धर्म समाज

CM विष्णुदेव साय ने प्रदेशवासियों को हनुमान जयंती की दी शुभकामनाएं

  • कहा- संकटमोचन से सबके जीवन में आए सुख, शांति और समृद्धि
रायपुर। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि संकटमोचन भगवान हनुमान सब पर अपनी कृपा बनाए रखें और प्रदेश के सभी नागरिकों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का संचार हो। मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि पवनपुत्र हनुमान जी का जीवन हमें अटूट भक्ति, अदम्य साहस और निस्वार्थ सेवा की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमें बुराइयों के विरुद्ध खड़े होने, धर्म और सत्य के मार्ग पर अडिग रहने का संदेश देता है। उन्होंने कामना की कि हनुमान जयंती का यह पर्व सभी के लिए मंगलकारी सिद्ध हो और समाज में सद्भाव, समर्पण और शक्ति का संचार करे।
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वट सावित्री व्रत सोमवार 26 मई को, जानिए...पूजा विधि

वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. यह व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए रखती हैं. यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है. वत सावित्री व्रत को देशभर में अलग-अलग नामों जाना जाता है जैसे कि बड़मावस, बरगदाही, वट अमावस्या आदि. वट सावित्री का व्रत सबसे पहले राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए किया था. तभी से वट सावित्री व्रत महिलाएं अपने पति के मंगल कामना के लिए रखती हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करने से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है|
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह अमावस्या तिथि की शुरुआत 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन अगले दिन यानी 27 मई को सुबह 8 बजकर 31 मिनट पर होगा. ऐसे में वट सावित्री का व्रत सोमवार 26 मई को रखा जाएगा|
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि-
वट सावित्री व्रत के दिन पूजा करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. उसके बाद सास ससुर का आशीर्वाद लेकर व्रत का संकल्प करें. वट सावित्री व्रत के दिन विशेष रूप से लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए. साथ ही सोलह श्रृंगार करने का भी विशेष महत्व होता है. इसके बाद सात्विक भोजन तैयार करें. इसे बाद वट वृक्ष के पास जाकर पंच देवता और भगवान विष्णु का आह्वान करें. तीन कुश और तिल लेकर ब्रह्मा जी और देवी सावित्री का आह्वान करते हुए ‘ओम नमो ब्रह्मणा सह सावित्री इहागच्छ इह तिष्ठ सुप्रतिष्ठित भव’. मंत्र का जप करें. इसके बाद जल अक्षत, सिंदूर, तिल, फूल, माला, पान आदि सामग्री अर्पित करें. फिर एक आम लें और उसके ऊपर से वट वृक्ष पर जल अर्पित करें. इस आम को अपने पति को प्रसाद के रूप में दें. साथ ही कच्चे सूत के धागे को लेकर उसे 7 या 21 बार वट वृक्ष पर लपेटते हुए परिक्रमा करें. हालांकि, 108 परिक्रमा यदि आप करते हैं तो वह सर्वोत्तम माना जाता है. अंत में व्रत का पारण काले चने खाकर करना चाहिए|
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हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली को अर्पित करें ये चीजें

  • मिलेगी केसरीनंदन की असीम कृपा
हर साल हनुमान जन्मोत्सव चैत्र माह के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान मारुति नंदन के साथ ही भगवान राम और मां सीता की भी पूजा-अर्चना की जाती है। हनुमान जन्मोत्सव के दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसके साथ ही इस दिन रामायण, हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ भी किया जाता है। हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली की उनके प्रिय भोग का प्रसाद भी जरूर चढ़ाना चाहिए। ऐसा करने से राम भक्त हनुमान भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। तो चलिए जानते हैं कि हनुमान जन्मोत्सव के दिन केसरी नंदन को क्या भोग लगाना चाहिए।
बेसन के लड्डू- हनुमान जी को बेसन के लड्डू बहुत ही प्रिय है। तो हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली को बेसन के लड्डू का भोग अवश्य लगाएं। ऐसा करने से भक्तों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।
बूंदी- हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली को बूंदी या बूंदी के लड्डू भी अर्पित कर सकते हैं। बूंदी के लड्डू का भोग लगाने से हनुमान जी भक्त को मनचाहा वरदान देते हैं।
इमरती- हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें इमरती का भोग भी लगाएं। हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली को इमरती का भोग लगाने से भक्त की हर अधूरी इच्छा पूरी होती है।
गुड़-चना- कहते हैं कि हनुमान जी को गुड़-चना चढ़ाने से मंगल दोष दूर होता है। साथ ही हर परेशानी से भी छुटकारा मिलता है। तो ऐसे में हनुमान जन्मोत्सव के दिन वायुपुत्र हनुमान जी को गुड़-चना का भोग अवश्य लगाएं।
केला- हनुमान जन्मोत्सव के दिन पवनपुत्र को केला का भोग लगाना बिल्कुल भी न भूलें। हनुमान जी को केला अति प्रिय है। ऐसे में केला अर्पिक करने से बजरंगबली की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
खीर- हनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंगबली को खीर जरूर चढ़ाएं। ऐसा करने से व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही हनुमान जी धन से संबंधित परेशानियां भी दूर कर देते हैं।
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कर्ज में डूबे हैं तो शुक्रवार को इस विधि से करें गुप्त लक्ष्मी की पूजा

