धर्म समाज

मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए शुक्रवार को करें ये आसान उपाय

हिंदू धर्म में हर एक दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। उसी तरह शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी का है। शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी का व्रत रखने के अलावा पूजा-अर्चना करने से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शुक्रवार के दिन कुछ उपाय करने से कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति भी मजबूत होती है। शुक्र मजबूत होने से मान-सम्मान के साथ राजा की तरह व्यक्ति रहता है।
 
शुक्रवार के दिन धन और यश की प्राप्ति के लिए कुछ उपाय करना काफी शुभ साबित होगा। जानिए किन उपायों को करने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती हैं।
 
शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी को लाल बिंदी, चुनरी, चूड़िया सहित अन्य सोलह श्रृंगार अर्पित करना चाहिए। इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है, साथ ही पति की उम्र लंबी होती है।
 
शुक्रवार के दिन लक्ष्मी स्त्रोत, कनकधारा स्तोत्र या फिर श्री सूक्त का पाठ करना चाहिए। इससे धन का अभाव खत्म होता है और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है।
 
शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी को कमल या फिर गुलाब का फूल अर्पित करें। मां को यह फूल अति प्रिय है। उनके चरणों में .यह फूल अर्पित करने से तरक्की, सुख-समृद्धि के योग बनते हैं।
 
मां लक्ष्मी की पूजा करने के बाद प्लेट में चार कपूर के टुकड़े में 2 लौंग रखकर आरती करना चाहिए। इससे मां जल्द प्रसन्न होती हैं।

शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी के नाम का दीपक जलाते समय रूई के बदले कलावा की बत्ती बनाकर जलाएं। इससे मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती हैं।

शुक्रवार के दिन कमलगट्टे की माला से मां लक्ष्मी का मंत्र 'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मी नमः:' का जाप करें।

हर मनोकामना पूर्ण करने के लिए खीर का दान शुक्रवार को करना शुभ माना जाता है। शुक्रवार के दिन साफ खीर बनाकर मां लक्ष्मी को भोग लगा दें। इसके बाद इस खीर को छोटी कन्याओं को प्रसाद के रूप में बांट दें।
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होलाष्‍टक आज से शुरू, इन 8 दिनों में भूलकर भी न करें ये काम

हिंदू धर्म में हर पर्व-त्‍योहार, खास मौकों के लिए कुछ खास नियम बनाए गए हैं, जिनका जरूर पालन करना चाहिए. वरना कई तरह के नुकसान झेलने पड़ते हैं. होली के त्‍योहार और उससे पहले लगने वाले 8 दिनों के होलाष्‍टक को लेकर भी ऐसे ही नियम हैं. फाल्‍गुन मास की पूर्णिमा के दिन किए जाने वाले होलिका दहन से पहले 8 दिन तक होलाष्‍टक रहते हैं. इस दौरान कुछ शुभ काम नहीं किए जाते हैं. हालांकि भगवान की पूजा-उपासना करने के लिए यह समय उत्‍तम माना गया है. इस साल आज यानी कि 10 मार्च 2022, गुरुवार से होलाष्‍टक शुरू हो रहे हैं. जो कि 17 मार्च को होलिका दहन के दिन खत्‍म होंगे.

होलाष्‍टक में न करें ये काम

शास्‍त्रों में कहा गया है कि होलाष्‍टक के 8 दिन में भगवान की भक्ति करना बहुत अच्‍छा होता है. होलाष्‍टक के दौरान एक परंपरा है कि पेड़ की एक शाखा को भगवान विष्‍णु के परमभक्‍त प्रहलाद का रूप मानकर जमीन पर लगा दिया जाता है और उस पर रंगीन कपड़ा बांध दिया जाता है. इसके बाद अगले 8 दिनों तक उस पूरे क्षेत्र में कोई शुभ काम जैसे- शादी, मुंडन, गृह प्रवेश आदि नहीं होता है और केवल भगवान की पूजा-उपासना की जाती है.

  • होलाष्टक के 8 दिन तक कोई भी मांगलिक कार्य न करें. इस दौरान 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार आदि गलती से भी नहीं करने चाहिए. ऐसा करने से वे बुरा फल देते हैं.
  • होलाष्‍टक के दौरान हवन, यज्ञ कर्म आदि भी नहीं करनी चाहिए.
  • होलाष्‍टक के दौरान नवविवाहित लड़कियों को अपने मायके में ही रहना चाहिए. इसीलिए आमतौर पर होलाष्‍टक से पहले ही नवविवाहित लड़कियों को मायके से बुलावा आ जाता है.
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महाशिवरात्रि आज जानें, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

प्रत्येक वर्ष की फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव को अत्यंत ही प्रिय महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। वैसे तो पूरे साल की प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान शंकर को समर्पित मास शिवरात्रि का व्रत किया जाता हैं। लेकिन वर्ष भर में की जाने वाली सभी शिवरात्रियों में से फाल्गुन कृष्ण पक्ष की शिवरात्रि का बहुत अधिक महत्व है। माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन से ही सृष्टि का प्रारंभ हुआ था। जानिए महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि।

महाशिवरात्रि मनाने का कारण
 
ईशान संहिता में बताया गया है कि-
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्याम आदिदेवो महानिशि।
शिवलिंग तयोद्भूत: कोटि सूर्य समप्रभ:॥
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महानिशीथकाल में आदिदेव भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए थे।
कई मान्यताओं में माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ है।
पुराणों में भी शिवरात्रि का वर्णन मिलता है । कहते हैं शिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति बिल्व पत्तियों से शिव जी की पूजा करता है और रात के समय जागकर भगवान के मंत्रों का जाप करता है, उसे भगवान शिव आनन्द और मोक्ष प्रदान करते हैं |
 
महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त
महानिशीथकाल: 2 मार्च को रात 11 बजकर 43 मिनट से लेकर 12 बजकर 33 मिनट तक
पहला प्रहर का मुहूर्त- 1 मार्च शाम 6 बजकर 21 मिनट से रात्रि 9 बजकर 27 मिनट तक
दूसरे प्रहर का मुहूर्त- 1 मार्च रात्रि 9 बजकर 27 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट तक
तीसरे प्रहर का मुहूर्त- 1 मार्च रात्रि 12 बजकर 33 मिनट से सुबह 3 बजकर 39 मिनट तक
चौथे प्रहर का मुहूर्त- 2 मार्च सुबह 3 बजकर 39 मिनट से 6 बजकर 45 मिनट तक
महाशिवरात्रि पारण मुहूर्त - 2 मार्च को सुबह 6 बजकर 45 मिनट के बाद
 
महाशिवरात्रि की पूजा विधि
शिवरात्रि का व्रत नित्य और काम्य दोनों है | इस व्रत के नित्य होने के विषय में वचन है कि जो व्यक्ति तीनों लोकों के स्वामी रुद्र की भक्ति नहीं करता, वह सहस्त्र जन्मों तक भ्रमित रहता है। लिहाजा ऐसा बताया गया है कि पुरुष या नारी को प्रति वर्ष शिवरात्रि पर भक्ति के साथ महादेव की पूजा करनी चाहिए। नित्य होने के साथ यह व्रत काम्य है, क्योंकि इसके करने से शुभ फल मिलते हैं।
 
शिवरात्रि के दिन सबसे पहले चन्दन के लेप से आरम्भ कर सभी उपचारों के साथ शिव पूजा करनी चाहिए और साथ ही पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराना चाहिए। इसके बाद 'ऊँ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करना चाहिए, साथ ही शिव पूजा के बाद गोबर के उपलों की अग्नि जलाकर तिल, चावल और घी की मिश्रित आहुति देनी चाहिए। इस तरह 5 बार होम के बाद किसी भी एकसाबुत फल की आहुति दें। सामान्यतया लोग सूखे नारियल की आहुति देते हैं । व्यक्ति यह व्रत करके, ब्राह्मणों को खाना खिलाकर और दीपदान करके स्वर्ग को प्राप्त कर सकता है।
 
महा शिवरात्रि की पूजा विधि के विषय में भी अलग-अलग मत हैं-
 
सनातन धर्म के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानि शहद से स्नान करना चाहिए।
चारों प्रहर में शिवलिंग स्नान के लिये मंत्र भी हैं-
प्रथम प्रहर में- 'ह्रीं ईशानाय नमः'
दूसरे प्रहर में- 'ह्रीं अघोराय नमः'
तीसरे प्रहर में- 'ह्रीं वामदेवाय नमः'
चौथे प्रहर में- 'ह्रीं सद्योजाताय नमः' मंत्र का जाप करना चाहिए।
वहीं दूसरे, तीसरे और चौथे प्रहर में व्रती को पूजा, अर्घ्य, जप और कथा सुननी चाहिए, स्तोत्र पाठ करना चाहिए। साथ ही अर्घ्यजल के साथ क्षमा मांगनी चाहिए, लेकिन व्यक्तिगत रूप से मेरा विश्वास क्षमा मांगने में नहीं है क्योंकि क्षमा तो दूसरों से मांगी जाती है। मैंने तो खुद को शिव जी को अर्पित कर दिया है-
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः
विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेनिद्रियाणाम्।
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः
चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्।।
अर्थात् "मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक, सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूं, मैं सदैव समता में स्थित हूं, न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूं, आनंद हूं, शिव हूं, शिव हूं"।

 

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आज महाशिवरात्रि पर करें ये आसान उपाय होंगे भगवान शिव प्रसन्न

शास्त्रों में बताया गया है कि महाशिवरात्रि के दिन मनुष्य को अपनी मनोकामना के अनुसार शिव की पूजा करनी चाहिए। अपनी पूजा से शिव को यह बताएं कि आप शिव से क्या चाहते हैं। जो व्यक्ति सांसारिक मोह माया से मुक्त होना चाहते हैं। शिव की चरणों में स्थान पाने की कामना रखते हैं। उनके लिए शास्त्रों में कहा गया है कि महाशिवरात्रि के दिन गंगाजल और दूध से भगवान शिव का अभिषेक करें। ऐसे व्यक्तियों को महाशिवरात्रि की रात में जागरण करके शिव पुराण का पाठ करना या सुनना चाहिए। शिव भजन से भी लाभ मिलता है।

आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए

जो व्यक्ति काफी समय से वाहन खरीदने के लिए प्रयास कर रहे हैं,लेकिन कामयाबी नहीं मिल रही है। तो महाशिवरात्रि के दिन दही से भगवान शिव का अभिषेक करें। आर्थिक समस्याओं के कारण जो लोग परेशान और चिंतित रहते हैं उनके लिए महाशिवरात्रि पर शिव जी की पूजा का खास विधान है। ऐसे लोगों को शहद और घी से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। प्रसाद के तौर पर भोलेनाथ को गन्ना अर्पित करें।
 
अच्छी सेहत के लिए

जो व्यक्ति अक्सर बीमार रहते हैं या जिनके स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव बना रहता है उन्हे महाशिवरात्रि के मौके का लाभ उठाना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि भोलेनाथ कालों के भी काल हैं जिनके सामने यम भी हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन बेहतर स्वास्थ्य की इच्छा रखने वालों को जल में दुर्वा मिलाकर शिव जी को अर्पित करना चाहिए। जितना अधिक संभव हो महामृत्युंजय मंत्र का जप करें।

सुखद वैवाहिक जीवन के लिए

विवाह के लिए सर्वोत्तम मंत्र है "ॐ पार्वतीपतये नमः"। इस मंत्र के जाप से भगवान भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती का आशीर्वाद भी मिलता है और विवाह में आ रही समस्याएं दूर हो जाती हैं।
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आज है महाशिवरात्रि व्रत

01 मार्च 2022, मंगलवार को महाशिवरात्रि का त्योहार है। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव की आराधना, तपस्या और श्रद्धा से महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर उपवास और पूजा से भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव का अभिषेक करने का विशेष महत्व होता है। महाशिवरात्रि पर राशिनुसार शिवलिंग अभिषेक का महत्व...
 
