धर्म समाज

शुभ मुहूर्त में करें मोहिनी एकादशी की पूजा, भगवान विष्णु बरसाएंगे कृपा

हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी का व्रत किया जाता है। इस साल यह तिथि 8 मई को पड़ रही है। इसी दिन मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। बता दें कि हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। प्रत्येक महीने में दो एकादशी पड़ती है एक कृष्ण और दूसरा शुक्ल पक्ष में। हर एकादशी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। मोहिनी एकादशी के दिन व्रत कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में खूब तरक्की मिलती है। इतना ही नहीं मोहिनी एकादशी का व्रत करने से जातक को सभी मोह बंधनों से भी मुक्ति मिलती है। तो चलिए अब जानते हैं कि मोहिनी एकादशी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।
मोहिनी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का आरंभ 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर होगा। एकादशी तिथि समाप्त 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा। जातक इस मुहूर्त में मोहिनी एकादशी की पूजा कर सकते हैं।
मोहिनी एकादशी 2025 पारण का समय-
एकादशी के व्रत में पारण का विशेष महत्व है। एकादशी का पारण द्वादशी तिथि में सूर्योदय के बाद ही किया जाता है। मोहिनी एकादशी का पारण 9 मई को किया जाएगा। पारण के लिए शुभ समय सुबह 6 बजकर से सुबह 8 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। वहीं मोहिनी एकादशी के दिन द्वादशी तिथि समाप्त दोपहर 2 बजकर 56 मिनट पर होगा।
मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के इन मंत्रों का करें जाप
विष्णु मूल मंत्र-
ॐ नमोः नारायणाय॥
विष्णु भगवते वासुदेवाय मंत्र-
ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥
विष्णु गायत्री मंत्र-
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
मङ्गलम् भगवान विष्णु मंत्र-
मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुडध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
विष्णु शान्ताकारम् मंत्र-
शान्ताकारम् भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनम् योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुम् भवभयहरम् सर्वलोकैकनाथम्॥
और भी

बुद्ध पूर्णिमा 12 मई को, खरीदें ये चीजें

  • घर में बनी रहेगी समृद्धि और खुशहाली
बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे पूरे भारत में बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हर साल वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि को बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है। इस साल बुद्ध पूर्णिमा का पर्व 12 मई को है। इस दिन महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था। माना जाता है कि इस दिन महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इस दिन वैशाख पूर्णिमा और बुद्ध पूर्णिमा होने की वजह से कुछ चीजों की खरीदारी करना बहुत शुभ होता है। तो आइए जानते हैं कि इस दिन कौन सी चीजों की खरीदारी करनी चाहिए।
बुद्ध पूर्णिमा पर करें इन चीजों की खरीदारी-
पीतल का हाथी-
बुद्ध पूर्णिमा के दिन पीतल का हाथी खरीदना चाहिए। इसे खरीदने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और आर्थिक स्थिति ठीक होती है। साथ ही जीवन में आने वाली हर परेशानी से छुटकारा मिलता है।
कौड़ी-
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता लक्ष्मी को कौड़ियां बहुत प्रिय हैं। ऐसे में वैशाख पूर्णिमा के दिन घर में कौड़ी लेकर आने से माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती।
महात्मा बुद्ध की मूर्ति-
बुद्ध पूर्णिमा के दिन महात्मा बुद्ध की मूर्ति खरीद कर घर लाना बहुत शुभ होता है। इस खास दिन पर बुद्ध की मूर्ति घर लाने से खुशहाली बनी रहती है।
चांदी का सिक्का-
दीपावली की तरह ही बुद्ध पूर्णिमा के दिन चांदी के सिक्के को घर लाना बहुत अच्छा होता है। इसे माता लक्ष्मी की पूजा में उपयोग किया जाता है। इस दिन चांदी का सिक्का खरीदने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बनी रहती है और हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
और भी

हनुमानजी को प्रसन्न करने मंगलवार को जलाएं दीपक

  • जानिए...इसके लाभ
हिंदू धर्म में भगवान हनुमान को कलयुग का देवता माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज भी भगवान हनुमान इस पृथ्वी पर वास करते हैं। हनुमानजी की पूजा और विशेष कृपा पाने के लिए मंगलवार दिन समर्पित होता है। हनुमान जी को संकटमोचन भी कहा जाता है यानी संकट के समय अगर हनुमान का नाम लिया जाय तो फौरन ही सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। हनुमान की पूजा के लिए मंगलवार के साथ-साथ शनिवार के दिन भी पूजा का विशेष महत्व होता है। मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग पदार्थों के तेल का दीपक जलाने का महत्व होता है। आइए जानते हैं मंगलवार और शनिवार के दिन किन तेलों के दीपक जलाने से कौन-कौन से लाभ मिलते हैं।
चमेली के तेल का दीपक-
हनुमान जी को चमेली का तेल बहुत ही प्रिय होता है। मंगलवार के दिन अपने घर के पास स्थित मंदिर में हनुमानजी के दर्शन करने के बाद उन्हे चमेली का तेल अर्पित करें। मंगलवार को चमेली का तेल अर्पित करने में व्यक्ति को मानसिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है और रोग दूर होते हैं। इसके अलावा जिन लोगों को अनचाहा डर बना रहता है उनके लिए इस उपाय यह दूर हो जाता है।
शनि दोष से मुक्ति के लिए तिल का दीपक-
जिन जातकों के ऊपर शनिदोष, साढ़ेसाती और ढैय्या का अशुभ प्रभाव बना रहता है। मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा के सामने तिल का दीपक जलाएं। इससे शनि संबंधी दोष फौरन ही दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए सरसों के तेल का दीपक:
मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी प्रतिमा के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाने से शत्रुओं का भय नहीं होता है और आर्थिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है। इससे व्यक्ति का के आत्मविश्वास में वृद्दि होती है।
सुख-समृद्धि के लिए घी का दीपक-
मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमानजी की प्रसन्न करने के लिए, जीवन में सुख-समृद्धि और संपन्नता के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना और घी का दीपक जलाना बहुत ही अच्छा होता है।
नारियल के तेल का दीपक जलाने से इच्छा की पूर्ति-
हनुमानजी जल्द से जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। जो भी व्यक्ति इनकी मन से पूजा-आराधना करता है उनकी हर तरह की इच्छा को जरूर पूरा करते हैं। हनुमान की पूजा में मंगलवार और शनिवार के दिन नारियल के तेल का दीपक जलाने से हर तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
और भी