हिंदू धर्म शास्त्रों में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। शुक्रवार का दिन देवी लक्ष्मी को समर्पित होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं। हिंदू धर्म शास्त्रों में देवी लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। शुक्रवार के दिन देवी लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा और व्रत किया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार-
मान्यताओं के अनुसार, जिस व्यक्ति पर देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, उसके घर में धन और समृद्धि की कभी कमी नहीं होती। घर में हमेशा खुशहाली बनी रहती है। शुक्रवार के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा और व्रत के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शुक्रवार के दिन गुप्त लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दरअसल, गुप्त लक्ष्मी जिन्हें धूमावती भी कहा जाता है। इन्हें अष्ट लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि जो कोई भी शुक्रवार के दिन गुप्त लक्ष्मी (अष्ट लक्ष्मी) की पूजा करता है, उसके घर का खजाना हमेशा धन से भरा रहता है।
पूजा विधि-
शास्त्रों में कहा गया है कि देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए रात का समय शुभ माना जाता है। शुक्रवार की रात 9 से 10 बजे के बीच मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
सबसे पहले पूजा के लिए साफ कपड़े पहनने चाहिए।
फिर पूजा की चौकी पर गुलाबी कपड़ा बिछाकर श्रीयंत्र और गुप्त लक्ष्मी (अष्ट लक्ष्मी) की मूर्ति या तस्वीर रखनी चाहिए।
फिर देवी के सामने 8 घी के दीपक जलाने चाहिए।
फिर श्रीयंत्र और अष्ट लक्ष्मी को अष्टगंध से तिलक लगाना चाहिए।
देवी को लाल गुड़हल के फूलों की माला पहनानी चाहिए।
खीर का भोग लगाना चाहिए।
ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीये ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा मंत्र का जाप करना चाहिए।
अंत में देवी की आरती करनी चाहिए।
फिर सभी आठों दीपकों को घर की आठ दिशाओं में रखना चाहिए।
देवी लक्ष्मी की पूजा का महत्व-
हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी की पूजा न केवल घर में धन-धान्य बढ़ाने के लिए की जाती है, बल्कि समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए भी की जाती है। देवी लक्ष्मी की पूजा करने से नकारात्मक ऊर्जा का भी नाश होता है।
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जगद्गुरु शंकराचार्य का रायपुर आगमन 12 अप्रैल को

  • निमोरा में देंगे आशीर्वचन
रायपुर। उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज का 12 अप्रैल को एक दिवसीय रायपुर आगमन हो रहा है। उनके मीडिया प्रभारी अशोक साहू ने जानकारी दी कि स्वामिश्री: प्रयागराज से दोपहर 12:30 बजे रायपुर विमानतल पहुंचेंगे, जहाँ भक्तों द्वारा उनका भव्य स्वागत और दर्शन का आयोजन होगा।
शंकराचार्य दोपहर 1 बजे ग्राम निमोरा के लिए प्रस्थान करेंगे, जहाँ ‘अभिषेकात्म होमात्मक अतिरुद्र महायज्ञम्’ की पूर्णाहुति में भाग लेंगे। मंच पर पादुकापूजन के बाद वे आशीर्वचन भी देंगे। आयोजन समिति द्वारा विशेष स्वागत की तैयारियां की जा रही हैं। कथा व्यास पर आचार्य प्रमोद शास्त्री जी महाराज एवं यज्ञाचार्य श्रीराम प्रताप शास्त्री जी महाराज द्वारा संपन्न कराया जाएगा! इस अवसर पर शंकराचार्य आश्रम बोरियाकला रायपुर के दंडी स्वामिश्री: डॉ इन्दुभवानंद: तीर्थ जी महाराज, दंडी स्वामी श्रीमज्ज्योतिर्मयानन्द: सरस्वती जी महाराज सपाद लक्षेश्वर धाम सलधा व ज्योतिर्मठ सीईओ चंद्रप्रकाश उपाध्याय विशेष रूपसे उपस्थित रहेंगे!
सायंकाल 5 बजे वे शंकराचार्य आश्रम, बोरियाकला (रायपुर) के लिए रवाना होंगे। यहाँ वे भगवती दर्शन और पादुकापूजन पश्चात भक्तों को आशीर्वचन देंगे और आश्रम में रात्रि विश्राम करेंगे। 13 अप्रैल को प्रातः 7 बजे वे प्रयागराज के लिए विमान से प्रस्थान करेंगे।
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आज प्रदोष व्रत पर इन विधियों से करें बेलपत्र के पेड़ की पूजा

  • महादेव करेंगे मनोकामना पूरी
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। प्रत्येक महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से जातक पर भगवान शिव की विशेष कृपा बरसती है। चैत्र माह यानी हिंदू नववर्ष का पहला प्रदोष व्रत 10 अप्रैल को रखा जाएगा। बता दें कि हिंदू पंचांग में चैत्र पहला माह है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती के साथ ही बेलपत्र पेड़ की पूजा करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत के दिन ऐसे करें बेलपत्र पेड़ की पूजा
प्रदोष व्रत के दिन प्रात:काल उठकर स्नान आदि के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहन लें। फिर व्रत का संकल्प लें।
पहले घर के मंदिर में भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा कर लें।
इसके बाद बेलपत्र पेड़ के नीचे की साफ-सफाई कर लें।
बेलपत्र के पेड़ के सामने पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं।
फिर बेलपत्र पेड़ की जड़ में जल अर्पित करें। पेड़ के तने पर चंदन या रोली का तिलक करें और चावल, फूल भी चढ़ाएं।
बेलपत्र के पेड़ के नीचे बैठकर भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें।
भगवान शिव की आरती के बाद बेलपत्र पेड़ की परिक्रमा करें।
वहीं ध्यान रहें कि प्रदोष व्रत के बेलपत्र का पत्ता गलती से भी नहीं तोड़ें। पूजा के लिए एक दिन पहले ही बेलपत्र तोड़कर रख लें।
बेलपत्र पूजा का महत्व
भगवान शिव को बेलपत्र अति प्रिय है। महादेव की पूजा बेलपत्र के बिना अधूरी मानी जाती है। भोलेनाथ को बेलपत्र चढ़ाने से भक्तों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन शिवजी के साथ बेलपत्र पेड़ की पूजा अत्यंत फलदायी माना जाता है। अगर किसी की कुंडली में ग्रह दोष हैं तो उसे भी इससे शांति मिलती है।
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महावीर जयंती आज, जानिए...भगवान महावीर और उनके जीवन जीने के 5 सिद्धांत