 
मेष राशि- महाशिवरात्रि के दिन मेष राशि के जातकों को गाय के घी और शहद से शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए। इससे जीवन स्तर उत्तम बना रहेगा।

वृषभ राशि- वृषभ राशि के जातकों को महाशिवरात्रि के दिन दूध, शहद मिलाकर शिवजी का पूजन करना चाहिए। इससे सफलता प्राप्त हासिल होगी।

मिथुन राशि- मिथुन राशि के जातक लंबे वक्त से बीमार हैं तो उन्हें शिवलिंग पर दूध में भांग और शक्कर मिलाकर अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से रोगों से छुटकारा मिल जाएगा।

कर्क राशि- शिवरात्रि के दिन कर्क राशि के जातकों को गंगाजल में केसर, दूध और शहद मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए। इससे लंबे वक्त से चले आ रहे है विवाद समाप्त हो जाते हैं।

सिंह राशि- सिंह राशि के जातकों को मुकदमें में विजय प्राप्त करने के लिए गन्ने का रस और नींबू मिलाकर शिवजी पर अर्पित करना चाहिए।

कन्या राशि- कन्या राशि के लोगों को शिवरात्रि के दिन घी, दही मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए। इससे धन लाभ होगा।

कर्क राशि- शिवरात्रि के दिन कर्क राशि के जातकों को गंगाजल में केसर, दूध और शहद मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए। इससे लंबे वक्त से चले आ रहे है विवाद समाप्त हो जाते हैं।

सिंह राशि- सिंह राशि के जातकों को मुकदमें में विजय प्राप्त करने के लिए गन्ने का रस और नींबू मिलाकर शिवजी पर अर्पित करना चाहिए।
 
कन्या राशि- कन्या राशि के लोगों को शिवरात्रि के दिन घी, दही मिलाकर शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए। इससे धन लाभ होगा।

तुला राशि- महाशिवरात्रि के पर्व पर तुला राशि के जातकों को पंचामृत से शिवपूजन करना चाहिए इससे आपके अधूरे कार्य पूर्ण होंगे।

वृश्चिक राशि- वृश्चिक राशि के लोगों को शिवरात्रि के दिन दूध,गाय का घी,शक्कर,केसर मिलाकर पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से संकटो से मुक्ति मिल जाती है।

धनु राशि- शिवरात्रि के पावन पर्व पर धनु राशि के जातकों को दही,शहद मिलाकर महादेव की पूजा करनी चाहिए। इससे संतान सुख की प्राप्ति होती है।

मकर राशि- मकर राशि के जातक यदि विरोधी को परास्त करना चाहते हैं तो उन्हें शिवरात्रि के दिन दूध, गंगाजल और शक्कर से शिवजी की पूजा करनी चाहिए।

कुंभ राशि- कुंभ राशि के लोगों को बेल के रस और जल से शिवपूजन करना चाहिए। ऐसा करने से प्रमोशन और धनलाभ की प्राप्ति होती है।

मीन राशि- मीन राशि के जातक यदि मान-सम्मान में वृद्धि करना चाहते हैं तो शिवरात्रि के दिन गंगाजल, दूध और दही से पूजा करें।
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महाशिवरात्रि पर शिव जी को ऐसे करे प्रसन्न

महाशिवरात्रि पर पूजा करने के लिए सबसे पहले भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान कराएं। साथ ही केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं और पूरी रात्रि का दीपक जलाएं। इसके अलावा चंदन का तिलक लगाएं। बेलपत्र, भांग, धतूरा भोलेनाथ का सबसे पसंदीदा चढ़ावा है। इसलिए तीन बेलपत्र, भांग, धतूरा, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं और सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर सबको प्रसाद बांटें।

हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का अलग ही महत्व है। इस दिन भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिव भक्त विशेष उपाय और पूजा करते हैं। इस बार महाशिवरात्रि का ये पावन पर्व 1 मार्च 2022 को है। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था, जिसे हर साल महाशिवरात्रि के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन शिवजी के भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ व्रत रखते हैं और विधि-विधान से उनकी आराधना करते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ पृथ्वी पर मौजूद सभी शिवलिंग में विराजमान होते हैं। इसलिए महाशिवरात्रि के दिन की गई शिव की उपासना से कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है। महाशिवरात्रि 1 मार्च को सुबह 3:16 से 2 मार्च को सुबह 10:00 बजे तक रहेगी। वहीं पूजा-अर्चना के लिए पहला मुहूर्त सुबह 11:47 से 12:34 तक और शाम 6:21 से रात्रि 9:27 तक है। इन मुहूर्त के अनपरूप आप कभी भी भगवान शिव की उपासना कर सकते हैं।


 
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सूर्य व गुरु की युति 12 साल बाद इस राशि मे... राशिफल जानिए

इस राशि में पहले से ही देवगुरु बृहस्पति विराजमान थे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंभ राशि में सूर्य व गुरु की 15 मार्च 2022 तक युति रहेगी। गुरु व सूर्य के बीच मित्रता का भाव है। ऐसे में ग्रहों की युति कुंभ राशि वालों के लिए बेहद लाभकारी रहेगी। हालांकि इस दौरान तीन राशियों के जातकों को सावधान रहने की सलाह दी जाती है।