मोहिनी एकादशी के दिन कैसे करें व्रत और पूजा?, जानिए...आसान विधि

सनातन धर्म में एकादशी के व्रत को बेहद शुभ फलदायक माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा भक्त करते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत करने से पुण्य फलों की प्राप्ति व्यक्ति को होती है। हर साल में 24 एकादशी तिथियां आती हैं और हर एकादशी का नाम अलग होता है। इसी तरह वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया था। 2025 में 8 मई को मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन आपको कैसे व्रत और पूजन करना चाहिए, आइए जानते हैं।
मोहिनी एकादशी व्रत और पूजन विधि
हर हिंदू व्रत की तरह मोहिनी एकादशी के दिन भी आपको सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए। इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित आपको करनी चाहिए। इसके बाद गंगाजल से विष्णु भगवान की प्रतिमा को स्नान कराना चाहिए। इसके उपरांत पुष्प, मिठाई, पीले वस्त्र, तुलसी आदि आपको भगवान विष्णु को अर्पित करनी चाहिए।
पूजा सामग्री और भोग
घूप, दीप, नैवद्य, चंदन, घंटी, कलावा, शंख, पीला वस्त्र, एक चौकी, रुई, घी, गंगाजल, पुष्प, शंख आदि आपको मोहिनी एकादशी के व्रत में शामिल करने चाहिए। इन चीजों का इंतजाम एक दिन पहले ही कर दें तो ज्यादा बेहतर रहेगा। मोहिनी एकादशी के व्रत में आपको पंचामृत, फल और मिठाई का भोग विष्णु भगवान को लगाना चाहिए। इसके साथ ही भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करना भी शुभ फलदायक माना जाता है। इसके साथ ही मोहिनी एकादशी के व्रत में व्रत कथा का पाठ भी जरूर करना चाहिए।
व्रत और पूजन में जरूर करें ये काम
हर हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के बाद आरती करना बेहद आवश्यक होता है, इसलिए मोहिनी एकादशी के दिन भी आपको पूजा के बाद आरती करनी चाहिए।
भगवान विष्णु के साथ ही इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा अथवा आरती आपको अवश्य करनी चाहिए।
मोहिनी एकादशी के व्रत में आपको दिन के समय सोने से बचना चाहिए, दिन में प्रभु का ध्यान और धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करें।
व्रत का पारण एकादशी तिथि की रात्रि में न करें बल्कि द्वादशी तिथि की सुबह करें। मोहिनी एकादशी के व्रत का पारण आपको 9 मई को करना चाहिए।
इस दिन गलत विचारों को खुद पर हावी न होने दें और वासना युक्त विचारों से भी बचें।
और भी

अमरनाथ यात्रा की तैयारी पूरी, बाबा बर्फानी की पहली तस्वीर वायरल

Amarnath Yatra : अमरनाथ की गुफा से बाबा बर्फानी की इस साल की पहली तस्वीर सामने आई है। यह तस्वीर अमरनाथ यात्रा शुरू होने से पहले जारी की गई है। इस बार बर्फ से बने शिवलिंग की ऊंचाई करीब 7 फीट है। शिवलिंग में बाबा बर्फानी का दिव्य रूप बहुत ही सुंदर दिख रहा है।
कब शुरू हो रही है अमरनाथ यात्रा?
इस साल अमरनाथ यात्रा 3 जुलाई से शुरू होगी और करीब 38 दिन चलेगी। यात्रा रक्षाबंधन के दिन समाप्त होगी। भक्त यात्रा शुरू होने से पहले ही बाबा के दर्शन इस तस्वीर के जरिए कर सकते हैं।
अमरनाथ गुफा का धार्मिक महत्व
अमरनाथ की गुफा में हर साल बर्फ से प्राकृतिक रूप से शिवलिंग बनता है, जिसे हिमानी शिवलिंग कहा जाता है। यहाँ सूर्य की रोशनी बहुत कम पहुँचती है, इसलिए गुफा की छत से टपकने वाला पानी धीरे-धीरे जम जाता है और इससे शिवलिंग बनता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने यहीं पर माता पार्वती को अमरता का रहस्य यानी अमरत्व का मंत्र सुनाया था। भगवान शिव ने इस गुफा में तपस्या भी की थी।
अमरपक्षी की रहस्यमयी कथा
जब भगवान शिव अमर कथा सुना रहे थे, उस समय एक तोता और कबूतरों का जोड़ा भी वहाँ मौजूद था। कथा सुनने के कारण तोता शुकदेव के रूप में अमर हो गया। माना जाता है कि आज भी कई भक्तों को गुफा में कबूतरों का जोड़ा दिखता है, जिन्हें अमरपक्षी कहा जाता है।
कैसे करें अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन?
यात्रा पर जाने के लिए रजिस्ट्रेशन जरूरी है।
रजिस्ट्रेशन के समय मेडिकल सर्टिफिकेट भी जमा करना पड़ता है।
श्रद्धालु को अपने साथ ये दस्तावेज रखने होते हैं।
आधार कार्ड, यात्रा आवेदन पत्र, पासपोर्ट साइज फोटो, आरएफआईडी कार्ड
ध्यान दें- यात्रा पर केवल 70 साल से कम उम्र के लोग ही जा सकते हैं।
अमरनाथ यात्रा के दो रास्ते
1. पहलगाम रूट
यह रास्ता थोड़ा लंबा लेकिन आसान है।
करीब 16 किलोमीटर चलना होता है और 3 दिन में गुफा तक पहुँचा जा सकता है।
2. बालटाल रूट
यह रास्ता छोटा लेकिन कठिन चढ़ाई वाला है।
इसमें 14 किलोमीटर की सीधी चढ़ाई होती है, लेकिन कम समय में गुफा पहुँचा जा सकता है।
श्रद्धालुओं की सुविधा के इंतजाम
इस बार पिछले साल से ज्यादा श्रद्धालु आने की उम्मीद है। सरकार और प्रशासन की तरफ से रास्ते में ठहरने और आराम करने की व्यवस्था की जा रही है ताकि सभी श्रद्धालुओं को सुविधा मिल सके।
LG मनोज सिन्हा ने की समीक्षा
जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने सोमवार (5 मई) को ही श्रीनगर के पंथा चौक में अमरनाथ यात्रा ट्रांजिट कैंप पर जाकर यात्रा के लिए होने वाली तैयारियों की समीक्षा की। पहलगाम हमले के बाद भी अमरनाथ यात्रा के लिए भक्तों के उत्साह में कोई भी फर्क नहीं आया है. अभी तक मिली जानकारी के अनुसार 3 लाख 60 हजार से ज्यादा लोग अभ तक यात्रा के लिए पंजीकरण करा चुके है।
और भी

