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कब रखा जाएगा सावन का पहला सोमवार व्रत, जानें तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त

सोमवार भगवान शिव का वार है और सावन शिव का महीना, इसलिए इस महीने के सोमवार विशेष रूप से पूजनीय माने जाते हैं। इन सोमवारों को सावन सोमवारी कहा जाता है। इस दिन श्रद्धालु शिवजी का व्रत रखते हैं, उपवास करते हैं, शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा आदि अर्पित करते हैं और शिव चालीसा, रुद्राष्टक या महामृत्युंजय जाप का पाठ करते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं साल 2025 में सावन का महीना कब से शुरू हो रहा है और सावन का पहला सोमवार व्रत किस दिन रखा जाएगा।
सावन 2025 में कब से कब तक रहेगा सावन-
इस वर्ष सावन का महीना 11 जुलाई 2025 से शुरू होकर 9 अगस्त 2025 तक चलेगा। इस दौरान कुल चार सोमवार आएंगे। सावन का समापन रक्षाबंधन पर्व के साथ होगा, जो भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक है, जो इस बार 9 अगस्त को मनाया जाएगा।
सावन सोमवार की तिथियां-
पहला सोमवार- 14 जुलाई 2025
दूसरा सोमवार- 21 जुलाई 2025
तीसरा सोमवार- 28 जुलाई 2025
चौथा सोमवार- 4 अगस्त 2025
पहले सावन सोमवार पर शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:16 से 5:04 बजे तक
अभिजित मुहूर्त- दोपहर 11:59 बजे से 12:55 बजे तक
अमृत काल- रात 11:21 बजे से 12:55 बजे तक, जुलाई 15
पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय- दोपहर 11:38 बजे से 12:32 बजे तक
ऐसी मान्यता है कि जो भक्त पूरे सावन मास के सभी सोमवारों का व्रत नहीं कर सकते, वे कम से कम पहले और अंतिम सोमवार का व्रत अवश्य करें। यह भी उतना ही पुण्यदायी होता है और शिव कृपा प्राप्त होती है।
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वट पूर्णिमा व्रत आज, जानें क्या करें और क्या न करें

पंचांग के मुताबिक इस बार ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 10 जून को सुबह 11 बजकर 35 मिनट पर होगी। इसका समापन 11 जून को दोपहर 1:13 मिनट पर है। ऐसे में वट पूर्णिमा का व्रत 10 जून को रखा जा रहा है। इस दौरान जहां पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन सुखमय के लिए व्रत रखने का विधान है। वहीं कुछ खास चीजों को करने की मनाही भी होती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि वट पूर्णिमा पर क्या करें और क्या न करें।हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत को नारी शक्ति, प्रेम और त्याग का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व पर सभी महिलाएं पति की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इसके अलावा वट सावित्री व्रत पर वट वृक्ष की पूजा का विधान है। मान्यता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। इसलिए पेड़ की उपासना करने से महिलाओं को सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत को साल में दो बार रखा जाता है, जिसमें पहला ज्येष्ठ अमावस्या और दूसरा ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि पर रखा जाता है।
क्या करें और क्या न करें-
वट पूर्णिमा के दिन सुबह ही स्नान कर लेना चाहिए और साफ वस्त्रों को धारण करें।
इस दिन वट वृक्ष की पूजा अवश्य करनी चाहिए। यह बेहद शुभ होता है।
वट पूर्णिमा के दिन पेड़ को जल अर्पित करें और हल्दी-कुमकुम से पूजा करना न भूलें।
वट पूर्णिमा के दिन सावित्री और सत्यवान की कथा का पाठ करें।
इस दिन लाल धागे से वट वृक्ष के चारों ओर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
वट पूर्णिमा पर निर्जला व्रत रखें।
इस दिन व्रत का पारण करते हुए महिलाएं पति को तिलक लगाकर उनके चरणों का स्पर्श करें।
सत्यव्रत का पालन करें-
तामसिक चीजों से दूर रहें।
पूजा में पवित्रता का खास ख्याल रखें।
जरुरतमंदों को अन्न, फल, धन और वस्त्रों का दान करें।
स्वच्छता का खास ध्यान रखना चाहिए।
वट पूर्णिमा पर आप किसी भी तरह के विवाद या कलह में न पड़े।
व्रती महिलाओं को मन में नकारात्मक विचारों को रखने से बचना चाहिए। इसके अलावा झूठ भी न बोलें।
इस दिन आप बाल न धोएं और कटवाएं भी न।
एक दिन पहले सात्विक भोजन करें।
वट पूर्णिमा व्रत में सोलह श्रृंगार करें।
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हनुमान जी के आखिरी मंगलवार को करें ये उपाय

