धर्म समाज

नवरात्र का चौथा दिन आज, मां कूष्मांडा की इस विधि से करें पूजा अर्चना

झूठा सच @ रायपुर :-  मां दुर्गा का चौथा भव्य स्वरूप मां कूष्मांडा हैं. नवरात्रि के चौथे दिन इन्हीं की पूजा का विधान है. मां कूष्मांडा की महिमा अद्वितीय है. इनकी उपासना शांत मन से और मधुर ध्वनि के साथ करनी चाहिए. मां कूष्मांडा की पूजा से अजेय रहने का वरदान मिलता है. कहते हैं जब संसार में चारों ओर अंधियारा छाया था, तब मां कूष्मांडा ने ही अपनी मधुर मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी. इसलिए इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा और आदिशक्ति भी कहते हैं.

नवदुर्गा का चौथा स्वरूप है. इनकी आठ भुजाएं है. इनके सात हाथों में क्रमश: कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प,कलश, चक्र और गदा है. आठवें हाथ में सभी सिद्धियां और निधियों को देने वाली माला है. देवी के हाथों में जो अमृत कलश है, वह अपने भक्तों को दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य का वर देती है. मां सिंह की सवारी करती हैं, जो धर्म का प्रतीक है.

नवरात्रि के चौथे दिन हरे या संतरी रंग के कपड़े पहनकर मां कूष्मांडा का पूजन करें. पूजा के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ या कुम्हड़ा अर्पित करें. मां कूष्मांडा को उतनी हरी इलाइची अर्पित करें जितनी कि आपकी उम्र है. हर इलाइची अर्पित करने के साथ "ॐ बुं बुधाय नमः" कहें. सारी इलाइची को एकत्र करके हरे कपड़े में बांधकर रखें. इलाइची को शारदीय नवरात्रि तक अपने पास सुरक्षित रखें.

नवरात्रि में आज मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, जानें विधि और उपाय

कुंडली के बुध से संबंध रखने के कारण मां कूष्मांडा की उपासना से बुध से जुड़ी समस्याओं का अंत होता है. शेरों वाली मां कुष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए ज्योतिष में कुछ विशेष उपाय भी बताएं गए हैं. इन उपायों से मां कूष्मांडा की कृपा बहुत जल्दी मिल सकती है.

एक उपाय से प्रसन्न होंगी मां कूष्मांडा 
 
नवरात्रि के चौथे दिन मा कूष्मांडा की पूजा करें. उन्हें भोजन में दही और हलवा का भोग लगाएं. इसके बाद उन्हें फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें. इससे मां कूष्मांडा प्रसन्न होती हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती हैं. देवी मां की सच्चे मन से की गई साधना आपको खुशियों की सौगात दे सकती है |
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नवरात्रि का तीसरा दिन आज, जानें मां चंद्रघंटा की पूजन विधि

26 सितंबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है। इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ सिद्ध स्वरूपों की पूजा की जाएगी। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि अर्थात 28 सितंबर 2022 को माता चंद्रघंटा की जाएगी। मान्यताओं के अनुसार नवरात्र महापर्व के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा करने से व्यक्ति का स्वाभाव सुंदर हो जाता है और उनके जीवन में कई प्रकार की खुशियां आती है।

देवी चंद्रघंटा का अलौकिक स्वरूप

शास्त्रों के अनुसार माता चंद्रघंटा का रंग सोने के समान तेजवान है। माता के तीन नेत्र और 10 भुजाएं हैं। इनके प्रत्येक हाथों में कमल का पुष्प, गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, खड्ग, चक्र, खप्पर, और अग्नि सुशोभित हैं। मां चंद्रघंटा शेर पर सवार होकर आती हैं और हर समय युद्ध के लिए तैयार रहती हैं।

देवी चंद्रघंटा पूजा विधि

नवरात्र के तीसरे दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके पूजा स्थल कि सफाई करें। फिर नित्यपूजा के साथ 'ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः' मंत्र का जाप करें। इसके बाद माता को गंध, पुष्प, धूप, अक्षत, सिंदूर अर्पित करें और दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा और आरती करें। साथ ही मंत्र का जाप जरूर करें-

या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।

पूजा महत्व

माता चंद्रघंटा की पूजा करने से साधक के सभी दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं और वह निर्भय व वीर बन जाता है। देवी की आराधना से व्यक्ति के मुख, नेत्र और काया में सकारात्मक विकास होता है। इसके साथ बुद्धि और ज्ञान में भी वृद्धि होती है।

इस रंग का करें प्रयोग

देवी की पूजा के समय भूरे रंग का वस्त्र पहनना व्यक्ति के लिए बहुत फलदायी साबित हो सकता है। साथ ही व्यक्ति स्वर्ण रंग के वस्त्र भी धारण कर सकता है। इन दोनों रंगों को इस दिन शुभ माना गया है। इसके साथ भक्त इस दिन दूध से बने मिष्ठान का भोग लगा सकते हैं। माता को शहद भी बहुत प्रिय है।

 

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26 सितंबर से शुरू होंगे नवरात्र, जानें शुभ मुहूर्त और कलश स्थापना

हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का बड़ा महत्व है. इस साल शारदीय नवरात्रि शुरू होने में कुछ ही दिन बचे हैं. नवरात्रि की मंदिरों में तैयारी पूरी हो चुकी हैं. नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा पर घरों में कलश स्थापना की जाती है. नवरात्रि के 9 दिन लोग बड़ी श्रृद्धा से मां दुर्गा की पूजा आराधना करते हैं. इस साल 26 सितंबर यानी सोमवार से शारदीय नवरात्रि शुरू हो रहे हैं. ये 4 अक्टूबर तक चलेंगे. आइए बताते हैं हैं शुभ मुहूर्त और पूजा विधि.