प्रदोष व्रत पर देवी पार्वती को अर्पित करें ये चीजें, दूर होगी पैसों की तंगी

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है. प्रदोष व्रत वैसे तो भगवान भोलेनाथ को समर्पित है, लेकिन इस दिन भगवान भोलेनाथ और मां पार्वती की पूजा करने का विधान है. यह व्रत हर मास शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है|
हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 9 मई 2025 को दोपहर 2:56 बजे से शुरू होगी. तिथि अगले दिन यानी 10 मई को शाम 5:29 बजे समाप्त होगी. ऐसे में वैशाख मास का दूसरा प्रदोष व्रत 9 मई को रखा जाएगा. मान्यता है कि प्रदोष व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसके अलावा जो महिलाएं इस दिन मां पार्वती को कुछ विशेष सामग्री अर्पित करती हैं, उन्हें सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं प्रदोष व्रत पर देवी पार्वती को क्या चढ़ाना चाहिए|
प्रदोष व्रत पर देवी पार्वती को चढ़ाएं ये चीजें-
अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है| धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन महिलाओं को भगवान भोलेनाथ के साथ मां पार्वती की भी पूजा करनी चाहिए. पूजा में श्रृंगार में चुनरी, बिंदी, लाल रंग के कपड़े आदि पहनने चाहिए. ऐसा करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है|
घर में सुख समृद्धि आती है-
प्रदोष व्रत के दिन मां पार्वती को रोली चंदन, मौली और चंदन का तिलक लगाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है|
मनोकामना पूरी होती हैं-
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती को फल और मिठाई अवश्य अर्पित करनी चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं|
और भी

मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को अर्पित करें ये चीजें, पूरी होगी हर मनोकामना

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पान कराया था. यह एकादशी अत्यंत शुभ और फलदायी मानी जाती है. इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने का विशेष महत्व है. मान्यता है कि मोहिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाने से भक्तों की किस्मत चमक उठती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है|
मोहिनी एकादशी तिथि- पंचांग के अनुसार, वैशाख माह शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन अगले दिन 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत 8 मई को रखा जाएगा|
मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु लगाएं इन चीजों को भोग
तुलसी दल- तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है. किसी भी भोग में तुलसी दल को शामिल करना अनिवार्य माना जाता है. मान्यता है कि तुलसी के बिना भगवान विष्णु कोई भी भोग स्वीकार नहीं करते. मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं|
पीला रंग- भगवान विष्णु को पीला रंग अत्यंत प्रिय है. इसलिए मोहिनी एकादशी के दिन पीले रंग के फल, जैसे केला, आम या पीले रंग की मिठाई का भोग लगाना शुभ माना जाता है. पीला रंग समृद्धि और शुभता का प्रतीक है, और इसे अर्पित करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं|
माखन और मिश्री- भगवान विष्णु को माखन और मिश्री का भोग अत्यंत प्रिय है. बाल गोपाल के रूप में उनकी आराधना में इसका विशेष महत्व है. मोहिनी एकादशी के दिन माखन और मिश्री का भोग लगाने से जीवन में मधुरता आती है और रिश्तों में प्रेम बढ़ता है|
खीर- चावल, दूध और चीनी से बनी खीर भगवान विष्णु को प्रिय भोगों में से एक है. मोहिनी एकादशी के दिन खीर का भोग लगाने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और पारिवारिक संबंध मजबूत होते हैं|
फल- भगवान विष्णु को ऋतु फल अर्पित करना भी शुभ माना जाता है. आप अपनी श्रद्धा और उपलब्धता के अनुसार कोई भी मौसमी फल जैसे आम, केला, तरबूज या खरबूजा भोग में शामिल कर सकते हैं. फल अर्पित करने से जीवन में सकारात्मकता और ताजगी आती है|
पंजीरी- धनिया और मेवों से बनी पंजीरी भी भगवान विष्णु को भोग के रूप में अर्पित की जाती है. यह विशेष रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है. पंजीरी का भोग लगाने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है.
मोहिनी एकादशी पर भोग लगाने का महत्व-
मोहिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाने से न केवल उनकी कृपा प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं. यह दिन आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण है. मान्यता के अनुसार, सच्चे मन से भगवान विष्णु की आराधना और उन्हें प्रिय भोग अर्पित उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सौभाग्य, आरोग्य और धन-वैभव की प्राप्ति होती है|
और भी

आज सीता नवमी, जानिए...व्रत कथा-पूजा विधि और स्तुति

आज 5 मई 2025 को देशभर में सीता नवमी का पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। मान्यताओं के अनुसार इसी तीर्थ पर माता सीता का अवतरण हुआ था। ऐसे में सीता नवमी पर सच्चे मन से माता सीता की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। इस अवसर पर व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा करने से सुख-समृद्धि, दांपत्य सुख और संतान सुख की प्राप्ति होती है। सीता नवमी को जानकी नवमी भी कहा जाता है। आइए जानते हैं सीता नवमी पर माता जानकी की पूजा करने की सही विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा…
सीता नवमी का महत्व
सीता नवमी स्त्री शक्ति, शुद्धता, सहनशीलता और तपस्या का प्रतीक पर्व है। यह दिन नारी गरिमा को सम्मान देने का दिन है। माता सीता के आदर्शों को जीवन में उतारने से पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
शुभ मुहूर्त-
नवमी तिथि प्रारंभ: 5 मई, सुबह 7:35 बजे
नवमी तिथि समाप्त: 6 मई, सुबह 8:38 बजे
पूजन का सर्वोत्तम समय (मध्याह्न काल): 11:00 AM से 1:30 PM तक
सीता नवमी व्रत और पूजा विधि-
1. स्नान और संकल्प: प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
2. प्रतिमा स्थापना: भगवान राम और माता सीता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. विधिवत पूजन: जल, अक्षत, चंदन, फूल, नैवेद्य, दीप और धूप से पूजा करें।
4. सीता स्तुति का पाठ: पूजन के दौरान “सीता अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र” या “सीता स्तुति” अवश्य पढ़ें।
5. आरती करें: “जय सीता राम” की आरती गाएं।
6. प्रसाद वितरण: पूजा के पश्चात फल, मिश्री या पंजीरी का प्रसाद वितरित करें।
7. व्रत का पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें।
सीता नवमी व्रत कथा-
पुराणों के अनुसार, जब मिथिला में सूखा पड़ा, तब राजा जनक ने हल चलाकर यज्ञ भूमि तैयार की। उसी दौरान भूमि से एक कन्या प्राप्त हुई, जिसे सीता नाम दिया गया। माता सीता को धरती की पुत्री भी कहा जाता है। उनका विवाह भगवान श्रीराम से हुआ, और वे आदर्श पत्नी, पुत्री, बहू तथा नारी मर्यादा की प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं।
सीता स्तुति-
“सीते त्वं धर्मपत्नी च धर्मचारी सदा स्मृता।
धैर्यशीलां महाभाग्ये नमस्ते जनकात्मजे॥”
इस स्तुति का पाठ करने से जीवन में धैर्य, समर्पण और संयम की ऊर्जा प्राप्त होती है।
और भी

