हुई थीं। इनमें त्रिदेव की शक्तियां समाहित हैं। मां का स्वरूप अलौकिक और अतुलनीय है, जो वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है।
मां चंद्रघंटा पूजा विधि-
इस दिन सुबह उठकर स्नान-ध्यान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
व्रत करने का संकल्प लें।
इसके बाद फल, फूल, दूर्वा, सिन्दूर, अक्षत, धूप और दीप से मां चंद्रघंटा की पूजा करें। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि मां को हलवा और दही बहुत प्रिय है। मां को प्रसाद के रूप में फल, हलवा और दही चढ़ाएं।
अंत में आरती के साथ पूजा समाप्त करें।
दिन भर व्रत रखें और शाम को आरती करने के बाद फलाहार करें।
इन मंत्रों का करें जाप-
1. पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता |
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता ||
2. या देवी सर्वभू‍तेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
ॐ देवी चन्द्रघंटाय नमः॥

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नवरात्रि में इन कार्यों को करने से मिलेगा माता का आशीर्वाद

9 अप्रैल से चैत्र मास की नवरात्रि का आरंभ हो चुका है जो कि 17 अप्रैल को समाप्त हो जाएगा। यह पर्व पूरे नौ दिनों तक चलता है जिसमें माता रानी के नौ अलग अलग स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है और व्रत आदि भी रखा जाता है माना जाता है कि ऐसा करने से देवी की कृपा बरसती है लेकिन अगर आप किसी कारणवश इस बार उपवास नहीं कर पाए है और कलश स्थापना की है तो ऐसे में दुखी या परेशान होने की जरूरत नहीं है नवरात्रि के नौ दिनों में कुछ खास कार्यों को करने से भी देवी मां की कृपा प्राप्त की जा सकती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा उन्हीं कार्यों के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
चैत्र नवरात्रि में अगर आप व्रत व कलश स्थापना नहीं कर पाएं है तो ऐसे में आप नौ दिनों में माता के सभी नौ रूपों की पूजा व मंत्र जाप करके अपनी मनोकामना को पूरा कर देवी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं प्रतिपदा के दिन मां शैलपुत्री की पूजा जरूर करें माता के समक्ष घी का दीपक जलाएं और नैवेद्य अर्पित कर उनके मंत्रों का जाप करें।
वही दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा कर उन्हें भोग लगाएं और उनके मंत्रों का जाप सच्चे मन से करें ऐसा करने से लाभ मिलता है। वही तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा करें और उन्हें दूध से बनी चीजों का भोग लगाएं। इसके अलावा चतुर्थी पर मां कुष्माण्डा की पूजा कर उनके मंत्रों का जाप जरूर करें।
पंचमी ​तिथि पर स्कंधमाता की पूजा कर उन्हें केले का भोग लगाए इसके बाद माता के मंत्रों का जाप करें। षष्ठी पर कात्यायनी माता की पूजा कर उनके मंत्रों का जाप करें सप्तमी पर मां कालरा​त्रि की पूजा और मंत्र जाप करें। अष्टमी के दिन महागौरी का ध्यान करे और उनके मंत्रों का जाप करें। इसके बाद नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा कर उनके मंत्रों का जाप जरूर करें। माना जाता है कि ऐसा करने से सुख समृद्धि और संपन्नता आती है।
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चैत्र नवरात्रि : आज इस शुभ योग में करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

चैत्र मास की नवरात्रि का आरंभ कल यानी 9 अप्रैल दिन मंगलवार से हो चुका है और इसका समापन 17 अप्रैल को हो जाएगा। आज नवरात्रि का दूसरा दिन है जो कि माता के ब्रह्मचारिणी स्वरूप को समर्पित किया गया है इस दिन भक्त देवी दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं माना जाता है कि ऐसा करने से माता की कृपा प्राप्त होती है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से साधक को विजय प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है और घर परिवार में सुख शांति व समृद्धि बनी रहती है, ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त और योग के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
ब्रह्मचारिणी पूजा का शुभ मुहूर्त-
चैत्र नवरात्रि की द्वितीया तिथि 10 अप्रैल को शाम 5 बजकर 32 मिनट तक है ऐसे में माता की उपासना कर सकते हैं आज यानी नवरात्रि के दूसरे दिन प्रीति योग का शुभ संयोग बन रहा है। इसके अलावा बालव और कौलव करण के भी योग का निर्माण हो रहा है।