शुभ मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा 26 सितंबर 2022 को सुबह 03:23 बजे से प्रारंभ होगी, जो कि 27 सितबंर 2022 को सुबह 03:08 बजे समाप्त होगी.

आश्विन कलश स्थापना- 26 सितंबर सुबह 06:11 से 07:51 तक

अवधि - 01 घंटा 40 मिनट

घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - सुबह 11:48 से दोपहर 12:36 तक

अवधि - 48 मिनट

कैसे करें कलश स्थापना?

शारदीय नवरात्रों में कलश स्थापना का काफी महत्व माना जाता है. नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करके मां शैलीपुत्री की पूजा की जाती है, जो लोग 9 दिनों का व्रत रख रहे हैं, उन्हें कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा की पूजा-अर्चना का सच्चे मन से संकल्प लेना चाहिए. सोमवार से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का समय इस बार 1.40 घंटे का है.

पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री

सबसे पहले मां दुर्गा की प्रतिमा, दुर्गा चालीसा और आरती की किताब, दीपक, घी/ तेल, फूल, फूलों का हार, पान, सुपारी, लाल झंडा, इलायची, बताशे या मिसरी, असली कपूर, उपले, फल व मिठाई, कलावा, मेवे, हवन के लिए आम की लकड़ी, जौ, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सिंदूर, केसर, कपूर, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, सुगंधित तेल, चौकी चाहिए होगी.

ऐसे करें कलश स्थापना

कलश स्थापना करने के लिए माता की चौकी को उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करना चाहिए. इस चौकी को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें. अब चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश स्थापित करें. इस कलश में आम के पत्ते लगाएं और गंगाजल भरें. कलश में आप एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ भी डाल सकते हैं. कलश के मुख पर एक लाल वस्त्र से नारियल लपेट कर रखें. कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा के शैलपुत्री अवतार की पूजा करें. हाथ में फूल लेकर मां की आरती करें. आप पूजा में 'ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै.' इस मंत्र का जप करें |
 

 

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शारदीय नवरात्रि के पहले दिन बनेंगे पांच विशेष योग

हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का बड़ा महत्व है. इस साल शारदीय नवरात्रि शुरू होने में कुछ ही दिन बचे हैं. नवरात्रि की मंदिरों में तैयारी पूरी हो चुकी हैं. नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा पर घरों में कलश स्थापना की जाती है. नवरात्रि के 9 दिन लोग बड़ी श्रृद्धा से मां दुर्गा की पूजा आराधना करते हैं. इस साल 26 सितंबर यानी सोमवार से शारदीय नवरात्रि शुरू हो रहे हैं. ये 4 अक्टूबर तक चलेंगे. आइए बताते हैं हैं शुभ मुहूर्त और पूजा विधि.


शुभ मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा 26 सितंबर 2022 को सुबह 03:23 बजे से प्रारंभ होगी, जो कि 27 सितबंर 2022 को सुबह 03:08 बजे समाप्त होगी.

आश्विन कलश स्थापना- 26 सितंबर सुबह 06:11 से 07:51 तक

अवधि - 01 घंटा 40 मिनट

घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - सुबह 11:48 से दोपहर 12:36 तक

अवधि - 48 मिनट

कैसे करें कलश स्थापना?

शारदीय नवरात्रों में कलश स्थापना का काफी महत्व माना जाता है. नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करके मां शैलीपुत्री की पूजा की जाती है, जो लोग 9 दिनों का व्रत रख रहे हैं, उन्हें कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा की पूजा-अर्चना का सच्चे मन से संकल्प लेना चाहिए. सोमवार से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का समय इस बार 1.40 घंटे का है.

पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री

सबसे पहले मां दुर्गा की प्रतिमा, दुर्गा चालीसा और आरती की किताब, दीपक, घी/ तेल, फूल, फूलों का हार, पान, सुपारी, लाल झंडा, इलायची, बताशे या मिसरी, असली कपूर, उपले, फल व मिठाई, कलावा, मेवे, हवन के लिए आम की लकड़ी, जौ, वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सिंदूर, केसर, कपूर, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, सुगंधित तेल, चौकी चाहिए होगी.

ऐसे करें कलश स्थापना

कलश स्थापना करने के लिए माता की चौकी को उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करना चाहिए. इस चौकी को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें. अब चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश स्थापित करें. इस कलश में आम के पत्ते लगाएं और गंगाजल भरें. कलश में आप एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ भी डाल सकते हैं. कलश के मुख पर एक लाल वस्त्र से नारियल लपेट कर रखें. कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा के शैलपुत्री अवतार की पूजा करें. हाथ में फूल लेकर मां की आरती करें. आप पूजा में 'ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै.' इस मंत्र का जप करें |
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कब से शुरू हैं नवरात्र, जानें कलश स्थापना और शुभ मुहूर्त 2022

पितृ पक्ष के बाद शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है. 25 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या के दिन पितरों को विदाई दी जाती है और 26 सितंबर को अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होगी. शारदीय नवरात्रि मां दुर्गा को समर्पित है. 9 दिनों तक चलने वाले नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 रुपों की पूजा की जाती है. मान्यता है कि ये 9 दिन मां दुर्गा धरती पर भ्रमण करती हैं. इन दिनों मां की सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ पूजा-उपासना करने से मां की कृपा प्राप्त होती है.

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है. हिंदू धर्म में किसी भी पूजा अनुष्ठान से पहले कलश स्थापना का विशेष महत्व बताया गया है. हर शुभ कार्य को शुभ समय में करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. ऐसे में आज हम जानते हैं नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त और सही समय के बारे में.
 