साल 2025 में जेठ माह में कुल 5 मंगलवार हैं. जिन्हें बड़ा मंगल के नाम से जाना जाता है. जेठ महीने का आखिरी बड़ा मंगल 10 जून 2025 को है. इस दिन हनुमान जी की पूजा और उनकी आराधना और उपाय करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. जेठ महीना समाप्त होने जा राहा है. वहीं जेठ पूर्णिमा के दिन बड़ा मंगल पड़ रहा है. जिससे की यह बेहद शुभ माना जा रहा है. बड़ा मंगल को बुढ़वा मंगल भी कहते हैं. इस शुभ अवसर पर कुछ विशेष उपाय कर हनुमान जी को प्रसन्न भी किया जा सकता है. आइए आपको बताते हैं|
महत्व-
रामभक्त हनुमानजी को शक्ति, भक्ति, बुद्धि और साहस का प्रतीक माना जाता है. वह ऐसे देवता हैं, जो रामभक्त, चिरंजीवी और संकटमोचक कहलाते हैं. वैसे तो सभी मंगलवार का अपना महत्व है लेकिन ज्येष्ठ मास के बड़े मंगल को हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन हनुमानजी की विशेष रूप से पूजा अर्चना करने से सभी कष्टों व परेशानियों से मुक्ति मिलती है. अगर आप भी किसी भी तरह की परेशानी से मुक्ति चाहते हैं या फिर मनोकामना पूरी करवाना चाहते हैं तो बड़े मंगल का व्रत रखकर हनुमानजी को सिंदूर और चोला अर्पित करें. कहा जाता है कि जिन पर हनुमानजी की कृपा हो जाए, उन्हें जीवन में कभी भय, बाधा, रोग या दरिद्रता नहीं छू सकती|
करें ये उपाय-
हनुमान जी की बूंदी का प्रसाद जरूर चढ़ाएं और लोगों में बांटे.
बड़े मंगल के दिन हनुमान जी को उनके प्रिय फूल चमेली की माला चढ़ाएं.
बड़े मंगल के दिन हनुमान जी को उनका प्रिय सिंदूर चढ़ाया जाता है.
हनुमान जी के मंत्र ‘ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः’ या फिर ‘ऊँ भौं भौमाय नम: ‘ मंत्र का जाप करें.
बड़े मंगल पर हनुमान जी को पान का बीड़ा, बेसन के लड्डू का भोग, इमरती का भोग लगाएं, यह सभी चीजें हनुमान जी की प्रिय हैं.
बड़े मंगल पर हनुमान चालीसा का पाठ और बजरंग बाण का पाठ करें. ऐसा करने बिगड़े काम बन जाते हैं और संकट मोचन हनुमान जी सभी कष्ट और संकटों का निवारण करते हैं|
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ज्येष्ठ माह के अंतिम मंगलवार को हनुमान गढ़ी मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़