शिववास योग का निर्माण-
ज्योतिष अनुसार नवरात्रि के दूसरे दिन महादेव मां गौरी के साथ रहेंगे। इस समय में पूजा करना अत्यंत लाभकारी होगा। आज के दिन शिववास यानी की भगवान शिव संध्याकाल 5 बजकर 32 मिनट तक मां गौरी के साथ रहेंगे। ऐसे में आज के दिन रुद्राभिषेक करने से घर परिवार में सुख समृद्धि का आगमन होता है और कष्ट दूर हो जाते हैं इस योग में साधना आराधना पुण्य प्रदान करती है।
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साल में सिर्फ 5 घंटे के लिए खुलता है यहां माता का दरबार

  • बिना तेल के नौ दिनों तक जलती हैं ज्योति
गरियाबंद। छत्तीसगढ़ में अनेक प्राचीन मंदिर हैं जो लोगों के आस्था का केंद्र बना हुआ हैं। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर निरई माता का मंदिर स्थित है। आमतौर पर मंदिरों में जहां दिन भर देवी-देवताओं की पूजा होती है, तो वहीं निरई माता का मंदिर साल में एक बार चैत्र नवरात्र के प्रथम रविवार को सिर्फ 5 घंटे के लिए यानी सुबह 4 बजे से 9 बजे तक माता के दर्शन किए जा सकते हैं। बाकी दिनों में यहां आना प्रतिबंधित होता है।
इस दिन यहां भक्तों का मेला लगता है। श्रद्धालु दूर-दूर से छत्तीसगढ़ के अलावा दूसरे राज्य से भी मातारानी के दर्शन को आते हैं। साथ ही यहां महिलाओं के लिए भी कई खास नियम बनाए गए हैं। कहते हैं कि निरई माता मंदिर में हर साल चैत्र नवरात्र के दौरान अपने आप ही ज्योति प्रज्जवलित होती है। यह चमत्कार कैसे होता है, यह आज तक पहेली ही बना हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि यह निरई देवी का ही चमत्कार है कि बिना तेल के ज्योति नौ दिनों तक जलती रहती है।
महिलाओं को निरई माता मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं-
निरई माता मंदिर में महिलाओं को प्रवेश और पूजा-पाठ की इजाजत नहीं है। यहां सिर्फ पुरुष ही पूजा-पाठ की रीतियों को निभाते हैं। महिलाओं के लिए इस मंदिर का प्रसाद खाना भी वर्जित है। कहते हैं कि महिलाएं अगर मंदिर का प्रसाद खा लें तो उनके साथ कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती है।
ग्रामीण बताते है कि लोग माता के दर्शन को लालायित रहते हैं। भक्त निरई माता की जयकारे के साथ ऊंची पहाड़ी पर चढ़ते हैं। निरई माता निराकार हैं। जिसका कोई आकार नहीं, निरंक है। निरई माता के मंदिर में सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, कुमकुम, गुलाल, बंदन नहीं चढ़ाया जाता है।
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नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को है समर्पित

  • जानिए...पूजा विधि और महत्त्व
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्माचरिणी की पूजा का विधान है. मां दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी का है. ब्रह्मचारिणी का अर्थ, ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ आचरण से है, यानी ये देवी तप का आचरण करने वाली हैं. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ये हिमालय की पुत्री थीं तथा नारद के उपदेश के बाद भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए इन्होंने कठोर तप किया. जिस कारण इनका नाम तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी पड़ा. मां का यह रूप काफी शांत और मोहक है. माना जाता है कि जो भक्त मां के इस रूप की पूजा करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. मां का यह स्‍वरूप आपको ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए प्रेरित करता है. तो चलिए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी भोग रेसिपी और मंत्र.
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरुप-
मां ब्रह्मचारिणी स्वेत वस्त्र पहने दाएं हाथ में अष्टदल की माला और बांए हाथ में कमण्डल लिए हुए सुशोभित है. तप, त्याग और शक्ति की देवी हैं मां ब्रह्माचरिणी.
नवरात्रि के दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है. माता को शक्कर से बनी चीजें काफी प्रिय हैं. आप माता को शक्कर से बनी इस चीज का भोग लगा सकते हैं. पूरी रेसिपी के लिए यहां क्लिक करें.
