धर्म समाज

मासिक कार्तिगाई आज, पढ़ें महत्व और पूजा विधि

मासिक कार्तिगई दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला सबसे पुराना त्यौहार है। मासिक कार्तिगई एक विशेष रूप से दक्षिण भारतीय त्यौहार है और मुख्य रूप से तमिलनाडु में मनाया जाता है। मासिक कार्तिगई साल के हर महीने में होती है। इसे कार्तिगई दीपम के नाम से भी जाना जाता है। तमिलनाडु और केरल में यह त्यौहार दिवाली की तरह मनाया जाता है। इस दिन लोग दीयों में तेल डालते हैं और दीप जलाते हैं। भक्त इस दिन भगवान शिव और भगवान मुरुगन की पूजा करते हैं। इस खास दिन पर भगवान को भोग लगाने के लिए अडाई, वडाई, अप्पम, नेल्लू पोरी और मुत्तई पोरी आदि जैसे खाद्य पदार्थ तैयार किए जाते हैं।
मासिक कार्तिगई पूजा विधि-
इस दिन लोग अपने घर की सफाई करते हैं और पूरे घर को फूलों से सजाते हैं। भोग तैयार करने के बाद पूजा की जाती है। भगवान शिव और भगवान मुरुगन की आरती की जाती है और उनके घर में बने भोजन का भोग लगाया जाता है।
मासिक कार्तिगई महत्व-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान मुरुगन का जन्म भगवान शिव की तीसरी आंख से हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि मुरुगन छह अलग-अलग भागों में आए थे। प्रत्येक भाग को एक अलग नाम दिया गया है। देवी पार्वती ने सभी छह संस्थाओं को मिलाकर एक छोटे लड़के का रूप तैयार किया था। जिसे कार्तिकेय के नाम से जाना जाता है, जो भगवान शिव और देवी पार्वती के दूसरे पुत्र थे। कार्तिगई के दिन भगवान शिव की पूजा करने और दीपक जलाकर उनका अध्ययन करने से जीवन से नकारात्मकता दूर होती है। भगवान शिव की कृपा से परिवार में सब कुछ समृद्ध होता है।
मासिक कार्तिगई के उपाय-
मासिक कार्तिगई के दिन पूजा करते समय इत्र, सिंदूर, धतूरा, लाल फूल, दूध, शहद, घी, चीनी, गुड़, दही, मिठाई, फल आदि शामिल करना चाहिए। इस दिन सुगंधित तेल का दीपक जलाएं। मुरुगन को गुलाबी कनेर के फूल चढ़ाना बहुत शुभ होता है। मुरुगन जी के चावल की खीर का भी भोग लगाया जाता है।
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इस एक दिन के उपाय से मिलेगा भगवान शिव का आशीर्वाद

अगर आप किसी कारणवश 5 पशुपतिनाथ व्रत नहीं कर पा रहे हैं, तो सोमवार के दिन निम्न सरल उपाय करके भी भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं. यह उपाय पशुपतिनाथ व्रत जैसा प्रभावी है, लेकिन यह एक ही दिन में पूरा होने वाला है. इसका प्रभाव बहुत शुभ होता है|
सोमवार का एक दिवसीय शिव उपाय-
पहले शिवलिंग को शुद्ध जल, दूध, दही, घी और शहद से स्नान कराएं, जिसे पंचामृत अभिषेक कहा जाता है. पुनः स्वच्छ जल से स्नान कराकर बेलपत्र, सफेद पुष्प और चंदन अर्पित करें. तत्पश्चात “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें अथवा “महामृत्युंजय मंत्र” का 11 बार जाप करें. इसके बाद शिव चालीसा या शिव आरती गाएं और सच्चे मन से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें|
सोमवार के दिन यदि संभव हो तो व्रत रखें या केवल फलाहार करें. यदि पूर्ण उपवास कठिन हो, तो सात्विक भोजन करें और दिनभर संयम, शांति और सकारात्मकता बनाए रखें. इस दिन झूठ बोलने, क्रोध करने और कटु वचन बोलने से बचना चाहिए. भगवान शिव को बेलपत्र, आक के फूल और चंदन अत्यंत प्रिय हैं, अतः इन्हें अर्पित करना अत्यंत फलदायक होता है|
यह एक दिवसीय सरल साधना विशेष रूप से स्वास्थ्य, मानसिक शांति, पारिवारिक सुख, करियर में उन्नति और ऋण मुक्ति के लिए अत्यंत प्रभावी मानी जाती है. श्रद्धा और भक्ति के साथ किया गया यह उपाय भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न करता है. सच्चे हृदय से की गई भक्ति कभी निष्फल नहीं जाती. अतः यदि आप नियमित व्रत नहीं कर पा रहे हैं तो सोमवार के दिन यह छोटा सा उपाय अवश्य करें और शिव कृपा का अनुभव करें|
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मंगलवार को ये काम करने वाला कभी नहीं होता गरीब

मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित है क्योंकि इस दिन इनका जन्म हुआ था और मंगल ग्रह पर हनुमान जी शासन करते हैं। बल, बुद्धि और विद्या की प्राप्ति के लिए प्रतिदिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए लेकिन मंगलवार के दिन उनकी पूजा का विशेष प्रावधान है। मंगल कामना और भावना से हनुमान जी के साथ जुड़ने से वे सभी तरह के संकटों से मुक्ति दिला देते हैं। हनुमान जी आपको जीवन के प्रत्येक संकट से निकाल सकते हैं और आपके जीवन में संकटमोचन बन कर सभी संकटों का अंत कर सकते हैं। मंगलवार को ये काम करने वाला कभी नहीं होता कंगाल-
मंगलवार के दिन राम मंदिर में जाएं और दाहिने हाथ के अंगुठे से हनुमान जी के सिर से सिंदूर लेकर सीता माता के श्री चरणों में लगा दें, इससे आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।
अगर डर पीछा नहीं छोड़ा रहा और आप तनाव में रहते हैं तो ऐसे में 7 दिन हनुमान जी की विशेष पूजा करें या फिर हनुमान अष्टक और हनुमान चालीस प्रतिदिन 100 बार पढ़ें।
अगर हनुमान जी को पुरी तरह खुश रखना चाहते हैं तो अपनी ऊंचाई के अनुसार नाल को गांठ बांधकर नारियल पर लपेटकर उस पर केसर या सिंदूर से स्वस्तिक बनाकर बजरंगबली के चरणों में अर्पित करें।
अपने मुंह को दक्षिण की ओर कर सात दिन तक रोजना पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर 180 बार हनुमान चालीसा पढ़ें, जिससे आपको धन की कभी कमी नहीं होगी।
ग्रहों की समस्या सता रही है तो काले चने और गुड़ लेकर प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी के मंदिर में प्रसाद बांटें और हनुमान चालीसा का जाप करें।
कहा जाता है कि अगर पूरे ध्यान से 21 दिन विधि-विधान से बजरंग बाण का पाठ किया जाए तो सारी परेशानियां हल होती हैं।
मंगलवार को हनुमान मंदिर में नारियल रखना अच्छा माना जाता है।
मंगलवार के दिन किसी हनुमान मंदिर में ध्वजा चढ़ा कर आर्थिक समृद्धि की प्रार्थना करनी चाहिए। 5 मंगलवार तक ऐसा करने से धन के मार्ग की सारी रूकावटें दूर हो जाएंगी।
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इस मूलांक के लोगों के लिए बेहद शुभ रहने वाली है अक्षय तृतीया