हर वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को पूरे देश में महावीर जयंती श्रद्धा, आस्था और शांति के संदेश के साथ मनाई जाती है। यह दिन जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व जैन समाज के लिए ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिए सत्य, अहिंसा और संयम की प्रेरणा देने वाला दिन है।
भगवान महावीर का जीवन परिचय-
भगवान महावीर का जन्म 599 ईसा पूर्व बिहार के कुंडलपुर में हुआ था। उनके पिता राजा सिद्धार्थ लिच्छवी वंश के शासक थे और माता त्रिशला गणराज्य की राजकुमारी थीं। बाल्यकाल से ही महावीर में गहरी संवेदनशीलता, वैराग्य और सत्य की खोज की प्रवृत्ति थी।
जब वे 30 वर्ष के हुए, तब उन्होंने राजपाठ, परिवार और ऐश्वर्य को त्यागकर संन्यास ग्रहण कर लिया। इसके बाद 12 वर्षों तक कठोर तप, ध्यान और मौन साधना की। अंततः उन्हें केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे 'जिन' अर्थात इंद्रियों को जीतने वाले कहलाए। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन जनकल्याण और धर्म प्रचार में अर्पित कर दिया।
महावीर जयंती का धार्मिक और सामाजिक महत्व-
महावीर जयंती केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि यह दिन मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रतीक है। इस दिन जैन समाज द्वारा विशेष पूजा-अर्चना, अभिषेक, कलश यात्रा, शोभायात्रा और धर्मोपदेशों का आयोजन किया जाता है। देशभर के जैन मंदिरों में भगवान महावीर की प्रतिमाओं का अभिषेक किया जाता है। कई स्थानों पर निःशुल्क चिकित्सा शिविर, अन्नदान और पुस्तक वितरण जैसे सेवा कार्य भी किए जाते हैं।
भगवान महावीर के जीवन जीने के 5 सूत्र-
भगवान महावीर ने जो पांच प्रमुख व्रत बताए, वे ही उनके जीवन दर्शन के मूल आधार हैं।
अहिंसा
हर जीव में आत्मा है, इसलिए किसी को भी कष्ट पहुंचाना पाप है। महावीर ने मन, वचन और कर्म से अहिंसा का पालन करने का संदेश दिया।
सत्य
सत्य बोलना ही आत्मा की शुद्धि का मार्ग है। उन्होंने कहा कि झूठ बोलने से मन अशांत होता है और समाज में अविश्वास फैलता है।
अस्तेय
बिना अनुमति किसी वस्तु को लेना या चुराना अपराध है। संतोष और आत्मनियंत्रण जीवन में सुख का मार्ग है।
ब्रह्मचर्य
इंद्रियों पर नियंत्रण, मानसिक और शारीरिक संयम आत्मा की उन्नति के लिए आवश्यक है।
अपरिग्रह
जितना कम संग्रह करेंगे, उतना जीवन सरल और शांत होगा। धन, वस्त्र, रिश्तों और इच्छाओं का मोह त्यागना ही सच्चा वैराग्य है।
भगवान महावीर के ये सिद्धांत आज के युग में भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि बिना हिंसा, छल, और मोह के भी जीवन को सुंदर और सफल बनाया जा सकता है।
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राज्यपाल ने महावीर जयंती के अवसर पर दी शुभकामनाएं

रायपुर। राज्यपाल श्री रमेन डेका ने जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी की जयंती के अवसर पर प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। राज्यपाल ने कहा कि भगवान महावीर ने विश्व कल्याण के लिए सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का संदेश दिया। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, आडम्बरों और कुरीतियों को समाप्त करने पर जोर दिया। भगवान महावीर के सिद्धांत और उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं। उनके जीवन से हमें अनुशासन, तप और संयम की शिक्षा मिलती है। भगवान महावीर का अहिंसा का दर्शन विश्व से हिंसा व आतंकवाद समाप्त कर शांति और सद्भाव स्थापना का सन्देश देता है। राज्यपाल श्री डेका ने प्रदेशवासियों से अपील की है कि भगवान महावीर के संदेशों को अपने व्यावहारिक जीवन में उतारें तथा शांति व सद्भाव के साथ आपसी रिश्तों को मजबूत बनाएं।
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महावीर जयंती पर मुख्यमंत्री साय ने दी प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं

रायपुर। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती के पावन अवसर पर समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई दी है।
मुख्यमंत्री श्री साय ने अपने संदेश में कहा कि भगवान महावीर ने अपने जीवन से सत्य, अहिंसा, करुणा और अपरिग्रह जैसे महान मूल्यों का जो संदेश दिया, वह आज के सामाजिक और नैतिक जीवन के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। श्री साय ने कहा कि भगवान महावीर ने अहिंसा को सर्वोच्च धर्म बताया और दया तथा प्रेम को जीवन का आधार बनाया। उन्होंने समरसता, सह-अस्तित्व और शांति का मार्ग दिखाया। उनकी शिक्षाएं न केवल धार्मिक आस्था का आधार हैं, बल्कि वे मानवता को एक नई दिशा देने वाली प्रेरणा हैं।
मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों से आग्रह किया कि वे भगवान महावीर की शिक्षाओं को अपने जीवन में आत्मसात करें और दीन-दुखियों, जरूरतमंदों तथा समाज के कमजोर वर्गों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहें।
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बुधवार को इन मंत्रों का जाप करने से बनी रहेगी भगवान गणेश की कृपा

बुधवार के दिन इनकी आरती करने से और चालिसा का पाठ करने से आपकी सभी मनोकामना भी पूर्ण हो जाती है. तो ऐसे में आइए आज हम आपको अपने इस लेख में कुछ चमत्कारिक मंत्रों के बारे में बताएंगे जिसे करने से आपको सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी और आपके जीवन के सभी संकट दूर हो जाएंगे|
भगवान गणेश के इस कुबेर मंत्र का करें जाप-
1.ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा।
अगर आपको आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है, तो आपको इस मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए. इससे व्यक्ति को कर्ज से भी छुटकारा मिलता है और धन के नए स्त्रोत भी बनते हैं. इसके साथ आपके सभी काम बिना किसी बाधा के पूरे हो जाते हैं|
2.भगवान गणेश के गायत्री मंत्र का करें जाप
ये भगवान गणेश का बेहद प्रभावशाली मंत्र है. इस मंत्र का रोजाना 108 बार जाप करना चाहिए और इस मंत्र का बोलकर उच्चारण कर जाप करें. इससे भगवान गणेश बेहद प्रसन्न होते हैं. इस मंत्र का 11 दिन लगातार जाप करना चाहिए|
3.भगवान गणेश के तांत्रिक मंत्र का जाप करें-
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति, सिदि्ध पति। मेरे कर दूर क्लेश।।
इस मंत्र का रोजाना 108 बार जाप करना चाहिए. इससे व्यक्ति के जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं.इस मंत्र का जाप भगवान शिव, गणेश और मां पार्वती की पूजा करने के बाद करना चाहिए|
भगवान गणेश की पूजा करने के बाद करें आरती-
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी। माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी॥
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
अन्धे को आँख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥
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चैत्र पूर्णिमा की दोपहर में करें ये काम, पितर देंगे आशीर्वाद

12 अप्रैल को चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि है। इस रोज हनुमान जयंती भी मनाई जाएगी। चैत्र पूर्णिमा पर पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए इस दिन पिंड दान और तर्पण किया जाता है। ऐसा करने से पितृ दोष का निवारण होता है। पिंडदान के बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि यह पितरों को तृप्त करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण उपाय है। पिंडदान हमेशा दोपहर के समय करें।
चैत्र पूर्णिमा पर पिंडदान की तैयारी-
चैत्र पूर्णिमा के दिन पिंडदान करने के लिए पिंड बनाने की विधि है, जिसमें तिल, जौ, आटा, घी और शहद का मिश्रण किया जाता है।
चैत्र पूर्णिमा पर पिंड दान विधि-
सबसे पहले किसी पवित्र नदी या नदी के किनारे इस कार्य को करना उत्तम माना जाता है।
पिंडदान करने से पहले पितरों का स्मरण करें और उन्हें तर्पण दें।
तिल, जौ, आटा, घी और शहद का मिश्रण बनाकर पिंड बनाएं।
पिंड को जल में प्रवाहित करें और अपने पितरों को आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें।
इस दौरान "ॐ पितृ देवता नमः" मंत्र का जाप करें।
गंगा स्नान: इस दिन गंगा स्नान का महत्व भी है। कहा जाता है कि इस दिन गंगा के पवित्र जल में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन के सारे संकट दूर होते हैं।
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पहली बार प्रदोष व्रत कैसे रखें, जानिए..पूजा विधि से लेकर उद्यापन