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि-
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ कपड़े पहनें. इसके बाद मंदिर को अच्छे से साफ करें. देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करें. इसके बाद देवी को पंचामृत स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें. देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं. इसके अलावा कमल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं.
माता ब्रह्मचारिणी के मंत्र-
या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमाः
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गुड़ी पड़वा के मौके पर नीम मिश्रित जल से हुआ बाबा महाकाल का स्नान

उज्जैन। ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में भी आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुड़ी पड़वा धूमधाम से मनाई गई। इस दौरान पुजारियों ने कोटितीर्थ कुंड पर सूर्य को अर्घ्य देकर नवसंवत्सर का स्वागत किया। इसके बाद बाबा महाकाल को नीम के जल से स्नान कराकर पंचामृत पूजन अभिषेक किया गया। पुजारियों द्वारा भगवान को नीम-मिश्री का शर्बत अर्पित किया गया। इसके बाद भक्तों को प्रसादी वितरित की जाएगी। महाकाल मंदिर में आज मंदिर के शिखर पर नई ध्वजा भी स्थापित की गई.
पुजारी पं. महेश शर्मा ने बताया कि ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में भी यह परंपरा है। जिसका पालन समय-समय पर किया जाता है। चैत्र मास में ऋतु परिवर्तन तब होता है जब चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है। यह महीना गर्मियों की शुरुआत का प्रतीक है। इसके प्रभाव से वात, कफ, पित्त बढ़ता है। यह कई बीमारियों का कारण बनता है। वात, कफ, पित्त के निदान के लिए नीम का सेवन महत्वपूर्ण है। आयुर्वेद में भी नीम मिश्री के सेवन को अमृत बताया गया है। नीम के पानी से नहाने से त्वचा रोग ठीक हो जाते हैं। इसलिए ज्योतिर्लिंग की परंपरा में पूरे विश्व को आयुर्वेद के माध्यम से समय का बोध, तिथियों का महत्व और स्वस्थ रहने का संदेश दिया जाता है। इसलिए इस दिन भगवान महाकाल को नीम युक्त जल से स्नान कराया जाता है। साथ ही नीम का पानी भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
भांग और ड्राईफूट से बना मेकअप-
विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में आज चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि मंगलवार को सुबह चार बजे भस्म आरती के दौरान पंडे पुजारी ने गर्भगृह में स्थापित भगवान की सभी मूर्तियों का पूजन कर जलाभिषेक किया। दूध, दही, घी, शकर फलों के रस से बने पंचामृत से भगवान महाकाल का पूजन किया गया। इसके बाद घंटा-घड़ियाल बजाकर सबसे पहले हरिओम जल अर्पित किया गया। कपूर आरती के बाद बाबा महाकाल को चांदी का मुकुट और रुद्राक्ष व फूलों की माला पहनाई गई. आज के शृंगार की खास बात यह रही कि एकम भस्मारती में आज बाबा महाकाल का शृंगार अलग रूप में किया गया। जिसमें बाबा महाकाल का भांग और सूखे मेवों से शृंगार किया गया. शृंगार के बाद बाबा महाकाल के ज्योतिर्लिंग को कपड़े से ढककर जलाभिषेक किया गया। भस्म आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए, जिन्होंने बाबा महाकाल के इस दिव्य स्वरूप के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
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अप्रैल में कब मनाई जाएगी विनायक चतुर्थी, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हिंदू धर्म में विनायक चतुर्थी उत्सव भगवान शिव के पुत्र गणपति बप्पा को समर्पित है। हर महीने कृष्ण चतुर्थी और शुक्ल पक्ष में भगवान गणेश की विशेष पूजा करने की परंपरा है। जीवन में सुख-शांति के लिए भी व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इससे साधक को सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है और गणपति बप्पा प्रसन्न रहते हैं। आइए जानते हैं अप्रैल में विनायक चतुर्थी की पूजा का शुभ समय और विधि के बारे में।
शुभ विनायक चतुर्थी समय-
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारम्भ 11 अप्रैल को 15:03 बजे होगा। इसके अलावा, यह 12 अप्रैल को 13:11 बजे समाप्त होगा। ऐसे में उदय तिथि के अनुसार 12 अप्रैल को विनायक चतुर्थी मनाई जाएगी.
