धर्म समाज

पापमोचनी एकादशी के दिन पूजा के दौरान सुनें ये व्रत कथा, मिलेगी पापों से मुक्ति

हिंदू धर्म में साल भर में एकादशी के 24 व्रत पड़ते हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों में एकादशी के व्रत का बहुत महत्व बताया गया है. एकादशी के व्रत जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित हैं. चैत्र माह में पड़ने वाली एकादशी पापमोचनी एकादशी कहलाती है. मान्यताओं के अनुसार, पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से मृत्यु के बाद मोक्ष और वैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होता है. इस दिन पूजा के समय व्रत कथा भी अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए. इससे व्रत और पूजा का पूरा फल प्राप्त होता है और पापों से मुक्ति मिलती है|
हिंदू पंचांग के अनुसार, पापमोचिनी एकादशी तिथि आज सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर शुरू हो चुकी है. वहीं इस तिथि का समापन कल 26 मार्च को सुबह 3 बजकर 45 मिनट पर होगा. ऐसे में पापमोचिनी एकादशी का व्रत आज रखा जाएगा. पापमोचिनी एकादशी व्रत के साथ वैष्णव जनों की पापमोचनी एकादशी भी है. इस दिन वैष्णव समुदाय के लोग भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं. हालांकि वैष्णव पापामोचिनी एकादशी का व्रतकल रखा जाएगा|
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में चैत्ररथ नाम के एक वन में हमेशा वसंत का मौसम रहता था. इस वन में कभी गंधर्व कन्याएं विहार किया करती थीं. कभी-कभी वन में देवता भी क्रीडा किया करते थे. चैत्ररथ वन में मेधावी नाम के एक ऋषि भी तपस्या में लीन रहा करते थे. वो भगवान शिव के परम भक्त थे. एक दिन मंजुघोषा नाम की अप्सरा वन से जा रही थी. उसी समय उसकी नजर ऋषि मेधावी पर पड़ी. मंजुघोषा उनको देखते ही उनपर मोहित हो गई|
इसके बाद मंजुघोषा ने ऋषि मेधावी को अपनी सुंदरता से अपनी ओर आकर्षित करने की कई कोशिशें की, लेकिन ऋषि मेधावी पर इसका कोई असर नहीं हुआ. इसी बीच कामदेव वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने अप्सरा मंजुघोषा की भावनाएं समझीं और उसकी सहायता की. इसके परिणामस्वरूप मेधावी भगवान शिव की तपस्या से विमुख होकर मंजुघोषा के प्रति आकर्षित हो गए. इसके बाद ऋषि मेधावी काम में वशीभूत होकर अप्सरा मंजुघोषा के साथ रमण करने लगे|
इतना ही नहीं ऋषि बहुत समय तक अप्सरा मंजुघोषा से रमण करते रहे. फिर एक दिन अप्सरा ने ऋषि से कहा कि बहुत समय बीत गया है, इसलिए आप मुझे अब स्वर्ग लोक जाने की आज्ञा दीजिए. इस पर ऋषि ने कहा कि अप्सरा शाम को ही तो आई हो, सुबह होने पर चली जाना. ऋषि के मुख से ये बातें सुनकर अप्सरा फिर से उनके साथ रमण करने लगी. इसके बाद अप्सरा ने कुछ समय बाद एक बार फिर से ऋषि से स्वर्ग लोक जाने की आज्ञा मांगी|
इस पर ऋषि ने अप्सरा से फिर रुकने की बात कही. तब अप्सरा ने कहा कि आप स्वंय सोचिये मुझे यहां आए कितने दिन हो गए हैं. अब मेरा और यहां रुकना ठीक नहीं है. तब ऋषि को समय का ज्ञात हुआ कि उन्हें अप्सरा मंजुघोषा से रमण करते और शिव जी के तप से विमुख हुए 57 साल हो गए हैं. इसके बाद क्रोध में आकर ऋषि ने अप्सरा मंजुघोषा को पिशाचिनी बन जाने का श्राप दे दिया. इससे अप्सरा बहुत दुखी हुई और ऋषि से क्षमा मांगी|
इसके बाद ऋषि ने उसे पापमोचनी एकादशी का व्रत करने को कहा. फिर अप्सरा ने चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी का विधि-पूर्वक व्रत और भगवान विष्णु का पूजन किया. व्रत के प्रभाव से उसके सभी पापों का नाश हो गया और उसे पिशाच योनी से मुक्ति मिल गई. यही नहीं ऋषि ने भी पाप मुक्त होने और अपनी ओज और तेज को वापन पाने के लिए पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा. व्रत के प्रभाव से उन्हें भी अपने पापों से मुक्ति के साथ ही अपनी ओज और तेज वापस मिल गया|
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मार्च महीने का आखिरी प्रदोष व्रत कब है? जानिए...तिथि, मुहूर्त, विधि और नियम