मेष - इस अवधि में आपका आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। आपका भाग्य साथ देगा। आर्थिक पक्ष को मजबूती मिलेगी। इस अवधि में शुरू किए गए कार्य सफल होंगे।

मिथुन- गुरु सूर्य की युति पार्टनरशिप में व्यवसाय करने वाले जातकों के लिए लाभकारी रहेगी। इस दौरान नौकरी पेशा करने वाले जातकों को करियर में नए अवसर मिलेंगे।

सिंह- अपने रिश्ते को शादी में बदलने की कोशिश करने वालों के लिए यह अवधि शुभ है। इस दौरान आप रिश्ते को आगे बढ़ाने की बात कर सकते हैं।

धनु- धनु राशि वालों के लिए गुरु व सूर्य की युति जीवन में साहस व पराक्रम लेकर आएगी। इस दौरान आप कुछ बड़ा हासिल करने में सक्षम रहेंगे।
 
सावधान रहने की सलाह.........
 
वृषभ- आपके कार्यस्थल में कुछ परेशानियां सामने आ सकती हैं। इस दौरान आप गुस्से का शिकार हो सकते हैं। कार्यस्थल पर आपकी छवि खराब करने की कोशिश की जा सकती है। 

कर्क- कर्क राशि वालों को अचानक धन हानि का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए पैसों के लेन-देन में सावधानी बरतें। बेवजह खर्च से बचें।

कन्या- कन्या राशि के जातकों को सेहत के प्रति सचेत रहने की जरूरत है। माता की सेहत का ध्यान रखें।
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आज मनाई जा रही है गुरु रविदास जयंती

झूठा सच @ रायपुर :- इस साल गुरु रविदास जयंती 16 फरवरी 2022 को मनाई जा रही है. संत रविदास का जन्म हिन्दू कैलेंडर के आधार पर माघ माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, इसलिए हर साल माघ पूर्णिमा को रविदास जयंती मनाते हैं. रविदास जयंती और माघी पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है. यह संत गुरु रविदास की 645वीं जयंती होगी |  

 

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माघ पूर्णि‍मा के अवसर पर श्रद्धालुओं ने लगाई डुबकी

माघ पूर्णिमा मुख्य दिनों में से एक है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, माघ मास के दौरान पवित्र स्नान और तपस्या दोनों ही विशेष महत्व रखते हैं. बता दें कि माघ पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा  के नाम से भी जाना जाता है. यह माघ महीने का सबसे अंतिम और महत्वपूर्ण दिन है. आज के दिन लोग गंगा, यमुना, सरस्वती नदी के संगम स्थल प्रयाग में स्नान पूजा करके गाय, तिल, काले तिल अन्य जरूरी चीजें दान में देते हैं. आज के दिन सत्यनारायण की कथा सुनना बेहद लाभकारी माना जाता है. इसके अलावा लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है. जिन लोगों की कुंडली में चंद्र दोष होता है वे आज के दिन चंद्र देव की पूजा करके अपने इस दोष को दूर कर सकते हैं. वहीं जिन लोगों के घर में आर्थिक तंगी है वे लक्ष्मी की कृपा से अपने जीवन में सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य तीनों को प्राप्त कर सकते हैं

 

पूजा करने की विधि
1  व्यक्ति को माघ पूर्णिमा के दिन सूर्योदय होने से पहले नित्यक्रम आदि से निवृत्त होकर स्नान आदि करना होगा.
2 उसके बाद सूर्यदेव को जल में लाल चंदन को मिलाकर जल को अर्पण करके व्रत का संकल्प करना होगा.
3 व्यक्ति अच्छे विचारों के साथ आज के दिन विष्णु भगवान की पूजा, पितरों का श्राद्ध और दान आदि करता है तो उसे अपने जीवन में सुख और समृद्धि दोनों प्राप्त होती है.
4 व्यक्ति को मुख्यतौर पर तिल और काले तिल विशेष जरूर दान के रूप में देने चाहिए.
 
दान और स्नान का महत्व
 
मान्यताओं के अनुसार, इस माह में प्रयागराज के तट पर कई कल्पवासी मौजूद है. आज कल्पवास का आखिरी दिन भी है. ऐसे में व्यक्ति गंगा में स्नान कर, भक्ति भजन कर, भगवान विष्णु की आराधना कर, अपनी सभी मनोकामना को पूरा और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करता है |
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माघ पूर्णि‍मा कल, जानें शुभ मुहूर्त और महत्‍व

माघ पूर्णिमा हिंदू कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण दिन है. धार्मिक ग्रंथों में माघ मास के दौरान मनाए गए पवित्र स्‍नान की महिमा और तपस्या का वर्णन है. ऐसा माना जाता है कि माघ महीने में हर एक दिन दान कार्य करने के लिए विशेष होता है. माघ पूर्णिमा, जिसे माघी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, माघ महीना का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन है. लोग माघी पूर्णिमा पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम स्थल प्रयाग में पवित्र स्‍नान, भिक्षा, गाय और होम दान जैसे कुछ अनुष्ठान करते हैं.
 
महत्‍व : - माघ के दौरान लोग पूरे महीने में सुबह जल्दी गंगा या यमुना में स्‍नान करते हैं. पौष पूर्णिमा से शुरू होने वाला दैनिक स्‍नान माघ पूर्णिमा पर समाप्त होता है. ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए सभी दान कार्य आसानी से फलित होते हैं. इसलिए लोग अपनी क्षमता के अनुसार जरूरतमंदों को दान देते हैं. यह कल्पवास का अंतिम दिन भी है. प्रयाग में गंगा नदी के तट पर लगाया एक महीने का तपस्या शिविर लगाया जाता है, जिसे कल्‍पवास कहा जाता है.
 
माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती भी मनाई जाती है.
शुभ मुहूर्त :
माघ पूर्ण‍िमा कब  : बुधवार 16 फरवरी 2022
पूर्ण‍िमा तिथ‍ि कब से शुरू  : 15 फरवरी को रात 09:42
पूर्ण‍िमा तिथ‍ि कब समाप्‍त होगी : 16 फरवरी को रात 10:25 बजे
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जया एकादशी पर करें भगवान विष्णु की आरती

हिंदू धर्म में हर माह की एकादशी तिथि का बड़ा महत्व माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं माघ के शुक्ल पक्ष की एकदशी के जया एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के जगदीश स्वरूप की पूजा का विधान है. भगवान जगदीश को पुष्प, जल, अक्षत, रोली तथा विशिष्ट सुगंधित पदार्थों को अर्पित करने से उनकी विशेष कृपा मिलती है. इस बार ये व्रत 12 फरवरी, 2022 यानि आज रखा गया है.

आर्थिक संकटों से मुक्ति के लिए करें ये खास उपाय 1- पीपल के पत्ते से भगवान विष्णु की पूजा करें. 2- पीपल के पत्ते पर 12 साबुत बादाम रखकर भगवान विष्णु को अर्पित करें. इसके बाद इन बादामों को काले कपड़ें में बांधने के बाद घर में कहीं छुपाकर रख दें. 3- ॐ जगदीश्वराये नमो नमः मंत्र का जाप करें. 4- जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा भी जरूर पढ़ें या फिर सुनें, तभी व्रत का पूरा फल मिलेगा.
 
जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था. देवगण, संत, दिव्य पुरूष सभी उत्सव में उपस्थित थे. उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं. इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था. जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही सुंदर रूप था. उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी. पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय व ताल से भटक जाते हैं.
 
उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र नाराज़ हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे. श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे. पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था. दोनों बहुत दुखी थे. एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था. पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था. रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे. इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई. अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए | 

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जानिए कब है महाशिवरात्रि

हिंदू धर्म में भगवान शिव को समर्पित महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 1 मार्च 2022, मंगलवार को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है।
 
महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त 2022

1 मार्च को महाशिवरात्रि सुबह 03 बजकर 16 मिनटसे शुरू होकर बुधवार को 2 मार्चको सुबह 10 बजे तक रहेगी। रात्रि में पूजन का शुभ समय शाम 06 बजकर 22 मिनट से शुरू होकर रात 12 बजकर 33 मिनट तक होगी। महाशिवरात्रि चार पहर की पूजा का समय- पहले पहर की पूजा 1 मार्च को शाम 06 बजकर 21 मिनट से रात 09 बजकर 27 मिनट तक रहेगी। दूसरी पहर की पूजा 1 मार्च को रात 09 बजकर 27 मिनट से रात 12 बजकर 33 मिनट तक रहेगी। दूसरी पहर की पूजा रात 12 बजकर 33 मिनट से सुबह 3 बजकर 39 मिनट तक रहेगी। चौथे पहर की पूजा 2 मार्च को सुबह 03 बजकर 39 मिनट से 06 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।

व्रत पारण का शुभ समय
 
2 मार्च दिन बुधवार को 06 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। महाशिवरात्रि पूजा विधि- 1. मिट्टी या तांबे के लोटे में पानी या दूध भरकर ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि जालकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। 2. महाशिवरात्रि के दिन शिवपुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है। 3. शास्त्रों के अनुसार, महाशिवरात्रि का पूजा निशील काल में करना उत्तम माना गया है। हालांकि भक्त अपनी सुविधानुसार भी भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं।
 
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जानिए कौन हैं 10 महाविद्या और क्या हैं इनके मंत्र

गुप्ता नवरात्रि का पर्व माता की विशेष साधना का पर्व है. मां दुर्गा के दसो रूपों को दसमहाविद्या के रूप में जाना जाता है. तंत्र क्रिया या सिद्धि प्राप्ति के लिए इन 10 महाविद्याओं का विशेष महत्व होता है. इनके नाम हैं - काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला. प्रत्येक रूप का अपना नाम, कहानी,गुंण, और मंत्र हैं.

काली सबसे पहले माता सती ने मां काली का रूप धारण किया उनका वह रूप भयभीत करने वाला था. उनका रंग काला और केस खुले और उलझे हुए थे. उनकी आंखों में गहराई थी और भौहें तलवार की तरह प्रतीत हो रही थी. कपालों की माला धारण किए हुए उनकी गर्जना से दसों दिशाएं भयंकर ध्वनि से भर गई. मां काली का उल्लेख और उनके कार्यों की रूपरेखा चंडी पाठ में दी गई है. काली मंत्र - ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा तारा श्री तारा महाविद्या इस सृष्टि के केंद्रीय सर्वोच्च नियामक और क्रिया रूप दसमहाविद्या में से द्वितीय विद्या के रूप में सुसज्जित हैं.

इनका रंग नीला है और इनकी जीभ बाहर को है जो भय उत्पन्न करती है और वह एक बाघ की खाल पहने हुए हैं. इनकी तीन आंखें हैं. शक्ति का यह स्वरूप सर्वदा मोक्ष प्राप्त करने वाला तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार से घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाला है. तारा मंत्र - ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट मां षोडशी 10 महाविद्या में मां षोडशी भगवती का तीसरा स्वरूप है. जिन्हें त्रिपुरसुंदरी भी कहा गया है. भगवान सदाशिव की तरह मां त्रिपुर सुंदरी के भी चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से तंत्र शास्त्रों में पंचवक्त्र अर्थात पांच मुख वाली कहा गया है.