अयोध्या। हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ माह के पांचवें और अंतिम मंगलवार को श्री हनुमान गढ़ी मंदिर में बड़ी संख्या में भक्तों ने पूजा-अर्चना की। तस्वीरों में मंदिर में पूजा-अर्चना और प्रसाद चढ़ाते भक्त दिखाई दे रहे हैं। भक्त वेद प्रकाश शर्मा ने एएनआई को बताया, "हम राजस्थान से परिवार के साथ आए हैं। हमें राम मंदिर (श्री राम जन्मभूमि मंदिर) में मंगला आरती के दर्शन हुए। वहां बहुत भीड़ थी और हमें हनुमान मंदिर में दर्शन करने का मौका नहीं मिला। हालांकि, राम मंदिर में हमारा अनुभव शानदार रहा। सनातन धर्म समुदाय को बहुत लंबा इंतजार करना पड़ा, लेकिन अब इंतजार खत्म हो गया है।"
हनुमान गढ़ी मंदिर की आधिकारिक साइट के अनुसार, मंदिर अयोध्या धाम में स्थित है। माना जाता है कि भगवान हनुमान 10वीं शताब्दी से इस स्थान पर हैं, जहां वे अयोध्या के राजा के रूप में विराजमान हैं। भगवान हनुमान की ऐसी अनोखी मूर्ति दुनिया के किसी भी मंदिर में नहीं है। दुनिया के हर कोने से भक्त यहां भगवान हनुमान के दर्शन के लिए आते हैं। मंगलवार और शनिवार को दर्शन के लिए विशेष भीड़ आती है। मंदिर तक पहुंचने के लिए कुल 76 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
स्थल के बारे में कहा जाता है कि जब भगवान राम रावण को हराकर अयोध्या लौटे, तो भगवान हनुमान यहां रहने लगे। इसीलिए इसका नाम हनुमानगढ़ या हनुमान कोट पड़ा। यहीं से भगवान हनुमान रामकोट की रक्षा करते थे। मुख्य मंदिर में भगवान हनुमान अपनी मां अंजनी की गोद में विराजमान हैं।
मंगलवार को प्रयागराज के श्री बड़े हनुमान जी मंदिर में भी इस शुभ दिन पर पूजा-अर्चना करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ी यह दिन हिंदू कैलेंडर के ज्येष्ठ महीने में आता है और हनुमान भक्त विभिन्न अनुष्ठान करते हैं और मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। कुछ भक्त देवता को प्रसन्न करने के लिए उपवास भी रखते हैं। पिछले मंगलवार को, महीने के चौथे बड़े मंगल पर, प्रयागराज के संगम पर लेटे हनुमान मंदिर या लेटे हुए हनुमान मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। (एएनआई)
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स्वामीनारायण मंदिर की रजत जयंती के पाठोत्सव में शामिल हुए बृजमोहन अग्रवाल

रायपुर। राजधानी रायपुर स्थित श्री स्वामीनारायण मंदिर में इस वर्ष एक ऐतिहासिक अध्याय जुड़ गया, जब मंदिर स्थापना के 25 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में भव्य पाठोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस शुभ अवसर पर लोकसभा सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने कार्यक्रम में शामिल होकर दिव्य वातावरण का साक्षात्कार किया और श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए मंदिर की सामाजिक भूमिका को रेखांकित किया।
दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण रहा पाठोत्सव
पाठोत्सव कार्यक्रम में मंदिर परिसर भक्ति और श्रद्धा की गूंज से भर उठा। श्री स्वामीनारायण भगवान के पावन ग्रंथों का सस्वर पाठ, भजन-कीर्तन, सत्संग और प्रवचन से वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो गया। कार्यक्रम में न केवल स्थानीय श्रद्धालु, बल्कि आसपास के जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए। इस विशेष मौके पर आयोजित ध्वज पूजन, सामूहिक आरती, और महाप्रसाद का आयोजन भी हुआ, जिससे श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक तृप्ति मिली।
सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने मंदिर की भूमिका को बताया समाज-निर्माण की आधारशिला
कार्यक्रम में उपस्थित होकर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने कहा “श्री स्वामीनारायण मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह समाज को नैतिकता, सेवा, सदाचार, और संयम का संदेश देने वाला प्रेरणास्थल है। यहाँ न सिर्फ पूजा होती है, बल्कि संस्कार, शिक्षा और सेवा के कार्यों को भी गहराई से निभाया जाता है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि रायपुर शहर का यह मंदिर बीते 25 वर्षों में सामाजिक समरसता और धार्मिक चेतना का केन्द्र बनकर उभरा है, जहां हर वर्ग और उम्र के लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन मिलता है।
साधु-संतों और भक्तों की विशेष उपस्थिति
कार्यक्रम में श्री स्वामीनारायण संप्रदाय के प्रतिष्ठित महंत स्वामीजी महाराज के शिष्य संतों, आचार्यों एवं प्रमुख साधुओं की गरिमामयी उपस्थिति रही। उन्होंने भक्तों को जीवन में धर्म, सेवा, त्याग और अनुशासन का महत्व बताया और मंदिर की विकास यात्रा की झलक प्रस्तुत की। संतों ने विशेष रूप से युवा वर्ग से नैतिकता और संयमपूर्ण जीवन अपनाने का आह्वान किया।
आयोजनों की झलकियां
शोभायात्रा में रथ पर विराजमान भगवान श्री स्वामीनारायण की झांकी
संगीतमय भजन संध्या में कलाकारों ने प्रस्तुत किए भक्तिरस से ओतप्रोत गीत
महाप्रसाद में हजारों श्रद्धालुओं ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया
मंदिर में रजत जयंती स्मृति चिह्न का अनावरण
श्रद्धालुओं की प्रतिक्रिया
श्रद्धालुओं ने आयोजन की भव्यता और शांति की अनुभूति को अविस्मरणीय बताया। उन्होंने बताया कि मंदिर ने न केवल धार्मिक जागरूकता बढ़ाई है, बल्कि जनसेवा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किए हैं- जैसे कि निःशुल्क चिकित्सा शिविर, वृक्षारोपण, पठन-पाठन सामग्री वितरण, आदि।
मंदिर की 25 वर्षों की यात्रा
1999 में स्थापित हुए श्री स्वामीनारायण मंदिर रायपुर ने धीरे-धीरे न केवल धार्मिक आस्था का केन्द्र बना, बल्कि समाजसेवा, शिक्षा और संस्कारों के प्रचार में भी अग्रणी भूमिका निभाई। यह मंदिर पूरे छत्तीसगढ़ में स्वामीनारायण संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है।
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"इस दिन तुलसी तोड़ना ब्रह्महत्या (ब्राह्मण हत्या) करने के समान"