इस व्रत में विशेष रूप से भगवान शिव का पूजन, शिवलिंग का अभिषेक, बेलपत्र, आक के फूल चढ़ाना और शिव मंत्रों का जाप करना आवश्यक होता है। प्रदोष व्रत के दिन पूजा का समय प्रदोष काल में होता है।
आइए जानते हैं, इस माह का आखिरी प्रदोष व्रत कब होगा, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या होगा, और इस व्रत को करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
प्रदोष व्रत तिथि
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 26 मार्च 2025, देर रात 1 बजकर 42 मिनट पर
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि समाप्त: 27 मार्च 2025, रात 11 बजकर 3 मिनट पर
प्रदोष व्रत की पूजा विशेष रूप से प्रदोष काल में की जाती है, जो सूर्यास्त के बाद का समय होता है। इस दिन पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त
प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त: 27 मार्च 2025, सायं 6 बजकर 35 मिनट से रात्रि 8 बजकर 57 मिनट तक रहेगा।
इस अवधि में पूजा करना अत्यधिक शुभ और फलदायी माना जाता है। इस समय में भगवान शिव का ध्यान और पूजा विशेष रूप से प्रभावशाली होती है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
सबसे पहले, सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान शिव का ध्यान करते हुए प्रदोष व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल पर शिवलिंग स्थापित करें और उस पर जल, बेलपत्र, आक के फूल, गुड़हल के फूल और मदार के फूल चढ़ाएं।
पूजा के दौरान ॐ नमः शिवाय और ॐ त्र्यम्बकं यजामहे जैसे शिव मंत्रों का जाप करें।
पूजा के बाद, प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती करें और उनका प्रिय भोग अर्पित करें।
पूरे शिव परिवार की पूजा करें, जिसमें भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती, गणेश जी और कार्तिकेय जी की पूजा भी शामिल हो।
प्रदोष व्रत के अगले दिन व्रत का पारण करें।
प्रदोष व्रत पर ध्यान रखें ये बातें
प्रदोष व्रत के दिन तामसिक भोजन, मांसाहार और मादक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
व्रत रखने वाले भक्तों को दिनभर भगवान महादेव का ध्यान और स्मरण करना चाहिए।
किसी के प्रति गुस्सा या द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए और नकारात्मक सोच को मन से दूर रखना चाहिए।
व्रत के दौरान झूठ बोलने से बचना चाहिए और किसी का अपमान या अनादर करने से परहेज करना चाहिए।
पूरी श्रद्धा और भक्ति से व्रत करें, ताकि महादेव की कृपा प्राप्त हो सके।
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राम नवमी 6 अप्रैल को, करें इन मंत्रों का जाप

  • जानिए...पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान राम ने धरती पर अधर्म का नाश करने और धर्म की पुनः स्थापना के लिए अवतार लिया था। इस दिन को हिंदू धर्म में बहुत ही शुभ माना जाता है। राम नवमी का पर्व हर हिंदू परिवार में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, लेकिन अयोध्या में इसकी भव्यता देखते ही बनती है।
इस साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का प्रारम्भ 5 अप्रैल की शाम को 07:26 बजे होगा और समाप्त 6 अप्रैल की शाम 07:22 बजे होगा। ऐसे में इस साल राम नवमी का पर्व 6 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन चैत्र नवरात्रि का समापन भी होगा, इसलिए यह दिन और अधिक पावन माना जाएगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त-
राम नवमी के दिन मध्याह्न पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11:08 बजे से लेकर दोपहर 1:39 बजे तक रहेगा। यह अवधि 2 घंटे 31 मिनट की रहेगी। हालांकि, मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म दोपहर 12 बजे हुआ था, इसलिए 12:34 का समय विशेष रूप से शुभ माना जाता है और इस समय पूजन और अभिषेक करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
राम नवमी पूजा मंत्र-
इस दिन श्रीराम के विभिन्न मंत्रों का जाप करने का विशेष महत्व होता है।
"ॐ श्री रामचन्द्राय नमः"
"ॐ रां रामाय नमः"
श्रीराम तारक मंत्र "श्री राम, जय राम, जय जय राम"
श्रीराम गायत्री मंत्र "ॐ दाशरथये विद्महे, सीतावल्लभाय धीमहि। तन्नो रामः प्रचोदयात्॥"
इस दिन इन मंत्रों का जाप करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि-
राम नवमी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने और सूर्यदेव को जल अर्पित करने का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत का संकल्प लेने के बाद घर के मंदिर को अच्छे से साफ कर भगवान राम की प्रतिमा स्थापित की जाती है। दोपहर 12 बजे के करीब श्रीराम का गंगाजल, पंचामृत और शुद्ध जल से अभिषेक किया जाता है।
पूजा में तुलसी पत्ता और कमल का फूल रखना शुभ माना जाता है। फिर षोडशोपचार विधि से भगवान राम की पूजा की जाती है और खीर, फल एवं अन्य मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। इस दिन राम रक्षा स्तोत्र, सुंदरकांड और रामायण का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। अंत में आरती करने के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है और भक्तों को आशीर्वाद दिया जाता है।
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CM विष्णुदेव साय ने दी भक्त माता कर्मा जयंती की शुभकामनाएं