षोडशी साधना सुख के साथ-साथ मुक्ति के लिए भी की जाती है. त्रिपुर सुंदरी साधना, शरीर, मन, और भावनाओं को नियंत्रण करने की शक्ति प्रदान करती हैं. षोडशी मंत्र - ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम: मां भुवनेश्वरी मां भुवनेश्वरी चौथी महाविद्या है. भुवन का अर्थ है ब्रह्मांड और ईश्वरी का अर्थ है शासक इसीलिए वे ब्रह्मांड की शासक हैं. वे राज राजेश्वरी के रूप में भी जानी जाती हैं और ब्रह्मांड की रक्षा करतीं हैं.

वे कई पहलुओ में त्रिपुर सुंदरी से संबंधित है. माँ भुवनेस्वरी को आदि शक्ति के रूप में जाना जाता है यानी शक्ति के शुरुआती रूपों में से एक हैं. यह शाकम्भरी के नाम से भी प्रसिद्ध है. भुवनेश्वरी मंत्र - ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम: मां भैरवी 10 महाविद्याओं में मां भैरवी पांचवा स्वरूप हैं. भैरवी देवी का एक क्रुद्ध और दिल दहला देने वाला रूप है जो प्रकृति में मां काली से शायद ही अभी वाच्य है.
 
देवी भैरवी भैरव के समान ही हैं जो भगवान शिव का एक उग्र रूप है जो सर्वनाश से जुड़ा हुआ है. भैरवी मंत्र - ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा: छिन्नमस्तिका 10 महाविद्या देवी का छठा स्वरूप है उन्हें प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है. छिन्नमस्तिका देवी के हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है तथा दूसरे हाथ में कटार है. देवी छिन्नमस्ता की उत्पत्ति के बारे में कई कहानियां हैं और कई पुराणों में भी इनका अलग-अलग उल्लेख है और उनकी मानें तो देवी ने कोई बड़ा और महान कार्य पूरा करने के लिए ही यह रूप धरा था.
 
छिन्नमस्तिका मंत्र - श्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा मां धूमावती मां धूमावती दसमहाविद्या का सातवां स्वरूप है विशेषताओं और प्रकृति में उनकी तुलना देवी अलक्ष्मी, देवी जेष्ठा और देवी नीर्ती के साथ की जाती है. ये तीनो देवियां नकारात्मक गुणों का अवतार हैं लेकिन साथ ही वर्ष के एक विशेष समय पर उनकी पूजा भी की जाती है.
 
देवी धूमावती की साधना अत्यधिक गरीबी से छुटकारा पाने के लिए की जाती है. शरीर को सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करने के लिए भी उनकी पूजा की जाती है. धूमावती मंत्र - ऊँ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा: मां बगलामुखी बगलामुखी 10 महाविद्याओं में 8वीं महाविद्या है और इनको स्तंभन शक्ति की देवी भी माना जाता है. सौराष्ट्र में प्रकट हुए महा तूफान को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप मां बगलामुखी का प्राकट्य हुआ था. मां बगलामुखी को पितांबरा के नाम से भी जाना जाता है. पितांबरा आत्मा का ऐसा स्वरूप है जो पीत अर्थात पीला वस्त्रों से, पीत आभूषणों से, स्वर्ण आभूषणों से, और पीत पुष्पों से सुसज्जित है.
 
बगलामुखी मंत्र- ऊँ ह्नीं बगुलामुखी देव्यै ह्नीं ओम नम: (1) ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा (2) देवी मातंगी महाविद्याओं में 9वीं देवी मातंगी वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप है और श्री कुल के अंतर्गत पूजी जाती हैं. यह सरस्वती ही हैं और वाणी, संगीत, ज्ञान, विज्ञान, सम्मोहन, वशीकरण, मोहन की अधिष्ठात्री हैं. इंद्रजाल विद्या जादुई शक्ति में देवी पारंगत है साथ ही वाक् सिद्धि संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में निपुण है.
 
मातंगी मंत्र - ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा: देवी कमला देवी कमला 10 महाविद्याओं में दसवीं देवी हैं. देवी कमला को देवी का सबसे सर्वोच्च रूप माना जाता है जो उनके सुंदर पहलु को पूर्णता दर्शाता है. उनकी केवल देवी लक्ष्मी के साथ तुलना ही नहीं की जाती है बल्कि इन्हे देवी लक्ष्मी के रूप में भी पूजा जाता है. इन्हे तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है.

 
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गुप्त नवरात्रि में जानिए मां बगलामुखी के प्रादुर्भाव की पौराणिक कथा

माघ माह की गुप्त नवरात्रि में आदि शक्ति मां दुर्गा की दस महाविद्याओं के पूजन का विधान है। मां बगलामुखी दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या हैं।इनकी उपासना शत्रु नाश, वाकसिद्धी और वाद विवाद में विजय मिलती है। इनमें संपूर्ण ब्राह्मण्ड की शक्ति का समावेश है, इनकी उपासना से भक्त के जीवन की हर बाधा दूर होती है और शत्रुओ का नाश होता है। इसके साथ ही मां बगलामुखी बुरी शक्तियों का भी नाश करती है। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। इनका प्रसिद्धि मंदिर मध्य प्रदेश के दतिया जिले में स्थित है। आइए जानते हैं मां बगलामुखी के प्रादुर्भाव की पौराणिक कथा के बारे में....