नवरात्रि प्रतिपदा तिथि
शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 26 सितंबर 2022 से हो रही है. इस दिन तिथि का आरंभ प्रातः 03 बजकर 23 मिनट से होगा और 27 सितंबर 2022, प्रातः 03 बजकर 08 तक है.
 
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 2022
घटस्थापना मुहूर्त - प्रातः 06 बजकर 11 मिनट से सुबह 07 बजकर 51 मिनट तक अवधि- 01 घंटा 40 मिनट तक घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - सुबह 11 बजकर 48 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक है. अभिजीत मुहूर्त की कुल अवधि 48 मिनट है.
 
कलश स्थापना कैसे करें नवरात्रि में
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना से पहले घर की उत्तर-पूर्व दिशा को साफ कर लें. फिर यहां मां की चौकी लगाएं. लाल रंग के कपड़े बिछाएं और मां दु्र्गा की मूर्ति स्थापित करें. पूजा शुरू करने से पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और कलश की स्थापना करें. इसके लिए एक नारियल लें और उस पर चुनरी लपेटें. कलश के मुख पर मोली बांधें. इसके बाद कलश में जल भरें और एक लौंग का जोड़ा, सुपारी, हल्दी की गांठ, दूर्वा और एक रुपये का सिक्का डालें. कलश के ऊपर आम के पत्ते लगाएं और उसके ऊपर नारियल स्थापित करें. इसके बाद ये कलश मां दुर्गा की मूर्ति के दाईं और स्थापित करें. इसके बाद मां दु्र्गा का आह्वान करें |
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आज है विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त

झूठा सच @ रायपुर :- आज विश्वकर्मा पूजा है। भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्मा जी का पुत्र कहा जाता है। भगवान विश्वकर्मा को देवताओं के शिल्पी, निर्माण और सृजन के देवता माने जाते हैं। विश्वकर्मा पूजा के दिन औजारों, निर्माण कार्य से जुड़ी मशीनों, दुकानों, कारखानों आदि की पूजा की जाती है। मान्यता के मुताबिक विश्वकर्मा जी ने ही स्वर्ग लोक, पुष्पक विमान, द्वारिका नगरी, यमपुरी, कुबेरपुरी आदि का निर्माण किया था।इतना ही नहीं श्रीहरि भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र और भोलेनाथ के लिए त्रिशूल भी भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाया था। इसके साथ ही सतयुग का स्वर्गलोक, त्रेता की लंका और द्वापर युग की द्वारका की रचना भी भगवान विश्वकर्मा ने ही की थी। इसीलिए भगवान विश्वकर्मा को संसार का सबसे पहला और बड़ा इंजीनियर कहा जाता है। इस दिन सभी कारखानों और औद्योगिक संस्थानों में भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है।
 
विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त
सुबह का मुहूर्त – 07.39 AM – 09.11 AM (17 सितंबर 2022)
दोपहर का मुहूर्त – 01.48 PM – 03.20 PM (17 सितंबर 2022)
तीसरा मुहूर्त – 03.20 PM – 04.52 PM (17 सितंबर 2022)
 
भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि
सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहन लें। फिर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें।
पूजा में हल्दी, अक्षत, फूल, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, दीप और रक्षासूत्र शामिल करें।
पूजा में घर में रखा लोहे का सामान और मशीनों को शामिल करें।
पूजा करने वाली चीजों पर हल्दी और चावल लगाएं।
इसके बाद पूजा में रखे कलश को हल्दी लगा कर रक्षासूत्र बांधे।
इसके बाद पूजा शुरु करें और मंत्रों का उच्चारण करते रहें।
पूजा खत्म होने के बाद लोगों में प्रसाद बांट दें।
भगवान विश्वकर्मा की पूजा का मंत्र
भगवान विश्वकर्मा की पूजा में 'ॐ आधार शक्तपे नम: और ॐ कूमयि नम:', 'ॐ अनन्तम नम:', 'पृथिव्यै नम:' मंत्र का जप करना चाहिए। रुद्राक्ष की माला से जप करना अच्छा रहता है।

 

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आज हैं विश्वकर्मा जयंती

 झूठा सच @ रायपुर :- विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर यानी आज है. भगवान विश्वकर्मा को देवी-देवताओं का इंजीनियर कहा जाता है. ऐसा कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि का निर्माण किया था, लेकिन इसे सजाने-संवारने का काम विश्वकर्मा जी ने ही किया था. देवी-देवताओं के भवन, महल और रथ आदि के निर्माता भी स्वयं भगवान विश्वकर्मा ही हैं. क्या आप जानते हैं कि लंकापति रावण ने जिस सोने की लंका में सीता को कैद करके रखा था, वो भी विश्वकर्मा ने ही बनाई थी.

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती भगवान शिव के साथ वैकुण्थ गईं और वहां की सुंदरता देख मंत्रमुग्ध हो गईं. कैलाश पर्वत वापस लौटने के बाद उन्होंने भगवान शिव से एक सुंदर महल बनवाने की इच्छा जाहिर की. तब भगवान शिव ने ही विश्वकर्मा और कुबेर से सोने का महल बनवाया था. ऐसा कहते हैं कि रावण ने गरीब ब्राह्मण का रूप धारण करके शिवजी से दान में सोने की लंका मांग ली थी. हालांकि महादेव रावण को पहचान गए थे, इसके बावजूद वो उसे खाली हाथ नहीं लौटाना चाहते थे और तभी उन्होंने उसे सोने की लंका दे दी. ये बात जब माता पार्वती को पता चली तो वो बहुत नाराज हुईं और उन्होंने सोने की लंका जलकर भस्म हो जाने का श्राप दे दिया. यही कारण है कि आगे चलकर हनुमान जी ने अपनी पूंछ से सोने की पूरी लंका को जलाकर भस्म कर दिया था.

