धर्म समाज

बुधवार के दिन करें ये सरल उपाय, होगी हर मनोकामना पूरी

बुधवार का दिन गौरी पुत्र भगवान श्री गणेश और बुध ग्रह को समर्पित है। कहा जाता है कि बुध ग्रह के नाम से ही इस दिन का नाम बुधवार पड़ा है। हिंदू धर्म में बुधवार के दिन व्रत रखकर भगवान गणेश की पूजा करना शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है और कुंडली में बुध ग्रह के अशुभ प्रभाव भी कम होते हैं। इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र में बुधवार के दिन कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं। इन उपायों को करने से भगवान गणेश का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही सभी बाधाएं दूर होती हैं और कुंडली में बुध की स्थिति मजबूत होती है। ऐसे में आइए जानते हैं बुधवार के इन्हीं चमत्कारी उपायों के बारे में जो जीवन की परेशानियों को दूर करते हैं|
यदि आपकी कुंडली में बुध ग्रह कमजोर है, तो बुधवार के दिन किसी जरूरतमंद व्यक्ति को हरी मूंग या हरा कपड़ा दान करना बहुत शुभ माना जाता है। इससे आपको लाभ मिलता है और जीवन में आने वाली परेशानियां दूर हो जाती हैं।
अगर आप आर्थिक समस्याओं या कर्ज से परेशान हैं तो प्रत्येक बुधवार को गणेश स्तोत्र का पाठ करें। ऐसा करने से भगवान गणेश का आशीर्वाद मिलता है और जीवन में उन्नति के मार्ग प्रशस्त होते हैं।
हर बुधवार को 'ओम गं गणपतये नमः:' या 'श्री गणेश नमः' मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से आपके जीवन में आने वाली सभी परेशानियां दूर हो सकती हैं।
बुधवार के दिन भगवान गणेश की पूजा में 21 दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिए। ऐसा करने से गणेश जी जल्दी प्रसन्न होते हैं क्योंकि गणेश जी को दूर्वा भी बहुत प्रिय है।
वहीं यदि आपकी कुंडली में बुध ग्रह कमजोर है तो अपने पास हरे रंग का रुमाल रखें। साथ ही बुधवार के दिन हरे रंग के कपड़े पहनना भी शुभ होता है।
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गुरु पूर्णिमा का महापर्व कल गुरुवार को

  • अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाने वाले गुरुओं को नमन
आषाढ़ माह की पूर्णिमा तिथि गुरुवार को पड़ रही है, इस दिन शिष्य अपने गुरु और मार्गदर्शक की पूजा करते हैं, जिनसे उन्हें शैक्षिक और आध्यात्मिक ज्ञान मिला है। शास्त्रों में गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊपर बताया गया है, क्योंकि गुरु अपने शिष्य को जीवन में सफलता पाने का और परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग बताते हैं। गुरु पूर्णिमा: अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाने वाले गुरुओं को नमन
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
इस श्लोक का अर्थ है कि गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शिव हैं। गुरु साक्षात परब्रह्म हैं, गुरु को हम प्रणाम करते हैं। गुरु शब्द में 'गु' का अर्थ है अंधकार और 'रु' का अर्थ है नाश करने वाला, यानी जो अज्ञान के अंधकार का नाश करता है और ज्ञान का प्रकाश देता है, वही गुरु है।
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। उन्होंने वेदों का संपादन किया, 18 पुराण, महाभारत और श्रीमद् भगवद् गीता की रचना की। गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं।
इस दिन पवित्र नदी में स्‍नान करने से आपको हर तरह के पाप से मुक्ति मिलती है और महापुण्‍य की प्राप्ति होती है। इस दिन गुरुओं का सम्मान करने के साथ-साथ उन्हें गुरु दक्षिणा भी दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गुरु और बड़ों का सम्मान करना चाहिए। जीवन में मार्गदर्शन के लिए उनका आभार व्यक्त करना चाहिए, गुरु पूर्णिमा पर व्रत, दान और पूजा का भी महत्व है। व्रत रखने और दान करने से ज्ञान मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गुरु पूर्णिमा का पर्व गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है। इस दिन गुरु की पूजा करनी चाहिए, लेकिन अगर हम गुरु से साक्षात् नहीं मिल पा रहे हैं तो गुरु का ध्यान करते हुए भी पूजा कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार गुरु की मानसिक पूजा का भी की जा सकती है। इसी तरह हम भी जब कोई बड़ा काम शुरू करते हैं तो अपने गुरु का ध्यान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से काम में सफलता मिलती है।
इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ गुरुओं को पीले वस्त्र, फल और अन्य सामग्री भेट के रूप में दें। साथ ही इस दिन आप गुरु मंत्र का जाप करे। ग्रंथों का पाठ करें, गुरु द्वारा बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लें। इस दिन किसी योग व्यक्ति को गुरु माने और गुरु दीक्षा लें। गुरु को गुरु दक्षिणा अर्पित करें।
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महादेव का एक ऐसा ज्योतिर्लिंग जिसकी कथा रामायण काल से है जुड़ी