हिंदू धर्म में तुलसी को बहुत ही पवित्र पौधा माना जाता है. तुलसी की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति आती है. तुलसी का पौधा भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है, क्योंकि भगवान विष्णु की पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है. यही कारण है कि ज्यादातर हिंदू परिवार में तुलसी के पौधे लगाते हैं और उनकी नियमित पूजा करते हैं. शास्त्रों में तुलसी को घर की पवित्रता, शुभता और सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया है|
मान्यता है कि जिस घर में तुलसी रखी जाती है, उस घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करती. तुलसी को जल चढ़ाना, दीपक जलाना और प्रतिदिन सुबह परिक्रमा करना शुभ फल देता है. लेकिन तुलसी के पत्ते तोड़ने को लेकर प्रेमानंद महाराज ने कुछ नियम बताए हैं, जिनका पालन करना बहुत जरूरी है, अन्यथा ब्रह्महत्या का पाप लग सकता है. आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से|
इस दिन तुलसी के पत्ते न तोड़ें-
प्रेमानंद महाराज के अनुसार द्वादशी तिथि पर तुलसी के पत्ते तोड़ना बहुत बड़ा पाप माना जाता है. इस दिन तुलसी तोड़ना ब्रह्महत्या (ब्राह्मण हत्या) करने के समान है. यह पाप इतना बड़ा माना जाता है कि इसे करने वाले व्यक्ति को नर्क भेजा जा सकता है|
इसके अलावा प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि साल में 12 एकादशी होती हैं, लेकिन निर्जला एकादशी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस दिन तुलसी के पौधे को छूना वर्जित है. जो व्यक्ति इस दिन तुलसी को छूता है, वह महापाप का भागी बन जाता है|
सप्ताह के इन दिनों में भी रहें सावधान-
प्रेमानंद महाराज के मुताबिक रविवार, मंगलवार और एकादशी के दिन तुलसी को जल देना चाहिए, लेकिन छूना या उसके पत्ते तोड़ना वर्जित है. इन दिनों तुलसी माता आराम करती हैं, इसलिए उन्हें परेशान नहीं करना चाहिए|
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वट पूर्णिमा 10 जून को, पति के साथ करें बरगद पेड़ की परिक्रमा