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है, जिसको हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. इसलिए इसे त्रयोदशी व्रत भी कहते हैं. धार्मिक मान्यता है कि भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत सबसे उत्तम होता है. ऐसा कहा जाता है कि प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं. साथ ही, शिवजी के साथ ही माता पार्वती की भी कृपा प्राप्त होती है. महिला हो या पुरुष, प्रदोष व्रत को कोई भी रख सकता है. अगर आप भी पहली बार प्रदोष व्रत रखने के बारे में सोच रहे हैं, तो चलिए आपको पहली बार प्रदोष व्रत की शुरुआत कब और कैसे करें|
प्रदोष व्रत की शुरुआत कैसे करें-
पहली बार प्रदोष व्रत करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करें.
फिर स्नान करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनें.
भगवान शिव का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें.
पूजा स्थल को साफ करें और रंगोली बनाएं.
भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें.
भोलेनाथ को जल, बेलपत्र, फूल, फल आदि चढ़ाएं.
फिर प्रदोष व्रत कथा पढ़े और शिव चालीसा का पाठ करें.
अगर संभव हो तो मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल और बेलपत्र अर्पित करें.
शाम को फिर भोलेनाथ की विधिवत पूजा करें और आरती कर भोग लगाएं.
भगवान शिव को खीर, आलू का हलवा, दही और घी का भोग लगाएं.
प्रदोष काल में भगवान शिव का रुद्राभिषेक करें.
फिर दोबारा प्रदोष व्रत की कथा पढ़कर आरती करें.
प्रदोष व्रत निर्जला या फलाहारी रखा जाता है.
प्रदोष व्रत रखकर पूरे दिन कुछ न खाएं.
शाम की पूजा के बाद या अगले दिन अपना व्रत खोल सकते हैं.
प्रदोष व्रत कब से शुरू करना चाहिए-
प्रदोष व्रत किसी भी महीने के शुक्ल या कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि से शुरू किया जा सकता है, लेकिन सावन और कार्तिक मास में प्रदोष व्रत शुरू करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है|
प्रदोष व्रत कितने रखने चाहिए-
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, प्रदोष व्रत 11 या 26 त्रयोदशी तिथियों तक रखना चाहिए. प्रदोष व्रत के बाद इसका उद्यापन जरूर करना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव की कृपा मिलती है|
प्रदोष व्रत में क्या क्या खाना चाहिए-
प्रदोष व्रत के दौरान आप साबूदाने की खीर, कुट्टू के आटे के पकोड़े, आलू, फल, दूध, दही, साबूदाने की कचौड़ी, सिंघाड़े का हलवा, कुट्टू के आटे की पूड़ी, नारियल पानी, समा चावल की खीर, हरी मूंग, केले के चिप्स, फलों की चाट आदि खा सकते हैं|
प्रदोष व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए-
प्रदोष व्रत में व्रती को लहसुन, प्याज, सादा नमक, लाल मिर्च, अन्न, चावल, मांसाहार, शराब और सिगरेट और नशीली चीजें आदि नहीं खानी चाहिए. इन चीजों का सेवन करने से प्रदोष व्रत का फल नहीं मिलता है|
प्रदोष व्रत का उद्यापन कब करना चाहिए-
प्रदोष व्रत का उद्यापन 11 या 26 त्रयोदशी तिथियों के बाद किया जाता है. वहीं, प्रदोष व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए. उद्यापन से एक दिन पहले गणेश जी का पूजन करें और उद्यापन से पहले रात में कीर्तन करते हुए जागरण करें|
प्रदोष व्रत का उद्यापन कैसे करना चाहिए-
प्रदोष व्रत का उद्यापन करने के लिए सबसे पहले स्नान करें. फिर रंगीन कपड़ों से मंडप सजाएं और शिव-गौरी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करें. इसके बाद हवन-कीर्तन और जागरण करें. फिर हवन में खीर से आहुति दें. ब्राह्मणों को भोजन कराएं, दान-दक्षिणा दें और उनका आशीर्वाद लें. फिर कुछ खाकर अपना व्रत खोलें|
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मंगलवार को करें ये 4 उपाय, मिलेगा शुभ फल

मंगल को साहस और पराक्रम का ग्रह माना जाता है। मंगल व्यक्ति को साहस, आत्मविश्वास और ऊर्जा देता है। मंगल इस समय अपनी नीच राशि कर्क में गोचर कर रहा है। ऐसे में मंगल का गोचर कई राशियों के लिए अशुभ फल देने वाला है। इस समय मंगल के नीच अवस्था में होने से मेष, मिथुन, धनु और मकर समेत इन राशियों के लिए समय खास नहीं है। अनुकूल नहीं है। ऐसे में अगर मंगल आपको अशुभ फल दे रहा है तो आपको मंगलवार के दिन कुछ उपाय जरूर करने चाहिए। इन उपायों को करने से आपको मंगल दोष से मुक्ति मिल सकती है। आइए जानते हैं मंगलवार के कुछ खास उपाय…
1. हनुमान जी की पूजा करें
मंगलवार के दिन सुबह स्नान करके लाल वस्त्र धारण करें और हनुमान जी के मंदिर जाएं। वहां सिंदूर, चमेली का तेल और गुड़-चना चढ़ाएं। इसके बाद 108 बार "ॐ हं हनुमते नमः" मंत्र का जाप करें। इससे भय, बाधाएं और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
2. मंगलवार को इन चीजों का करें दान
मंगल को मजबूत करने के लिए मंगलवार को विशेष रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करें और लाल मसूर की दाल का दान करें। इससे मंगल मजबूत होगा। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में विवाह में बाधा आ रही है या वैवाहिक जीवन की परेशानियां दूर होती हैं।
3. गरीबों को भोजन कराएं
मंगलवार के दिन गरीबों को लाल रंग की खाद्य सामग्री जैसे मसूर की दाल, गुड़ या लाल चावल दान करें या उन्हें भोजन कराएं। यह उपाय आपकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है और मंगल पुण्य फल भी प्रदान करता है।
4. बरगद के पेड़ पर दीपक जलाएं
शाम के समय बरगद के पेड़ के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाएं और हनुमान जी का ध्यान करें। इस उपाय को करने से आपको मंगल के शुभ फल प्राप्त होंगे। साथ ही शनि के प्रभाव में रहने वाले लोगों की बाधाएं भी शांत होती हैं।
मंगलवार को ये काम करने से बचें
मंगलवार को बाल न कटवाएं और न ही दाढ़ी बनवाएं, ऐसा करने से मंगल के शुभ फल नहीं मिलेंगे। मंगलवार को दूध या सफेद चीजों का दान न करें। हो सके तो मसूर की दाल का दान करें।झूठ बोलने और गुस्सा करने से बचें। यदि आप किसी से झूठ बोलेंगे तो आपको मंगल का अशुभ फल मिलेगा।
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मंगलवार की सुबह या शाम करें ये 5 उपाय