  • पूजा करने से भक्त पाप और बुरे कर्मों से हो जाता है मुक्त
भगवान शंकर के 12 ज्योतिर्लिंग में भीमाशंकर का छठा स्थान है। यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे से लगभग 110 किलोमीटर दूर सह्याद्रि पर्वत पर स्थित है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग काफी बड़ा और मोटा है, जिसके कारण इस मंदिर को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
बता दें कि भीमाशंकर मंदिर के पास ही एक नदी बहती है, जिसको लेकर मान्यता है कि जब यहां भीमा असुर और भगवान शिव के बीच युद्ध चल रहा था तब भगवान शिव के शरीर से पसीने की कुछ बूंदें निकलीं। इसी पसीने से भीमा नदी का निर्माण हुआ। भीमा नदी यहीं से बहती है जो कृष्णा नदी में जाकर मिल जाती है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी पौराणिक कथा शिव पुराण में वर्णित है, जिसमें कुंभकर्ण का पुत्र भीमा भगवान राम से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए तपस्या करता है, उसे ब्रह्मा से अजेय होने का वरदान प्राप्त होता है। इसके बाद वह अत्याचार करने लगता है। जिससे त्रस्त होकर देवता और ऋषि महादेव की शरण में जाते हैं। फिर भगवान शिव और भीमा के बीच भयंकर युद्ध होता है, जिसमें अंततः भगवान शिव भीमा का वध कर देते हैं और यहां ज्योतिर्लिंग स्वरूप में विद्यमान हो जाते हैं।
मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश हो जाता है और भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। शिव पुराण में कहा गया है कि भीमाशंकर मंदिर में पूजा करने से भक्त अपने पापों और बुरे कर्मों से मुक्त हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिव पुराण के अलावा, कई प्राचीन ग्रंथों में भी भीमाशंकर मंदिर के महत्व का उल्लेख किया गया है।
यहां गुप्त भीम भी है। यह भीमा नदी का उद्गम स्थल है। भीमाशंकर मंदिर से 3 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित, गुप्त भीम वह स्थान है, जहां भीमा नदी एक शिला पर रखे गए लिंग के ऊपर तीव्र बल से बहती है।
वैसे भीमाशंकर के बारे में बता दें कि इसके आसपास 108 तीर्थ स्थान हैं। इनमें प्रमुख तीर्थ स्थान सर्वतीर्थ, ज्ञानतीर्थ, मोक्ष तीर्थ, पापमोचन तीर्थ, क्रीड़ा तीर्थ, भीमा उद्गम तीर्थ, भाषा तीर्थ, आदि हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में इस मंदिर की महिमा के बारे में वर्णित है...
यं डाकिनिशाकिनिकासमाजे निषेव्यमाणं पिशिताशनैश्च । सदैव भीमादिपदप्रसिद्दं तं शङ्करं भक्तहितं नमामि ॥
जो डाकिनी और शाकिनी वृन्द में प्रेतों द्वारा सदैव सेवित होते हैं, उन भक्तहितकारी भगवान भीमाशंकर को मैं प्रणाम करता हूं।
भीमाशंकर मंदिर के पास ही कमलजा मंदिर भी है जो कि भारत वर्ष में बहुत प्रसिद्ध मंदिर माना गया है। कमलजा माता को माता पार्वती का अवतार ही माना जाता है। यहीं भीमाशंकर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित हनुमान झील एक शानदार जगह है, जहां आप एक शांत दिन बिता सकते हैं।
यहीं पास में पार्वती हिल्स है, जहां की छटा बेहद मनोरम है। इसके साथ ही यहां मंदिर के पश्चिमी भाग में स्थित तालाब मंदिर के पीछे की ओर स्थित है। ऋषि कौशिक ने अपने गुरु का पिंडदान इसी पवित्र स्थल पर किया था। ऐसा माना जाता है कि इस तालाब में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे मोक्ष कुंड तीर्थ कहते हैं। भीमाशंकर मंदिर के दक्षिण की ओर स्थित सर्वतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध यह तालाब सीधे भगवान के मंदिर से जुड़ा हुआ है और यहीं से भीमा नदी निकलती है और बहती है। वहीं गुप्त भीम मार्ग पर स्थित गणपति मंदिर है। मान्यता है कि श्री भीमाशंकर के दर्शन के बाद इन भगवान गणेश के दर्शन भी करने चाहिए। इस गणपति के दर्शन के बाद ही भीमाशंकर यात्रा पूरी मानी जाती है। यह मंदिर भीमाशंकर से लगभग 1.30 किलोमीटर दूर स्थित है।
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इस दिन सूर्य देव करने जा रहे हैं राशि परिवर्तन

  • जानें आपके जीवन पर क्या होगा असर
पंचांग के अनुसार, 16 जुलाई यानी बुधवार को सूर्य देव कर्क राशि में गोचर करेंगे. इस दिन सूर्य का गोचर सुबह 05 बजकर 40 मिनट पर होगा. ऐसे में 16 जुलाई 2025 को कर्क संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा. आइए जानते हैं कि इस कर्क संक्रांति का आपकी राशि पर क्या असर हो सकता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कर्क संक्रांति का सभी 12 राशियों पर पर पड़ेगा अलग-अलग प्रभाव-
मेष राशि-
मेष राशि वालों के लिए सूर्य का यह गोचर आपके चौथे भाव में होगा, जो सुख, माता, भूमि और भवन का भाव है. इस दौरान आपको घरेलू जीवन में कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं. माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें. संपत्ति से जुड़े मामलों में सावधानी बरतें|
वृषभ राशि-
वृषभ राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर तीसरे भाव में होगा, जो पराक्रम, छोटे भाई-बहन और संचार का भाव है. इस अवधि में आपके संचार कौशल में वृद्धि हो सकती है. भाई-बहनों के साथ संबंध मजबूत होंगे. यात्रा के योग बन सकते हैं|
मिथुन राशि-
मिथुन राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर दूसरे भाव में होगा, जो धन, वाणी और परिवार का भाव है. इस दौरान आपको आर्थिक मामलों में सावधानी बरतनी होगी. वाणी पर नियंत्रण रखें, अन्यथा परिवार में मतभेद हो सकते हैं|
कर्क राशि-
कर्क राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर आपकी अपनी राशि में (पहले भाव में) होगा, जो व्यक्तित्व और स्वास्थ्य का भाव है. इस अवधि में आपके आत्मविश्वास में वृद्धि होगी. हालांकि, स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें, खासकर आंखों और सिर से संबंधित समस्याओं का ध्यान रखें|
सिंह राशि-
सिंह राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर बारहवें भाव में होगा, जो व्यय, हानि और विदेश यात्रा का भाव है. इस दौरान आपको खर्चों पर नियंत्रण रखने की आवश्यकता होगी. विदेश यात्रा के योग बन सकते हैं, लेकिन सावधानी बरतें|
कन्या राशि-
कन्या राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर ग्यारहवें भाव में होगा, जो आय, लाभ और बड़े भाई-बहन का भाव है. इस अवधि में आपकी आय में वृद्धि के योग बन सकते हैं. सामाजिक दायरे में सक्रिय रहेंगे और नए संबंध स्थापित होंगे|
तुला राशि-
तुला राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर दसवें भाव में होगा, जो करियर, पिता और मान-सम्मान का भाव है. इस दौरान आपको कार्यक्षेत्र में सफलता मिल सकती है. पिता के साथ संबंधों में सुधार होगा. पदोन्नति या नए अवसर प्राप्त हो सकते हैं|
वृश्चिक राशि-
वृश्चिक राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर नवें भाव में होगा, जो भाग्य, धर्म और उच्च शिक्षा का भाव है. इस अवधि में आपको भाग्य का साथ मिलेगा. धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी और उच्च शिक्षा के अवसर प्राप्त हो सकते हैं|
धनु राशि-
धनु राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर आठवें भाव में होगा, जो आयु, अनुसंधान और अचानक लाभ का भाव है. इस दौरान आपको स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना होगा. गुप्त विद्याओं में रुचि बढ़ सकती है. अचानक धन लाभ के योग बन सकते हैं|
मकर राशि-
मकर राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर सातवें भाव में होगा, जो विवाह, साझेदारी और सार्वजनिक संबंध का भाव है. इस अवधि में वैवाहिक जीवन में कुछ चुनौतियां आ सकती हैं. साझेदारी के व्यापार में सावधानी बरतें|
कुंभ राशि-
कुंभ राशि वालों के लिए सूर्य का गोचर छठे भाव में होगा, जो रोग, शत्रु और ऋण का भाव है. इस दौरान आपको स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी और ऋण से मुक्ति मिल सकती है|
मीन राशि-
मीन राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर पांचवें भाव में होगा, जो संतान, शिक्षा और प्रेम संबंध का भाव है. इस अवधि में संतान से संबंधित शुभ समाचार मिल सकते हैं. शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलेगी और प्रेम संबंधों में मधुरता आएगी|
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कब है सावन मास की शिवरात्रि, जानें तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में सावन माह को अत्यंत शुभ और पवित्र माना गया है। यह महीना विशेष रूप से भगवान शिव को समर्पित होता है। पूरे सावन भर श्रद्धालु शिवजी की उपासना करते हैं और जलाभिषेक से उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। इस दौरान पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि का महत्व और भी बढ़ जाता है। मासिक शिवरात्रि हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को आती है, लेकिन जब यह तिथि सावन महीने में पड़ती है, तो इसका आध्यात्मिक महत्व कई गुना अधिक हो जाता है।
सावन शिवरात्रि 2025 तिथि-
पंचांग के अनुसार सावन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत 23 जुलाई 2025 को सुबह 4:39 बजे से होगी और यह तिथि अगले दिन 24 जुलाई को रात 2:28 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार सावन शिवरात्रि का व्रत 23 जुलाई, बुधवार को रखा जाएगा।
शिव पूजन का शुभ मुहूर्त-
सावन मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष पूजा रात्रि के समय की जाती है, जिसे निशिता काल कहा जाता है। इस बार पूजा का सर्वोत्तम समय 24 जुलाई को रात 12:07 बजे से 12:48 बजे तक रहेगा। इस मुहूर्त में कुल 41 मिनट का समय होगा, जो कि शिव पूजन और जलाभिषेक के लिए सबसे शुभ माना गया है।
सावन शिवरात्रि का धार्मिक महत्व-
मान्यताओं के अनुसार सावन की शिवरात्रि का दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि इस दिन किया गया व्रत और पूजन वैवाहिक जीवन में प्रेम, सामंजस्य और सुख-शांति बनाए रखता है। यह व्रत विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं और विवाहित महिलाओं के लिए फलदायक माना जाता है।
इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, बेलपत्र, धतूरा और आक चढ़ाकर शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। भक्तों का मानना है कि इस दिन शिव जी की सच्चे मन से की गई उपासना सारे पापों को नष्ट करती है और मोक्ष की प्राप्ति कराती है।
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शिव को क्यों प्रिय है बेलपत्र, सावन में क्यों बढ़ जाता है इसका महत्व