  • वैवाहिक जीवन होगा सुखमय
हिंदू धर्म में वट पूर्णिमा के दिन बरगद के पेड़ (वट वृक्ष) की पूजा का बहुत महत्व है. इस दिन पति के साथ बरगद के पेड़ की परिक्रमा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है. वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास माना जाता है. इसकी पूजा और परिक्रमा करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और पति की लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है. यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में प्रेम, सामंजस्य और विश्वास को मजबूत करता है. साथ में परिक्रमा करने से आपसी समझ बढ़ती है और वैवाहिक जीवन के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं|
ऐसी मान्यता है कि बरगद का पेड़ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है. इसकी परिक्रमा से घर और परिवार पर आने वाली नकारात्मक ऊर्जाओं का शमन होता है. यदि वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की कठिनाई या रुकावट आ रही हो, तो वट पूर्णिमा पर की गई पूजा और परिक्रमा उन बाधाओं को समाप्त करने में सहायक होती है|
द्रिक पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 10 जून को सुबह 11 बजकर 35 मिनट पर शुरू होगी और 11 जून को दोपहर 1 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगी. वट पूर्णिमा का व्रत 10 जून दिन मंगलवार को रखा जाएगा और स्नान-दान 11 जून को किया जाएगा|
वट पूर्णिमा पर पति के साथ करें रुद्राभिषेक-
रुद्राभिषेक मुख्य रूप से भगवान शिव की पूजा है, लेकिन वट पूर्णिमा पर भी पति के साथ कुछ विशेष उपाय करने से वैवाहिक जीवन सुखी रहता है|
वट पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके लाल या पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
पूजा की थाली में रोली, चावल, फूल, दीपक, धूप, अगरबत्ती, मौली (कलावा), फल (जैसे आम, केला), मिठाई, भीगे हुए चने, और सुहाग की सामग्री (चूड़ी, बिंदी, सिंदूर आदि) रखें.
वट वृक्ष के पास जाएं और उसे साफ करें और वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाएं. भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव का ध्यान करते हुए वृक्ष की पूजा करें.
धूप-दीप जलाएं और रोली, चावल, फूल आदि अर्पित करें और पूजा के बाद, अपने पति के साथ वट वृक्ष की परिक्रमा करें.
परिक्रमा करते समय वृक्ष पर मौली का धागा लपेटते रहें. परिक्रमा की संख्या 7, 11, 21 या 108 हो सकती है, अपनी श्रद्धा अनुसार करें. 108 परिक्रमा अत्यधिक फलदायी मानी जाती है.
हर परिक्रमा के साथ पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करें. आप निम्न मंत्र का जाप कर सकते हैं: “अवैधव्यं च सौभाग्यं पुत्रपौत्रादि वर्धनम्। देहि देवि महाभागे वटसावित्री नमोऽस्तुते।।” या केवल “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “ॐ नमः शिवाय” का जाप भी कर सकते हैं.
परिक्रमा के बाद वट वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री-सत्यवान की कथा पढ़ें या सुनें. यह कथा पतिव्रता धर्म के महत्व को दर्शाती है.
पूजा के अंत में वृक्ष की आरती करें. इसके बाद, सुहागिन महिलाओं को सुहाग की सामग्री और फल दान करें.
घर आकर प्रसाद वितरण करें. दिन ढलने के बाद सात्विक भोजन से व्रत का पारण करें.
सुखी वैवाहिक जीवन के लिए विशेष उपाय-
वट पूर्णिमा के दिन अपने जीवनसाथी को लौंग का जोड़ा भेंट करें. इससे वैवाहिक संबंधों में मजबूती आती है और प्रेम बढ़ता है. पति-पत्नी एक-दूसरे को पान का पत्ता भेंट करें. यह आपसी प्रेम और समझ बढ़ाता है. यदि संभव हो, तो जीवनसाथी को तुलसी माला भेंट करें. इससे मन शांत रहता है, नकारात्मक विचार दूर होते हैं, और मानसिक तनाव कम होता है, जिससे दांपत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है. वट पूर्णिमा का व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करने और परिवार में सुख-समृद्धि लाने का एक महत्वपूर्ण पर्व है. इसे पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाना चाहिए|
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रवि प्रदोष व्रत पर बनने जा रहा है दुर्लभ संयोग