विनायक चतुर्थी पूजा विधि-
विनायक चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठें और देवी-देवताओं का ध्यान करके दिन की शुरुआत करें। इसके बाद स्नान कर साफ कपड़े पहन लें। साथ ही मंदिर को गंगा जल छिड़क कर शुद्ध करें। - अब चौकी पर साफ कपड़ा बिछाकर गणपति बप्पा की मूर्ति या तस्वीर रखें. फिर उन्हें फूल और सिन्नबार अर्पित करें। इसके बाद दीपक जलाएं और आरती करें. पूजा के दौरान मंत्र जाप और गणेश चालीसा का पाठ करना फलदायी माना जाता है। अंत में सुख, समृद्धि और धन में वृद्धि के लिए प्रार्थना करें। भोग लगाने के बाद लोगों को प्रसाद बांटें।
विघ्न निवारण मंत्र-
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बातुण्डो गजाननः।
द्वैमतुरषा हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चरूकर्णः पशुपालो भवत्मजा।
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित्।
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नवरात्र पर 30 साल बाद बन रहा सबसे अद्भुत संयोग

वैदिक पंचांग के अनुसार, कल यानी 9 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा विधि-विधान से की जाती है। बता दें कि इस साल की नवरात्रि बहुत ही शुभ मानी जा रही है, क्योंकि मां शैलपुत्री घोड़े पर सवार होकर आ रही हैं। ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार की चैत्र नवरात्रि पर पूरे 30 साल बाद दुर्लभ और अद्भूत संयोग बनने वाला है। बता दें कि नवरात्रि के पहले दिन अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, शश योग और अश्विनी नक्षत्र जैसे अद्भूत संयोग बन रहा है। माना जाता है कि जब भी ये 4 दुर्लभ संयोग एक साथ बनते हैं तो पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राणियों पर प्रभाव पड़ता है। तो आज इस खबर में जानेंगे कि नवरात्रि पर किन-किन राशियों को जबरदस्त लाभ मिलने वाला है।
मेष राशि-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नवरात्रि पर चार अद्भूत संयोग बनने से मेष राशि वाले लोगों पर मां दुर्गा मेहरबान रहेंगी। मां दुर्गा की कृपा से जातक को सभी कार्यों में सफलता मिलेगी। जो लोग नौकरी कर रहे हैं उनके पद में प्रमोशन हो सकता है। साथ ही कारोबार में जमकर वृद्धि होगी। जो लोग शादीशुदा नहीं हैं उनके लिए रिश्तों की बातचीत चल सकती है। छात्रों के लिए नवरात्र बहुत ही शुभ रहेगा। करियर से संबंधित अचानक खुशखबरी सुनने को मिल सकता है।
मिथुन राशि-
चैत्र माह की नवरात्रि पर मिथुन राशि वाले लोगों को लाभ ही लाभ होगा। बता दें कि मिथुन राशि वाले लोगों को कारोबार में जमकर मुनाफा हो सकता है। साथ ही किसी बड़े कारोबारी से मुलाकात हो सकती है। यह मुलाकात बहुत ही शुभ और लाभदायक रहने वाला है। पैतृक संपत्ती से धन का लाभ होगा। साथ ही माता जी की ओर से भी धन की प्राप्ति हो सकती है।
कर्क राशि-
ज्योतिषियों के अनुसार, चैत्र नवरात्रि के पहले दिन चार अद्भूत संयोग का फल कर्क राशि वाले लोगों के लिए अनुकूल साबित होगा। वैवाहिक जीवन में खुशियां बनी रहेंगी। साथ ही जीवन में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेंगे। जो लोग राजनीति के क्षेत्र में जाना चाहते हैं उनके लिए यह नवरात्रि बहुत ही शुभ रहेगा। नवरात्रि के कुछ दिन बाद किसी बड़े नेता से मुलाकात हो सकती है। यह मुलाकात आगे के लिए बहुत ही शुभ रहेगी।
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चैत्र नवरात्रि का पहला दिन माता शैलपुत्री से प्रारंभ

  • जानिए... तिथि, समय, घटस्थापना मुहूर्त और पूजा विधि