भगवान शिव की भक्ति और पूजा को बेलपत्र के बिना अधूरा ही माना जाता है. देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए उन पर चढ़ाए जाने वाली सामग्री में बेलपत्र का सर्वश्रेष्ठ स्थान है. मान्यता है की सावन में इसे शिव पर अर्पित करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है|
वैसे तो पूरे साल ही भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र का होना अनिवार्य माना जाता है लेकिन सावन के महीने में इसे शिव को अर्पित करने का महत्व और महिमा का ही गुना बढ़ जाती है. बेलपत्र से आरोग्य और सौभाग्य दोनों के वृद्धि होती है. बेल के पत्र क कई आध्यात्मिक, धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व हैं तो चलिए जानते हैं बेलपत्र भगवान के शिव की पूजा के लिए इतना खास क्यों है| शिव को इतना प्रिय क्यों है बेलपत्र ?
बेलपत्र से जुड़ी पौराणिक कथाएं-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसके पीछे दो कथाएं प्रचलित हैं. पहली मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान जब कालकूट विष निकला तो भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया, जिस कारण से शिव का शरीर तपने लगा. विष के प्रभाव से शिव का कंठ जल रहा था तब देवताओं ने उनकी जलन को शांत करने के लिए बेलपत्र के साथ जल जल चढ़ाना शुरू कर दिया. जिससे शिव को शांति और ठंडक मिली, तभी से भगवान शंकर को बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा चली आ रही है|
दूसरी मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने वर्षों तक जंगल में तपस्या की थी जहां बेल के पत्र चढ़ाकर ही भगवान शंकर को प्रसन्न किया था और शिव ने उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था. तभी से शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा है. भगवान शिव को यह अति प्रिय है|
बेलपत्र से जुड़ी अन्य मान्यताएं-
स्कंद पुराण के अनुसार बेल के पेड़ का जन्म माता पार्वती के स्वेद यानी की पसीने से हुआ था. बेलपत्र के पूरे ही पेड़ को पवित्र माना जाता है और इसमें देवी लक्ष्मी का वास भी बताया जाता है. यही कारण है कि भगवान शिव को इसे अर्पित करने पर सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
शिव पुराण में भी बेलपत्र की महिमा का बखान किया गया है उसमें कहा गया है कि बेलपत्र के दर्शन, स्पर्श और शिव को अर्पण करने से सभी पापों का नाश हो जाता है और ऐसा व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति करता है.
बेलपत्र में तीन देवताओं का स्वरुप माना जाता है. इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है. यही कारण है कि इसे देवों के देव को समर्पित किया जाता है.
बेलपत्र को भगवान के त्रिनेत्र से जोड़कर भी देखा जाता है|
वहीं बेलपत्र को तीन गुणों से जोड़कर भी देखा जाता है. इसे तम, रज और सत का प्रतीक माना जाता है|
बेल पत्र के आयुर्वेदिक गुण-
इन्हीं सब मान्यताओं के साथ इसके कई फायदे बताए जाते हैं. आयुर्वेदिक गुणों की बात करें तो इसमें एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं. बेल के पत्ते शरीर को शीतलता प्रदान करते हैं साथ ही बेल का फल भी गर्मी को शांत करने का काम करता है. यही कारण है कि जब कालकूट विष से शिव का शरीर जल रहा था तो बेलपत्र उन पर अर्पित किए गए थे. इन्हीं सब वजहों से शिव पर बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा युगों से चली आ रही है और यह शिव को अति प्रिय माना जाता है|
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अच्छी रोटी, अच्छा कपड़ा और मकान कभी भी आत्मिक सुख नहीं देंगे : मनीष सागरजी