  • हनुमान जी संवार देंगे आपका जीवन
मंगलवार को हनुमान जी की पूजा अर्चना करने से जीवन मंगलमय बना रहता है। ज्योतिष शास्त्र में मंगलवार का संबंध मंगल ग्रह से बताया गया है जो कि ऊर्जा, साहस और पराक्रम का कारक है। शास्त्रों में ऐसा वर्णन मिलता है कि मंगलवार के दिन हनुमान जी को प्रसन्न करने से जीवन के हर संकट स्वतः दूर हो जाते हैं। यही वजह है कि लोग इस दिन घर या मंदिर में हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। जो कि हनुमान जी की कृपा पाने का सबसे आसान और उत्तम उपाय है।
कहा जाता है कि मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से शारीरिक कष्ट और मानसिक विकार दूर हो जाते हैं। अक्सर हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए लोग उन्हें उनकी प्रिय वस्तुओं का भोग भी लगाते हैं। आइए आगे जानते हैं कि मंगलवार के दिन और किन-किन कार्यों को करने से हनुमानजी की कृपा प्राप्त होती है।
मंगलवार के दिन हनुमान जी को क्या-क्या चढ़ाएं-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हनुमानजी को बूंदी का भोग बेहद प्रिय है। ऐसे में अगर कोई मंगलवार का व्रत रखता है तो उसे इस दिन किसी हनुमान-मंदिर में जाकर बूंदी का भोग जरूर लगाना चाहिए। हनुमान जी को मंगलवार के दिन बेसन के लड्डुओं का भी भोग लगाया जाता है। कहते हैं कि हनुमान जी को सिंदूर बेहद प्रिय है। ऐसे में आप चाहें तो हनुमानजी को सिंदूर भी चढ़ा सकते हैं। हालांकि हनुमान जी को चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर अर्पित करना ज्यादा लाभकारी बताया गया है। मंगलवार के दिन हनुमानजी की विशेष कृपा पाने के लिए उन्हें चोला भी चढ़ाया जाता है। मंगलवार के दिन हनुमान जी के चरणों में गुलाब के फूल अर्पित करने से भी उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
मंगलवार को जरूर करें 5 काम-
हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए मंगलवार की शाम उन्हें केवड़े का इत्र अर्पित करें। कहा जाता है कि हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए यह आसान उपाय है।
मंगलवार के दिन हनुमान जी के मन्दिर जाएं और उनके श्री रूप के कंधों पर से सिंदूर लाकर नजर लगे व्यक्ति के माथे पर लगाएं। कहा जाता है कि ऐसा करने से नजर दोष शीध्र ही दूर हो जाते हैं।
मंगलवार के दिन किसी भी हनुमान मंदिर में सुबह या शाम के समय राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। मान्यतानुसार ऐसा करने से जीवन की तमाम समस्याओं का निवारण हो जाता है।
मंगलवार की शाम को हनुमान मंदिर में जाएं और एक सरसों के तेल का और एक शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद मंदिर परिसर में किसी शुद्ध और लाल रंग के आसन पर बैठकर हनुमान चालीसा का कम से कम 3 बार पाठ करें। ऐसा करने के हर मनोकामना पूर्ण होती है।
शनि दोष को दूर करने के लिए भी मंगलवार का दिन खास माना गया है। ऐसे में अगर आप शनि दोष को दूर कर हनुमान जी की कृपा पाना चाहते हैं तो दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। ध्यान रहे, शनि स्तोत्र के मंत्रों का पाठ शुद्ध और सस्वर होना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से शनि देव प्रसन्न होकर हर संकट दूर कर देते हैं।
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कामदा एकादशी आज, जानिए...व्रत का महत्व

हिंदू धर्म में कामदा एकादशी का व्रत बहुत खास माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि यह व्रत सभी पापों को मिटा देता है। जो लोग जाने-अनजाने में गलतियां कर बैठते हैं, उनके लिए यह व्रत पापों से छुटकारा दिलाने वाला होता है। यही कारण है कि कामदा एकादशी का व्रत रखना बेहद पुण्य देने वाला समझा जाता है।
इस दिन व्रत और पूजा के साथ-साथ विष्णु मंत्रों का जाप करना बहुत फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि मंत्र जाप से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति आती है। "कामदा" का मतलब है "मन की इच्छाएं पूरी करने वाली।" भक्तों का मानना है कि इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की सच्चे मन से प्रार्थना करने से उनकी सही इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। साथ ही यह व्रत पापों से मुक्ति दिलाता है। आज कामदा एकादशी का पवित्र दिन है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन उनकी पूजा करने का विशेष महत्व है। पूजा को और प्रभावशाली बनाने के लिए भगवान विष्णु के साथ मां तुलसी की आरती करना जरूरी माना जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है और उनकी हर पूजा में तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल होता है।
इस दिन विष्णु जी की आरती के बाद तुलसी मां की आरती करने से पूजा का पूरा फल मिलता है और भगवान प्रसन्न होते हैं। विष्णु पुराण में एक कहानी है कि प्राचीन समय में भोगीपुर नाम का एक शहर था। वहां राजा पुण्डरीक का राज था। उस शहर में अप्सराएं, किन्नर और गंधर्व भी रहते थे। उनमें ललिता और ललित नाम के गंधर्व दंपत्ति में बहुत प्यार था। एक दिन ललित राजा के दरबार में गीत गा रहा था, तभी उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई। इससे उसका गाने का लय बिगड़ गया। गुस्से में राजा ने ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया।
ललिता को यह बात पता चली तो वह दुखी हो गई। वह श्रृंगी ऋषि के पास गई और मदद मांगी। ऋषि ने कहा, "चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसे कामदा एकादशी कहते हैं। इसका व्रत करो और पुण्य अपने पति को दो, वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा।" ललिता ने ऐसा ही किया। व्रत के पुण्य से ललित राक्षस रूप से छूटकर अपने असली रूप में लौट आया। मान्यता है कि कामदा एकादशी का व्रत करने से हर मुश्किल दूर होती है और मन की मुरादें पूरी होती हैं।
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रोज 108 बार महामृत्युंजय मंत्र के जाप से खत्म होगी शनि की साढ़ेसाती ख़त्म