श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार, विश्वकर्मा जी ने भगवान श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका का भी निर्माण किया था. उन्होंने वास्तु शास्त्र को ध्यान में रखते हुए ही इसकी चौड़ी सड़कें, चौराहे और गलियों को बनाया था.महाभारत के अनुसार तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली के नगरों का विध्वंस करने के लिए भगवान शिव सोने के जिस रथ पर सवार हुए थे, उसका निर्माण विश्वकर्मा जी ने ही किया था. इसके दाएं चक्र में सूर्य और बाएं चक्र में चंद्रमा विराजमान थे. वाल्मीकि रामायण के अनुसार, विश्वकर्मा जी के वानर पुत्र नल ने भगवान श्रीराम के कहने पर रामसेतु पुल का निर्माण किया था. विश्वकर्मा का पुत्र होने के कारण ही नल शिल्पकला जानता था. इसीलिए वो समुद्र पर पत्थरों से पुल बना सका था |

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धमधा क्षेत्र पहुंचकर पुलिस अधीक्षक ने ग्रामीणों से किया संवाद

झूठा सच @ रायपुर / दुर्ग :- पुलिस अधीक्षक ने धमधा क्षेत्र पहुंचकर ग्रामीणों से संवाद किया। दरअसल आगामी त्योहारी सीजन को देखते हुए विशेष अभियान के तहत पुलिस अधीक्षक दुर्ग एवं राजपत्रित अधिकारियों के द्वारा लगातार पैदल पेट्रोलिंग की जा रही है। इस कड़ी में एसपी ने धमधा क्षेत्र में पैदल भ्रमण कर जनता से सीधे मुलाकात कर, उनकी समस्या सुनकर त्वरित निराकरण का निर्देश दिया। साथ ही असामाजिक तत्वों का जमावड़ा, सटोरियों, अड्डे बाजी, शराबखोरी करने वालों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने निर्देश दिए।

इस दौरान धमधा क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के द्वारा दुर्ग पुलिस के अभियान का सहर्ष स्वागत किया गया। अभियान के दौरान पुलिस अधीक्षक ने शिकायत पर कॉल करने हेतु अपना मोबाइल नंबर शेयर किया। लगातार अलग-अलग अनुविभाग में पुलिस अधीक्षक नागरिकों से संवाद कर रहे हैं।
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देशभर में गणेश चतुर्थी का उत्सव, देखें गणपति स्थापना मुहूर्त और पूजा विधि

आज महाराष्ट्र समेत देश के कई हिस्सों में गणेश चतुर्थी  मनाई जा रही है. आज लोग अपने घरों में गणपति बप्पा का हर्षोल्लास के साथ आगमन का स्वागत करेंगे. इसके लिए पूजा स्थान और पंडालों को भव्य रूप से सजाया गया है. हिंदू कैलेडर के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्म हुआ था. उनके जन्म से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं. आज जिन लोगों को गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना करनी है, उन्हें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में जानना जरूरी है. साथ ही आज के दिन चंद्रमा न देखें, वरना यह आपके लिए शुभ हो सकता है. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट हमें बता रहे हैं गणेश चतुर्थी पर गणपति स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि.


गणेश चतुर्थी तिथि 2022
30 अगस्त को दोपहर 03:34 पीएम पर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि प्रारंभ हुई है और आज यह दोपहर 03:23 पीएम तक मान्य रहेगी.
गणेश स्थापना मुहूर्त 2022
दिन का चौघड़िया मुहूर्त
लाभ: उन्नति — सुबह 05:58 एएम से सुबह 07:34 एएम, 05:08 पीएम से 06:44 पीएम
अमृत: सर्वोत्तम — सुबह 07:34 एएम से सुबह 09:10 एएम तक
चर: सामान्य — सुबह 09:10 एएम से सुबह 10:46 एएम तक
शुभ: उत्तम — सुबह 10:46 एएम से दोपहर 12:21 पीएम तक

गणेश चतुर्थी के योग और संयोग
रवि योग: आज सुबह 05:58 एएम से देर रात 12:12 एएम तक
शुभ योग: प्रात: काल से पूरे दिन
गणेश जी का जन्म योग: आज भी बुधवार दिन है. गणेश जी के जन्म समय के दिन भी बुधवार था.
गणेश चतुर्थी 2022 चंद्रोदय समय
आज सुबह 09:26 एएम पर और चंद्रास्त रात 09:11 पीएम तक
गणेश स्थापना और पूजन विधि
1. सबसे पहले पूजा स्थान की साफ सफाई कर लें और उसकी सजावट कर लें. फिर गणपति बप्पा को लेकर आएं.
2. गणपति बप्पा को एक चौकी पर स्थापित करें. उस पर एक पीले या लाल रंग का कपड़ा बिछा लें. फिर नीचे दिए मंत्र से बप्पा का आह्वान और स्थापना करें.