आज सीता नवमी के दिन अपनी राशि के अनुसार करें ये उपाय

  • दांपत्य जीवन में आएगी मधुरता
सनातन धर्म में सीता नवमी का विशेष महत्व है। यह पर्व देवी सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसे जानकी नवमी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन माता सीता का जन्म हुआ था, जो स्वयं भूमि पुत्री और भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी थीं। 2025 में सीता नवमी का पर्व आज 5 मई को मनाया जा रहा है। इस दिन यदि व्यक्ति अपनी राशि के अनुसार उपाय करे, तो जीवन में सुख, शांति, वैवाहिक आनंद और समृद्धि प्राप्त होती है।
मेष राशि
मेष राशि के जातकों को सीता नवमी के दिन लाल चंदन की माला से श्री सीता-रामाय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए। साथ ही, सुहागिन स्त्री को लाल वस्त्र और सिंदूर का दान करें। इससे वैवाहिक जीवन में शांति और सौहार्द बढ़ेगा।
वृषभ राशि
वृषभ राशि के लोग भौतिक सुखों को महत्व देते हैं। इस दिन मां सीता को शहद और दूध से बनी मिठाई अर्पित करें। यह उपाय पारिवारिक कलह को शांत कर आर्थिक स्थिरता प्रदान करेगा।
मिथुन राशि
इस दिन मां जानकी को हरे वस्त्र चढ़ाएं और हरे रंग की 5 चूड़ियां किसी कन्या को दान करें। सीता रामचरितमानस के सुंदरकांड का पाठ करना अत्यंत शुभ रहेगा।
कर्क राशि
सीता नवमी के दिन माता सीता को चावल और दूध से बनी खीर का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद परिवार के साथ यह प्रसाद ग्रहण करें। इस उपाय से घर में समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
सिंह राशि
इस दिन सुनहरे या केसरिया वस्त्र धारण करें और मां सीता को हल्दी व सिंदूर अर्पित करें। किसी गरीब कन्या को वस्त्र दान करें। इससे समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा और विवाह में आ रही अड़चनें दूर होंगी।
कन्या राशि
सीता नवमी पर उन्हें देवी सीता को हरे मूंग की दाल और मिश्री का भोग लगाना चाहिए। इससे मानसिक शांति मिलेगी और रिश्तों में मधुरता आएगी।
तुला राशि
तुला राशि के जातक सौंदर्य और संतुलन को महत्व देते हैं। इस दिन मां सीता को गुलाब के फूल अर्पित करें और गुलाबी रंग के वस्त्र पहनें। 7 कन्याओं को खीर और पूड़ी का भोजन कराएं। यह उपाय वैवाहिक जीवन में प्रेम बढ़ाएगा और शुभता लाएगा।
वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि के जातक तीव्र भावना और क्रोध के कारण परेशान रहते हैं। उन्हें सीता नवमी पर मां जानकी को लाल पुष्पों के साथ सीता राम स्तुति अर्पित करनी चाहिए। किसी वृद्ध महिला को लाल साड़ी और भोजन दान करें। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी।
धनु राशि
धनु राशि के जातकों को सीता नवमी के दिन मां सीता को पीले वस्त्र और केला अर्पित करें। यह उपाय भाग्य को प्रबल करेगा और जीवन में नए अवसर देगा।
मकर राशि
मकर राशि के जातक मेहनती होते हैं। इस दिन माता सीता को तिल से बने लड्डू अर्पित करें और बुजुर्ग महिलाओं का आशीर्वाद लें। सीता-राम विवाह कथा का श्रवण या पाठ करें। इससे कार्यों में सफलता और जीवन में स्थायित्व प्राप्त होगा।
कुंभ राशि
इस दिन मां सीता को नीले फूल चढ़ाएं और किसी जरूरतमंद महिला को चप्पल और वस्त्र दान करें।
मीन राशि
मीन राशि वाले आध्यात्मिक और भावुक होते हैं। उन्हें सीता नवमी के दिन देवी सीता को पीले पुष्प अर्पित करने चाहिए और 5 कुंवारी कन्याओं को भोजन कराना चाहिए। यह उपाय विवाह में आ रही बाधाएं दूर करेगा और जीवन में आनंद लाएगा।
और भी

केदारनाथ में पहले दिन 30 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने किए दर्शन

केदारनाथ। श्री केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई को विधि-विधान के साथ श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। कपाट खुलने के बाद पहले ही दिन (शुक्रवार को) दर्शनों को लेकर श्रद्धालुओं का भारी उत्साह देखने को मिला। पहले दिन रिकॉर्ड 30,154 तीर्थ यात्रियों ने बाबा केदार के दर्शन किए।
जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी से प्राप्त जानकारी के अनुसार शाम 7 बजे तक 19,196 पुरुष, 10,597 महिलाएं और 361 बच्चों सहित कुल 30,154 श्रद्धालुओं ने दर्शन किए।
कपाट खुलने के साथ ही केदारनाथ धाम में भक्तों का तांता लग गया। 'हर हर महादेव' के जयकारों से वातावरण गुंजायमान हो उठा। जिला प्रशासन, पुलिस विभाग, मंदिर समिति, तीर्थ पुरोहित समाज, स्थानीय व्यापारियों और स्वयंसेवी संगठनों ने मिलकर यात्रा को सुचारू और सुरक्षित बनाने के लिए चाक-चौबंद इंतजाम किए हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए सभी जरूरी प्रबंध किए गए हैं।
केदारनाथ धाम, चारधाम यात्रा का अहम हिस्सा है। हर वर्ष यहां भारी संख्या में श्रद्धालु आकर बाबा केदार के दर्शन करते हैं। इस वर्ष यात्रा के पहले ही दिन श्रद्धालुओं में जो उत्साह देखने को मिला है, उससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले दिनों में श्रद्धालुओं की संख्या में भारी वृद्धि देखने को मिल सकती है।
बता दें कि शुक्रवार को केदारनाथ धाम के कपाट विधि-विधान और पूजा-अर्चना के साथ भक्तों के लिए खोल दिए गए। श्रद्धालु अब अगले छह महीनों तक बाबा केदार के दर्शन कर पाएंगे। शुक्रवार सुबह 7 बजे शुभ मुहूर्त में विश्व प्रसिद्ध श्री केदारनाथ धाम के कपाट विधि-विधान और मंत्रोच्चार के साथ खोले गए। मंदिर के कपाट खुलते ही हेलीकॉप्टर से श्रद्धालुओं पर पुष्प वर्षा की गई। कपाट खुलते समय आर्मी बैंड ने मधुर धुनें बजाईं। इस दौरान केदारनाथ घाटी श्रद्धालुओं के जयकारों से गूंज उठी
इस अवसर पर उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी समेत प्रमुख अधिकारी मौजूद रहे। इसके अलावा, केदारनाथ के रावल भीमाशंकर लिंग, मुख्य पुजारी वागेश लिंग, तीर्थ पुरोहित, बीकेटीसी के पदाधिकारी, स्थानीय समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी मौजूद रहे।
इससे पहले, अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर यमुनोत्री धाम के कपाट खोले गए थे। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ बीते बुधवार को 11 बजकर 55 मिनट पर यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले गए। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु भी मौजूद रहे थे। बता दें कि यमुनोत्री और गंगोत्री के बाद केदारनाथ धाम के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं। अब चार मई को बद्रीनाथ धाम के कपाट भी खुल जाएंगे।
और भी