चैत्र नवरात्रि का नौ दिवसीय शुभ त्योहार हिंदू चंद्र-सौर कैलेंडर के पहले दिन से शुरू होता है। इस वर्ष, यह 9 अप्रैल को है। यह त्योहार गर्मियों की शुरुआत का प्रतीक है और अन्य भारतीय त्योहारों जैसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा और कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगादी के साथ मेल खाता है। चैत्र नवरात्रि का त्योहार मां दुर्गा और उनके नौ दिव्य अवतारों की पूजा को समर्पित है। 9 अप्रैल को, हिंदू भक्त चैत्र नवरात्रि के पहले दिन को मनाते हैं और देवी के अवतार मां शैलपुत्री की पूजा करते हैं। वे घटस्थापना का बहुत महत्वपूर्ण अनुष्ठान भी करते हैं। जैसा कि हम त्योहार का पहला जश्न मनाते हैं, यहां आपको देवी शैलपुत्री और चैत्र नवरात्रि के पहले दिन की तारीख, समय, घटस्थापना मुहूर्त, पूजा विधि, रंग, सामग्री और बहुत कुछ के बारे में जानने की जरूरत है।
माँ शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ दिव्य अवतारों में से एक हैं। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन हिंदू भक्त उनकी पूजा करते हैं। समृद्धि और सभी सौभाग्यों की प्रदाता मानी जाने वाली माँ शैलपुत्री की भक्त प्रकृति माँ के रूप में जयजयकार करते हैं और उनसे अपनी आध्यात्मिक जागृति के लिए प्रार्थना करते हैं। देवी चंद्रमा को नियंत्रित करती हैं। द्रिक पंचांग के अनुसार, मां पार्वती का जन्म भगवान हिमालय की बेटी के रूप में हुआ था और आत्मदाह के बाद उन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना गया। संस्कृत में शैल का अर्थ है पर्वत, पुत्री का अर्थ है बेटी और शैलपुत्री पर्वत की बेटी है।
देवी शैलपुत्री बैल पर सवार हैं और उन्हें वृषारूढ़ा के नाम से जाना जाता है। उनके दो हाथ हैं - उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है। वह पवित्रता, मासूमियत, शांति और शांति का प्रतीक है।
चैत्र नवरात्रि का पहला दिन 9 अप्रैल है। द्रिक पंचांग के अनुसार, नीचे पूजा का समय और शुभ मुहूर्त देखें:
घटस्थापना मुहूर्त: सुबह 6:02 बजे से 10:16 बजे तक
घटस्थापना अभिजीत मुहूर्त: 9 अप्रैल सुबह 11:57 बजे से दोपहर 12:48 बजे तक
प्रतिपदा तिथि 8 अप्रैल को रात 11:50 बजे शुरू हो रही है
प्रतिपदा तिथि 9 अप्रैल को रात्रि 8:30 बजे समाप्त होगी
वैधृति योग 8 अप्रैल को सायं 6 बजकर 14 मिनट से प्रारंभ हो रहा है
वैधृति योग 9 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 18 मिनट पर समाप्त हो रहा है
चंद्र दर्शन का समय: शाम 6:44 बजे से शाम 7:29 बजे तक
चैत्र नवरात्रि 2024 दिन 1: रंग, पूजा विधि, सामग्री और अनुष्ठान
द्रिक पंचांग के अनुसार, नवरात्रि के तीसरे दिन से जुड़ा रंग सफेद है। इस दिन, भक्त जल्दी उठते हैं, स्नान करते हैं, मां शैलपुत्री और आदि शक्ति से आशीर्वाद लेते हैं और घटस्थापना या कलश स्थापना से जुड़े अनुष्ठान करते हैं। घटस्थापना शारदीय नवरात्रि के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है। घटस्थापना के लिए भक्त घर में किसी पवित्र स्थान पर कलश स्थापित करते हैं। मटके के पास नौ दिनों तक दीया जलाते हैं। वे एक पैन में मिट्टी और नवधान्य के बीज भी रखते हैं और उसे पानी से भर देते हैं।
कलश में गंगा जल भरा जाता है। जल में कुछ सिक्के, सुपारी और अक्षत (कच्चा चावल और हल्दी पाउडर) डाला जाता है। कलश के चारों ओर आम के पांच पत्ते रखकर नारियल से ढक दिया जाता है। फिर, भक्त माँ शैलपुत्री के पास एक तेल का दीपक, अगरबत्ती, फूल, फल और मिठाई रखते हैं। देवी को देसी घी का विशेष भोग भी लगाया जाता है।
चैत्र नवरात्रि 2024 दिन 1 : पूजा मंत्र, प्रार्थना, स्तुति और स्तोत्र:
1) ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः
2) वन्दे वांच्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखरम्
वृषारूढं शूलधरं शैलपुत्रीं यशस्विनीम्
3) या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
4) प्रथमा दुर्गा त्वमहि भवसागरः तारानिम्