अस्य प्राण प्रतिषठन्तु अस्य प्राणा: क्षरंतु च।
श्री गणपते त्वम सुप्रतिष्ठ वरदे भवेताम।।
3. अब गणेश जी का पंचामृत स्नान करएं और वस्त्र अर्पित करें. फिर उनको फूल, अक्षत्, चंदन, दूर्वा, जनेऊ, पान का पत्ता, सुपारी, सिंदूर, फल आदि चढ़ाएं. उनको मोदक, केला आदि का भोग लगाएं. इस दौरान आप नीचे दिए मंत्र पढ़ें.
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
4. अब गणेश चालीसा का पाठ करें और गणेश जी की आरती करें. जो लोग व्रत हैं, वे गणेश जी की जन्म कथा या व्रत कथा को सुनें. दिनभर भक्ति भजन और रात्रि जागरण करें. अगले दिन सुबह पारण करके व्रत को पूरा करें.
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हरतालिका तीज व्रत रख रही हैं तो इन बातों का रखें ध्यान

हिंदू पंचांग के अनुसार, हरतालिका तीज  भाद्रपद माह (अगस्त-सितंबर) की शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है. हरतालिका तीज को सबसे बड़ी तीज के रूप में पूजा जाता है. हरतालिका तीज का व्रत वैवाहिक सुख और संतान के लिए मनाया जाता है. पंडित गोविंद पांडे बताते हैं कि हरतालिका तीज पर महिलाएं गेहूं या मिट्टी से बनी मूर्तियों को तैयार करके भगवान शिव और देवी पार्वती की विधि-विधान से पूजा करती हैं. इस दिन महिलाएं निर्जला और निराहार व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. कुंवारी कन्याएं भी हरतालिका तीज व्रत रखती हैं. मान्यता है कि इससे कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है.

हरतालिका तीज 2022 का शुभ मुहूर्त
इस बार हरतालिका तीज व्रत 30 अगस्त 2022 को रखा जाएगा. इस दिन सुबह साढ़े छह बजे से लेकर 8 बजकर 33 मिनट तक हरतालिका तीज की पूजा होगी. वहीं, शाम 6 बजकर 33 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक प्रदोष काल रहेगा.

हरतालिका तीज की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती की सहेलियां उनको जंगल में ले गईं ताकि उनके पिता उनकी इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से विवाह करने के लिए मजबूर न कर सकें. हरतालिका तीज की पूजा सुबह के समय की जाती है. हरितालिका तीज पर श्रीगणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है. तीनों को वस्त्र अर्पित किए जाते हैं और हरितालिका तीज व्रत कथा सुनी जाती है.

हरतालिका तीज व्रत का नियम
1- हिंदू मान्यताओं के अनुसार, हरतालिका तीज व्रत विवाहित महिलाएं व कुंवारी कन्याएं रख सकती हैं.
2- इस दिन महिलाएं निर्जला और निराहार व्रत रखती हैं. इस दौरान भूलकर भी अनाज व जल ग्रहण नहीं करना चाहिए.
3- मान्यताओं के अनुसार, कुछ जगह व्रत खत्म होते ही जल ग्रहण किया जाता है, वहीं कुछ जगह व्रत के अगले दिन जल ग्रहण किया जाता है.
4- इस व्रत को रखते समय आपको गुस्सा नहीं होना चाहिए. अपने शांत और शीतल मन से इस व्रत को रखना चाहिए.
5- व्रत रखते समय अपने से छोटे या बुजुर्गों को ऐसा कुछ ना कहे, जिससे उनका दिल दुखे. अपने पति को भी अपशब्द ना बोलें.
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जानिए 'हरितालिका तीज' पूजन का शुभ मुहूर्त

अखंड सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन प्रदान करने वाली हरतालिका तीज आने वाली है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज मनाई जाती है. हरतालिका तीज का व्रत उत्तर भारत के राज्यों में रखा जाता है. यह कठिन व्रतों में से एक है. इस साल हरतालिका तीज 30 अगस्त दिन मंगलवार को है. इस दिन विवाहित महिलाएं और विवाह योग्य युवतियां निर्जला व्रत रखती हैं ताकि उनके जीवनसाथी को लंबी आयु प्राप्त हो और उनकी वैवाहिक जीवन सुखमय हो. मनचाहे वर की कामना से भी हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है.

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बता रहे हैं हरतालिका तीज व्रत की पूजा सामग्री के बारे में. जो महिलाएं या युवतियां पहली बार हरतालिका तीज का व्रत रखने वाली हैं, उनको इस व्रत की पूजा सामग्री के बारे में जान लेना चाहिए, ताकि वे पूरे विधि विधान से वे व्रत को करें और तीज माता से अपनी मनोकामनओं की पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्त करें.

हरतालिका तीज 2022 पूजन सामग्री लिस्ट
1. काली मिट्टी या रेत
2. मिट्टी का एक कलश
3. पीले और लाल रंग का कपड़ा
4. लकड़ी का एक पटरा
5. तीज माता यानि माता पार्वती के लिए लाल रंग की चुनरी और हरे रंग की एक साड़ी
6. नारियल, चंदन, कुमकुम, पंचामृत, कपूर, दीपक
7. सुहाग का सामान, लाल रंग के फूल और लाल फूलों की माला
8. काजल,चूड़ियां, मेंहदी, सिंदूर, बिंदी
9. महावर, बिछिया, शीशा, कंघी
10. शिव जी के लिए वस्त्र
11. बेलपत्र, धतूरा फल, सफेद फूल, केले का पत्ता, शमी के पत्ते
12. फल, फूल, जनेऊ, अबीर, गाय का घी, सरसों तेल
13. गणेश जी के लिए नया वस्त्र, पान का पत्ता, सुपारी, दूर्वा, मोदक, लड्डू
14. दही, चीनी, शहद, गंगाजल, गाय का गोबर, पंचगव्य आदि

व्रत रखने वालों के लिए महत्वपूर्ण बातें
1. मायके से आई हुई साड़ी और श्रृंगार सामग्री व्यवस्थित कर लें.
2. व्रत वाले दिन सूर्योदय पूर्व खाने के लिए फल, मिठाई आदि की व्यवस्था कर लें.
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर रखें नियमानुसार व्रत

हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म इसी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. यह पर्व देशभर में मनाया जाता है. वहीं मथुरा-वृंदावन में इस त्योहार की अलग ही धूम होती है. खासकर मंदिरों और घरों में लोग बाल गोपाल के जन्मोत्सव का आयोजन करते हैं.