  • धन-धान्य में होगी वृद्धि
इस बार यह शुभ दिन 30 अप्रैल को पड़ रहा है। यह पर्व माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन पूरी श्रद्धा और विश्वास से की गई पूजा का फल कई गुना बढ़कर मिलता है। इस दिन शुभ वस्तुओं की खरीद से जीवन में कभी भी धन और सुख-समृद्धि की कमी नहीं होती।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार की अक्षय तृतीया विशेष रूप से उन लोगों के लिए भाग्यशाली रहने वाली है जिनका मूलांक 1 है। मूलांक 1 उन लोगों का होता है जिनका जन्म किसी भी महीने की 1, 10, 19 या 28 तारीख को हुआ हो। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
मूलांक 1 के लिए अक्षय तृतीया के शुभ संकेत
1 तारीख को जन्मे लोग
जिन लोगों का जन्म 1 तारीख को हुआ है, उनके प्रयासों को इस दिन मनचाही सफलता मिल सकती है। आर्थिक पक्ष पहले की तुलना में बेहतर होगा और किसी रुके हुए कार्य में प्रगति के संकेत भी दिख रहे हैं।
10 तारीख को जन्मे लोग
10 तारीख को जन्म लेने वाले लोगों का मूलांक 1 होता है। इनके लिए यह दिन आर्थिक समृद्धि लेकर आ सकता है। आपको अटका हुआ पैसा वापस मिलने की संभावना है और कार्यस्थल पर उन्नति के योग भी बन रहे हैं।
19 तारीख को जन्मे लोग
जिन लोगों का जन्मदिन 19 तारीख को आता है उनका मूलांक भी एक होता है। इनके करियर में सकारात्मक बदलाव हो सकते हैं। इनका विदेश में नौकरी पाने का सपना भी साकार हो सकता है। इसके अलावा कोई नई संभावनाएं दस्तक दे सकती हैं।
28 तारीख को जन्मे लोग
28 तारीख को जन्मे लोगों को इस दिन किसी नए अवसर की प्राप्ति हो सकती है। साथ ही आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकती है। इस दिन आप कोई महत्वपूर्ण फैसला ले सकते हैं, तो आपके पक्ष में जा सकता है।
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अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को, इस विधि से करें पूजा

  • मां लक्ष्मी बरसाएंगी कृपा
हिंदू धर्म के साथ अक्षय तृतीया का जैन धर्म में भी बहुत अधिक महत्व है. ‘अक्षय’ का अर्थ है ‘कभी कम न होने वाला’ और ‘तृतीया’ का अर्थ है ‘तीसरा दिन’. यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. इस साल 2025 में अक्षय तृतीया 30 अप्रैल दिन बुधवार को है. इस दिन को अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है. मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग और त्रेतायुग का आरंभ हुआ था. इसलिए इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है. यह दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्मदिन भी माना जाता है|
कहा जाता है कि महाभारत का लेखन कार्य इसी दिन वेद व्यास ने शुरू किया था और भगवान गणेश ने उसे लिखा था. महाभारत में वर्णित है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को अक्षय पात्र प्रदान किया था, जो कभी भी भोजन से खाली नहीं होता था. एक और मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान कुबेर को भगवान शिव और ब्रह्मा से आशीर्वाद प्राप्त हुआ था और उन्हें स्वर्ग के कोषाध्यक्ष का पद मिला था.
पंचांग के अनुसार, इस साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (अक्षय तृतीया) 29 अप्रैल को शाम 5 बजकर 32 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 30 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 15 मिनट तक रहेगी. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, अक्षय तृतीया का पर्व 30 अप्रैल दिन बुधवार को ही मनाया जाएगा|
अक्षय तृतीया पूजा विधि-
अक्षय तृतीया के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें. यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है.
स्नान के बाद साफ और विशेष रूप से पीले रंग के वस्त्र धारण करें, क्योंकि पीला रंग भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी दोनों को प्रिय है.
घर के पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें. एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें|
हाथ में जल, अक्षत (साबुत चावल) और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें और मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमाओं को रोली, चंदन, हल्दी और कुमकुम का तिलक लगाएं|
भगवान विष्णु को पीले फूल और मां लक्ष्मी को कमल या गुलाबी रंग के फूल अर्पित करें और पूजा स्थल पर धूप और घी का दीपक जलाएं.
भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी को नैवेद्य के रूप में जौ या गेहूं का सत्तू, फल (विशेषकर आम और खीरा), मिठाई और भीगे हुए चने अर्पित करें. मां लक्ष्मी को खीर या सफेद मिठाई का भोग लगाना भी शुभ माना जाता है|
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना भी अत्यंत फलदायी माना जाता है और अक्षय तृतीया की व्रत कथा सुनें या पढ़ें. भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आरती गाएं.
पूजा के अंत में भगवान विष्णु को तुलसी जल अर्पित करें और अपनी क्षमतानुसार गरीबों, ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जल, फल, सोना या चांदी का दान करें. माना जाता है कि इस दिन किया गया दान अक्षय फल देता है.
इन मंत्रों का करें जाप-
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नम:” “ॐ महालक्ष्म्यै नमो नम:” भगवान विष्णु के मंत्रों का भी जाप करें: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
इस विधि से अक्षय तृतीया की पूजा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं, जिससे घर में धन, समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है|
अक्षय तृतीया का महत्व-
अक्षय तृतीया को ‘अबूझ मुहूर्त’ माना जाता है, जिसका अर्थ है कि इस दिन कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नया व्यवसाय शुरू करना आदि बिना किसी मुहूर्त देखे किया जा सकता है. इस दिन दान-पुण्य करना अत्यंत फलदायी माना जाता है. लोग अपनी क्षमतानुसार अन्न, वस्त्र, जल, फल, सोना आदि दान करते हैं. इस दिन सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है और यह भविष्य में समृद्धि का प्रतीक है. अक्षय तृतीया किसी भी नए कार्य या व्यवसाय की शुरुआत के लिए एक शुभ दिन माना जाता है. इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण और श्राद्ध कर्म करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है|
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सोमवार को करें ये 5 उपाय, महादेव बरसाएंगे कृपा