रायपुर। मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने प्रदेशवासियों को भक्त माता कर्मा जयंती की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री साय ने माता कर्मा से समस्त छत्तीसगढ़वासियों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की कामना करते हुए कहा कि भक्त माता कर्मा का जीवन सेवा, भक्ति, त्याग और परोपकार की अनुपम मिसाल है। वे भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं और उनका आदर्श आज भी जनमानस को प्रेरणा देता है।
मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि छत्तीसगढ़ में माता कर्मा जयंती का पर्व पूरे श्रद्धाभाव और सामाजिक समरसता के साथ मनाया जाता है। साहू तैलिक समाज की आराध्य देवी माता कर्मा की जयंती पर पूरे राज्य में शोभायात्राएँ, कलश यात्राएँ और विविध धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन होते हैं, जिनमें सभी समाजों की भागीदारी से एकता और भाईचारे का संदेश भी प्रसारित होता है। उन्होंने प्रार्थना की कि माता कर्मा का आशीर्वाद हम सभी पर सदैव बना रहे।मुख्यमंत्री श्री साय ने विश्वास जताया कि माता कर्मा के आदर्श हमें समाज में करुणा, समानता और समर्पण के साथ कार्य करने की प्रेरणा देते रहेंगे।
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गणगौर पूजा 31 मार्च को मनाया जाएगा

गणगौर पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन आप भगवान शिव और देवी गौरी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत रखती हैं। इसके अलावा लड़कियां भगवान शिव जैसा प्रेम करने वाला पति पाने के लिए भी यह व्रत रखती हैं। यह त्यौहार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। ऐसे में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 31 मार्च को सुबह 9:11 बजे शुरू होगी, जो 1 अप्रैल को सुबह 5:42 बजे समाप्त होगी। सूर्योदय तिथि होने के कारण यह पर्व 31 मार्च को मनाया जाएगा। अगर आप पहली बार यह व्रत रख रहे हैं तो इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो आपको जाननी चाहिए।
गणगौर व्रत के दौरान क्या करें?
पूजा से एक दिन पहले देवी पार्वती और भगवान शंकर के स्वागत के लिए अपने घर की साफ-सफाई करें।
फिर व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान करें। इसके बाद देवी गौरी और भगवान शिव का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
फिर देवी पार्वती और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करें।
इस दौरान भक्तजन भगवान शिव और देवी गौरी की मूर्ति स्थापित करते हैं।
मूर्ति को नए वस्त्र पहनाएं, सिन्दूर लगाएं और फूल और प्रसाद चढ़ाएं।
पूजा करते समय महिलाओं को सोलह श्रृंगार करना चाहिए। यह उपासना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
गणगौर पूजा के दिन भजन गाना चाहिए और मंत्रों का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पूजा के दौरान देवी पार्वती को सोलह श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए। इससे आपको शाश्वत सौभाग्य प्राप्त होता है।
गणगौर व्रत के दौरान क्या नहीं करना चाहिए?
इस व्रत के दौरान किसी भी प्रकार की अभद्र भाषा का प्रयोग न करें। इस दिन किसी भी गरीब व्यक्ति को अपने दरवाजे से खाली हाथ न जाने दें।
गणगौर पूजा के दौरान सोने से बचना चाहिए। इस दिन देवी पार्वती और भगवान शिव की भक्ति में लीन रहना चाहिए। ऐसा करने से आपको उपवास का पूरा लाभ मिलता है। इस दिन मांसाहारी भोजन खाने से बचना चाहिए। इस दिन मन और शरीर को शुद्ध रखना चाहिए।
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शनि देवता 29 मार्च से गुरु की राशि मीन में करेंगे प्रवेश

  • किसकी साढ़े साती, किसकी ढैय्या, जानिए असर...
शनिचरी अमावस्या पर 29 मार्च को शनि देव राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। शनि देव गुरु की राशि मीन में गोचर करेंगे, जिसका प्रभाव कुछ राशियों पर सकारात्मक रूप में पड़ेगा, तो वहीं कुछ राशियों को इसके नकारात्मक परिणाम भी झेलने पड़ सकते हैं। इस दिन पर शनिश्चरी अमावस्या और सूर्य ग्रहण का संयोग भी रहने वाला है, लेकिन सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखाई नहीं पड़ने के कारण इसका कोई प्रभाव नहीं होगा।
किसकी साढ़े साती, किसकी ठैय्या-
कर्मफल दाता के राशि परिवर्तन से मकर राशि पर साढ़े साती समाप्त हो जाएगी। इसके साथ ही मीन राशि पर साढ़े साती का प्रभाव और कुंभ राशि पर साढ़े साती का अंतिम चरण शुरू होगा।
धनु राशि के जातकों पर ढैय्या शुरू होगा। ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि शनि के राशि परिवर्तन के दौरान व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर शुभ-अशुभ फलों की प्राप्ति होती है।
इन जातकों पर खत्म होगा साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव-
ज्योतिषियों के मुताबिक, 29 मार्च को शनि के मीन राशि में प्रवेश करने से मकर राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती समाप्त होगी। वहीं इस गोचर से कर्क और वृश्चिक राशि वालों पर से ढैय्या का प्रभाव खत्म होगा।
इन राशि वालों पर रहेगा साढ़ेसाती व ढैया का प्रभाव-
ज्योतिष गणना के अनुसार न्याय के देवता शनि के मीन राशि में प्रवेश करने से कुंभ राशि, मीन राशि और मेष राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा। मीन राशि के लोगों पर साढ़ेसाती का दूसरा चरण, जबकि कुंभ राशि वालों पर अंतिम चरण होगा।
वहीं मेष राशि के लोगों पर शनि की साढ़ेसाती का प्रथम चरण शुरू होगा। इसी के साथ सिंह और धनु राशि वालों पर शनि की ढैय्या का प्रभाव शुरू होगा। शनि की ढैय्या के प्रभाव से धन हानि, कार्यों में बाधाओं व मानसिक तनाव झेलना पड़ सकता है। इसके अलावा वैवाहिक जीवन में भी समस्याएं बढ़ सकती हैं।