शिव चालीसा और महाकाल की कृपा से टल सकती है अकाल मृत्यु

काल के भी काल हैं महाकाल”- यह कथन केवल आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से सनातन परंपरा में सिद्ध होता आया सत्य है। भगवान शिव का एक रूप “महाकाल” न केवल मृत्यु के देवता हैं, बल्कि वे स्वयं काल को भी नियंत्रित करने की शक्ति रखते हैं। उनके नाम का स्मरण और विशेष रूप से शिव चालीसा का पाठ व्यक्ति के जीवन में ऐसी अलौकिक सुरक्षा प्रदान करता है, जो असंभव को संभव बना देता है।इस लेख में हम आपको बताएंगे कि कैसे शिव चालीसा के नियमित पाठ और महाकाल की कृपा से अकाल मृत्यु, भय, रोग और बाधाएं भी मार्ग बदल देती हैं, साथ ही जानेंगे इसके पीछे छिपा आध्यात्मिक रहस्य और भक्तों के कुछ सच्चे अनुभव।
कौन हैं महाकाल?
महाकाल भगवान शिव का वह रौद्र रूप है जो उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में पूजित है। इस रूप में वे न केवल मृत्यु के स्वामी हैं, बल्कि मृत्यु को भी नियंत्रित करने वाले देव हैं। मान्यता है कि जब ब्रह्मांड की अंतिम घड़ी आएगी, तब भी केवल महाकाल ही रहेंगे। शिव को 'अनादि' और 'अनंत' कहा गया है, जिनका न आरंभ है, न अंत।महाकाल का स्मरण किसी भी भय को समाप्त कर सकता है — चाहे वह काल का भय हो, रोग का, जीवन के असमर्थ क्षणों का, या मानसिक अशांति का।
शिव चालीसा : महाकाल का स्तुतिगान
शिव चालीसा भगवान शिव की 40 चौपाइयों वाली स्तुति है जो उनकी महिमा, शक्ति, स्वरूप, और लीलाओं का वर्णन करती है। इसका पाठ करने वाला भक्त शिव के सभी रूपों से जुड़ जाता है- शांत, रौद्र, तपस्वी, संहारक और रक्षक।शिव चालीसा के प्रत्येक श्लोक में इतनी ऊर्जा समाहित है कि वह नकारात्मक ऊर्जा, तंत्र बाधा, भूत-प्रेत दोष, रोग और डर जैसे सभी समस्याओं को जड़ से समाप्त करने में सक्षम है।
महाकाल और शिव चालीसा के चमत्कारी अनुभव
हज़ारों भक्तों ने महाकाल और शिव चालीसा के चमत्कारी प्रभावों को अनुभव किया है। आइए जानते हैं कुछ सच्चे अनुभव:
1. काल से टकराकर लौट आया एक्सीडेंट
दिल्ली के एक व्यापारी ने बताया कि वह एक बड़े सड़क हादसे में बाल-बाल बच गया। उनकी कार पूरी तरह चकनाचूर हो गई थी लेकिन उन्हें एक खरोंच तक नहीं आई। वे रोज सुबह शिव चालीसा का पाठ करते थे और महाकालेश्वर की तस्वीर अपने वाहन में रखते थे। डॉक्टरों ने इसे "मिरेकल" कहा, लेकिन उन्होंने इसे महाकाल का प्रताप बताया।
2. कैंसर जैसी बीमारी में मिला चमत्कारी सुधार
एक महिला, जिन्हें तीसरे स्टेज का कैंसर था, उन्होंने मेडिकल ट्रीटमेंट के साथ साथ प्रतिदिन शिव चालीसा का पाठ शुरू किया। तीन महीनों में रिपोर्ट में अद्भुत सुधार दिखा। डॉक्टर हैरान थे। वह मानती हैं कि महाकाल ने उनके जीवन की घड़ी को रोक दिया।
3. आत्मिक डर और नींद की समस्या से मुक्ति
कई युवा शिव चालीसा के नियमित पाठ से मानसिक तनाव, डर, बुरे सपने, अनिद्रा जैसी समस्याओं से उबरे हैं। वे कहते हैं कि रात को सोने से पहले शिव चालीसा पढ़ने से एक अद्भुत शांति और सुरक्षा की भावना महसूस होती है।
कैसे करें शिव चालीसा का प्रभावशाली पाठ?
अगर आप भी शिव चालीसा का वास्तविक और पूर्ण फल पाना चाहते हैं, तो निम्नलिखित विधियों का पालन करें:
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, और भगवान शिव का ध्यान करें।
पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
अपने सामने शिवलिंग, नंदी या महाकालेश्वर का चित्र रखें।
दीपक जलाएं, जल और बेलपत्र अर्पण करें।
शांत मन से और उच्चारण शुद्ध रखकर शिव चालीसा का पाठ करें।
पाठ के बाद 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का 108 बार जाप करें।
अंत में भगवान शिव से आशीर्वाद माँगें और कुछ क्षण ध्यान में बैठें।
शिव चालीसा: क्यों काल भी बदल देता है रास्ता?
यह प्रश्न बड़ा प्रतीकात्मक है लेकिन पूर्णतः आध्यात्मिक और मानसिक दृष्टिकोण से सत्य है। “काल” का अर्थ केवल मृत्यु नहीं है, यह जीवन की वे स्थितियाँ भी हैं जहाँ हम नियंत्रण खो बैठते हैं- जैसे बीमारी, डर, हार, चिंता, अनिश्चितता।शिव चालीसा और महाकाल की आराधना व्यक्ति को इन सभी अवस्थाओं से लड़ने की मानसिक और आत्मिक शक्ति देती है। जब हम भगवान शिव को समर्पित हो जाते हैं, तब काल भी उन्हें चुनौती नहीं देता — क्योंकि महाकाल ही काल के अधिपति हैं।
निष्कर्ष: शिव की शरण में है सुरक्षा
जीवन की अनिश्चितताओं, भय, रोग, चिंता और यहां तक कि मृत्यु के भी पार जाने का मार्ग भगवान शिव की शरण में है। शिव चालीसा इस मार्ग को सरल बनाता है और महाकाल का नाम सुरक्षा की वह ढाल है जो अदृश्य संकटों को भी आने नहीं देती। यदि आप रोजाना शिव चालीसा का पाठ करते हैं, तो यकीन मानिए — आपके जीवन में काल भी मार्ग बदल देगा।
और भी