सोमवार को किए जाने वाले इन खास उपायों को अपनाना लाभकारी हो सकता है। तो आज की इस खबर में आइए जानते हैं सोमवार को कौन-कौन से काम करें, जो आपके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति ला सकते हैं।
सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है और यह दिन विशेष रूप से उनके पूजन और व्रत के लिए माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन जो भक्त शिव जी की सच्चे मन से उपासना करता है, उसे महादेव का आशीर्वाद जरूर मिलता है। यही नहीं, इस दिन कुछ खास उपायों को अपनाकर हम भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं, जो हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति में मदद कर सकते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपके जीवन में हर दिशा से सकारात्मक बदलाव आए, तो सोमवार को किए जाने वाले इन खास उपायों को अपनाना लाभकारी हो सकता है। तो आज की इस खबर में आइए जानते हैं सोमवार को कौन-कौन से काम करें, जो आपके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति ला सकते हैं।
शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाएं-
सोमवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और शिवलिंग पर शुद्ध जल और दूध चढ़ाएं। साथ में बेलपत्र अर्पित करें और "ॐ नमः शिवाय" का मंत्र पढ़ें। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आपकी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं। यह उपाय आप हर सोमवार को कर सकते हैं।
सोमवार का व्रत रखें-
सोमवार को व्रत रखना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन सात्विक आहार लें और भगवान शिव का ध्यान करें। इससे आपके सभी कामों में सफलता मिल सकती है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। इसलिए आप चाहे तो इस उपाय को कर सकते हैं।
जरूरतमंदों को दान दें-
सोमवार के दिन किसी जरूरतमंद को दान देने से पुण्य मिलता है। आप सफेद चीजों जैसे दूध, चावल या चीनी का दान कर सकते हैं। यही नहीं, आप किसी निर्धन व्यक्ति को धन का भी दान कर सकते हैं। इससे आपके घर में सुख और समृद्धि आती है।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें-
सोमवार को महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से सेहत में सुधार होता है और जीवन लंबा होता है। यही नहीं, इस मंत्र का जाप करने से सारे दुखों और कष्टों में भी मुक्ति मिलती है। ऐसे में इस मंत्र को 108 बार जरूर पढ़ें और फिर देखें कि महादेव आप पर क्या कृपा करते हैं।
"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"
सफेद रंग के कपड़े पहने-
सोमवार के दिन सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनें। इससे मन में शांति बनी रहती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होता है, जिससे आपके काम अच्छे होते हैं।
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परशुराम जयंती कल 29 अप्रैल को, जानिए...शुभ योग एवं पूजा विधि

हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान विष्णु के छठे अवतार, परशुराम जी की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष परशुराम जयंती 29 अप्रैल 2025 को पड़ेगी। पंचांग के अनुसार, तृतीया तिथि 29 अप्रैल को शाम 05:31 बजे शुरू होगी और 30 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी। चूंकि भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था, इसलिए जयंती 29 अप्रैल को ही मनाई जाएगी। आइए जानते हैं इस दिन कौन-कौन से शुभ योग बन रहे हैं और पूजा की विधि क्या रहेगी। इसके अलावा कुछ खास मान्यताओं के बारे में जानेंगे।
परशुराम जयंती 2025 के शुभ योग-
इस साल परशुराम जयंती पर कुछ विशेष शुभ संयोग बन रहा है। इस दिन सौभाग्य योग 03:54 बजे तक रहेगा। इसके अलावा त्रिपुष्कर योग सुबह 05:42 बजे से शाम 05:31 बजे तक रहेगा और सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05:42 बजे से शाम 06:47 बजे तक रहेगा। ऐसा माना जाता है कि इन शुभ योगों में भगवान परशुराम की पूजा करने से देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
परशुराम जयंती पर पूजा विधि-
परशुराम जयंती के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए दिन की शुरुआत करें। फिर घर की साफ-सफाई करें और गंगाजल मिले जल से स्नान करें। स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
इसके बाद विधिपूर्वक भगवान परशुराम की पूजा करें। प्रदोष काल के दौरान व्रत और उपवास रखने का भी विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में व्रत करने से इसका फल कई गुना बढ़ जाता है और व्यक्ति की सभी समस्याएं दूर हो जाती है।
परशुराम जी से जुड़ी कुछ खास मान्यता-
पौराणिक कथाओं के अनुसार परशुराम जी आज भी धरती पर विराजमान हैं। यही वजह है कि उनकी पूजा विधि भगवान विष्णु के अन्य अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण से भिन्न है। दक्षिण भारत में उडुपी के निकट पजाका नामक स्थान पर परशुराम जी का एक प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है। ऐसी मान्यता है कि भविष्य में भगवान विष्णु के अंतिम अवतार, कल्कि को, परशुराम जी शस्त्र विद्या का ज्ञान कराएंगे।
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चारधाम यात्रा : ओंकारेश्वर मंदिर से केदारनाथ धाम रवाना हुई बाबा केदार की डोली