रायपुर। धर्म क्या है! यह आपको पैसा, प्रॉपर्टी या प्रसिद्धि नहीं देगा। यह सुख, शांति और आनंद के साथ जीवन जीने की कला है। अच्छी रोटी, अच्छा कपड़ा और अच्छा मकान कभी आपको आत्मिक सुख नहीं देंगे। ये सब साधन पास होंगे, तब भी मन के भीतर यह बात आ ही जाएगी कि कम कमाएंगे, चलेगा। जीवन में शांति चाहिए। विवेकानंद नगर स्थित श्री ज्ञान वल्लभ उपाश्रय में सोमवार को उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज साहब ने यह बातें कही। वे धर्मसभा को सच्चे श्रावक के कर्तव्य विषय पर संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि शांति की तलाश में इंसान ने 2 मूल रास्ते बनाए। पहला संसार का। दूसरा धर्म का। संसार का रास्ता खोजने वालों ने कहा कि खूब साधन-सामग्रियां जुटाओ। प्रसिद्धि कमाओ। धर्म के रास्ते चलने‌ वालों ने लालसाएं खत्म करने की बात सुझाई। तृष्णाएं हटाने, राग-द्वेष छोड़ने को कहा। मन-आत्मा निर्मल करो। दोष हटाओ। गुण बढ़ाओ। यही स्थायी शांति और आनंद का वास्तविक मार्ग है। उदाहरण के तौर जब आप व्रत रखते और उसे छोड़ते हैं तो खुशी इस बात की नहीं होती कि मैंने भोजन नहीं किया या भोजन कर लिया। आनंद इस बात का होता है कि मैंने भोजन करने की 'इच्छा' पर विजय प्राप्त कर ली है। यही धर्म का रास्ता है। आपके सुख के मार्ग में इच्छाएं सबसे बड़ी बाधा है। इच्छाओं को जीतना सीखिए। क्षमा, विनय, संतोष और सरलता वो धर्म हैं, जिसके जरिए अपनी तमाम तृष्णाओं को जीता जा सकता है। याद रखिए, इच्छा विजय करते हुए ही धर्म हो सकता है। इच्छाओं की पूर्ति के साथ कभी धर्म नहीं हो सकता।
श्रावक और श्रमण, यह इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने के मार्ग
इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने के 2 मार्ग हैं। पहला श्रावक और दूसरा श्रमण। श्रावक धर्म का पालन गृहस्थ करते हैं। श्रमण धर्म साधु मानते हैं। दोनों एक ही मार्ग हैं। श्रावक से थोड़ा ऊपर बढ़ गए, तो वह श्रमण मार्ग है। इनमें से कौन सा रास्ता सही है! आप कह सकते हैं श्रावक धर्म क्योंकि श्रमण में तकलीफ ज्यादा और सुख कम है। हालांकि जब आप यह बात समझेंगे कि इच्छाओं पर जितना ज्यादा जितना विजय प्राप्त करेंगे, उतना ज्यादा सुख है तो आपको श्रमण मार्ग ज्यादा उचित लगेगा। इसे आप स्तर के हिसाब से भी समझना चाहें तो श्रावक से ऊपर श्रमण और उसके बाद भगवान बनने का मार्ग प्रशस्त होता है। ऐसे में तो सबसे ज्यादा दुखी भगवान हो जाएंगे।
श्रावक भी 2 तरह के हैं, एक की इच्छाएं बेकाबू, दूसरे की मर्यादित
श्रावक भी 2 तरह के हो सकते हैं। एक की इच्छाएं बेकाबू हो सकती हैं। दूसरे की इच्छाएं मर्यादित रह सकती हैं। हमें दूसरा रास्ता चुनना है क्योंकि सुखी वही रहेंगे, जिन्होंने सीमित आवश्यकताओं और बंधी हुई मर्यादाओं वाली जिंदगी का रास्ता चुना है। संभव है कि कुछ लोगों को मर्यादित जीवन दुख का कारण लगे पर हकीकत में हमारे दुख का कारण अमर्यादित और स्वच्छंद जीवन जीने की इच्छा है। श्रावक जीवन के कर्तव्यों को बोझ न मानें। अपनाने योग्य चीजों को भीतर से स्वीकार कर लें। सारी तकलीफें खुद ब खुद दूर हो जाएंगी। दुख का कारण आपके मन की इच्छाएं हैं। श्रावक जीवन के कर्तव्य नहीं।
आत्मशोधन और कर्म विजय तप 13 जुलाई से
सहजानंदी चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार सचिव चंद्रप्रकाश ललवानी और मनोज लोढ़ा ने बताया कि 13 जुलाई से आत्मशोधन तप शुरू होने जा रहा है। इसके तहत एक दिन उपवास, दूसरे दिन ब्यासना रहेगा। दोनों वक्त के ब्यासने की व्यवस्था श्रीसंघ की ओर से की जाएगी। जिन्हें भी तप करना है, उन्हें श्रीसंघ के पास अपना रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है क्योंकि इंतजाम उसी हिसाब से किए जाएंगे। तपस्या की कड़ी में कर्म विजय तप भी किया जाएगा। इसके तहत प्रतिदिन एकासना किया जाना है।
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पति की रक्षा और प्रेम बढ़ाने मंगला गौरी व्रत के दिन करें ये खास उपाय

हिंदू धर्म में खास व पवित्र माने जाना वाला सावन माह 11 जुलाई से शुरू होने वाला है। सावन के पावन माह में भगवान शिव के साथ-साथ मां पार्वती की भी आराधना की जाती है। जिस तरह सावन का प्रत्येक सोमवार महादेव को समर्पित है। वहीं इस माह में पड़ने वाले मंगलवार मां गौरी को समर्पित है। मां मंगला गौरी आदि शक्ति माता पार्वती का ही मंगल रूप हैं। सावन के प्रत्येक मंगलवार के दिन मां मंगला गौरी का व्रत व पूजन किया जाता है। मान्यता है कि मां मंगला गौरी का व्रत व पूजन करने से मां पार्वती से अखंड सौभाग्य के आशीर्वाद की प्राप्ति होता है व कुंवारी कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है। मां मंगला गौरी व्रत के दिन मां पार्वती की पूजा के दौरान कुछ उपायों को करने से मंगल दोष दूर होता है और मन की हर इच्छा पूरी होती है। तो आइए जानते हैं मंगला गौरी व्रत के दिन कौन से उपाय करने चाहिए।
मंगला गौरी के उपाय-
सावन के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखा जाता है। उस दिन माता मंगला गौरी की विधिपूर्वक पूजा करें। उसके बाद श्री मंगला गौरी मंत्र ओम गौरीशंकराय नमः का जाप करें। इस उपाय को करने से मां मंगला गौरी के आशीर्वाद से मंगल दोष शांत होता है और विवाह में होने वाली देरी दूर होती है।
मंगला गौरी व्रत के दिन मां गौरी को लाल साड़ी, सिंदूर, चूड़ी, मेहंदी, बिंदी आदि चढ़ाएं। इस उपाय को करने से सुहाग की रक्षा होती है और वैवाहिक जीवन में प्रेम बना रहता है।
मंगला गौरी व्रत के दिन दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से मां की मूर्ति को स्नान कराएं और उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं। यह उपाय करने से रोग, दरिद्रता और संकट दूर होते हैं। इस दिन 5 या 7 कन्याओं को घर बुलाकर भोजन करवाएं और उन्हें उपहार जैसे- चूड़ी, बिंदी, रुमाल, फल दें। ऐसा करने से वैवाहिक सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है।
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9 जुलाई को उदय होंगे गुरु, इन 4 राशियों का जागेगा भाग्य

गुरु ग्रह का ज्योतिष में विशेष स्थान है। गुरु आपके पारिवारिक सुख, संपन्नता, करियर, धार्मिक और आध्यात्मिक पक्ष के कारक माने जाते हैं। इसलिए जब भी ये अपनी स्थिति में बदलाव करते हैं तो सभी राशियों पर इसका प्रभाव देखने को मिलता है। गुरु 9 जुलाई को मिथुन राशि में उदय होने वाले हैं, गुरु के उदय होने से किन राशियों को जीवन में शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है इसके बारे में आज हम आपको जानकारी देंगे।
मेष राशि-
गुरु ग्रह के उदय होने के बाद आपके साहस-पराक्रम में वृद्धि देखने को मिल सकती है। आप अपने अटके हुए कार्यों को पूरा करने के लिए एक्टिव रहेंगे। भाग्य का भी आपको सहयोग मिलेगा। धन-धान्य में भी वृद्धि के योग हैं। अगर आप रोजगार की तलाश में हैं तो कहीं से अच्छा ऑफर आपको मिल सकता है। इस दौरान घर के लोगों के साथ कहीं घूमने भी आप निकल सकते हैं।
मिथुन राशि-
गुरु आपकी ही राशि में हैं और गुरु का उदय होना आपके लिए बेहद फायदेमंद साबित होगा। इस दौरान बीते समय में किए गए कार्यों से आपको लाभ प्राप्त हो सकता है। माता-पिता के स्वास्थ्य में अच्छे बदलाव आने से आप अच्छा महसूस करेंगेष। धार्मिक गतिविधियों में भी आपका मन लगेगा, जिससे मानसिक शांति प्राप्त होगी।
धनु राशि-
गुरु आपकी ही राशि के स्वामी हैं और आपके सप्तम भाव में उदय होंगे। गुरु के उदय होने से आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा और निवेश किए गए धन से भी आपको अच्छा रिटर्न मिल सकता है। जो लोग प्रतियोगी परीक्षाओं के रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं उन्हें शुभ समाचार मिलने के योग हैं। आपकी सेहत में भी अच्छे बदलाव गुरु के उदय होने के बाद आ सकते हैं।
मीन राशि-
आपके लिए गुरु का उदय होना बेहद खास रह सकता है। आपके व्यक्तित्व में गुरु के उदय होने के बाद तेज देखा जा सकता है। कार्यक्षेत्र में आपके काम की सराहना होगा। इस दौरान आपकी पदोन्नति भी हो सकती है। माता के पक्ष के लोगों से इस राशइ के कुछ लोगों को धन लाभ मिलने की संभावना है। शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत हैं तो बड़ी उपलब्धि आपको मिल सकती है।
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भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों का आज पुरी में अद्भुत अनुष्ठान