मां बगलामुखी की पौराणिक कथा पौराणिक कथा के अनुसार एक बार सतयुग में ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा। चारों ओर हाहाकार मच गया। संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। जिसे देख कर जगत का संचालन करने वाले भगवान विष्णु चिंतित हो उठे।समस्या का कोई हल न पा कर उन्होंने शिव जी का स्मरण किया। भगवान शिव ने कहा आदिशक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता। अत: आप उनकी शरण में ही जाएं। विष्णु जी ने सौराष्ट्र में हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंच कर कठोर तप किया। भगवान विष्णु के तप से महात्रिपुरसुंदरी प्रसन्न हुईं। विष्णु जी के कहने पर आदि शक्ति के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ। इस तेज के प्रभाव से ये भयावह ब्रह्मांडीय तूफान रुक गया।

मां बगलामुखी का प्रादुर्भाव वातावरण शांत होने के बाद देवी शक्ति का यह तेज मां बगलामुखी के रूप में प्रादुर्भाव हुआ। भगवती बगलामुखी देवी ने प्रसन्न होकर भगवान विष्णु जी को इच्छित वर दिया और सृष्टि का संचालन फिर से सुचारू रूप से होने लगा। मां बगलामुखी को वीर रति भी कहा जाता है ,इनके शिव को महारुद्र कहा जाता है। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं। जबकि गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।
 
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आज हैं बसंत पंचमी जानिए पूजा करने का शुभ मुहूर्त और विध‍ि

वसंत पंचमी का दिन ज्ञान, संगीत, कला, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की देवी सरस्वती मां को समर्पित है. वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है. वसंत पंचमी को श्री पंचमी और सरस्वती पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. लोग ज्ञान प्राप्त करने और सुस्ती, आलस्य और अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिए देवी सरस्वती की पूजा करते हैं. बच्चों को शिक्षा देने के इस दिन अक्षर-अभ्यसम या विद्या-अरम्भम/प्रसाना नाम का अनुष्‍ठान किया जाता है,
 
जो वसंत पंचमी के प्रसिद्ध अनुष्ठानों में से एक है. 
बसंत पंचमी तारीख और मुहूर्त पंचमी तिथ‍ि कब से शुरू :
05 फरवरी 2022 को सुबह 03:
47 बजे से शुरू पंचमी तिथ‍ि कब खत्‍म होगी:
06 फरवरी सुबह 03:46 बजे तक बसंत पंचमी:
शन‍िवार, 5 फरवरी 2022 बसंत पंचमी मुहूर्त:
शनिवार सुबह 07:07 बजे से दोपहर 12:
35 बजे तक बसंत पंचमी मध्‍याहन :
शनिवार दोपहर 12:35 पूजा की अवध‍ि :
05 घंटे 28 मिनट
 
सरस्वती आरती
!! जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता, सद्दग़ुण वैभव शालिनि, त्रिभुवन विख्याता,
ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता !!
!! चंद्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी, सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी,
ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता !!
!! बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला, शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला,
ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता !!
!! देवि शरण जो आए, उनका उद्धार किया, पैठि मंथरा दासी, रावण संहार किया,
ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता !!
!! विद्या ज्ञान प्रदायिनि ज्ञान प्रकाश भरो,मोह, अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो ,
ॐ जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता !!
!! धूप दीप फल मेवा, मां स्वीकार करो, ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो,
ॐ जय सरस्वती माता,मैया जय सरस्वती माता !!
!! मां सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे, हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे,
ॐ जय सरस्वती माता,मैया जय सरस्वती माता
 
बसंत पंचमी को मां सरस्‍वती की पूजा विधि
1. स्‍नान कर पीला वस्‍त्र धारण करें. इसके बाद पूजा का स्‍थान साफ करें और मां सरस्वती की प्रतिमा को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें.
2. रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के फूल चढाएं. मां को तिल और दूध की बनी मिठाई या पीली मिठाई और अक्षत अर्पित करें.
3. अगर आप छात्र हैं तो पूजा के स्थान पर अपनी किताबें, कलम रखें. संगीत क्षेत्र के जातक वाद्य यंत्र रखें. 4. मां सरस्वती की चालीसा का पाठ करें और आरती करें. 5. मां का प्रसाद सभी में वितरित करें |
 

 

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गुप्त नवरात्रि में की जाती है 10 देवियों की पूजा , जानिए महत्व

झूठा सच @ रायपुर :-  गुप्त नवरात्रि शुरू हो गई है. यह 10 फरवरी तक चलेगी. इस नवरात्रि की पूजा को गुप्त रूप से किया जाता है, इसलिये इसे गुप्‍त नवरात्र‍ि कहा जाता है. गुप्‍त नवरात्रि माघ व आषाढ़ महीने में आती है. बता दें, गुप्त नवरात्रि में माता के नौ रूपों की नही बल्कि 10 महाविद्याओं की पूजा की  जाती है. इस वीडियो में जानिए क्या है

चैत्र और शारदीय नवरात्रि में दुर्गा मां के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है. वहीं, गुप्त नवरात्रि के दौरान 10 देवियों की पूजा की जाती है. जिनके नाम इस प्रकार हैं- मां काली, मां तारा देवी, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी और मां कमला देवी हैं.

गुप्त नवरात्र में इस बार रवियोग व सर्वार्थसिद्धि योग के रूप में अतिविशिष्ट मुहूर्त आ रहे हैं. दरअसल, यह उन लोगों के लिये खास है जो नया काम शुरू करना चाहते हैं. घर खरीदना हो, या भूमि पूजन करनी हो या गाडी खरीदनी हो, इस दौरान सभी शुभ काम कर सकते हैं. इस दौरान खरीदारी या निवेश लाभकारी होगा. इसी दौरान वसंत पचंमी व नर्मदा जयंती जैसे महापर्व भी आ रहे हैं, इसकी वजह से यह गुप्‍त नवरात्र‍ि और भी खास बन गई है.