देहरादून उत्तराखंड में चारधाम यात्रा की तैयारियां जोरों पर हैं। ऐसे में 2 मई से शुरू होने जा रही केदारनाथ यात्रा को लेकर भी उत्साह दिखाई देने लगा है। सोमवार को ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से बाबा केदारनाथ की चलविग्रह डोली ने अपने दिव्य धाम की ओर प्रस्थान कर लिया है। इस दौरान सैकड़ों की तादाद में श्रद्धालु मौजूद रहे और क्षेत्र बाबा केदारनाथ की जय-जयकार से गूंज उठा।
दरअसल, बाबा केदारनाथ की चलविग्रह डोली उखीमठ में छह महीने के लिए रुकती है, जहां पूजा-अर्चना होती है और जब कपाट खुलने का ऐलान होता है तो फिर यह डोली वापस केदारनाथ धाम लौट आती है। सोमवार की सुबह 'बाबा केदारनाथ की उत्सव डोली' आर्मी बैण्ड की भक्तिमय धुनों, हजारों भक्तों के उत्साह और भोले के जयकारों के साथ अपने प्रथम पड़ाव विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी के लिए प्रस्थान हुई। केदारनाथ धाम के रावल भीमाशंकर लिंग ने पंच केदार गढ़ीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में पुजारी बागेश लिंग को विधि विधान के साथ अंग वस्त्र और मुकुट पहनाकर आशीर्वाद दिया।
डोली प्रस्थान से पहले बीती रात को बाबा केदारनाथ के रक्षक क्षेत्रपाल भैरवनाथ की पूजा-अर्चना संपन्न की गई। बता दें कि 6 महीनों के शीतकालीन प्रवास के बाद अब शुभ घड़ी आ गई है। श्री केदार बाबा की पंचमुखी डोली विभिन्न पड़ावों से होते हुए 1 मई को केदारनाथ धाम पहुंचेगी, 2 मई को सुबह 7 बजे बाबा केदारनाथ के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे। इस दौरान जिला प्रशासन, पुलिस, मंदिर समिति के अधिकारी, कर्मचारी, तीर्थ पुरोहितों सहित हजारों भोले भक्त मौजूद रहेंगे।
इससे पहले, यात्रा मार्ग और केदारनाथ धाम में व्यवस्थाओं को अंतिम रूप देने के लिए संस्कृति एवं भाषा विभाग के सचिव और केदारनाथ यात्रा के प्रभारी सचिव युगल किशोर पंत ने क्षेत्र का स्थलीय निरीक्षण किया था।
निरीक्षण के दौरान युगल किशोर पंत केदारनाथ मंदिर परिसर पहुंचे और वहां चल रहे पुनर्निर्माण तथा सौंदर्यीकरण कार्यों का जायजा लिया। उन्होंने निर्माण कार्यों की गुणवत्ता और प्रगति की समीक्षा करते हुए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए कि सभी कार्य समयबद्ध तरीके से पूरे किए जाएं, ताकि यात्रा शुरू होने से पहले श्रद्धालुओं को किसी भी असुविधा का सामना न करना पड़े। इसके साथ ही उन्होंने गौरीकुंड से केदारनाथ तक के पैदल मार्ग का भी निरीक्षण किया और मार्ग पर जमी बर्फ को तत्काल हटाने के लिए संबंधित विभागों को आदेश दिए। मंदिर परिसर में जमी बर्फ को भी शीघ्र हटाने पर जोर दिया गया।
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मासिक शिवरात्रि के दिन सुनें ये व्रत कथा

  • विवाह में आ रही रुकावटें होंगी दूर
मासिक शिवरात्रि का व्रत भोलेनाथ को समर्पित है. यह व्रत हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन रखा जाता है. मान्यता है कि मासिक शिवरात्रि का व्रत करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं. वहीं इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करने से व्रत पूर्ण माना जाता है, जिससे व्यक्ति के विवाह में आ रही सभी बाधाएं भी दूर होती हैं|
मासिक शिवरात्रि व्रत कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहा करता था. ब्राह्मण की पत्नी बहुत पूजा-पाठ करती थी. वो हमेशा ही मासिक शिवरात्रि का व्रत किया करती थी. पत्नी को देखकर ब्राह्मण भी मासिक शिवरात्रि का व्रत करने लगा. एक बार मासिक शिवरात्रि पर खूब भक्ति भाव से दोनों पति-पत्नी ने भगवान भोलेनाथ के पूजन के साथ-साथ उनका व्रत किया और शिव जी से हमेशा कृपा बनाए रखने का आशीर्वाद मांगा. इसके बाद ब्राह्मण दंपति ने गांव के पथिकों को दक्षिणा भी दी|
उसी दिन गांव में एक ब्राह्मण आया हुआ था, जो बहुत दुखी था. ब्राह्मण पति-पत्नी ने उसे बुलाकर भगवान शिव की कृपा से पूरा भोजन करवाया. ब्राह्मण पति-पत्नी ने मासिक शिवरात्रि पर एक दुखियारे को भोजन कराने का सौभाग्य प्राप्त किया. इसके बाद भगवान शिव ने ब्राह्मण दंपति पर अपनी विशेष कृपा की. भगवान शिव के आशीर्वाद से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो गई|
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मासिक शिवरात्रि आज, इन चीजों से करें शिवलिंग का अभिषेक