 

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दर्श अमावस्या के दिन इस विधि से करें पिंडदान, नहीं लगेगा पितृ दोष

हिन्दू धर्म में मान्यता है कि अमावस्या के दिन कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए. लेकिन क्या आप जानते हैं? हिंदू धर्म में अमावस्या को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, दर्श अमावस्या को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है. दर्श अमावस्या के दिन स्नान और दान करने से पुण्य मिलता है. दर्श अमावस्या का दिन पितरों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन पूर्वज धरती पर आते हैं. दर्श अमावस्या के दिन पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान किया जाता है. दर्श अमावस्या पर किए गए तर्पण और पिंडदान से पितर प्रसन्न होते हैं और लोगों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. दर्श अमावस्या के दिन पितरों को तर्पण और पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है|
पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 28 मार्च को शाम 7 बजकर 55 मिनट पर शुरू होगी और 29 मार्च को शाम 4 बजकर 27 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में दर्श अमावस्या 29 मार्च को ही मनाई जाएगी. इस दिन पूजा करने से आपको अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है|
मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति दर्श अमावस्या पर अपने पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान करता है, उसके पूर्वजों की तीन पीढ़ियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. दर्श अमावस्या के दिन तर्पण और पिंडदान करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है. इसके अलावा, यह पृथ्वी के बुरे प्रभावों से भी राहत प्रदान करता है|
दर्श अमावस्या पर पितरों को तर्पण कैसे करें-
दर्श अमावस्या के दिन सुबह पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए.
इसके बाद तर्पण के लिए दक्षिण दिशा की ओर मुख करना चाहिए.
पितरों को तर्पण देने के लिए जौ, कुश, गुड़, घी, साबुत चावल और काले तिल का उपयोग करना चाहिए.
पितरों को तर्पण करते समय उनका ध्यान करना चाहिए.
जल लेकर अपने पितरों को अर्पित करें.
पितरों की पूजा करने के बाद पशु-पक्षियों को भोजन खिलाना चाहिए. इसके अलावा दान भी करना होगा.
स्कंद पुराण के अनुसार दर्श अमावस्या के दिन पितरों की मुक्ति और उन्हें प्रसन्न करने के लिए गंगा नदी में जौ, कुश, गुड़, घी, साबुत चावल और काले तिल तथा शहद मिश्रित खीर का तर्पण करना चाहिए.
ऐसा करने से पितर 100 वर्षों तक संतुष्ट रहते हैं. वे भी प्रसन्न होकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं.
पिंडदान विधि-
सबसे पहले पवित्र नदी में स्नान करें. इसके बाद सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए. फिर, अपने पूर्वजों की तस्वीरें स्टैंड पर रखें. गाय के गोबर, आटे, तिल और जौ से एक गेंद बनाएं. पिण्ड तैयार कर उसे पितरों को अर्पित करना चाहिए. पितृ पापों से मुक्ति पाने के लिए अपने पूर्वजों का ध्यान करना चाहिए तथा मंत्रों का जाप करना चाहिए|
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चैत्र नवरात्रि : जानिए...कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

सनातन धर्म में कई व्रत और त्योहार हैं और सभी का अपना-अपना महत्व है, लेकिन नवरात्रि को बहुत खास माना जाता है, जो साल में चार बार आती है, जिसमें दो गुप्त नवरात्रि और दो अन्य नवरात्रि होती हैं जिसमें शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि आती हैं।
पंचांग के अनुसार नवरात्रि व्रत माता रानी की पूजा को समर्पित होता है, जो नौ दिनों तक चलता है। इस दौरान भक्त मां दुर्गा की भक्ति और शक्ति की आराधना में लीन रहते हैं।
मान्यता है कि ऐसा करने से देवी की कृपा बरसती है और संकट दूर होते हैं, इसलिए आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बता रहे हैं कि इस साल चैत्र मास की नवरात्रि कब मनाई जाएगी और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है, तो आइए जानते हैं।
चैत्र नवरात्रि की तिथि- हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से शुरू हो रही है, जबकि इसका समापन 6 अप्रैल को राम नवमी के साथ होगा। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत होगी और इसी दिन गुड़ी पड़वा का पर्व भी मनाया जाएगा।
नवरात्रि पर कलश स्थापना का मुहूर्त-
प्रतिपदा तिथि 29 मार्च 2025 को शाम 4:27 बजे से शुरू हो रही है और यह तिथि 30 मार्च को दोपहर 12:49 बजे समाप्त होगी।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6:13 बजे से 10:22 बजे तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:01 बजे से 12:50 बजे तक रहेगा। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना करने से व्रत और पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है।
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शीतला अष्टमी आज, बासी भोजन का भोग लगाने से मिलता है आरोग्य का वरदान