  • भोलेनाथ बरसाएंगे अपनी कृपा
हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह का आखिरी प्रदोष व्रत रविवार 8 जून को है. रविवार के दिन पड़ने के कारण इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाएगा. यह व्रत हमेशा दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है. इस दिन देवों के देव महादेव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है. साथ ही, मनोकामना पूर्ति के लिए व्रत भी रखा जाता है|
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर कई मंगलकारी और दुर्लभ योगों का निर्माण हो रहा है. ऐसे में इन शुभ योगों में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करने से हर एक मनोकामना पूरी हो सकती है. ऐसे में आइए जानते हैं कि रवि प्रदोष व्रत पर कौन से योग बन रहे हैं|
रवि प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त-
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 8 जून को सुबह 07:17 मिनट पर शुरू होगी. वहीं, इस तिथि का समापन 9 जून को सुबह 09:35 मिनट पर होगा. ऐसे में इस शुभ अवसर पर शिव पूजा का समय शाम को 7:18 मिनट से लेकर 09:19 मिनट तक रहेगा|
शिव योग-
ज्योतिष के अनुसार, रवि प्रदोष व्रत पर मंगलकारी शिव योग का संयोग बनने जा रहा है. इस योग का निर्माण 8 जून को रात 12:19 मिनट होकर इसका समापन 9 जून को दोपहर 1:19 मिनट पर होगा. ऐसे में इस योग में महादेव की पूजा करने से व्यक्ति की हर एक मनोकामना पूरी हो सकती है|
शिववास योग-
रवि प्रदोष व्रत पर देवों के देव महादेव 8 जून को सुबह 7:17 मिनट तक कैलाश पर विराजमान रहेंगे. इसके बाद भोलेनाथ नंदी की सवारी करेंगे. इस दौरान भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होगी|
विशाखा नक्षत्र का संयोग-
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर स्वाति और विशाखा नक्षत्र का संयोग भी बन रहा है. इसके साथ ही बव, बालव और तैतिल करण के योग का भी निर्माण हो रहा है. इन योग में देवों के देव महादेव की भक्ति भाव से पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है|
प्रदोष व्रत के दिन क्या करना चाहिए-
अगर आप इन दोनों योग में भोलेनाथ की पूजा करते हैं, तो आपकी मनचाही मनकामना पूरी हो सकती है. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करनी चाहिए. शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद और बेलपत्र चढ़ाना चाहिए. इसके अलावा, प्रदोष व्रत में “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें और प्रदोष व्रत की कथा सुननी चाहिए|

 

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बकरीद आज, जानिए...ईद-उल-अजहा का महत्व और इतिहास

बकरीद को ईद-उल-अजहा या कुर्बानी की ईद के नाम से भी जाना जाता है। यह इस्लाम के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह त्योहार हज यात्रा के अंत में मनाया जाता है, जो इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है। बकरीद हमें सिखाती है कि सच्चा धर्म वही है जिसमें त्याग, सच्चाई और मानवता की भावना हो। इस दिन, मुसलमान उस ऐतिहासिक घटना की याद में कुर्बानी की रस्म निभाते हैं जब पैगंबर इब्राहिम अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हुए थे। यह त्योहार हमें संदेश देता है कि सच्ची भक्ति अल्लाह की राह में खुद को समर्पित करना है।
बकरीद 2025 में कब मनाई जाएगी-
इस्लामी कैलेंडर चंद्रमा की स्थिति पर आधारित होता है, इसलिए त्योहारों की तिथियां हर साल बदलती रहती हैं। इस बार सऊदी अरब में 27 मई को जिल-हिज्जा का चांद दिखाई दिया, जिसके अनुसार वहां बकरीद 6 जून को मनाई जा रही है। भारत में यह पर्व 7 जून, शनिवार को मनाया जाएगा। यह दिन इस्लामी महीने जिल-हिज्जा की 10वीं तारीख को आता है, जिसे हज का अंतिम और सबसे पुण्यदायक दिन माना जाता है।
बकरीद का इतिहास-
बकरीद का मूल भाव पैगंबर इब्राहिम की उस परीक्षा से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने प्रिय पुत्र इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी देने का निश्चय किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार पैगंबर इब्राहीम को एक रात सपना आया, जिसमें उन्हें अपने सबसे प्यारे बेटे की कुर्बानी देने को कहा गया। उन्होंने इसे अल्लाह की आज्ञा मानकर पालन किया और अपने बेटे को लेकर कुर्बानी के लिए निकल पड़े। जब उन्होंने बेटे की आंखों पर पट्टी बांधी और बलिदान देने लगे, तब अल्लाह ने उनकी परीक्षा को सफल मानते हुए इस्माइल को बचा लिया और उसकी जगह एक मेंढ़ा (भेड़) भेज दिया। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि सच्चे दिल से की गई भक्ति और समर्पण को अल्लाह स्वीकार करता है।
बकरीद का महत्व-
बकरीद केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह आत्म-त्याग, सच्चे इरादों और इंसानियत की शिक्षा देने वाला पर्व है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि अल्लाह पर विश्वास बनाए रखते हुए दूसरों की मदद करना और अपने स्वार्थ को त्यागना ही असली धर्म है।
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डिप्टी सीएम अरुण साव ने श्री द्वारिकाधीश मंदिर के दर्शन किए