  • पूरी होगी हर मनोकामना
शिवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह दिन भगवान शिव के प्रति श्रद्धा, भक्ति और आस्था का प्रतीक है। प्रत्येक माह में एक विशेष दिन होता है जिसे मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से भगवान शिव की उपासना, ध्यान और पूजा का दिन होता है और इसे बहुत श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव का अभिषेक करने से जीवन में सुख, समृद्धि, शांति और समग्र शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। विशेष रूप से, मासिक शिवरात्रि 2025 के दिन महादेव का अभिषेक किस प्रकार करें, ताकि सभी परेशानियां दूर हो और जीवन में आ रही समस्याओं का समाधान हो, इस पर हम विस्तार से बात करेंगे।
मासिक शिवरात्रि का महत्व
शिवरात्रि का पर्व महा शिवरात्रि और मासिक शिवरात्रि के रूप में दो प्रमुख रूपों में मनाया जाता है। जहां महा शिवरात्रि का आयोजन साल में एक बार होता है, वहीं मासिक शिवरात्रि हर महीने की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान शिव की उपासना, साधना और प्रार्थना का दिन होता है। विशेष रूप से शिवजी की उपासना से मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त होती है, साथ ही उनके समग्र जीवन में सुधार आता है। मासिक शिवरात्रि के दिन विशेष रूप से रात्रि जागरण, ध्यान, पूजा और व्रत रखना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन भगवान शिव का पूजन विधिपूर्वक करने से समस्त पापों का नाश होता है और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
भगवान शिव का अभिषेक किन चीजों से करें?
जल- जल को शिव अभिषेक के लिए सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र सामग्री माना जाता है। जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से शांति और समृद्धि के मार्ग खुलते हैं। साथ ही, जल के माध्यम से भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है। शिवलिंग पर शुद्ध जल अर्पित करते समय ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें। इसके बाद जल से अभिषेक करें।
दूध- दूध भगवान शिव के अभिषेक में बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह शुद्धता और अच्छाई का प्रतीक है। दूध से अभिषेक करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्त के सभी पापों का नाश होता है। दूध से अभिषेक करने के दौरान, एक विशेष ध्यान रखें कि दूध शुद्ध और ताजे हो। इसे भगवान शिव के शिवलिंग पर अर्पित करें और मंत्र का जाप करें।
दही- दही का भी भगवान शिव के अभिषेक में विशेष स्थान है। यह शांति और सौम्यता का प्रतीक होता है। दही का अभिषेक करने से मानसिक शांति और जीवन में सुख-संतोष की प्राप्ति होती है। दही से अभिषेक करने के बाद एक शांतिपूर्ण वातावरण में भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त करें।
गंगाजल- गंगाजल का उपयोग शिव के अभिषेक में अत्यधिक शुभ माना जाता है। गंगा का जल पवित्रता का प्रतीक है और इसका उपयोग भगवान शिव के साथ-साथ सभी देवताओं की पूजा में किया जाता है। गंगाजल से अभिषेक करने से समस्त पापों का नाश होता है और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। गंगाजल से अभिषेक करने के बाद अपने पूरे परिवार के लिए प्रार्थना करें। गंगाजल से अभिषेक करने से जीवन में स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
शहद- शहद भी एक और महत्वपूर्ण सामग्री है जो शिव अभिषेक में उपयोगी होती है। शहद का उपयोग करने से भक्त के जीवन में मधुरता आती है और भगवान शिव की कृपा से हर काम में सफलता मिलती है। शहद से अभिषेक करते समय शिवलिंग को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ शहद अर्पित करें। साथ ही ॐ महादेवाय नमः मंत्र का जाप करें।
चीनी- चीनी का भी भगवान शिव के अभिषेक में एक विशेष स्थान है। यह मिठास का प्रतीक है और जीवन में खुशियों के आने का संकेत देती है। चीनी से अभिषेक करने से सुख, समृद्धि और प्रेम बढ़ता है। चीनी का प्रयोग शुद्ध रूप में करें और शिवलिंग पर अर्पित करें। इसके बाद ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करें।
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शनिवार को शमी के पत्तों से करें ये खास उपाय

हिंदू धर्म में शनिवार का दिन विशेष रूप से शनि देव को समर्पित होता है। शनि ग्रह को न्याय का देवता कहा गया है, जो हमारे कर्मों के अनुसार फल देते हैं। अगर शनि की दृष्टि प्रतिकूल हो तो जीवन में रुकावटें, आर्थिक समस्याएं, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ और मानसिक तनाव हो सकता है। लेकिन अगर शनि देव प्रसन्न हो जाएं, तो व्यक्ति को असीम धन, सफलता और आत्मिक शांति प्राप्त होती है। इन्हीं उपायों में से एक अत्यंत प्रभावशाली उपाय है शमी के पत्तों का प्रयोग। शमी का पेड़ शनि देव को अत्यंत प्रिय माना गया है और इससे जुड़े उपायों को अपनाकर हम शनि के नकारात्मक प्रभाव को शांत कर सकते हैं।
शमी के पेड़ पर दीपक जलाएं-
शमी के पौधे पर सरसों के तेल का दीपक जलाना और अर्घ्य अर्पित करना सच में शनि देव को प्रसन्न करने का एक बेहतरीन तरीका है। इससे न सिर्फ शनि के दोष शांत होते हैं बल्कि आर्थिक तंगी भी धीरे-धीरे दूर होने लगती है। गमले में एक रुपये का सिक्का और सुपारी रखना भी कमाल का टोटका है। यह न सिर्फ व्यर्थ खर्चों को रोकता है बल्कि धन की बचत और स्थिरता लाता है।
शमी के पत्तों को तिजोरी या पर्स में रखें-
शनिवार को शमी के पेड़ से साफ-सुथरे और ताजे पत्ते तोड़ें। उसे किसी लाल कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी, लॉकर या पर्स में रखें। यह उपाय आर्थिक समृद्धि लाता है और धन की हानि से रक्षा करता है।
शमी के पेड़ पर तेल चढ़ाएं-
शनिवार के दिन शमी के पेड़ पर जाकर सरसों का तेल चढ़ाएं। साथ ही पेड़ की जड़ में दीपक जलाकर शनि मंत्र का जाप करें। इससे शनि देव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और जीवन में आने वाली अड़चनें दूर होती हैं।
शमी के पत्तों से हटाएं बुरी नजर-
बच्चों या घर के सदस्यों को नज़र लगी हो तो शमी के पत्ते से 7 बार उतारा करें। फिर उन पत्तों को जल में बहा दें या किसी सुनसान स्थान पर फेंक दें। यह उपाय नज़र दोष को खत्म करता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।
इन मंत्रों का करें जाप-
ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥
इस मंत्र का जाप करने से शनि की सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है और मन शांत रहता है।
काले तिल करें अर्पित-
जो जातक साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रभाव में हैं, उनके लिए शनिवार का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन शमी के पौधे की जड़ में काले तिल और उड़द की काली दाल अर्पित करें। यह उपाय शनि देव के दुष्प्रभाव को शांत करने और जीवन की कठिनाइयों को दूर करने में मदद करेगा। शनि देव की विशेष कृपा प्राप्त होगी और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा।
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ब्रह्ममुहूर्त में इस प्रकार करें मंत्र का जाप, भाग्य में होगा सुधार