होली के आठवें दिन शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च, शनिवार को रखा गया है। शीतला माता की पूजा से आरोग्य का वरदान मिलता है। इसे बसौड़ा भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता है। बासोड़ा की पूर्व संध्या पर बनाया गया भोजन ही मां शीतला को मीठे चावल व दही और पूड़ी हलवे का भोग लगाकर ग्रहण किया जाता है।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि हर साल यह चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा होती है। इसे बासोड़ा भी कहते हैं। इस दिन माता को बासी भोजन का भोग चढ़ाया जाता है और वही खाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन माता रानी की विधिवत पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। यह व्रत गर्मियों की शुरुआत का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन माता रानी की पूजा करने और उपवास का पालन करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। इसके साथ ही रोग-दोष से मुक्ति मिलती है।
कैसे मिलेगा आरोग्य का वरदान-
शीतला अष्टमी पर अच्छी सेहत के लिए विधि-विधान के साथ शीतला माता की पूजा करें। मां को कुमकुम, रोली, अक्षत और लाल रंग के फूल आदि चीजें अर्पित करें। इसके बाद देवी को बासी पूड़ी-हलवे का भोग लगाएं। ऐसा करने से रोग-दोष से मुक्ति मिलेगी। साथ ही घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा।
शीतला अष्टमी पूजा विधि-
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। अब व्रत का संकल्प लें। पूजा के लिए थाली सजाएं। एक थाली में बासी भोजन रखें। दूसरी थाली में दीपक, रोली, चंदन, अक्षत, सिंदूर, सिक्के, मेहंदी, फूल, माला व फल आदि रखें। अब माता शीतला को जल अर्पित करें। माता शीतला को बासी भोजन को भोग लगाएं। माता शीतला की कथा पढ़ें और फिर आरती उतारें।
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चैत्र नवरात्रि से पहले घर ले आएं ये चीजें, बनी रहेगी मां दुर्गा की कृपा

चैत्र नवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। यह पर्व विशेष रूप से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना का समय होता है, और इस दौरान भक्त पूरे मन, श्रद्धा और आस्था से मां भगवती के नौ रूपों की पूजा करते हैं। इस दौरान यदि कुछ विशेष चीजों को घर में लाया जाए, तो इससे घर में सुख-समृद्धि, शांति और मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। आइए जानते हैं उन 5 चीजों के बारे में, जिन्हें नवरात्रि से पहले घर लाना चाहिए।
मिट्टी के बर्तन- मिट्टी के बर्तन प्राचीन समय से ही शुभ माने जाते हैं। विशेष रूप से नवरात्रि के समय मिट्टी के बर्तन घर में लाना बहुत शुभ माना जाता है। यह न केवल घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, बल्कि यह प्रकृति से भी जुड़ा हुआ होता है। मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से घर के सदस्य स्वस्थ रहते हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है। साथ ही, यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।
चांदी का सिक्का- चांदी का सिक्का लाना न केवल धार्मिक दृष्टि से शुभ माना जाता है, बल्कि यह धन और संपत्ति के प्रतीक के रूप में भी काम करता है। नवरात्रि से पहले एक चांदी का सिक्का खरीदकर उसे मां दुर्गा की पूजा में रखें। ऐसा माना जाता है कि इस सिक्के से घर में लक्ष्मी का वास होता है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। इसे पूजा स्थल पर रखना चाहिए और नियमित रूप से उसका ध्यान रखना चाहिए।
जौ खरीदना- नवरात्रि में जौ का बहुत महत्व है। विशेष रूप से घर में नई फसल के रूप में जौ लाना बहुत शुभ माना जाता है। जौ को घर में लाकर पूजा के समय मां दुर्गा को अर्पित करें। इसके साथ ही, जौ को घर के आंगन में बोने से घर में समृद्धि और खुशहाली आती है। यह घर के सदस्यों को शारीरिक और मानसिक रूप से भी स्वस्थ रखने में मदद करता है।
पीला चावल- नवरात्रि के अवसर पर पीला चावल खरीदने का विशेष महत्व है। पीले चावलों को तंत्र-मंत्र और पूजा में उपयोग करने से मां भगवती प्रसन्न होती हैं और आशीर्वाद देती हैं। पीला चावल विशेष रूप से धरती के पोषण और समृद्धि का प्रतीक होता है। इसे पूजा स्थल पर रखें और मां के चरणों में अर्पित करें, ताकि आपके घर में सुख-समृद्धि का वास हो।
श्रृंगार का सामान- नवरात्रि में श्रृंगार का सामान लाना भी बहुत शुभ माना जाता है। महिलाएं खासकर इस दिन नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा का श्रृंगार करती हैं और पूजा करती हैं। आप अपनी घर की देवी का श्रृंगार करने के लिए गहने, चूड़ियां, बिचुएं, हार, और सिंदूर जैसी चीजें खरीद सकते हैं। इन चीजों को मां दुर्गा के सामने अर्पित करने से घर में सुख-शांति का वास होता है और हर इच्छा पूरी होती है।
नवरात्रि से पहले इन चीजों का महत्व: इन सभी चीजों को घर लाने से न केवल मां दुर्गा की कृपा मिलती है, बल्कि घर के वातावरण में भी सकारात्मकता का संचार होता है। माना जाता है कि नवरात्रि के समय इन चीजों को घर में लाकर पूजा करने से देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में खुशहाली, समृद्धि और सुख-शांति का वास होता है।
चैत्र नवरात्रि का पर्व बहुत खास है और इस समय यदि हम इन 5 विशेष चीजों को घर लाते हैं तो मां भगवती की विशेष कृपा हम पर बनी रहती है।
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चैत्र नवरात्र 30 मार्च से, हाथी पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा

चैत्र नवरात्र 30 मार्च से शुरू हो रहे हैं। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाएगी। इस वर्ष नवरात्र आठ दिवसीय होंगे, क्योंकि पंचमी तिथि का क्षरण हो रहा है। चैत्र नवरात्रि का पर्व एक विशेष अवसर होता है, जब हम मां दुर्गा की पूजा करके जीवन को सुखी और समृद्ध बना सकते हैं। इस दौरान व्रत रखने से न केवल आध्यात्मिक उन्नति होती है, बल्कि मानसिक और शारीरिक शांति भी मिलती है।
हाथी पर सवार होकर आएंगी माता रानी-
इस वर्ष एक विशेष बात है जो इसे और भी खास बना रही है। इस बार मां दुर्गा अपनी सवारी के रूप में हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। हिंदू धर्म में देवी दुर्गा की सवारी का विशेष महत्व होता है और इस बार उनका हाथी पर सवार होना विशेष शुभ संकेत माना जा रहा है।
ज्योतिषाचार्य सुनील चोपड़ा ने बताया कि इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। हाथी को भारतीय संस्कृति में शांति, स्मृति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। जब मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं, तो इसे विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस सवारी का मतलब यह है कि यह समय देश में शांति और समृद्धि लेकर आएगा।
चैत्र नवरात्रि पर कलश स्थापना मुहूर्त-
कलश स्थापना नवरात्रि की पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इस दौरान विशेष मुहूर्त में कलश स्थापना करने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।
पहला मुहूर्त- 30 मार्च सुबह छह बजकर 13 मिनट से 10 बजकर 22 मिनट तक।
दूसरा मुहूर्त (अभिजीत मुहूर्त)- दोपहर 12 बजकर एक मिनट से 12 बजकर 50 मिनट तक।
इन मुहूर्तों में कलश स्थापना करना विशेष फलदायक होता है। आप इन समयों में अपने घर या पूजा स्थल पर कलश स्थापित कर सकते हैं।
चैत्र नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि-
इस चैत्र नवरात्र में महाअष्टमी तिथि 5 अप्रैल और महानवमी 6 अप्रैल को पड़ेगी। नवरात्रि में ये दो दिन बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इस दिन माता के प्रिय भोग नारियल, चना पूड़ी का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं। फिर 9 कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराया जाता है।
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शनिवार को इस विधि से करें हनुमानजी की पूजा

  • दूर हो जाएंगी सभी परेशानियां
हिंदू धर्म में राम भक्त हनुमान जी की पूजा का बहुत महत्व है. मंगलवार और शनिवार के दिन महाबली हनुमान को समर्पित हैं. शनिवार को हनुमान जी के साथ-साथ शनि देव की भी पूजा होती है. मान्यता है कि शनिवार को हनुमान जी की पूजा से सभी कष्ट मिट जाते हैं और जीवन में सुख शांति बढ़ती है. आइए जानते हैं शनिवार के दिन बजरंगबली की पूजा कैसे करनी चाहिए|
हनुमानाष्टक का पाठ-
शनिवार के दिन सुबह या शाम के समय स्नान के बाद हनुमान जी के मंदिर में जाकर सबसे पहले उन्हें लाल चोला अर्पित करें. इसके बाद हनुमान जी को लड्‌डू का भोग लगाएं. विधि-विधान से हनुमान जी की पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और उन पर प्रभु श्री राम की कृपा बरसती है. हनुमान जी की पूजा के बाद हनुमानाष्टक का पाठ जरूर करें|
हनुमानाष्टक
बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥॥
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
सो तुम दास के सोक निवारो ॥॥
अंगद के संग लेन गए सिय,
खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो।
हेरी थके तट सिन्धु सबे तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥ ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
राक्षसी सों कही सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
जाए महा रजनीचर मरो।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥॥
बान लाग्यो उर लछिमन के तब,
प्राण तजे सूत रावन मारो।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दिए तब,
लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥॥
रावन जुध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
मोह भयो यह संकट भारो ।
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥ ॥
बंधू समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो।
देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो।
जाये सहाए भयो तब ही,
अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥॥
काज किये बड़ देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
जो तुमसे नहिं जात है टारो।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होए हमारो ॥॥
दोहा
लाल देह लाली लसे,
अरु धरि लाल लंगूर।
वज्र देह दानव दलन,
जय जय जय कपि सूर ॥
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अमावस्या के इन उपायों से दूर होंगे पितृदोष, मिलेगा सुख-समृद्धि का आशीर्वाद