संतान की कामना के लिए रखते हैं व्रत
जन्माष्टमी के दिन बाल गोपाल के लिए पालकी सजाई जाती है. उनका श्रृंगार किया जाता है. वहीं इस दिन निःसंतान दंपत्ति विशेष तौर पर जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं. वे बाल गोपाल कृष्ण जैसी संतान की कामना से यह व्रत रखते हैं.श्रीकृष्ण की भक्ति भोग, सुख, मोक्ष प्रदान करने वाली है. श्रीकृष्ण समस्त सुखों और वैभव को प्रदान करने वाले हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से जातकों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

जन्माष्टमी व्रत पूजा-विधि
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस पावन दिन बड़े ही धूम-धाम से भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस दिन विधि-विधान से भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा-अर्चना की जाती है और व्रत भी रखा जाता है.

पूजा का शुभ मुहूर्त
19 अगस्त को रात 11 बजकर 59 मिनट से देर रात तक है.कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत में रात्रि को लड्डू गोपाल की पूजा-अर्चना करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण किया जाता है. हालांकि कई लोग व्रत का पारण अगले दिन भी करते हैं. कुछ भक्तों द्वारा रोहिणी नक्षत्र के समापन के बाद व्रत पारण किया जाता है.
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श्रीकृष्ण का जन्‍मोत्‍सव, जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

आज पूरे देश में जन्माष्टमी पर्व मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वापर युग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की मध्य रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। तब से लेकर आज तक इस तिथि पर श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जा रहा है। इस दिन कृष्ण मंदिरों में कई विशेष आयोजन होते हैं, सजावट की जाती है और भक्तों की भीड़ उमड़ती है। भक्त दिनभर उपवास करते हैं और रात को कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हैं। बनारस के विद्वानों के पास मौजूद ग्रंथों के अनुसार ये भगवान कृष्ण का 5249वां जन्म पर्व है। आगे जानिए पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…

ये है पूजा का शुभ मुहूर्त
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था। उस समय सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा वृष राशि में था। ऐसा ही संयोग इस बार भी बन रहा है। उस समय अष्टमी तिथि का आठवा मुहूर्त था। ये मुहूर्त इस बार 19 अगस्त, शुक्रवार की रात 12.05 से 12.45 तक रहेगा। यानी यही रात्रि पूजा का श्रेष्ठ मुहूर्त है। इसके अलावा दिन के शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं-

सुबह 06.00 से 10.30 तक
- दोपहर 12.30 से 2.00 तक
- शाम 5.30 से 7.00 तक
- रात 11.25 से 1.00 तक
 
कौन-कौन से शुभ योग रहेंगे आज? 
ज्योतिषाचार्य पं. मिश्र के अनुसार 19 अगस्त, शुक्रवार को चंद्र-मंगल की युति होने से महालक्ष्मी योग, सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग, शुक्रवार को कृत्तिका नक्षत्र होने से छत्र नाम के शुभ योग बनेंगे। इनके अलावा ध्रुव, कुलदीपक, भारती, हर्ष और सत्कीर्ति नाम के राजयोग भी इस दिन रहेंगे।

जन्माष्टमी की व्रत-पूजा विधि
- जन्माष्टमी की सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले व्रत-पूजा का संकल्प लें। जैसे व्रत आप करना चाहते हैं वैसा ही संकल्प लें।
- घर में किसी साफ स्थान पर पालना लगाएं और उसमें लड्डू गोपाल की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान को नए वस्त्र पहनाएं और पालने भी भी सजवाट करें।
- शुद्ध घी का दीपक जलाएं। लड्डू गोपाल को कुंकुम से तिलक कर चावल लगाएं। इसके बाद अबीर, गुलाल, इत्र, फूल, फल आदि चीजें चढ़ाएं।
- इसके बाद जो भी भोग घर में शुद्धतापूर्वक बनाया हो, उसे अर्पित करें। भोग में तुलसी के पत्ते जरूर रखें। इसके बाद आरती करें।
- इसके बाद दिन भर निराहार रहें यानी बिना कुछ खाए-पिए। संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। पूरे दिन मन ही मन भगवान का स्मरण करते रहें।
- रात को 12 बजे एक बार फिर से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। पालने को झूला करें। माखन मिश्री, पंजीरी और पंचामृत का भोग लगाएं।
- पूजा के बाद आरती करें और संभव हो तो रात पर पूजा स्थान पर बैठकर ही भजन करें। अगले दिन पारणा कर व्रत पूर्ण करें।
 
जन्माष्टमी पर क्यों करते हैं व्रत?
जन्माष्टमी पर अधिकांश लोग व्रत रखते हैं और दिन भर कुछ भी खाते-पीते नहीं है। इसके पीछे कई कारण हैं जो इस प्रकार हैं- अष्टमी तिथि को जया भी कहते हैं, यानी जीत दिलाने वाली तिथि। इस दिन उपवास रख भगवान में मन लगाने से सभी कामों में जीत मिलती है। निराहार रहने से शरीर की शुद्धि होती है। उपवास करने से सांसारिक विचार मन में नहीं आते हैं और मन भगवान में लगा रहता है।
 
भगवान श्रीकृष्ण की आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
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कृष्ण जन्माष्टमी 2022: जानिए शुभ मुहूर्त और योग