पुरी। महाप्रभु जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा का पारंपरिक अधरा पाना अनुष्ठान सोमवार को पुरी के बड़ा डंडा या ग्रांड रोड पर किया जाएगा। आषाढ़ शुक्ल द्वादशी को मनाया जाने वाला यह अनुष्ठान सुना बेशा के एक दिन बाद और नीलाद्रि बिजे से ठीक पहले होता है, जो वार्षिक रथ यात्रा के अंतिम समारोहों में से एक है।
अनुष्ठान के हिस्से के रूप में, अपने रथों पर बैठे प्रत्येक देवता को 'पना' दिया जाता है, जो महासूरा सेवकों द्वारा तैयार किया गया एक मीठा पेय है। पेय दूध, केला, छेना (पनीर), कपूर, जायफल, काली मिर्च और पानी का उपयोग करके बनाया जाता है। इसे बड़े बेलनाकार मिट्टी के बर्तनों में डाला जाता है और प्रत्येक देवता के सामने उनके संबंधित रथों में रखा जाता है। प्रत्येक रथ के लिए कुल नौ बर्तन पना तैयार किए जाते हैं।
किसी भी भक्त को इसका स्वाद लेने की अनुमति नहीं है। माना जाता है कि यह प्रसाद उन सहायक देवताओं को संतुष्ट करता है जो अपनी यात्रा के दौरान त्रिदेवों की रक्षा करते हैं, साथ ही आत्माओं और असंतुष्ट आत्माओं जैसी गैर-शरीर वाली संस्थाओं को भी संतुष्ट करता है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे मुक्ति की तलाश में रथों के चारों ओर घूमते हैं। अधरा पाना इन प्राणियों को प्रसन्न करने और उन्हें मोक्ष प्रदान करने के लिए एक पवित्र कार्य माना जाता है। अधरा पाना अनुष्ठान आज शाम 4:30 बजे शुरू होगा और रात 8:30 बजे समाप्त होगा। मंगलवार को नीलाद्रि बिजे समारोह होगा, जो देवताओं की श्रीमंदिर के गर्भगृह में वापसी का प्रतीक होगा, जहाँ वे रत्न सिंहासन पर विराजमान होंगे।
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दुर्ग में 10 जुलाई से होगा चातुर्मास प्रारंभ, लगेगा धर्म ज्ञान का ठाठ

दुर्ग। दुर्ग जैन साध्वी श्री प्रियदर्शना श्री जी प्रियदा अपने साध्वी समुदाय के साथ कल प्रातः रेलवे स्टेशन रोड स्थित श्री डालचंद जी संदीप कुमार सुराणा के निवास से दोपहर 1:30 बजे श्रावक श्राविकाओं की विशेष उपस्थिति में जय आनंद मधुकर रतन भवन बांधा तालाब दुर्ग में मंगलमय प्रवेश हुआ।
ज्ञात हो यह मंगलमय प्रवेश प्रातः 8:00 बजे होने वाला था लगातार बारिश के चलते यह मंगलमय प्रवेश दोपहर 1:30 बजे हुआ। साध्वी मंडल के सानिध्य एवं सम्मान में श्रमण संघ महिला मंडल श्रमण संघ बालिका मंडल और आनंद मधुकर रतन पाठशाला के बच्चों ने सुराणा निवास में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शानदार प्रस्तुति दी श्रमण संध महिला मंडल ने स्वागत अभिनंदन गीत प्रस्तुत करते हुए रोचक नाटिका के माध्यम से समाज में फैली मोबाइल व्हाट्सएप इंस्टाग्राम से दूर रहने की नसीहत देते हुए नाटिका प्रस्तुत की जिसे उपस्थित जनसमुदाय ने बेहद सराहा।
आज की धर्म सभा को समन्वय साधिका श्री प्रिय दर्शना श्री जी, साध्वी विचक्षणा श्रीजी साध्वी सुप्रज्ञपति श्री ने धर्म सभा को संबोधित किया और कहा यह कर मा चार माह आत्म जागृति का शुभ अवसर हमें मिला है इसे धर्म ध्यान से जुड़कर त्याग तपस्या में अपना जीवन समर्पित करते हुए इन चार माह में अधिक से अधिक धर्म क्रिया करते हुए अपना मानव जीवन सफल बनाना है।
कार्यक्रम का संचालन वर्धमान स्थानकवासी श्रावक श्रवण संघ के मंत्री राकेश संचेती ने किया आयोजित धर्म सभा को संघ के अध्यक्ष धर्मचंद लोढ़ा, सुमित जैन, पदम छाजेड़ रचिता श्रीश्रीमाल ने सभा को संबोधित किया।
आज दोपहर 1:30 बजे सुराणा निवास से बिहार यात्रा प्रारंभ हुई जो स्टेशन रोड इंदिरा मार्केट भाजपा कार्यालय शनिचरी बाजार होते हुए जय आनंद मधुकर रतन भवन पहुंची जहां साध्वी समुदाय ने चातुर्मास करने की श्रावक श्रमिकों सेआज्ञा लेकर जय आनंद मधुकर रतन भवन बांध तालाब दुर्ग में प्रवेश किया आने वाली 10 जुलाई को चातुर्मास प्रारंभ होने वाला है।
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बहुदा यात्रा से पहले, सुदर्शन पटनायक ने पुरी में रेत की मूर्ति बनाई