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्
त्रिलोजानानि त्वमहि परमानन्द प्रदीयमान्
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्
चराचरेश्वरी त्वमहि महामोह विनाशिनीम्
मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्।
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अयोध्या में पहली नवरात्रि उत्सव एक भव्य अवसर में बदलने के लिए तैयार

  • राम लला को प्रतिदिन पहनाए जाएंगे नए वस्त्र
अयोध्या। रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में पहली नवरात्रि उत्सव एक भव्य अवसर में बदलने के लिए तैयार है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा- "मंगलवार से चैत्र नवरात्रि शुरू हो रहा है, जो 17 अप्रैल यानी भगवान राम के जन्म तक चलेगा। इस दौरान राम लला की मूर्ति को प्रति दिन नए वस्त्र पहनाए जाएंगे।"
मंदिर ट्रस्ट ने राम लला को पहनाए जाने वाले वस्त्रों की झलक भी सोशल मीडिया पर साझा की है। इन वस्त्रों को बुनी हुई और हाथ से काती गई खादी सूती से बनाया गया है। मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी आमद को ध्यान में रखते हुए ट्रस्ट ने सभी से मोबाइल फोन नहीं लाने की अपील की है।
ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा, "अगर आप जल्दी से राम लला के दर्शन करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको सबसे पहले अपने मोबाइल फोन और जूतों को खुद से दूर रखना होगा। अगर आप ऐसा करते हैं, तो बहुत मुमकिन है कि आप जल्दी से भगवान राम के दर्शन कर सकेंगे।" इस बीच, आगामी उत्सव को ध्यान में रखते हुए अर्धसैनिक बलों और पुलिस को बड़ी संख्या में तैनात किया गया है। आसपास के जिलों की पुलिस को भी सुरक्षा-व्यवस्था बनाए रखने के लिए काम में लगाया गया है।
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नवरात्रि में करें हल्दी के ये चमत्कारी उपाय

  • जीवन में आएगी खुशहाली
चैत्रर नवरात्रि आरंभ 9 अप्रैल से होने वाला है। इस दौरान माता के 9 स्वरूपों की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाएगा। चैत्र नवरात्रि में हल्दी से जुड़े कुछ उपायों को करना शुभ माना जाता है। ऐसे करने जीवन की परेशानियाँ खत्म होती हैं। हिन्दू धर्म में हल्दी का खास महत्व होता है। मांगलिक कार्यों और पूजा में इसका इस्तेमाल किया जाता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करता है।
धनलाभ के लिए आजमाएं ये खास उपाय-
हल्दी के साथ 5 कौड़ियों को डालकर पीले रंग के वस्त्र में बांध दें। अब इसे तिजोरी या घन के स्थान पर रख दें। मान्यताएं हैं ऐसा करने से धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। आर्थिक तंगी नहीं होती है।
शुक्रवार के दिन करें ये खास उपाय-
चैत्र नवरात्रि के दौरान शुक्रवार के दिन एक लाल रंग के कपड़े में हल्दी, चावल और केसर बांध दें। इसे माँ लक्ष्मी के चरणों में समर्पित करें। पूजा के बाद इस कपड़े में थोड़ा सा चावल निकाल कर तिजोरी में रख लें। ऐसा करने से धन और अन्न की कभी कमी नहीं होती।
सुख-समृद्धि के लिए-
नवरात्रि की पूजा के दौरान पूजा की थाली पर हल्दी से स्वस्तिक बनाएं। एक मुट्ठी भीगे हुए पीले चावल थाली में रख दें। फिर इसमे ऊपर मिट्टी के दीपक में घी और हल्दी डालकर जलाएं। ऐसा करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। बुरी नजर से छुटकारा मिलता है।
छठवें दिन करें ये काम-
चैत्र नवरात्रि के छठवें दिन माँ कात्यानी को 3 हल्दी की गाँठ अर्पित जरें। मंत्रों का जाप करें। पूजा के बाद हल्दी को अपने पास कर लें। ऐसा करने से विवाह के योग बनते हैं। माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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