गुप्त नवरात्रि पूजा विधि

शारदीय और चैत्र नवरात्रि की तरह ही गुप्त नवरात्रि में कलश की स्थापना की जा सकती है. अगर आपने कलश की स्थापना की है तो आपको सुबह और शाम यानी दोनों समय दुर्गा चालीसा या सप्तशती का पाठ और मंत्र का जाप करना होगा. इसके अलावे आप दोनों समय मां दुर्गा की आरती करें. दोनों समय आप मां को भोग भी लगाएं. कहा जाता है कि गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा को भोग में लौंग और बताशा चढ़ाना चाहिए | 
 
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आज से शुरू हो रही हैं गुप्त नवरात्रि जानिए पूजा की विधि एवं महत्व

 झूठा सच @ रायपुर :-  साल में 4 नवरात्रि होती हैं, इनमें से दो गुप्त नवरात्रि होती हैं. पहली गुप्त नवरात्रि माघ के महीने में पड़ती है और दूसरी आषाढ़ माह में होती हैं. गुप्त नवरात्रि पर मां दुर्गा के दस महाविद्या स्वरूपों की पूजा की जाती है. गुप्त नवरात्रि में माता रानी की गुप्त रूप से साधना की जाती है. इस बार गुप्त नवरात्रि आज 2 फरवरी से शुरू हो रही है. गुप्त नवरात्रि पर दो शुभ योग रवियोग और सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहे हैं, इस कारण गुप्त नवरात्रि की महत्ता कहीं ज्यादा बढ़ गई है. जानिए गुप्त नवरात्रि से जुड़ी खास बातें.

ये है घट स्थापना का शुभ मुहूर्त माघ माह के गुप्त नवरात्रि प्रतिपदा तिथि 01 फरवर 2022 को सुबह 11:15 बजे शुरू होगी और 02 फरवरी बुधवार को सुबह 08:31 बजे समाप्त होगी. उदया तिथि के हिसाब से व्रत की शुरुआत 2 फरवरी 2022, दिन बुधवार को होगी. घट स्थापना शुभ मुहूर्त- सुबह 07 बजकर 10 मिनट से सुबह 8 बजकर 30 मिनट तक रहेगा. अति शुभ समय 08:02 मिनट तक है. तंत्र मंत्र की सिद्धि करने वाली नवरात्रि गुप्त नवरात्रि को तंत्र-मंत्र को सिद्ध करने वाली नवरात्रि माना गया है. तंत्र साधना वालों के लिए ये नौ दिन विशेष रूप से फलदायी माने जाते हैं. इस नवरात्रि में तंत्र जादू-टोना सीखने वाले साधक कठिन भक्ति कर माता को प्रसन्न करते हैं. मान्यता है कि इस नवरात्रि में की जाने वाली विशेष पूजा से तमाम कष्ट दूर हो जाते हैं. गुप्त नवरात्रि की पूजा भी गुप्त रूप से की जाती है. पूजा, मंत्र, पाठ और प्रसाद सभी चीजों को गुप्त रखा जाता है, तभी साधना फलित होती है.
 
इन दस महाविद्याओं की होती है पूजा गुप्त नवरात्रि पर दसमहाविद्याओं की पूजा की जाती है. इनके नाम हैं मां कालिके, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता चित्रमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूम्रवती, माता बगलामुखी, मातंगी, कमला देवी. इस बार गुप्त नवरात्रि आठ दिन की पड़ रही है. ये 2 फरवरी से शुरू होगी और 10 फरवरी को इसका समापन होगा. ये है पूजा विधि सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा या व्रत का संकल्प लें. कलश स्थापना से पहले मंदिर की अच्छे से साफ-सफाई करें और गंगाजल छिड़कें. इसके बाद मिट्टी के पात्र में जौ के बीज को बोएं और उसके बाद कलश रखकर स्थापना करें. गुप्त नवरात्रि के दौरान सात तरह के अनाज, पवित्र नदी के रेत, पान, हल्दी, सुपारी, चंदन, रोली, रक्षा धागा, जौ, कलश, फूल, अक्षत और गंगाजल से पूजन करें | 
 

 

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कल से शुरू हो रही हैं गुप्त नवरात्रि, इस दौरान कर लें ये काम, माँ दुर्गा होगी प्रसन

गुप्त नवरात्रि के दौरान लाल आसन पर बैठकर माता की उपासना करें. लाल कपड़े में 9 लौंग रखकर पूरे नौ दिन माता को चढ़ाएं. रोजाना कपूर से माता की आरती करें. नवरात्रि समाप्त होने के बाद सारे लौंग लाल कपड़े में बांधकर सुरक्षित रखें. इससे धन की समस्या दूर होगी.


बिजनेस में धन लाभ के लिए

माघ गुप्त नवरात्रि के दौरान रोज शाम के वक्त मां लक्ष्मी की पूजा करें. साथ ही मां लक्ष्मी के सामने घी का दीपक जलाएं. इसके अलावा श्रीसूक्त का पाठ करें. गुप्त नवरात्रि के दौरान किसी दिन कच्चे सूत को हल्दी से रंगकर पीला कर लें. इसके बाद इसे मां लक्ष्मी को समर्पित करके गले में धारण करें. बिजनेस में धन लाभ का योग बनेगा

कर्ज से मुक्ति पाने के लिए

गुप्त नवरात्रि के दौरान प्रतिदिन सुबह मां दुर्गा की पूजा करें. पूजन के वक्त माता को लाल फूल चढ़ाएं. इसके बाद उनके सामने सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें. इतना करने के बाद माता से कर्ज से मुक्ति की प्रार्थना करें.

हर प्रकार से आर्थिक गुप्त नवरात्रि के दौरान कर लें ये 5 काम, माँ दुर्गा होगी प्रसनसमृद्धि के लिए

गुप्त नवरात्रि के दौरान रोजाना सुबह और शाम मां दुर्गा की उपासना करें. सुबह की पूजा में माता को सपेद फूल और शाम की पूजा में लाल पुष्प अर्पित करें. इसके अलावा दोनों वक्त 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ज्वल हं सं लं फट् स्वाहा' इस मंत्र का 108 बार जाप करें. नवमी के दिन कन्या भोजन कराकर उन्हें उपहार देकर उनसे आशीर्वाद लें.

कौन-कौन हैं दस महाविद्या

गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्या काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुनेश्‍वरी, छिन्‍नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी की गुप्त तरीके से पूजा-उपासना का विधान है.| 
 
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