पुरी। प्रसिद्ध रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक ने 4 जुलाई को पुरी समुद्र तट पर एक आकर्षक रेत की मूर्ति बनाकर बहुदा यात्रा को श्रद्धांजलि दी, क्योंकि तटीय शहर श्री गुंडिचा मंदिर से जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की वापसी के लिए तैयार था। रथों, नंदीघोष, तलध्वजा और दर्पदलन की औपचारिक वापसी की तैयारियाँ भी जोरों पर हैं, क्योंकि हजारों लोग दिव्य जुलूस देखने के लिए ग्रैंड रोड (बड़ा डंडा) पर एकत्र हुए हैं।
गिरिजाशंकर सारंगी नामक एक भक्त ने इस अवसर के महत्व को साझा करते हुए कहा: "महाप्रभु का जन्म गुंडिचा मंदिर में हुआ था... आज, नौ दिनों के उत्सव के बाद, महाप्रभु घर की ओर प्रस्थान करेंगे। रास्ते में, महाप्रभु का रथ मौसी मां मंदिर में रुकेगा, जहां उन्हें पोड़ा पीठा का भोग लगाया जाएगा और फिर इसे भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाएगा। इसके बाद जुलूस श्री जगन्नाथ मंदिर की ओर बढ़ेगा।" इस बीच, ओडिशा के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) योगेश खुरानिया ने कड़ी सुरक्षा तैनाती के बीच भव्य उत्सव के शांतिपूर्ण आयोजन पर भरोसा जताया।
खुरानिया ने एएनआई को बताया, "बड़ी संख्या में एकत्र हुए भक्तों में काफी उत्साह है। प्रशासन ने व्यापक व्यवस्था की है। पुलिस की करीब 205 टुकड़ियाँ तैनात की गई हैं और पूरी व्यवस्था की निगरानी के लिए वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद हैं। पूरा पुरी शहर सीसीटीवी की निगरानी में है और नियंत्रण कक्ष से हर चीज़ पर नज़र रखी जा रही है।" मौसी माँ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध श्री गुंडिचा मंदिर के बाहर सुरक्षा व्यवस्था को काफी मजबूत किया गया है।
पुलिस की मौजूदगी बढ़ा दी गई है, खास तौर पर श्री गुंडिचा मंदिर के बाहर, जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए करीब 10,000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। एएनआई से बात करते हुए पुरी के पुलिस अधीक्षक पिनाक मिश्रा ने कहा कि रथ वापसी उत्सव के सुचारू संचालन के लिए व्यापक सुरक्षा उपाय किए गए हैं। उन्होंने कहा, "10,000 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है... हमारे पास आरएएफ की करीब आठ कंपनियां हैं।"
उन्होंने कहा, "हमने पुलिस की व्यापक व्यवस्था की है। आज हमें इस उत्सव में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की भारी भीड़ की भी उम्मीद है। सभी श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना हमारी प्राथमिकता है।"
मिश्रा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वार्षिक उत्सव कई हितधारकों के समन्वित प्रयासों से मनाया जाता है। उन्होंने कहा, "यह उत्सव कई हितधारकों के समन्वय से मनाया जाता है। हम सभी सेवायतों, मंदिर अधिकारियों और जिला प्रशासन के साथ निकट संपर्क में हैं।" पुरी का तटीय शहर भक्ति और सांस्कृतिक उत्साह से भरा हुआ है, क्योंकि बाहुड़ा यात्रा की तैयारियाँ चरम पर हैं। बाहुड़ा यात्रा भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की श्री गुंडिचा मंदिर से जगन्नाथ मंदिर में वापसी की यात्रा है। यह वार्षिक रथ यात्रा उत्सव का समापन है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पवित्र शहर में आते हैं। पुरी की सड़कें जीवंत प्रदर्शनों से गुलजार रहती हैं, क्योंकि कलाकार और श्रद्धालु इस अवसर का जश्न मनाते हैं। (एएनआई)
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‘बहुदा यात्रा’: भगवान जगन्नाथ को देखने के लिए उमड़े भक्त

पुरी। ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की बहुदा यात्रा शनिवार को निकाली जाएगी। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की गुंडिचा मंदिर से श्री मंदिर वापसी में निकाली जाती है। इस यात्रा को लेकर भक्तों में उत्साह दिखाई दे रहा है। भक्तों ने बहुदा यात्रा के अपने अनुभव को साझा किया।
बहुदा यात्रा भक्तों के लिए बेहद खास है। अपनी खुशी और उत्साह को श्रद्धालुओं ने आईएएनएस से साझा किया। एक भक्त ने कहा, "यह सब भगवान जगन्नाथ की दिव्य लीला है, सब कुछ उन्हीं की वजह से होता है। आज हम जो कुछ भी हैं, उनकी इच्छा से हैं। अगर वे नहीं चाहते तो हम यहां तक नहीं आ पाते। यह सब उनकी माया है, उनकी लीला है।"
इस विशेष आयोजन में शामिल होने वाले खुद को भाग्यशाली मानते हैं। एक श्रद्धालु बोली, "मैं खुद को भगवान के करीब पाकर बहुत खुश और भाग्यशाली मानती हूं। आज का दिन हम सभी के लिए वास्तव में एक खुशी का दिन है। हालांकि, यह भगवान के विदा होने का दिन भी है, लेकिन फिर भी यह अच्छा लगता है कि वे अपने सभी भक्तों के सामने आते हैं और अपनी उपस्थिति से उन्हें आशीर्वाद देते हैं।"
बहुदा यात्रा पर एक भक्त ने कहा, "हम भी यहां दर्शन के लिए आए हैं। साल में एक बार भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर आते हैं और सभी भक्तों को आशीर्वाद देते हैं।" भक्त कीर्ति गौरंग दास ने बहुदा यात्रा के अपने अनुभव को साझा किया। उन्होंने कहा, "हमारे गुरु महाराज ने हमें यहां आने का मार्गदर्शन किया। हम शुक्रवार रात यहां पहुंचे हैं और यहां का माहौल आध्यात्मिक है। हजारों लोग गुंडिचा मंदिर में महाप्रभु जगन्नाथ के दर्शन के लिए जुटे हैं।"
एक भावुक भक्त ने कहा, "जगन्नाथ के दैवीय रूप को एक बार देखने से पूरा जीवन बदल जाता है। इसलिए भगवान हर साल यह यात्रा करते हैं, ताकि हर आत्मा को मुक्ति का अवसर मिले। महाप्रभु का एक दर्शन जीवन को हमेशा के लिए बदल सकता है।"
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द्वारका के पास ज्योतिर्लिंग रूप में विराजते हैं महादेव, नाग दोषों से मुक्ति का है यह केंद्र