रविवार को करें ये 5 उपाय, भगवान सूर्य बरसाएंगे अपनी कृपा

  • बढ़ेगी धन-समृद्धि
हर दिन कुछ न कुछ खास होता है, लेकिन रविवार का दिन भगवान सूर्यदेव का माना जाता है। सूर्यदेव को रोशनी, ऊर्जा, सेहत और सफलता का देवता माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि रविवार को कुछ खास और अच्छे काम किए जाएं, तो भगवान सूर्यदेव खुश होते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं। इस दिन कुछ खास काम करने से जीवन में धन, सुख और सेहत में बढ़ोतरी होती है। तो आज की इस खबर में हम आपको बताने जा रहे हैं कि अगर आप चाहते हैं कि आपके घर में हमेशा खुशहाली और बरकत बनी रहे, तो रविवार के दिन ये 5 काम जरूर करें।
1. सूर्यदेव को जल चढ़ाएं
रविवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। फिर एक तांबे के लोटे में साफ जल भरें। उसमें थोड़ा सा लाल चंदन, कुछ अक्षत यानी कि चावल और लाल फूल डालें। इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सूर्यदेव को जल चढ़ाएं। जल चढ़ाते समय "ॐ घृणि सूर्याय नमः" मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और धन-संपत्ति बढ़ती है।
2. घर को साफ रखें
रविवार को अपने घर खासकर मुख्य दरवाजे और पूजा स्थल की अच्छे से सफाई करें। सफाई के बाद घर में चंदन, गुलाब या केवड़े की खुशबू वाला धूप या अगरबत्ती जलाएं। इससे घर का वातावरण पवित्र और शांतिपूर्ण बनता है। माना जाता है कि साफ-सुथरे और खुशबूदार घर में मां लक्ष्मी का वास होता है।
3. जरूरतमंदों को दान करें
रविवार के दिन गरीबों या जरूरतमंद लोगों को तांबे का बर्तन, लाल कपड़े, गेहूं, गुड़ और मसूर की दाल दान करना बहुत शुभ होता है। दान करने से पुराने कर्मों का बोझ हल्का होता है और जीवन में आ रही आर्थिक समस्याएं दूर होने लगती हैं। साथ ही दान से पुण्य भी मिलता है।
4. सूर्य मंत्र का पाठ करें
रविवार को सूर्याष्टक का पाठ करना बहुत लाभकारी माना गया है। इनका पाठ करने से शरीर स्वस्थ रहता है, मन मजबूत बनता है और जीवन में आने वाली परेशानियों से छुटकारा मिलता है। कार्यक्षेत्र में भी तरक्की के रास्ते खुलते हैं।
5. लाल रंग का प्रयोग करें
रविवार को लाल रंग का वस्त्र पहनना बहुत शुभ माना जाता है। आप चाहें तो लाल रंग की कोई वस्तु भी खरीद सकते हैं या किसी जरूरतमंद को लाल रंग का कपड़ा दान कर सकते हैं। लाल रंग सूर्यदेव का प्रतीक है, इसलिए इससे उनका आशीर्वाद बना रहता है। ऐसा करने से आपकी जिंदगी में हमेशा खुशहाली बनी रहती है।
और भी

आज विनायक चतुर्थी, जरूर पढ़ें यह व्रत कथा...

  • मनोकामना होगी पूरी
आज 1 मई 2025 को वैशाख माह का विनायक चतुर्थी व्रत रखा जा रहा है. मान्यता है कि इस दिन विनायक चतुर्थी की व्रत कथा का पाठ करना लाभकारी होता है. ऐसे में आइए पढ़ते हैं वैशाख विनायक चतुर्थी की व्रत कथा| दू धर्म में भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए विनायक चतुर्थी व्रत काफी महत्वपूर्ण बताया जाता है. ऐसा कहते हैं जो व्यक्ति सच्चे मन से विनायक चतुर्थी का व्रत रखता है, उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं और मनचाहे फल की प्राप्ति होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर विनायक चतुर्थी व्रत रखा जाता है. इसे कई जगह वरद चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है|
विनायक चतुर्थी व्रत कथा-
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे चौपड़ खेल रहे थे. उन्होंने खेल के निर्णायक के लिए एक बालक बनाया और उसमें प्राण डाल दिए. माता पार्वती इस खेल में लगातार तीन बार जीतीं, लेकिन जब उस बालक से विजेता का नाम बताने के लिए कहा गया तो उसने शिव जी को विजेता घोषित कर दिया
इस बात पर माता पार्वती को गुस्सा आ गया और उन्होंने बालक को अपाहिज होने का श्राप दे दिया. बालक ने माता पार्वती से माफी भी मांगी. इसपर माता पार्वती ने कहा कि एक बार श्राप देने के बाद वापस नहीं लिया जाता है, इसलिए अगर तुम इससे मुक्ति पाना चाहते हो, तो एक साल बाद नाग कन्याएं आएंगी, उनसे व्रत की विधि जानकर गणेश जी का व्रत विधि-विधान से करो. ऐसा करने से तुम श्राप से मुक्त हो जाओगे
बालक ने नाग कन्याओं से व्रत की विधि जानकर पूरे 21 बार गणेश जी का व्रत किया. बालक से प्रसन्न होकर गणेश जी ने उससे वरदान मांगने को कहा. बालक ने वरदान मांगा कि वह अपने पैरों से कैलाश पर्वत जा सके. गणेश जी ने वरदान दिया और वह बालक कैलाश पर्वत पर जा पहुंचा. जब शिवजी ने बालक को देखा तो वे हैरान हुआ और फिर उस बालक ने शिवजी को अपनी कथा सुनाई|
इसके बाद शिवजी ने भी रुष्ट माता पार्वती को मनाने के लिए गणेश जी का व्रत किया और इस व्रत की महीमा से माता पार्वती भी मान गईं. इसके बाद माता पार्वती ने भी विनायक चतुर्थी का व्रत किया और इससे कार्तिकेय उनके पास आए. ऐसा कहते हैं कि तभी से विनायक चतुर्थी का व्रत सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला माना गया|
विनायक चतुर्थी व्रत का महत्व-
विनायक चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित है. ऐसा कहते हैं कि इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं. विनायक चतुर्थी पर गणपति बप्पा की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और बिगड़े हुए काम भी बनने लगते हैं|
और भी