पूजा में मंत्रों का विशेष महत्व होता है। सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र को बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली माना जाता है। इस मंत्र को महामंत्र भी कहा जाता है। देवी गायत्री वेदों की माता हैं जिसमें वर्तमान, भूत और भविष्य शामिल हैं। इसी कारण से उन्हें त्रिमूर्ति के रूप में भी पूजा जाता है। कमल के फूल पर विराजमान मां गायत्री धन और समृद्धि प्रदान करती हैं। गायत्री मंत्र का जाप करने से मानसिक शांति मिलती है और जीवन में खुशियां आती हैं। इस मंत्र का जाप करने से कोई भी मनुष्य ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। गायत्री मंत्र का जाप ईश्वर तक पहुंचने और मन की शांति पाने का सबसे अच्छा और सरल तरीका माना जाता है। गायत्री मंत्र का नियमित और विधिपूर्वक जाप करने से जल्द ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।
गायत्री मंत्र के नियम-
गायत्री मंत्र का विधिपूर्वक जाप आस्था और सच्ची भावना से करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। प्रतिदिन पूजा में गायत्री मंत्र की तीन माला का जाप करना जरूरी माना जाता है। वहीं अगर आप गायत्री मंत्र की 11 माला का जाप करते हैं तो आपको हमेशा ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसके लिए सुबह अपने दैनिक कामों से निपटकर और स्नान करके अपने घर के मंदिर के सामने सुखासन या पद्मासन की मुद्रा में बैठ जाएं। अब इस मंत्र का जाप करना शुरू करें।इस मंत्र का जाप करते समय ध्यान रखें कि आपके होंठ हिलते रहें लेकिन आवाज इतनी धीमी हो कि पास बैठा व्यक्ति भी न सुन सके। इस तरह से माला जपने और मंत्र जपने से सद्बुद्धि का संचार होता है। जाप करने से पहले शुभ मुहूर्त में कांसे के बर्तन में जल भर लें। गायत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं उपसर्ग लगाकर गायत्री मंत्र का जाप करें। मंत्र जाप के बाद बर्तन में भरा पानी पी लें। इससे किसी भी बीमारी से मुक्ति मिलती है।
गायत्री मंत्र के लिए ये तीन समय सर्वोत्तम हैं-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
गायत्री मंत्र के जाप के लिए तीन समय प्रभावी माने गए हैं। गायत्री मंत्र का जाप करने का पहला समय सूर्योदय से थोड़ा पहले से लेकर सूर्योदय के थोड़ा बाद तक है। गायत्री मंत्र का जाप दोपहर के समय भी किया जा सकता है। जबकि तीसरा समय सूर्यास्त से ठीक पहले है। सूर्यास्त से पहले जाप शुरू करें और सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक करें।
गायत्री मंत्र के लाभ-
इस मंत्र के जाप से सभी संकट निष्फल हो जाते हैं। इसका प्रयोग हर क्षेत्र में सफलता दिलाने वाला सिद्ध हुआ है। मनोकामना पूर्ति के लिए भी गायत्री मंत्र का जाप बहुत कारगर माना जाता है। नौकरी या व्यापार में परेशानी होने पर गायत्री मंत्र का जाप लाभकारी होता है। सभी तरह की बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए भी गायत्री मंत्र का जाप अचूक माना जाता है। यहां दी गई जानकारी केवल मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।
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इन 3 राशियों के लोगों पर हमेशा रहती है सूर्य की कृपा

ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रह मौजूद हैं, जिन्हें नवग्रह भी कहा जाता है। इन ग्रहों में सूर्य, बुध, चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति, शुक्र, शनि और राहु-केतु का नाम शामिल है। हालांकि राहु और केतु को "छाया ग्रह" माना गया है। ये सभी अपने विशेष स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। ग्रहों के इन प्रभावों से सभी 12 राशियों पर इसका असर पड़ता है। इस दौरान सूर्य को सबसे खास ग्रह माना गया है और उन्हें ज्योतिष में ग्रहों के राजा का दर्जा प्राप्त है। वह आत्मा, अधिकार, सम्मान, नेतृत्व गुण और पिता के कारक माने जाते हैं।
व्यक्ति की कुंडली में उनकी स्थिति जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। यदि कुंडली में सूर्य मजबूत न हो, तो व्यक्ति के आत्मविश्वास में कमी आने लगती हैं और वह कई तरह की समस्याएं भी झेलता है। परंतु कुछ राशियों पर ग्रहों के राजा सूर्य की सदा कृपा बनी रहती हैं और यह सभी क्षेत्र में तरक्की भी करते हैं। आइए इन लकी राशि वालों के नाम जानते हैं।
मेष राशि- वैदिक ज्योतिष के अनुसार, मेष राशि सूर्य की प्रिय राशि में से एक है। इस राशि के जातकों पर उनकी सदैव कृपा बनी रहती हैं। सूर्य के प्रभाव से इनके आत्मविश्वास में वृद्धि और भाग्य बदलता है। समाज में मान-सम्मान मिलता है और ये लोग अपनी मेहनत और लगन से सभी कार्यों में सफलता हासिल करते हैं।
सिंह राशि- सूर्य सिंह राशि के स्वामी ग्रह हैं और इन जातकों पर वह हमेशा मेहरबान रहते हैं। सूर्य के प्रभाव से सिंह राशि के लोगों को व्यापार, करियर, निवेश और शिक्षा में मनचाहे परिणाम मिलते हैं। इस राशि के जातक आत्मविश्वास माने जाते हैं और इनके नेतृत्व गुण इन्हें समाज में मान-सम्मान दिलाते हैं। इस राशि के लोगों का स्वयं पर बहुत अच्छा नियंत्रण होता है।
धनु राशि- सूर्य के प्रभाव से धनु राशि के लोग व्यवसाय और अध्ययन में सफल होते हैं। वह आत्मविश्वास से भरपूर होने के कारण शिक्षा क्षेत्र में भी अच्छा नाम कमाते हैं। सरकारी कार्यों का भी इन्हें लाभ मिलता है। अगर यह किसी नए काम को करना चाहते हैं, तो सूर्यदेव के आशीर्वाद से उसमें आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। ज्योतिषियों के मुताबिक सूर्य उपासना के लिए रविवार का दिन सबसे अच्छा माना गया है। यदि धनु राशि वाले इस दिन सूर्य को जल देते हैं, तो कई तरह के लाभ मिल सकते हैं।
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आज वरुथिनी एकादशी, पढ़ें ये व्रत कथा

एकदशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. वैसे तो साल में कुल 24 एकादशी तिथि का व्रत किया जाता है. वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में वरूथिनी एकादशी का व्रत आयोजित होता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति सभी प्रकार के पापों से मुक्त होता है और उसके जीवन में सुख और समृद्धि का आगमन होता है. वहीं वरूथिनी एकादशी के दिन पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करने से व्रत पूरा माना जाता है|
वरूथिनी एकादशी व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय राजा मांधाता का राज्य नर्मदा नदी के तट पर बसा था. वे धर्मात्मा राजा थे. वे अपनी प्रजा की सेवा करते थे और पूजा, पाठ, धर्म, कर्म में उनका मन लगता था. एक दिन वे जंगल में चले गए और वहां पर तपस्या करनी शुरू कर दी. वे तपस्या में काफी समय तक लीन रहे. एक दिन एक भालू वहां पर आया और राजा मांधाता पर हमला कर दिया|
इस हमले में भालू ने राजा मांधाता के पैर को पकड़ लिया और घसीटने लगा. उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया और भगवान के तप में ही लगे रहे. उन्होंने अपने प्रभु श्रीहरि का स्मरण करके जीवन रक्षा की प्रार्थना की. इतने समय में भालू उनको जंगल के और अंदर लेकर चला गया. तभी भगवान विष्णु प्रकट हुए. उन्होंने उस भालू का वध कर दिया और राजा मांधाता के प्राण बच गए. भाल के हमले में राजा मांधाता का पैर खराब हो गया था. इस बात से वे काफी दुखी थे|
तब भगवान विष्णु ने राजा मांधाता को बताया कि यह तुम्हारे पिछले जन्मों के कर्मों का ही फल है. तुम्हें परेशान नहीं होना चाहिए. जब वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष में एकादशी आए तो उस दिन मथुरा में भगवान वराह की पूजा विधिपूर्वक करो. उस व्रत और पूजन के प्रभाव से एक नया शरीर प्राप्त होगा|
श्रीहरि की ये बात सुनकर राजा मांधाता खुश हो गए. वे प्रभु की आज्ञा पाकर वैशाख कृष्ण एकादशी यानि वरूथिनी एकादशी को मथुरा पहुंच गए. उन्होंने वरूथिनी एकादशी का व्रत रखा और भगवान वराह की विधिपूर्वक पूजा की. व्रत के बाद पारएा करके उपवास को पूरा किया. इस व्रत के पुण्य से उनको एक नया शरीर प्राप्त हुआ. वे अपने राज्य वापस लौट आए और सुखी जीवन व्यतीत करने लगे. जब उनकी मृत्यु हुई तो उनको स्वर्ग की प्राप्ति हुई. उनको सद्गति मिली|
ऐसी ही जो भी व्यक्ति वरूथिनी एकादशी का व्रत विधि विधान से करता है और वरूथिनी एकादशी की व्रत कथा सुनता है, उस पर प्रभु हरि की कृपा होती है. उसके पाप मिटते हैं और वह मोक्ष पा जाता है. वह भयहीन हो जाता है|
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कुंडली में कालसर्प दोष तो करें इस मंत्र का जाप, मिलेगी मुक्ति

कुंडली में कालसर्प दोष से लोग परेशान रहते हैं। इससे काम में सफलता नहीं मिलती। मानसिक परेशानी बनी रहती है। मेहनत का फल नहीं मिलता। कालसर्प दोष का योग होने पर व्यक्ति को प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। भगवान शिव की पूजा से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव की पूजा के दौरान अगर आप शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करते हैं और उस समय इत्र और कपूर का इस्तेमाल करते हैं तो कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। शिव पंचाक्षर स्तोत्र को बहुत ही प्रभावशाली माना जाता है। आइए जानते हैं शिव पंचाक्षर स्तोत्र के बारे में।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र-
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:।।
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:।।
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:।।
यह भी पढ़ें: कुंडली में क्या है कालसर्प योग? कैसे पहचानें? जानें बचाव के 7 उपाय
वशिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:।।
यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:।।
पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ।
शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे ‘न’ काराय नमः शिवायः।।
कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए सावन में रुद्राभिषेक सबसे अच्छा उपाय है। सावन का महीना भगवान शिव की पूजा के लिए सबसे अच्छा महीना माना जाता है। रुद्राभिषेक करने से आप बीमारियों और बुराइयों से मुक्ति पा सकते हैं। शिव पूजा में आप प्रतिदिन शिव पंचाक्षर मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप भी कर सकते हैं। यह सबसे सरल और प्रभावशाली मंत्र है।
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चंद्र ग्रहण 2025 में दूसरी बार लगेगा चंद्र ग्रहण, भारत में रहेगा दृश्य

खगोल विज्ञान के अनुसार, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं, तो पृथ्वी के कारण सूर्य की रोशनी चंद्रमा पर नहीं पड़ती है। इस घटना को चंद्र ग्रहण कहा जाता है। आपको बता दें, चंद्र ग्रहण खगोल विज्ञान की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है और इसका असर देश-दुनिया पर भी देखने को मिलता है। इसलिए जब भी कोई ग्रहण लगता है, तो खास सावधानियां बरती जाती हैं। इस बार 14 मार्च 2025 को होली के दिन साल का पहला चंद्र ग्रहण लग चुका है। इसके बाद अब सबकी नजरें दूसरे चंद्र ग्रहण पर हैं। आपको बता दें, साल का दूसरा चंद्र ग्रहण 7 सितंबर 2025 को लगने जा रहा है। यह ग्रहण भाद्रपद पूर्णिमा के दिन लगेगा। ऐसे में आइए जानते हैं इसके समय और प्रभाव के बारे में विस्तार से...
चंद्र ग्रहण का समय
साल का दूसरा चंद्र ग्रहण 7 सितंबर 2025 को लगेगा, जो भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि है। यह ग्रहण रात 9:58 बजे शुरू होगा, जो देर रात 1:26 बजे खत्म होगा। यह ग्रहण पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। खास बात यह है कि यह चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा। इसके अलावा यह एशिया, यूरोप, अंटार्कटिका, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर में भी दिखाई देगा।
सूतक काल मान्य होगा
ज्योतिषियों के अनुसार, 7 सितंबर को लगने वाला चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा, इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य होगा। आपको बता दें, चंद्र ग्रहण शुरू होने से हमेशा 9 घंटे पहले सूतक लग जाता है। इस दौरान भोजन, पूजा, यात्रा और खरीदारी वर्जित होती है।
चंद्र ग्रहण के दिन क्या न करें
ग्रहण लगने पर मंदिरों में मूर्तियों को छूने से बचें।
इस दौरान पूजा-पाठ न करें। यह अशुभ होता है।
कैंची, सुई-धागा और नुकीली चीजों का इस्तेमाल न करें।
ग्रहण को देखने की गलती न करें।
ग्रहण के दौरान महिलाओं को श्रृंगार नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के दौरान बाहर जाने से बचना चाहिए, साथ ही कोई नया काम करने की गलती भी न करें। ग्रहण के दौरान खाना पकाना और खाना उचित नहीं है। इस दौरान तेल मालिश न करें। नाखून और बाल काटने से भी बचें। ग्रहण के दौरान बहुत ज्यादा भागदौड़ करने से बचना चाहिए।
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अप्रैल में इस दिन मनाएं मासिक शिवरात्रि

