धर्म समाज

अच्छी रोटी, अच्छा कपड़ा और मकान कभी भी आत्मिक सुख नहीं देंगे : मनीष सागरजी

रायपुर। धर्म क्या है! यह आपको पैसा, प्रॉपर्टी या प्रसिद्धि नहीं देगा। यह सुख, शांति और आनंद के साथ जीवन जीने की कला है। अच्छी रोटी, अच्छा कपड़ा और अच्छा मकान कभी आपको आत्मिक सुख नहीं देंगे। ये सब साधन पास होंगे, तब भी मन के भीतर यह बात आ ही जाएगी कि कम कमाएंगे, चलेगा। जीवन में शांति चाहिए। विवेकानंद नगर स्थित श्री ज्ञान वल्लभ उपाश्रय में सोमवार को उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज साहब ने यह बातें कही। वे धर्मसभा को सच्चे श्रावक के कर्तव्य विषय पर संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि शांति की तलाश में इंसान ने 2 मूल रास्ते बनाए। पहला संसार का। दूसरा धर्म का। संसार का रास्ता खोजने वालों ने कहा कि खूब साधन-सामग्रियां जुटाओ। प्रसिद्धि कमाओ। धर्म के रास्ते चलने‌ वालों ने लालसाएं खत्म करने की बात सुझाई। तृष्णाएं हटाने, राग-द्वेष छोड़ने को कहा। मन-आत्मा निर्मल करो। दोष हटाओ। गुण बढ़ाओ। यही स्थायी शांति और आनंद का वास्तविक मार्ग है। उदाहरण के तौर जब आप व्रत रखते और उसे छोड़ते हैं तो खुशी इस बात की नहीं होती कि मैंने भोजन नहीं किया या भोजन कर लिया। आनंद इस बात का होता है कि मैंने भोजन करने की 'इच्छा' पर विजय प्राप्त कर ली है। यही धर्म का रास्ता है। आपके सुख के मार्ग में इच्छाएं सबसे बड़ी बाधा है। इच्छाओं को जीतना सीखिए। क्षमा, विनय, संतोष और सरलता वो धर्म हैं, जिसके जरिए अपनी तमाम तृष्णाओं को जीता जा सकता है। याद रखिए, इच्छा विजय करते हुए ही धर्म हो सकता है। इच्छाओं की पूर्ति के साथ कभी धर्म नहीं हो सकता।
श्रावक और श्रमण, यह इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने के मार्ग
इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने के 2 मार्ग हैं। पहला श्रावक और दूसरा श्रमण। श्रावक धर्म का पालन गृहस्थ करते हैं। श्रमण धर्म साधु मानते हैं। दोनों एक ही मार्ग हैं। श्रावक से थोड़ा ऊपर बढ़ गए, तो वह श्रमण मार्ग है। इनमें से कौन सा रास्ता सही है! आप कह सकते हैं श्रावक धर्म क्योंकि श्रमण में तकलीफ ज्यादा और सुख कम है। हालांकि जब आप यह बात समझेंगे कि इच्छाओं पर जितना ज्यादा जितना विजय प्राप्त करेंगे, उतना ज्यादा सुख है तो आपको श्रमण मार्ग ज्यादा उचित लगेगा। इसे आप स्तर के हिसाब से भी समझना चाहें तो श्रावक से ऊपर श्रमण और उसके बाद भगवान बनने का मार्ग प्रशस्त होता है। ऐसे में तो सबसे ज्यादा दुखी भगवान हो जाएंगे।
श्रावक भी 2 तरह के हैं, एक की इच्छाएं बेकाबू, दूसरे की मर्यादित
श्रावक भी 2 तरह के हो सकते हैं। एक की इच्छाएं बेकाबू हो सकती हैं। दूसरे की इच्छाएं मर्यादित रह सकती हैं। हमें दूसरा रास्ता चुनना है क्योंकि सुखी वही रहेंगे, जिन्होंने सीमित आवश्यकताओं और बंधी हुई मर्यादाओं वाली जिंदगी का रास्ता चुना है। संभव है कि कुछ लोगों को मर्यादित जीवन दुख का कारण लगे पर हकीकत में हमारे दुख का कारण अमर्यादित और स्वच्छंद जीवन जीने की इच्छा है। श्रावक जीवन के कर्तव्यों को बोझ न मानें। अपनाने योग्य चीजों को भीतर से स्वीकार कर लें। सारी तकलीफें खुद ब खुद दूर हो जाएंगी। दुख का कारण आपके मन की इच्छाएं हैं। श्रावक जीवन के कर्तव्य नहीं।
आत्मशोधन और कर्म विजय तप 13 जुलाई से
सहजानंदी चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार सचिव चंद्रप्रकाश ललवानी और मनोज लोढ़ा ने बताया कि 13 जुलाई से आत्मशोधन तप शुरू होने जा रहा है। इसके तहत एक दिन उपवास, दूसरे दिन ब्यासना रहेगा। दोनों वक्त के ब्यासने की व्यवस्था श्रीसंघ की ओर से की जाएगी। जिन्हें भी तप करना है, उन्हें श्रीसंघ के पास अपना रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है क्योंकि इंतजाम उसी हिसाब से किए जाएंगे। तपस्या की कड़ी में कर्म विजय तप भी किया जाएगा। इसके तहत प्रतिदिन एकासना किया जाना है।

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