जानिए...कब रखा जाएगा मई का पहला प्रदोष व्रत

हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मई का पहला प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस बार यह तिथि शुक्रवार को पड़ रही है, जिसके कारण इसे शुक्र प्रदोष कहा जाएगा। प्रदोष व्रत में दिनभर उपवास रखा जाता है और शाम को भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से जीवन के सभी दोष समाप्त होते हैं और शिव जी की कृपा से इच्छाएं पूर्ण होती हैं। ऐसे में आइए जानते हैं मई का पहला प्रदोष व्रत किस दिन रखा जाएगा।
प्रदोष व्रत 2025 तिथि
दृक पंचांग के अनुसार वैशाख शुक्ल त्रयोदशी तिथि का आरंभ 9 मई को दोपहर 2:56 बजे होगा और यह 10 मई शाम 5:29 बजे तक रहेगी। इस आधार पर व्रत 9 मई शुक्रवार के दिन रखा जाएगा।
प्रदोष पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
इस बार शुक्र प्रदोष व्रत पर वज्र योग और हस्त नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इस दिन संध्या पूजा के लिए करीब दो घंटे से अधिक का शुभ समय रहेगा। इस दिन प्रदोष समय शाम 07:01 बजे से रात 09:08 बजे तक रहेगा, जिसकी अवधि 02 घण्टे 06 मिनट के लिए रहने वाली है। प्रदोष पूजा के लिए शुभ मुहूर्त इसे ही माना जाता है।
शाम को ही क्यों की जाती है प्रदोष व्रत की पूजा?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में (सूर्यास्त के बाद जब अंधेरा होने लगता है) भगवान शिव प्रसन्न होकर कैलाश पर नृत्य करते हैं। माना जाता है कि इस समय यदि आप भगवान शिव से जो भी मांगेंगे, वो जरूर मिलता है, इसलिए प्रदोष व्रत में शाम के समय ही पूजा की जाती है।
प्रदोष व्रत का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार क्षय रोग होने पर चंद्रदेव ने भगवान शिव की पूजा की थी और शिव जी की कृपा से उनके सभी दोष मिट गए थे। इसी तरह जो लोग प्रदोष व्रत रखते हैं, भगवान उनके सभी दुखों को दूर करते हैं।
और भी

अक्षय तृतीया के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, मिलेगी मां लक्ष्मी की कृपा

अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म में इस दिन को बहुत शुभ और फलदायी माना गया है. अक्षय तृतीया के दिन शुभ कार्य और सोना-चांदी की खरीदारी किए जाने की परंपरा है. अक्षय तृतीया के दिन खरीदी गई हर चीज का कई गुना ज्यादा फल मिलता है. आज यानी 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया मनाई जा रही है. इस दिन कई लोग व्रत रखते हैं और इसकी कथा का पाठ भी करते हैं. आइए पढ़ते हैं अक्षय तृतीया की कथा-
अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है?
अक्षय तृतीया हर साल वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. यह तिथि इसलिए खास होती है, क्योंकि इस दिन किए गए सभी शुभ कार्य अक्षय फल देते हैं यानी उनका फल कभी खत्म नहीं होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु-माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और सोना खरीदना भी शुभ माना गया है|
अक्षय तृतीया की कथा-
अक्षय तृतीया की पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक छोटे से गांव में धर्मदास नामक एक गरीब वैश्य रहता था, जो हमेशा अपने परिवार का पेट पालने के लिए चिंतित रहता था और मेहनत करता रहता था. धर्मदास बहुत धार्मिक स्वभाव का व्यक्ति था. उसका पूजा-पाठ में बहुत मन लगता था. एक दिन उसने रास्ते में जाते समय कुछ ऋषियों के मुंह से अक्षय तृतीया व्रत की महिमा के बारे में सुना. इसके बाद से उसने भी अक्षय तृतीया के दिन व्रत रखकर दान-पुण्य करने के बारे में सोचा|
जब वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी अक्षय तृतीया आई तो धर्मदास ने उस दिन सुबह जल्दी उठकर गंगा में स्नान किया और देवताओं की पूजा कर विधिपूर्वक व्रत रखा. इसके साथ ही, अपने सामर्थ्य के अनुसार जल से भरे घड़े, पंखे, नमक, जौ, चावल, सत्तू, गेंहू, गुड़, घी, दही और कपड़े आदि चीजों का दान किया. इसके बाद से जब भी अक्षय तृतीया का पर्व आया, तब-तब उसने पूरी श्रद्धा से व्रत रखकर दान-पुण्य किया|
ऐसा कहा जाता है कि लगातार अक्षय तृतीया व्रत रखने और इस दिन दान-पुण्य करने से यही वैश्य अगले जन्म में कुशावती का राजा बना. दूसरे जन्म में धर्मदास इतना धनी और प्रतापी राजा बना कि अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर त्रिदेव तक उसके दरबार में ब्राह्मण का वेष धारण करके आते थे और उसके महायज्ञ में शामिल होते थे|
लेकिन इतना संपन्न होने के बाद भी उसे अपनी श्रद्धा और भक्ति का घमंड नहीं था और वह हमेशा धर्म के मार्ग पर चलता रहा. ऐसा माना जाता है कि यही राजा आगे के जन्मों में भारत के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ थी. धार्मिक मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन जो भी इस कथा सुनता या पढ़ता है और विधि विधान से पूजा-दान आदि कार्य करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. साथ ही, उस व्यक्ति के जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है|
और भी

जैन धर्म में अक्षय तृतीया को क्यों कहा जाता है इक्षु तृतीया

  • क्या है इसका पौराणिक महत्व
अक्षय तृतीया केवल सनातनियों का ही नहीं, बल्कि जैन धर्मावलम्बियों का भी एक महान धार्मिक पर्व है. इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था. जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है|
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसके पीछे कथा प्रचलित है कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री आदिनाथ भगवान ने सत्य व अहिंसा का प्रचार करने के लिए और अपने कर्म बन्धनों को तोड़ने के लिए संसार के भौतिक सत्य और अहिंसा के प्रचार करने के लिए प्रभु विचरण कर रहे थे,ऐसा करते-करते आदिनाथ प्रभु हस्तिनापुर गजपुर पहुंचे जहां इनके पौत्र सोमयश का शासन चल था|
क्यों कहा जाता है इक्षु तृतीया
प्रभु का आगमन की बात सुनकर सभी नगर वासी दर्शन के लिए उमड़ पड़े. सोमप्रभु के पुत्र राजकुमार श्रेयांस कुमार ने प्रभु को देखकर उसने आदिनाथ को पहचान लिया और तत्काल शुद्ध आहार के रूप में प्रभु को गन्ने का रस दिया, जिससे आदिनाथ ने व्रत का पारायण किया. जैन धर्मावलंबियों के अनुसार गन्ने के रस को इक्षुरस भी कहते हैं इस कारण यह दिन इक्षु तृतीया एवं अक्षय तृतीया के नाम से विख्यात हो गया|
इसे कहा जाता है वर्षीतप
भगवान श्री आदिनाथ ने अक्षय तृतीया के दिन लगभग 400 दिन की तपस्या के पश्चात पारायण किया था. उनकी ये तपस्या एक वर्ष से अधिक समय की थी इसलिए जैन धर्म में इसे वर्षीतप से सम्बोधित किया जाता है|
जैन धर्मावलम्बी आज भी रखते हैं वर्षीतप
आज भी जैन धर्मावलम्बी वर्षीतप की आराधना कर अपने को धन्य समझते हैं. यह तपस्या प्रति वर्ष कार्तिक के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ होती है और दूसरे वर्ष वैशाख के शुक्लपक्ष की अक्षय तृतीया के दिन पारायण कर पूर्ण की जाती है. तपस्या आरम्भ करने से पूर्व इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाता है कि प्रति मास की चौदस को उपवास करना आवश्यक होता है. इस प्रकार का वर्षीतप करीबन 13 मास और दस दिन का हो जाता है. उपवास में केवल गर्म पानी का सेवन किया जाता है|
ये तपस्या आरोग्य जीवन के लिए भी उपयोगी
ये तपस्या धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि आरोग्य जीवन बिताने के लिए भी उपयोगी है. संयम से जीवनयापन करने के लिए इस प्रकार की धार्मिक क्रिया करने से मन को शान्त, विचारों में शुद्धता आती है. इसी कारण है कि मन, वचन एवं श्रद्धा से जुड़े इस दिन को जैन धर्म में विशेष महत्वपूर्ण समझा जाता है|
दान की भावना
इस दिन जैन अनुयायी आहार दान, ज्ञान दान, औषधि दान और अभय दान का पुण्य करते हैं. जैन धर्म में माना जाता है कि इस दिन किया गया पुण्य कभी क्षीण नहीं होता अर्थात अक्षय रहता है|
और भी