झूठा सच @ रायपुर :- कृष्ण जन्माष्टमी हर साल श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। बाल गोपाल का जन्म आज ही के दिन रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। यह त्यौहार भारत ही नहीं विदेशों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल कृष्ण जन्माष्टमी 18 अगस्त 2022, गुरुवार को मनाई जाएगी। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार कृष्ण का जन्म रात में हुआ था, इसलिए यह पर्व जन्माष्टमी की रात श्रीकृष्ण की पूजा करने का नियम है। इस बार जन्माष्टमी इसलिए खास मानी जा रही है क्योंकि इस दिन अद्भुत योग बन रहे हैं।

कृष्ण जन्माष्टमी 2022 शुभ मुहूर्त और योग
श्रवण कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि 18 अगस्त 2022, रात 09.21 बजे से शुरू हो रही है
श्रवण कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि समाप्त – 19 अगस्त 2022, रात 10:59 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त – 18 अगस्त 2022, दोपहर 12.05 बजे से दोपहर 12.56 बजे तक
वृद्धी योग प्रारंभ – 17 अगस्त 2022, रात 08.56 बजे तक
वृत्ति योग समाप्त – 18 अगस्त 2022, 08.41 . तक
ध्रुव योग प्रारंभ – 18 अगस्त 2022, 08.41 मिनट . तक
ध्रुव योग समाप्त – 19 अगस्त 2022, 08.59 मिनट तक
उपवास का समय – 19 अगस्त 2022, 10:59 मिनट बाद
 
पंचांग के अनुसार वर्ष 2022 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन ध्रुव योग और वृष योग बन रहा है, जो कृष्ण पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस अवधि में किया गया हर कार्य सिद्ध होता है।
 
कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?
भगवान कृष्ण को विष्णु का 8वां अवतार माना जाता है। भगवान कृष्ण का जन्म जन्माष्टमी के दिन पृथ्वी को कंस के अत्याचारों से मुक्त करने के लिए हुआ था। मान्यता है कि इस दिन मध्यरात्रि में बाल गोपाल की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण के आगमन के लिए भक्त अपने घरों और मंदिरों में विशेष सजावट करते हैं। लड्डू गोपाल का अभिषेक करते हुए व्रत का पालन करते हुए रात भर मंगल गीत गाए जाते हैं। इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान, दीर्घायु और सुख की प्राप्ति होती है।
 

 

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आज हल षष्ठी व्रत , जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर हल षष्ठी या हरछठ मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार, हरछठ के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम की पूजा अर्चना की जाती है। इसलिए इसे बलराम जयंती के नाम से भी जानते हैं। इस दिन को गुजरात में राधव छठ के नाम से जानते हैं। जानिए हल छठ का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।


हलषष्ठी 2022 का शुभ मुहूर्त

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का प्रारंभ -16 अगस्त, मंगलवार को रात 08 बजकर 17 मिनट पर से शुरू
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का समापन- 17 अगस्त को रात 08 बजकर 24 मिनट तक
उदया तिथि के आधार पर हल षष्ठी व्रत 17 अगस्त को रखा जाएगा।
रवि योग- 17 अगस्त को सुबह 5 बजकर 51 मिनट लेकर 7 बजकर 37 मिनट तक। इसके बाद रात 9 बजकर 57 मिनट से 18 अगस्त सुबह 5 बजकर 52 मिनट तक।

हल षष्ठी का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हल छठ या हल षष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए रखा जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है और हल की पूजा के साथ बलराम की पूजा करती हैं। भगवान बलराम की कृपा से घर में सुख रहता है।

हल षष्ठी की पूजा विधि
हरछठ के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान के बाद साथ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें।
एक चौकी पर नीले रंग का कपड़ा बिछाकर कलावे से बांध दें।
इस चौकी पर श्री कृष्ण और बलराम की फोटो या प्रतिमा रख दें।
जल अर्पित करने के बाद चंदन लगाना चाहिए।
नीले रंग के फूल चढ़ाएं
बलराम जी को नीले रंग के वस्त्र और श्री कृष्ण को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करना चाहिए।
बलराम का शस्त्र हल है। इसलिए उनकी प्रतिमा पर एक छोटा हल रखकर पूजन करना श्रेयस्कर होगा।
इसके बाद श्री कृष्ण और बलराम जी को भोग लगाएं।
इसके बाद धूप और घी का दीपक जलाकर आरती कर लें।
 
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जानिए कब है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी , शुभ मुहूर्त और पूजा- विधि

भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव को जन्माष्टमी के नाम से जानते हैं। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस साल जन्माष्टमी पर विशेष संयोग बन रहे हैं।

जन्माष्टमी पर बन रहे कई शुभ संयोग-
जन्माष्टमी पर वृद्धि व ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, जन्माष्टमी के दिन रात 08 बजकर 42 मिनट तक वृद्धि योग रहेगा। इसके बाद ध्रुव योग शुरू होगा। ज्योतिष शास्त्र में इन योगों को बेहद शुभ माना गया है। मान्यता है कि इन योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होती है।
रोहिणी नक्षत्र के बिना जन्माष्टमी-
इस साल रोहिणी नक्षत्र के बिना जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। इस साल जन्माष्टमी के दिन भरणी नक्षत्र रात 11 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। इसके बाद कृत्तिका नक्षत्र शुरू होगा।
कृष्ण जन्माष्टमी 2022 डेट-
साप्ताहिक राशिफल: 21 अगस्त तक का समय इन राशियों के लिए भारी, वृषभ समेत इन राशि के जातकों को मिलेगी खुशखबरी
कृष्ण जन्माष्टमी बृहस्पतिवार, अगस्त 18, 2022 को
निशिता पूजा का समय - 12:03 ए एम से 12:47 ए एम, अगस्त 19
अवधि - 00 घण्टे 44 मिनट
दही हाण्डी शुक्रवार, अगस्त 19, 2022 को
व्रत पारण का समय-
पारण के दिन अष्टमी तिथि का समाप्ति समय - रात 10:59 बजे।
पारण समय - 05:52 ए एम, अगस्त 19 के बाद
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जानिए हल षष्ठी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

हल षष्ठी या हल छठ भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है. यह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से एक या दो दिन पूर्व मनाई जाती है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बलराम जयंती के नाम से जानते हैं. उत्तर भारत में इसे हल षष्ठी, ललही छठ या हल छठ कहते हैं और गुजरात में राधन छठ कहा जाता है. राधन छठ में संतान की रक्षा के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं. बृज क्षेत्र में इसे बलदेव छठ कहते हैं. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट से जानते हैं हल षष्ठी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.