महामृत्युंजय मंत्र का जाप भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है और इस मंत्र का जाप करने से अकाल मृत्यु से भी रक्षा होती है। मान्यता है कि अगर किसी के घर में कोई गंभीर रूप से बीमार है तो रोजाना 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से शीघ्र आराम मिलता है। इसके साथ ही अगर महाकाल की पूजा के साथ इस मंत्र का जाप रोजाना किया जाए तो व्यक्ति से अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है। आज हम आपको इस चमत्कारी मंत्र की उत्पत्ति और इससे जुड़ी कथा के बारे में बता रहे हैं...
किस वजह से दुखी थे मृकंड ऋषि?
भगवान शिव के परम भक्त ऋषि मृकंड निःसंतान होने के कारण दुखी थे। विधाता ने उनके भाग्य में संतान को शामिल नहीं किया था। मृकंड ने सोचा कि अगर महादेव संसार के सारे नियम बदल सकते हैं तो क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्न करके इस नियम को भी बदल दिया जाए। तब ऋषि मृकंड ने कठोर तपस्या शुरू कर दी। भोलेनाथ मृकंड की तपस्या का कारण जानते थे इसलिए वे तुरंत प्रकट नहीं हुए, लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोलेबाबा को झुकना पड़ा। महादेव प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषि से कहा, मैं विधि का विधान बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं, लेकिन इस वरदान के साथ सुख-दुख भी होंगे।
ऐसे थे मृकण्ड ऋषि के पुत्र-
भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को मार्कण्डेय नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह अल्पायु, गुणवान बालक है। इसकी आयु मात्र 12 वर्ष है। ऋषि की खुशी दुख में बदल गई। मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वासन दिया कि भगवान की कृपा से बालक सुरक्षित रहेगा। भाग्य बदलना उनके लिए आसान काम है।
मार्कण्डेय की मां चिंतित हो गईं-
जब मार्कण्डेय बड़े हुए तो उनके पिता ने उन्हें शिव मंत्र की दीक्षा दी। मार्कण्डेय की मां बालक की बढ़ती उम्र को लेकर चिंतित थीं। उन्होंने मार्कण्डेय को उसकी अल्पायु के बारे में बताया। मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता की खुशी के लिए वह भगवान शिव से लंबी आयु मांगेंगे, जिन्होंने उन्हें जीवन दिया था। बारह वर्ष बीत गए।
मार्कण्डेय ने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना-
मार्कण्डेय ने भगवान शिव की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका निरंतर जाप करने लगे।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।
जब समय पूरा हुआ तो यमदूत उसे लेने आए। जब ​​यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की पूजा कर रहा है तो वे कुछ देर तक प्रतीक्षा करने लगे। मार्कण्डेय ने निरंतर जाप का व्रत ले रखा था। वे बिना रुके जाप करते रहे। यमदूतों में मार्कण्डेय को छूने का साहस नहीं हुआ और वे लौट गए। उन्होंने यमराज से कहा कि उनमें बालक तक पहुंचने का साहस नहीं है। इस पर यमराज ने कहा कि मैं स्वयं मृकण्ड के पुत्र को लेकर आऊंगा। यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंचे। बालक मार्कण्डेय ने जब यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया। जब यमराज ने बालक को शिवलिंग से दूर ले जाने का प्रयास किया तो मंदिर तेज गर्जना के साथ हिलने लगा। तेज प्रकाश से यमराज की आंखें चौंधिया गईं।
शिवलिंग से प्रकट हुए महाकाल-
शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हुए। उन्होंने हाथ में त्रिशूल लेकर यमराज को चेतावनी दी और पूछा कि आपने ध्यान में लीन मेरे भक्त को खींचने का साहस कैसे किया..? यमराज महाकाल जोर-जोर से कांपने लगे। उन्होंने कहा- प्रभु मैं आपका सेवक हूं। आपने ही मुझे प्राण लेने का क्रूर कार्य सौंपा है। भगवान का क्रोध कुछ कम हुआ और उन्होंने कहा, 'मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने उसे लंबी आयु का आशीर्वाद दिया है। आप इसे नहीं ले जा सकते।' यम ने कहा- प्रभु आपका आदेश सर्वोच्च है। मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वालों को कष्ट नहीं दूंगा। मार्कण्डेय जी महाकाल की कृपा से दीर्घायु हुए, अतः उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त कर देता है।
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आर्थिक तंगी से परेशान हैं तो रोज सुबह करें ये काम, पूरी होगी हर मनोकामना

हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी को धन और वैभव की देवी माना जाता है. धार्मिक ग्रंथो के अनुसार यह कहा जाता है कि यदि मां लक्ष्मी आप से किसी कारणवश रूठ जाती हैं तो आपके जीवन में धन की कमी होने लगती है. धन की कमी होने से जीवन में बहुत-सी परेशानियों का आगमन हो जाता है. इसलिए लोग सदैव मां लक्ष्मी को प्रसन्न रखने की कोशिश करते हैं. आइए इस लेख में यह जानने की कोशिश करते हैं कि आर्थिक तंगी से बचने के लिए क्या उपाय करने चाहिए|
इस रंग के फूल से मां लक्ष्मी होंगी प्रसन्न-
यदि आप आर्थिक तंगी से बचना चाहते हैं तो मां लक्ष्मी को रोज सुबह उठकर लाल रंग के फूल अर्पित करें. घर के पूजा स्थल पर मां लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर के सामने लाल रंग के फूल चढ़ाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और व्यक्ति को कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है.
हनुमान जी करेंगे बेड़ा पार-
भगवान राम के प्रिय भक्त हनुमान जी का पूजन करने से आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है. इसके लिए आप एक पीपल के पत्ते पर राम लिखकर किसी मंदिर में रख दीजिए. ध्यान रहे कि राम नाम वाला पत्ता हनुमान जी के चरणों के पास बिलकुल न रखें|
रोजाना करें यह पाठ-
आर्थिक तंगी से बचने के लिए यदि आप सुबह उठकर कनकधारा का श्रद्धापूर्वक पाठ करते हैं तो आपको जीवन में तरक्की मिलती रहेगी और सफलता के योग आपके जीवन में बनेंगे|
साफ-सफाई रखें-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि मां लक्ष्मी को घर और द्वार पर सफाई अत्यंत प्रिय है. आर्थिक तंगी से बचने के लिए आप रोज सुबह उठकर घर के मुख्य द्वार और घर की सफाई करें. ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, साथ ही यह वास्तुशास्त्र के अनुसार शुभ माना जाता है|
तुलसी का करें पूजन-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को तुलसी का पौधा बहुत ही प्रिय है. इसलिए माना जाता है रोजाना सुबह उठकर स्नान कर तुलसी में जल अर्पित करने और दीपक जलाकर पूजा करने से आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलती है|
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कामदा एकादशी के व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं, जानिए...सही नियम

पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 07 अप्रैल को रात 08 बजे शुरू होगी और 08 अप्रैल को रात 09 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार, 08 अप्रैल को कामदा एकादशी मनाई जाएगी. कामदा एकादशी का पारण 09 अप्रैल को किया जाएगा. व्रती लोग 09 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 02 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 34 मिनट के मध्य पारण कर सकते हैं|
कामदा एकादशी व्रत पूजा विधि-
कामदा एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें. इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहन लें और भगवान विष्णु का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें. इसके बाद एक तांबे के लोटे में जल, फूल, अक्षत और सिंदूर डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें. फिर चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें. भगवान विष्णु की मूर्ति को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मन्त्र का उच्चारण करें. पंचामृत से स्नान आदि कराकर वस्त्र, चन्दन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप-दीप, नैवेद्य, ऋतुफल, पान, नारियल, आदि अर्पित करें. इसके बाद कामदा एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करें और एकादशी व्रत पूजा के आखिरी में आरती करें|
कामदा एकादशी व्रत में क्या खाएं-
कामदा एकादशी व्रत में सभी प्रकार के फल खाए जा सकते हैं, जैसे कि सेब, केला, अंगूर, पपीता, अनार आदि.
आलू, कद्दू, लौकी, खीरा, टमाटर, पालक, गाजर और शकरकंद जैसी सब्जियां खा सकते हैं.
दूध, दही, पनीर और मक्खन जैसे डेयरी उत्पाद खा सकते हैं.
बादाम, काजू, किशमिश और अखरोट जैसे सूखे मेवे खा सकते हैं.
कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, और समा के चावल जैसे अनाज खा सकते हैं.
मूंगफली का तेल, घी, या सूरजमुखी का तेल जैसे तेल खा सकते हैं.
सेंधा नमक और चीनी खा सकते हैं।
कामदा एकादशी व्रत में क्या न खाएं-
अनाज: गेहूं, चावल और दाल जैसे अनाज नहीं खाएं.
सब्जियां: प्याज और लहसुन जैसी सब्जियां नहीं खाएं.
मांस, मछली, और अंडे: मांस, मछली और अंडे का सेवन नहीं करें.
शराब और धूम्रपान: शराब और धूम्रपान का सेवन नहीं करें.
मसाले: गर्म मसाले, धनिया पाउडर और हल्दी पाउडर जैसे मसाले नहीं खाएं.
तेल: तिल का तेल और सरसों का तेल जैसे तेल नहीं खाएं.
नमक: साधारण नमक का सेवन नहीं करें|
कामदा एकादशी व्रत के नियम-
एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें. इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र पहन लें और भगवान विष्णु का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें. इसके बाद एक तांबे के लोटे में जल, फूल, अक्षत और सिंदूर डालकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें. फिर चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित करें. भगवान विष्णु की मूर्ति को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मन्त्र का उच्चारण करते हुए पंचामृत से स्नान आदि कराकर वस्त्र, चन्दन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, तिल, धूप-दीप, नैवेद्य, 1 ऋतुफल, पान, नारियल, आदि अर्पित करें|
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