24 साल बाद अक्षय तृतीया के दिन बनेगा ये शुभ योग

  • इन 5 राशियों को मिलेगा जबरदस्त लाभ
अक्षय तृतीया हिंदू धर्म की शुभ तिथियों में से एक है। साल 2025 में 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया है। इस साल अक्षय तृतीया पर अक्षय योग भी बनने जा रहा है। यह योग 24 साल पहले 26 अप्रैल के दिन अक्षय तृतीया पर बना था। अक्षय तृतीया जैसे शुभ अवसर पर अक्षय योग का बनना ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद अहम माना जा रहा है। यह योग तब बनता है जब गुरु और चंद्रमा की युति होती है। अक्षय तृतीया के दिन चंद्रमा और गुरु वृषभ राशि में एक साथ होंगे। इस योग के बनने से किन राशियों को अक्षय तृतीया और इसके बाद शुभ परिणाम मिल सकते हैं, आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
मेष राशि
अक्षय तृतीया पर अक्षय योग का बनना आपके पारिवारिक जीवन में खुशियां लेकर आएगा। इस दौरान मेष राशि के जातकों को बड़ा धन लाभ भी हो सकता है। आपकी मेहनत रंग लाएगी जिससे करियर और शिक्षा के क्षेत्र में आप उचित परिणाम प्राप्त करेंगे। वैवाहिक जीवन में भी सुधार आएगा।
वृषभ राशि
अक्षय योग के बनने से आपकी बुद्धि और विवेक में निखार आएगा। तिजोरी में धन इस दौरान बढ़ सकता है। आपको कमाई के नए स्रोत मिलेंगे। आपके जीवन में जो परेशानियां चली आ रही थीं उनका भी अंत हो सकता है। सेहत में सुधार आएगा इसलिए आप जीवन का आनंद ले पाएंगे।
कर्क राशि
इस राशि वालों को सामाजिक स्तर पर सम्मान की प्राप्ति हो सकती है। बीते समय में आपके द्वारा किए गए कार्यों का भी शुभ परिणाम आपको प्राप्त होगा। करियर के क्षेत्र में प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होंगे। आपकी कोई योजना इस दौरान सफल हो सकती है। बड़े भाई-बहनों के सहयोग से बिगड़ते कार्य भी बनेंगे।
सिंह राशि
जिन खुशियों की आशा आप अपने जीवन में करते हैं वो आपको इस दौरान मिल सकती हैं। आर्थिक पक्ष में आशातीत सुधार आपको देखने को मिल सकता है। करियर के क्षेत्र में आपकी बातों से सीनियर्स प्रसन्न होंगे, कुछ लोगों की पदोन्नति हो सकती है। इस राशि के कुछ लोग मांगलिक कार्यों में इस दौरान हिस्सा ले सकते हैं।
धनु राशि
आपके अटके कार्य भी इस दौरान पूरे हो सकते हैं। अचानक बड़ी धन राशि प्राप्त होने के भी योग हैं। आप अपने कार्य के प्रति गंभीर होंगे और इसका अच्छा परिणाम भी आपको प्राप्त होगा। नए लोगों से संपर्क बनेंगे। कुछ लोगों को यात्राओं के जरिए लाभ की प्राप्ति हो सकती है। आपकी सेहत में भी अच्छे बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
और भी

वैशाख मास की विनायक चतुर्थी पर्व 1 मई को

  • 21 दूर्वा दल चढ़ाने से प्रसन्न होंगे गजानन
हर मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायकी या विनायक चतुर्थी व्रत कहते हैं। विनायक प्रथम पूज्य श्री गणेश के लिए प्रयुक्त होता है, इससे स्पष्ट है कि यह दिवस भगवान श्री गणेश को समर्पित है। इस दिन गणपति का पूजन-अर्चन करना लाभदायी माना गया है।
पंचांगानुसार 30 अप्रैल 2025 को दोपहर 2:12 बजे से होगा और इसका समापन 1 मई 2025 को प्रातः 11:23 बजे होगा। उदया तिथि के अनुसार विनायक चतुर्थी का पर्व 1 मई 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा।
दृक पंचांग में इसकी महत्ता का वर्णन है। लिखा है कि विनायक चतुर्थी को वरद विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान से अपनी किसी भी मनोकामना की पूर्ति के आशीर्वाद को वरद कहते हैं। जो श्रद्धालु विनायक चतुर्थी का उपवास करते हैं, भगवान गणेश उन्हें ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण हैं, जिसका महत्व सदियों से मनुष्य को ज्ञात है। जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं, वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार विनायक चतुर्थी के दिन गणेश पूजा दोपहर को मध्याह्न काल के दौरान की जाती है। दोपहर के दौरान भगवान गणेश की पूजा का मुहूर्त विनायक चतुर्थी के दिनों के साथ दर्शाया गया है।
इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-दौलत, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है। पुराणों के अनुसार शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।
विनायकी चतुर्थी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान कर लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद दोपहर पूजन के समय अपने-अपने सामर्थ्यानुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने-चांदी से निर्मित गणेश प्रतिमा स्थापित कर संकल्प लें। फिर षोडशोपचार पूजन कर श्री गणेश की आरती करें। तत्पश्चात श्री गणेश की मूर्ति पर सिन्दूर चढ़ाएं। इसके साथ ही गणेश जी का प्रिय मंत्र- 'ओम गं गणपतयै नमः' बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाना चाहिए।
इसके बाद श्री गणपति को बूंदी के लड्डू का भोग श्रेष्ठ माना जाता है। इनमें से 5 लड्डुओं का दान ब्राह्मणों को किया जाता है और 5 भगवान के चरणों में रख बाकी प्रसाद में वितरित कर दिया जाता है। पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
वहीं, संध्या को गणेश चतुर्थी कथा, गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्रनामावली, गणेश चालीसा का स्तवन करें। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ कर श्री गणेश की आरती करें तथा 'ओम गणेशाय नमः' मंत्र की माला जपने से मनोरथ पूरे होते हैं।
और भी