नई दिल्ली। शिवपुराण के अनुसार समुद्र के किनारे स्थित द्वारकापुरी के पास स्थित स्वयंभू शिवलिंग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रमाणित है। इसको द्वादश ज्योतिर्लिंग में 10वां स्थान प्राप्त है। हालांकि इस ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त नागेश्वर नाम से तीन अन्य शिवलिंगों की भी चर्चा होती है। जिसमें महाराष्ट्र के हिंगोली जनपद में स्थित औंध नागनाथ मन्दिर, उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जनपद में स्थित जागेश्वर मन्दिर के साथ झारखंड के दुमका में स्थित बाबा बासुकीनाथ के मंदिर का भी नाम लिया जाता है। लेकिन, नागनाथ के नाम से प्रसिद्ध नागेश ज्योतिर्लिंग को शास्त्रों और पुराणों के अनुसार द्वारकापुरी के पास समुद्र के किनारे ही स्थित बताया गया है। क्योंकि द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग दारुक वन में स्थित है और अभी गुजरात में जहां नागेश्वर ज्योतिर्लिंग है इस क्षेत्र को दारुक वन क्षेत्र के नाम से जाना जाता है।
शिवपुराण में स्पष्ट कहा गया है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग 'दारुकवन' में है, जो प्राचीन भारत में एक जंगल को इंगित करता है। 'दारुकवन’ का उल्लेख भारतीय महाकाव्यों, जैसे काम्यकवन, द्वैतवन, दंडकवन में भी मिलता है।
शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग के बारे में लिखा गया है कि जो प्राणी श्रद्धापूर्वक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा, वह सारे पापों से मुक्त होकर समस्त सुखों का आनंद लेते हुए अंत में भगवान्‌ शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा। कोटिरुद्र संहिता में शिव को 'दारुकावने नागेशं' कहा गया है। नागेश्वर—नागों का ईश्वर। नागेश्वर शब्द नागों के भगवान यानी महादेव शिव को इंगित करता है। इस कारण यह मंदिर विष और विष से संबंधित रोगों से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है। कहते हैं कि यहां द्वारकाधीश यानी स्वयं कृष्ण भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के परिसर में भगवान शिव की एक बड़ी ही मनमोहक ध्यान मुद्रा में विशाल प्रतिमा बनाई गई है जिसकी वजह से मंदिर 3 किलोमीटर की दूरी से ही दिखाई देने लगता है। भगवान शिव जी की यह मूर्ति 125 फीट ऊंची तथा इसकी चौड़ाई 25 फीट है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में नागेश्वर महादेव के बारे में वर्णित है।
याम्ये सदङ्गे नगरेऽतिरम्ये विभूषिताङ्गं विविधैश्च भोगैः |
सद्भक्तिमुक्तिप्रदमीशमेकं श्रीनागनाथं शरणं प्रपद्ये ||
जो दक्षिण के अत्यंत रमणीय सदंग नगर में विविध भोगों से सम्पन्न होकर सुन्दर आभूषणों से भूषित हो रहे हैं, जो एकमात्र सद्भक्ति और मुक्ति को देने वाले हैं, उन प्रभु श्रीनागनाथ जी की मैं शरण में जाता हूं।
इसके साथ ही नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती नाग-नागिन के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। जिन लोगों की कुंडली में सर्प दोष होता है उन्हें यहां धातुओं से बने नाग-नागिन अर्पित करने चाहिए। मान्यता है इससे नाग दोष से छुटकारा मिल जाता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को विशेष सुरक्षा प्रदान करने वाला ज्योतिर्लिंग माना गया है। इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से वे शत्रु भय, असुरक्षा और भय से मुक्त होते हैं। शिव पुराण के अनुसार, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भक्तों की सभी विपत्तियाँ समाप्त होती हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है। इसे “द्वारका का रक्षक” भी कहा जाता है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के आस-पास कई दर्शनीय स्थल हैं जो यात्रियों को आकर्षित करते हैं। इसमें सबसे प्रमुख द्वारका धाम है, जो नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के आस-पास स्थित है, जो भगवान कृष्ण की अवतार स्थली के रूप में प्रसिद्ध है। द्वारका मंदिर, नीलांबिका मंदिर, रुक्मिणी मंदिर और द्वारकाधीश मंदिर इस शहर के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
इसके साथ ही गोमती घाट भी यहां द्वारका के नगर में स्थित है और यहां गोमती नदी के किनारे पर श्रद्धालु बड़ी संख्या में स्नान करते हैं। इसके साथ यहां गोपी तालाब है, जो एक प्राकृतिक झील है जो द्वारका के पास स्थित है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जहां आप शांति और सुकून का आनंद ले सकते हैं।
यहीं बेट द्वारका स्थित है और यहां पर प्राचीन मंदिर और साहित्यिक स्थल हैं। यहां पर एक प्राचीन मंदिर है, जो भगवान कृष्ण के बालक रूप का देवालय है। यहां पर द्वारकाधीश मंदिर के समीप गुमणाम बांध के किनारे पर एक पवित्र कुंज है, जहां कृष्ण भगवान के बालक रूप के खेल का स्थल है। इसके पास ही शंकराचार्य की गुफा है, यहां आदिगुरु शंकराचार्य ने ध्यान किया था। यह भी एक आध्यात्मिक स्थल है जो यात्रियों को आकर्षित करता है।
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शुक्रवार को करें ये अचूक उपाय, मां लक्ष्मी होंगी प्रसन्न

शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी का माना जाता है। शुक्रवार को धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी का विशेष दिन माना जाता है। यह दिन उन लोगों के लिए बेहद शुभ होता है, जो आर्थिक समृद्धि, करियर में उन्नति और सुख-शांति की कामना करते हैं। अगर आप भी लंबे समय से आर्थिक तंगी और कर्ज से परेशान चल रहे हैं तो इन चमत्कार उपायों को कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सकते हैं। तो आज की इस खबर में हम आपको छोटे-छोटे, लेकिन उन अचूक उपायों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे कर आप अपनी किस्मत का ताला खोल सकते हैं।
माता लक्ष्मी की पूजा करने से दूर होगा आर्थिक संकट-
माता लक्ष्मी की पूजा करना हर व्यक्ति के लिए काफी जरूरी है। बगैर उनकी पूजा किए धन की प्राप्ति करना काफी कठिन है। इसलिए आप विधिपूर्वक उनकी पूजा करें, जिससे आपके जीवन में समृद्धि का द्वार खुल जाएगा। याद रखें कि जब भी माता लक्ष्मी की आप पूजा करें सफेद या फिर गुलाबी वस्त्र धारण कर के ही करें। इसके अलावा श्री सूक्त का पाठ करें और 11 दीपक जलाएं। इस उपाय को करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।
घर की कन्याओं का पूजन करें-
कहते हैं कि छोटी-छोटी कन्याएं स्वयं मां लक्ष्मी का ही रूप होती हैं। अगर आप उनका पूजन करते हैं और उन्हें प्रसन्न रखते हैं तो आपके घर में धन और सौभाग्य की कभी भी कमी नहीं आएगी और आपका जीवन मंगलमय ही बीतेगा। याद रखें कि जब भी कन्याओं को भोजन कराएं, उसके साथ सफेद या गुलाबी वस्त्र, मिठाई और दक्षिणा भेंट करें। उनका आशीर्वाद लें और "जय माँ लक्ष्मी" का उच्चारण करें।
चांदी का सिक्का है उपयोगी-
अगर आप लंबे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं तो धन में स्थिरता लाने के लिए शुक्रवार को यह उपाय जरूर करें। मां लक्ष्मी या श्री यंत्र अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। इसे लाल या सफेद कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी या पर्स में रखें। हर शुक्रवार इसे धूप-दीप दिखाकर पूजन करें।
चांदी का सिक्का है उपयोगी-
अगर आप लंबे समय से आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं तो धन में स्थिरता लाने के लिए शुक्रवार को यह उपाय जरूर करें। मां लक्ष्मी या श्री यंत्र अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। इसे लाल या सफेद कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी या पर्स में रखें। हर शुक्रवार इसे धूप-दीप दिखाकर पूजन करें।
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रावण का रहस्यमयी अंत, लंका में छुपा है दशानन की चिता का सच