हल षष्ठी 2022 मुहूर्त
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का प्रारंभ 16 अगस्त दिन मंगलवार को रात 08 बजकर 17 मिनट पर से हो रहा है. इस तिथि का समापन अगले दिन 17 अगस्त को रात 08 बजकर 24 मिनट पर होगा. उदयातिथि की मान्यता के आधार पर हल षष्ठी व्रत 17 अगस्त को रखा जाएगा.

रवि योग में हल षष्ठी
17 अगस्त को हल षष्ठी के दिन रवि योग प्रात:काल से ही प्रारंभ हो जा रहा है. सुबह में करीब दो घंटे और रात में करीब 10 बजे से अगले दिन सूर्योदय तक है. रवि योग का प्रारंभ सुबह 05 बजकर 51 मिनट से होकर सुबह 07 बजकर 37 मिनट तक है. फिर रात में रवि योग 09 बजकर 57 मिनट से अगले दिन सुबह 05 बजकर 52 मिनट तक है.रवि योग में सूर्य देव की कृपा होती है. यह योग अमंगल को दूर करके शुभ और सफलता प्रदान करता है. रवि योग का समय पूजा पाठ के​ लिए उत्तम है.

हल षष्ठी का महत्व
माताएं हल षष्ठी का व्रत संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन के लिए रखती हैं. इस व्रत को करने से बलराम जी यानि शेषनाग का आशीर्वाद प्राप्त होता है. बलराम जी को बलदेव, बलभद्र और हलयुद्ध के नाम से भी जानते हैं.

हल षष्ठी की पूजा विधि
इस दिन प्रात: स्नान आदि से निवृत होकर हल षष्ठी व्रत और पूजा का संकल्प लेते हैं. फिर शुभ समय में बलराम जी की पूजा फूल, फल, अक्षत्, नैवेद्य, धूप, दीप, गंध आदि से करते हैं. उनसे पुत्र के सुखमय जीवन की कामना करते हैं. रात्रि के समय में पारण करके व्रत को पूरा किया जाता है. इस व्रत में हल की पूजा करते हैं और हल से उत्पन्न अन्न और फल नहीं खाते हैं. पूजा में भैंस का दूध उपयोग में लाया जाता है.
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कल है रक्षाबंधन जानें शुभ मुहूर्त

रक्षाबंधन 11 अगस्‍त 2022 को मनाएं या 12 अगस्‍त 2022 को, यह कंफ्यूजन ज्‍यादातर लोगों को है. सावन महीने की पूर्णिमा 11 अगस्‍त को ही शुरू हो जाएगी लेकिन इन दिन भद्रा काल रहने से राखी बांधने के मुहूर्त को लेकर समस्‍या हो रही है. वहीं 12 अगस्‍त की सुबह 7 बजे तक पूर्णिमा तिथि रहने और इसी दिन उदया तिथि रहने से लोग 12 अगस्‍त को राखी बांधने के लिए शुभ मान रहे हैं. ऐसे में जानें कि रक्षाबंधन मनाने के शुभ मुहूर्त कौन-कौन से हैं और भद्रा काल के नकारात्‍मक प्रभाव से बचने के लिए क्‍या करें.

रक्षाबंधन 2022 शुभ मुहूर्त
भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ होता है क्‍योंकि लंकापति रावण की बहन ने उसे भद्रा काल में राखी बांधी थी और फिर एक साल में ही उसका विनाश हो गया था. लिहाजा भद्रा काल में कभी भी ना तो राखी बांधनी चाहिए और ना ही अन्‍य शुभ काम करना चाहिए. साल 2022 में सावन पूर्णिमा तिथि सुबह 10:30 बजे शुरू होगी और अगले दिन 07:05 बजे तक रहेगी. इस बीच 11 अगस्‍त की शाम 05:17 बजे से भद्रा काल शुरू होगा. लेकिन इससे पहले 11 अगस्‍त को राखी बांधने के लिए कुछ शुभ मुहूर्त रहेंगे.
अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11:37 से लेकर दोपहर 12:29 तक
विजय मुहूर्त- दोपहर 2:14 से 3:07 तक
12 अगस्त को सुबह 7:15 तक शुभ मुहूर्त
 
राखी बांधते समय जरूर करें यह काम
रक्षाबंधन के दिन भाई की कलाई पर बांधते समय कुछ बातों का जरूर ध्‍यान रखना चाहिए. ताकि भाई-बहन दोनों का जीवन सुखद और समृ‍द्ध रहे. इसके लिए हमेशा राखी बांधते समय 3 गांठें बांधें. ये गांठें अहम संकेत देती हैं. ये भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश को संबोधित करती हैं. इसके अलावा पहली गांठ भाई की लंबी उम्र और सेहत, दूसरी गांठ सुख-समृद्धि और तीसरी गांठ इस रिश्ते को मजबूत करने के लिए बांधी जाती है. ध्‍यान रखें कि रक्षाबंधन के दिन भाई-बहन काले कपड़े न पहनें. वहीं बहन अपने भाई को टूटे चावल माथे पर न लगाएं |
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