सनातन धर्म में पूर्णिमा और अमावस्या तिथि को बेहद ही खास बताया गया है जो कि हर माह में एक बार पड़ती हैं पंचांग के अनुसार अभी चैत्र का महीना चल रहा है और इस माह पड़ने वाली अमावस्या को चैत्र अमावस्या के नाम से जाना जा रहा हैं जो कि पूर्वजों को समर्पित है।
इस दिन पितरों का श्राद्ध तर्पण और पिंडदान करना उत्तम माना जाता है मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न होकर कृपा करते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों को जल, तिल और अन्न अर्पित करते हैं। चैत्र अमावस्या के दिन दान पुण्य करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है।
यही कारण है कि लोग अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों और जरूरतमंदों को इस दिन दान देते हैं। अमावस्या तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान करके पितरों का तर्पण करना भी उत्तम माना जाता है मान्यता है कि ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न हो जाते हैं
इस बार चैत्र अमावस्या 29 मार्च को पड़ रही है इस दिन कुछ उपायों को करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और जातक को सुख समृद्धि प्राप्त होती है तो आज हम आपको उन्हीं उपायों के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
अमावस्या पर करें यह उपाय-
चैत्र अमावस्या पर सुबह किसी पवित्र नदी, सरोवर या घर में स्नान करके पितरों का तर्पण करें। अगर संभव हो तो इस दिन गंगा स्नान जरूर करें। ऐसा करने से पुण्य फलों में वृद्धि होती है।
इसके अलावा अमावस्या तिथि पर पितरों के नाम से हवन और श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराएं और वस्त्र, धन का दान जरूर करें ऐसा करने से पूर्वजों की कृपा बरसती है और आर्थिक लाभ मिलता है।\
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शुक्रवार को करें ये उपाय, आर्थिक संकट से मिलेगी मुक्ति

सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित है वही शुक्रवार का दिन लक्ष्मी पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है इस दिन भक्त माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा करते हैं और उपवास आदि भी रखते हैं|
मान्यता है कि ऐसा करने से माता रानी कृपा करती हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर शुक्रवार की पूजा में लक्ष्मी जी की आरती गाई जाए तो माता प्रसन्न होकर कृपा करती है और आर्थिक संकट दूर कर देती हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं मां लक्ष्मी जी की आरती।
महालक्ष्मी जी की आरती-
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता। मैया तुम ही जग-माता।।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता। मैया सुख सम्पत्ति दाता॥
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता। मैया तुम ही शुभदाता॥
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता। मैया सब सद्गुण आता॥
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता। मैया वस्त्र न कोई पाता॥
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता। मैया क्षीरोदधि-जाता॥
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता। मैया जो कोई जन गाता॥
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥ ओम जय लक्ष्मी माता॥
ऊं जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता। तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता। ऊं जय लक्ष्मी माता।।
दोहा
महालक्ष्मी नमस्तुभ्यम्, नमस्तुभ्यम् सुरेश्वरि। हरिप्रिये नमस्तुभ्यम्, नमस्तुभ्यम् दयानिधे।।
पद्मालये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं च सर्वदे। सर्व भूत हितार्थाय, वसु सृष्टिं सदा कुरुं।।
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पंडित प्रदीप मिश्रा आज से कुनकुरी में सुनाएंगे महाशिवपुराण कथा

रायपुर। पंडित प्रदीप मिश्रा आज से कुनकुरी में महाशिवपुराण कथा सुनाएंगे। मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने X में बताया, रायपुर के स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट पर प्रसिद्ध शिवपुराण कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा जी का स्वागत कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
रायपुर से कुनकुरी यात्रा के दौरान मयाली स्थित विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग मधेश्वर महादेव की हवाई परिक्रमा कर हेलीकॉप्टर से उनके साथ पुष्प अर्पित किया। यहां आज यानि 21 मार्च से महाशिवपुराण कथा का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें गुरुजी के मुखारविंद से लाखों श्रद्धालु कथा का श्रवण करेंगे।
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चैत्र मास का पहला प्रदोष व्रत, जानिए...तिथि और पूजा विधि

यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना के लिए समर्पित होता है। इस दिन विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता का आशीर्वाद मिलता है। प्रदोष व्रत एक माह में दो बार रखा जाता है, जिसमें दिनभर उपवास रखा जाता है और भगवान शिव के साथ उनके पूरे परिवार की आराधना की जाती है। पूजन विधान पूरा करने के बाद व्रत का समापन किया जाता है। आइए जानते हैं मार्च माह में दूसरा तथा चैत्र मास का पहला प्रदोष व्रत किस दिन पड़ेगा।
प्रदोष व्रत की तिथि और समय-
दृक पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 26 मार्च को रात 1:42 बजे शुरू होकर 27 मार्च को रात 11:03 बजे समाप्त होगी। चूंकि प्रदोष व्रत में प्रदोष काल का विशेष महत्व होता है, इसलिए इस बार यह व्रत 27 मार्च को रखा जाएगा।
प्रदोष व्रत के शुभ उपाय-
यदि आप भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस दिन लाल रंग के वस्त्र धारण करें और गुड़ तथा अन्न का दान करें। ऐसा करने से जीवन में सकारात्मक परिणाम मिलने की मान्यता है और भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
प्रदोष व्रत के नियम-
प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल को स्वच्छ कर भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें।
शिव परिवार की विधिपूर्वक पूजा करें और बेलपत्र, फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें।
प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें, फिर भगवान शिव की आरती और शिव चालीसा का पाठ करें।
अंत में पूजा संपन्न करने के बाद ही उपवास समाप्त करें।
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चैत्र माह में करें तुलसी के ये अचूक उपाय, होंगे अद्भुत लाभ