रामायण काल ​​और श्री राम के बारे में जानने की हर किसी को दिलचस्पी होती है। दशहरा और दिवाली ऐसे त्योहार हैं जब भगवान राम की चर्चा होती है, लेकिन उनके साथ-साथ रामायण से जुड़े हर व्यक्ति की भी चर्चा होती है। ऐसे में श्रीलंका के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि करीब 50 ऐसी जगहों की पहचान की गई है, जिनका संबंध रामायण काल ​​से है। शोध में यह भी दावा किया गया है कि रावण का शव आज भी एक गुफा में सुरक्षित है। यहां कोई इंसान नहीं आता। आइए जानते हैं कहां है ये गुफा और यहां ऐसा क्या है कि यहां कोई नहीं आता...
दावे के मुताबिक, श्रीलंका के रग्गला के जंगलों में 8 हजार फीट की ऊंचाई पर एक गुफा में रावण का शव रखा गया है। यहां कोई इंसान नहीं आता, क्योंकि यहां खतरनाक जानवरों का खतरा रहता है। श्रीलंका के अंतरराष्ट्रीय रामायण शोध केंद्र ने रामायण से जुड़ी 50 जगहों की खोज की है। इन जगहों का जिक्र रामायण में भी है। इन्हीं में से एक है श्रीलंका का रग्गला जंगल, जिसके बीच में एक विशाल पर्वत है, जहां दावा किया जाता है कि रावण का शव रखा हुआ है। जिस पहाड़ी गुफा में रावण का शव रखे होने का दावा किया जाता है, वह रग्गला के जंगलों में 8 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। रावण का शव 17 फीट लंबे ताबूत में रखा गया है।
कहा जाता है कि रावण के शव को ममी के रूप में रखा गया है। उसके शरीर पर ऐसा लेप लगाया गया है कि रावण की मौत के 10 हजार साल बाद भी वह खराब नहीं हुआ। यह भी कहा जाता है कि इस ताबूत के नीचे रावण का अमूल्य खजाना है। इस खजाने की रक्षा एक भयंकर नाग और कई खूंखार जानवर करते हैं। लोगों का मानना ​​है कि रावण की मौत के बाद भगवान श्रीराम ने शव विभीषण को सौंप दिया था, लेकिन जल्दबाजी में वे उसका अंतिम संस्कार करना भूल गए। तब से रावण का शव वैसे ही पड़ा हुआ है। यह भी दावा किया जाता है कि नागकुल के लोग रावण के शव को अपने साथ ले गए क्योंकि उनका मानना ​​था कि रावण की मौत अस्थायी है और वह दोबारा जीवित हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
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शनिवार को करें ये उपाय, खुल जाएंगे बंद किस्मत के ताले

शनिवार का दिन न्याय के देवता शनिदेव को समर्पित है. शनिवार को उनकी पूजा करने के लिए सबसे अच्छा दिन माना जाता है. इस दिन शनि महाराज की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन की सभी परेशानियां दूर होती हैं. शनिदेव को कर्मफल दाता कहा जाता है. कहा जाता है कि वे व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं. यही वजह है कि शनिदेव को न्यायाधीश की उपाधि प्राप्त है. जो व्यक्ति अच्छे कर्म करता है, उन पर शनिदेव की कृपा बनी रहती है. वहीं जो व्यक्ति बुरे कर्मों में लिप्त रहता है, उन पर शनिदेव का प्रकोप रहता है. वहीं अगर आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं तो शनिवार के दिन कुछ उपाय जरूर करें. आइए जानते हैं उन उपायों के बारे में|
पीपल के पेड़ पूजा-
शनिवार के दिन सूर्योदय से पहले पीपल के पेड़ की पूजा करें, जल अर्पित करें और तेल का दीपक जलाएं। इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं और कृपा हमेशा मिलती है।
शनिवार के दिन करें इन चीजों का दान-
शनिदेव की कृपा पाने के लिए शनिवार के दिन काला तिल, काला छाता, सरसों का तेल, काली उड़द और जूते-चप्पल का दान करें। इससे जीवन की समस्याएं कम होती हैं।
लोहे का दीपक जलाएं-
कहा जाता है कि लोहा धातु में शनि देव का वास होता है। ऐसे में शनिवार और मंगलवार के दिन लोहे के दीपक में सरसों का तेल डालकर जलाएं। ऐसा करने से व्यक्ति का दुर्घटना से बचाव होता है।
दीपक में डालें एक लौंग-
शनिवार के दिन दीपक जलाते समय उसमें एक लौंग डाल दें। ऐसा करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है। ये उपाय आपकी आर्थिक लाभ कराता है। अगर ये उपाय निरंतर करते हैं, तो धन की कभी कमी नहीं हो पाएगी।
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देवशयनी एकादशी : विष्णु जी करेंगे विश्राम, शिव संभालेंगे सृष्टि का कार्यभार!

नई दिल्ली। देवशयनी एकादशी का महत्व पुराणों में विशेष रूप से बताया गया है। इस दिन से भगवान विष्णु विश्राम करते हैं, और पूरी सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। इसी वजह से चातुर्मास के दौरान भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। इस अवधि में तपस्या, योग, मंत्र जाप और धार्मिक अनुष्ठान करने से दोगुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाते हैं, जिसके बाद सृष्टि का संचालन महादेव संभालते हैं। अब भगवान विष्णु देव उठनी एकादशी तक विश्राम करेंगे। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें विवाह समेत सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाते हैं।
दृक पंचांग के मुताबिक एकादशी की शुरुआत 05 जुलाई को शाम 06 बजकर 58 मिनट से पर होगी। वहीं, इसकी समाप्ति 06 जुलाई को शाम 09 बजकर 14 मिनट पर होगी। ऐसे में इस साल 06 जुलाई को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा और इसका पारण अगले दिन किया जाएगा।
व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने के लिए आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर पूजन सामग्री रखें, विष्णु भगवान की प्रतिमा स्थापित करें, और अब भगवान को धूप, दीप, अक्षत और पीले फूल चढ़ाएं, व्रत कथा सुनें, और भगवान विष्णु की आरती करें। उसके बाद आरती का आचमन करें। इसके बाद दिनभर निराहार रहें और भगवान का ध्यान करें। मंत्र जप और ग्रंथों का पाठ करें। दान-पुण्य करें। गायों की देखभाल करें। गौशाला में धन का दान करें।
जो लोग व्रत नहीं कर पा रहे हैं, वे विष्णु जी की पूजा करें, दान-पुण्य करें, मंत्र जप और ग्रंथों का पाठ करें। बीमार, गर्भवती और बच्चों के लिए व्रत करना जरूरी नहीं होता है; ये लोग पूजा-पाठ करके भी एकादशी व्रत के समान पुण्य कमा सकते हैं।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि (शाम के 6 बजकर 58 मिनट तक) 5 जुलाई को पड़ रही है। दृक पंचांगानुसार, 5 जुलाई को दशमी तिथि शाम के 6 बजकर 58 मिनट तक रहेगी, फिर उसके बाद एकादशी तिथि शुरू हो जाएगी। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 54 मिनट तक रहेगा और राहूकाल सुबह 8 बजकर 57 मिनट से 10 बजकर 41 मिनट तक रहेगा।
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