जानिए...तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, दूसरा महीना वैशाख चल रहा हैं इस साल 14 अप्रैल से वैशाख महीने का आरंभ हुआ हैं। जिसका समापन 13 मई 2025 को होगा। धार्मिक मान्यताओं में इस महीने को बहुत ही शुभ महीना माना जाता हैं। क्योकि यह मासिक शिवरात्री का महीना होता हैं। इस दिन बाबा भोलेनाथ का व्रत किया जाता हैं पंचाग के अनुसार, मासिक शिवरात्रि कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता हैं।
वैशाख मासिक शिवरात्रि के मुहूर्त
26 अप्रैल की सुबह 08:27 मिनट पर शुभ मुहूर्त और समापन अगले दिन 27 अप्रैल को सुबह 04:49 मिनट पर होगा और 26 अप्रैल को मासिक शिवरात्रि का व्रत किया जायेगा। शिव की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती हैं। इस दिन भगवान को कुछ चीजों का भोग लगाया जाना बेहद ही शुभ माना जाता हैं।
इस दिन भवान शिव जी की पूजा अर्चना की जाती हैं पूजा में भोग का भी बड़ा महत होता हैं। इसके बिना पूजा सम्पन्न नहीं होती हैं। ऐसे में भगवान की प्रिय भोग लगाना चाहिए इस दिन भगवान को मालपुआ खीर फल ठंडाई और लस्सी को भोग में लगाया जाता हैं ये सभी भगवान को बेहद प्रिय हैं।
बता दें इस बार मासिक शिवरात्रि पर कई शुभ योग बनने जा रहे हैं अभिजीत महूर्त में सुबह 11:53 मिनट से लेकर दोपहर 12:45 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा इस दिन भद्रावास योग भी बन रहा हैं इसका शुभ योग सुबह 08:27 मिनट होगा।
मासिक शिवरात्रि व्रत-पूजा की विधि
मासिक शिवरात्रि के दिन भक्त सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत-पूजन करते हैं। और रात को शुभ महूर्त पर मासिक शिवरात्रि की पूजा करते हैं। पूजा के समय पहले शिवलिंग को पानी और फिर दूध से जलाभिषेक करते हैं। इसके बाद पुष्प मालाएं अर्पित करते हैं और शुद्ध घी का दीपक जलाते हैं। इसके बाद एक एक कर अबीर, गुलाल, रोली, बिल्प पत्र, धतूरा चीजें शिवलिंग पार चढ़ाते हैं और फिर भोग लगाकर पूजा और व्रत को सम्पन्न करते हैं।
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वरुथिनी एकादशी के दिन करें इन 7 चीजों का दान, दूर होगी वैवाहिक बाधाएं

वरुथिनी एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है. जो कि वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को हर साल मनाई जाती है. यह दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है, जिन्हें जगत का पालनहार माना जाता है. इस दिन उनकी आराधना करने से भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. मान्यता है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को अपने सभी पापों से मुक्ति मिलती है, चाहे वे इस जन्म के हों या पिछले जन्मों के. इस व्रत को करने से जीवन में सौभाग्य, धन और समृद्धि आती है. यह दुख और दुर्भाग्य को दूर करने वाला माना जाता है|
कुछ धार्मिक ग्रंथों में यह भी कहा गया है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत अंततः मोक्ष की ओर ले जाता है, जिससे आत्मा जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाती है. यह व्रत जीवन में आने वाली सभी प्रकार की कठिनाइयों, दुखों और परेशानियों से छुटकारा दिलाने में सहायक माना जाता है. वरुथिनी एकादशी के दिन दान-पुण्य करना अत्यंत फलदायी माना जाता है. इस दिन किए गए दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है
पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 23 अप्रैल दिन बुधवार को शाम 04 बजकर 43 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 24 अप्रैल दिन गुरुवार को दोपहर 02 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, वरुथिनी एकादशी 24 अप्रैल दिन गुरुवार को ही मनाई जाएगी. इसके अलावा व्रत का पारण 25 अप्रैल दिन शुक्रवार को सुबह 05 बजकर 46 मिनट से 08 बजकर 23 मिनट तक किया जाएगा|
वरुथिनी एकादशी पर इन चीजों का करें दान-
केला: भगवान विष्णु को केला अत्यंत प्रिय है. वरुथिनी एकादशी के दिन गरीब और जरूरतमंदों को केला दान करना शुभ माना जाता है. इससे वैवाहिक जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और प्रेम बढ़ता है|
मौसमी फल: अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार अन्य मौसमी फलों का दान करना भी कल्याणकारी होता है. इससे घर में सुख-समृद्धि आती है और रिश्तों में मधुरता बनी रहती है|
धन: वरुथिनी एकादशी के दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन का दान करना भी शुभ माना जाता है. इससे आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं और वैवाहिक जीवन में स्थिरता आती है. दान करने से पहले भगवान विष्णु के सामने धन अर्पित करें|
पीले वस्त्र: भगवान विष्णु को पीला रंग बहुत प्रिय है. इस दिन पीले वस्त्रों का दान करना, विशेष रूप से विवाहित जोड़ों को, वैवाहिक जीवन में खुशहाली लाता है और आपसी समझ बढ़ाता है|
अन्न: वरुथिनी एकादशी पर अन्न का दान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इससे न केवल दान करने वाले को पुण्य मिलता है, बल्कि यह पितरों को भी तृप्त करता है, जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं|
मिट्टी का घड़ा भरकर जल: गर्मी के मौसम में पानी से भरा मिट्टी का घड़ा दान करना बहुत पुण्य का कार्य है. इससे न केवल राहगीरों को राहत मिलती है, बल्कि यह आपके वैवाहिक जीवन में शीतलता और प्रेम बनाए रखने में भी सहायक होता है|
तिल: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु से हुई है. एकादशी के दिन काले तिल का दान या उसे जल में प्रवाहित करना भगवान विष्णु और शनिदेव दोनों को प्रसन्न करता है, जिससे वैवाहिक जीवन की परेशानियां कम होती हैं|
वरुथिनी एकादशी का महत्व-
हिन्दू धर्म में वरुथिनी एकादशी एक महत्वपूर्ण और फलदायी व्रत है जो भक्तों को भगवान विष्णु की कृपा, पापों से मुक्ति और जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करता है. इसके साथ ही इस व्रत के करने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सभी कष्ट दूर होते हैं. इसके अलावा यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दान करते समय श्रद्धा और भक्ति का भाव होना चाहिए. अपनी क्षमता के अनुसार दान करें और जरूरतमंदों की सहायता करें. वरुथिनी एकादशी के दिन व्रत और भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा भी वैवाहिक जीवन की बाधाओं को दूर करने में सहायक होती है|
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