चैत्र माह हिंदू पंचांग का पहला महीना होता है, जो विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस महीने में विशेष रूप से तुलसी की पूजा और उपाय किए जाते हैं, क्योंकि तुलसी को देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का अति प्रिय माना जाता है। यदि आप चैत्र माह में तुलसी के कुछ खास उपाय करते हैं, तो आपको जीवन में अद्भुत लाभ मिल सकते हैं। आइए जानें उन अचूक उपायों के बारे में जो चैत्र माह में किए जा सकते हैं।
1. तुलसी का जल चढ़ाना
चैत्र माह में हर दिन तुलसी के पौधे को जल अर्पित करना बेहद फायदेमंद होता है। यह उपाय न केवल आपकी आध्यात्मिक उन्नति के लिए लाभकारी है, बल्कि इससे घर में शांति और समृद्धि भी बनी रहती है। रोज़ सुबह-सुबह तुलसी को जल चढ़ाने से आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
2. तुलसी के पत्तों का सेवन
चैत्र माह में तुलसी के पत्तों का सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है। आप इन पत्तों को ताजे या सूखे रूप में चाय में डालकर या सीधे चबा सकते हैं। तुलसी के पत्तों का सेवन इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचाता है।
3. तुलसी की माला से जाप
चैत्र माह में तुलसी की माला से मंत्र जाप करना बहुत प्रभावशाली माना जाता है। यदि आप ॐ नमो भगवते वासुदेवाय या हरे कृष्ण हरे कृष्ण जैसे मंत्रों का जाप करते हैं, तो यह मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति का कारण बनता है। तुलसी की माला से जाप करने से जीवन में धन, सुख और समृद्धि आती है।
4. तुलसी के पौधे की देखभाल
चैत्र माह में तुलसी के पौधे की विशेष देखभाल करनी चाहिए। यदि आपके घर में तुलसी का पौधा है, तो उसे रोज़ अच्छे से पानी दें और धूप में रखें। तुलसी की पौधों को अच्छे से सजाकर, उन्हें साफ रखना घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इसके साथ-साथ घर की सुख-शांति और समृद्धि भी बढ़ती है।
5. तुलसी के पौधे के नीचे दीपक लगाना
रोज़ रात को तुलसी के पौधे के नीचे दीपक लगाना एक बहुत अच्छा उपाय है। इसे करने से घर में नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और घर में प्रेम, शांति और समृद्धि का वास होता है। दीपक में घी का इस्तेमाल करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
6. तुलसी की पूजा
चैत्र माह के दौरान तुलसी की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है। विशेष रूप से रविवार को तुलसी की पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे के पास दीपक लगाकर, उसे ताजे जल और अगरबत्ती से शुद्ध करें और भगवान विष्णु के मंत्रों का उच्चारण करें। इससे आपके जीवन में सुख-शांति का वास होगा।
निष्कर्ष
तुलसी के इन उपायों को अपनाकर आप न केवल अपने आध्यात्मिक जीवन को सशक्त बना सकते हैं, बल्कि आपके स्वास्थ्य, परिवार और धन के मामले में भी ये उपाय प्रभावी होंगे। चैत्र माह में तुलसी के इन अचूक उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में शुभ परिवर्तन देख सकते हैं।
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शीतला अष्टमी 22 मार्च को, जानिए...शुभ मुर्हूत एवं महत्व

सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन शीतला अष्टमी को बेहद ही खास माना जाता है जो कि माता शीतला की पूजा अर्चना को समर्पित होती है। पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर शीतला अष्टमी का व्रत पूजन किया जाता है।इस दिन भक्त माता शीतला की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता शीतला की पूजा करने से आरोग्य का वरदान मिलता है और मानसिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि इस साल शीतला अष्टमी का व्रत पूजन कब किया जाएगा, तो आइए जानते हैं।
शीतला अष्टमी की दिन तारीख-
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि 21 मार्च को सुबह 2 बजकर 45 मिनट से आरंभ होगी और 22 मार्च को सुबह 4 बजकर 30 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। वहीं शुभ मुहूर्त की बात करें तो 21 मार्च को सुबह 6 बजकर 24 मिनट से शाम 6 बजकर 33 मिनट तक हैं। 22 मार्च को प्रात: 4 बजकर 30 मिनट से प्रात: 5 बजकर 23 मिनट का समय शुभ रहेगा।
शीतला अष्टमी का महत्व-
आपको बता दें कि माता शीतला को महामारी की देवी माना गया है। इनकी पूजा करने से बीामरियों और संक्रामक रोगों से रक्षा होती है साथ ही सुख समृद्धि आती है। इस दिन ठंडे व्यंजन बनाए जाते हैं और बासी भोजन का माता को भोग चढ़ता है। जिसे बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। शीतला अष्टमी के दिन उपवास रखकर माता शीतला की कथा सुनने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और घर परिवार में सुख समृद्धि आती है।
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