रायपुर/गुजरात। डिप्टी सीएम अरुण साव ने श्री द्वारिकाधीश मंदिर के दर्शन किए। x पोस्ट में डिप्टी सीएम अरुण साव ने बताया, आज धार्मिक नगरी द्वारका स्थित श्री द्वारिकाधीश मंदिर में सहपरिवार दर्शन-पूजन करने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। भगवान श्रीकृष्ण जी के दिव्य दर्शन ने मन, मस्तिष्क व आत्मा को अद्भुत शांति एवं ऊर्जा से भर दिया। यह अनुभव जीवनभर स्मरणीय रहेगा।
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राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा के लिए क्यों चुना गया 5 जून का दिन...जानिए

अयोध्या में 3 जून से धार्मिक उत्सव का माहौल है। वैदिक मंत्रों, हवन, रामरक्षा स्तोत्र के साथ ही भजन-कीर्तन की गूंज से अयोध्या की हवा में आध्यात्मिक ऊर्जा बह रही है। दरअसल 5 जून को राम मंदिर में श्रीराम दरबार के साथ ही 6 अन्य मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। प्राण प्रतिष्ठा से पहले 3 जून से ही मंत्रों का जप और हवन आदि शुरू हो चुके थे। वहीं प्राण प्रतिष्ठा 5 जून को शुभ मुहूर्त में की गई।
प्राण प्रतिष्ठा के लिए क्यों चुना गया 5 जून का दिन-
हिंदू धर्म में हर शुभ कार्य को करने के लिए शुभ मुहूर्त देखा जाता है। श्रीराम दरबार और 6 मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा से पहले भी शुभ मुहूर्त देखा गया था। सूत्रों के अनुसार, राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा के लिए शुभ मुहूर्त कांची कामकोटि के शंकराचार्य स्वामी विजयेन्द्र सरस्वती ने निकाला था। उनके अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था, साथ ही इस दिन रामेश्वरम मंदिर की स्थापना भी हुई थी। इसलिए राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा के लिए उन्होंने इस दिन को बेहद शुभ माना है।
प्राण प्रतिष्ठा के लिए 15 मिनट का समय-
प्राण प्रतिष्ठा के लिए कुछ मिनटों का समय ही निकाला गया था। प्राण प्रतिष्ठा की शुरुआत सुबह 11 बजकर 25 मिनट से हुई और 11 बजकर 40 मिनट तक यह शुभ कार्य किया गया। 15 मिनट की अवधि में ही सभी मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा का कार्य संपन्न किया गया। अयोध्या और काशी के 101 आचार्यों ने मंत्रोच्चार और विधि विधान के साथ मंगल कार्य संपन्न किया। वहीं पूजा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे।
भगवान राम के बालरूप की हो चुकी है प्राण प्रतिष्ठा-
आपके बता दें कि श्रीराम के बालरूप की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को हुई थी। वहीं 5 जून को भगवान राम को राजा के रूप में दरबार में स्थापित किया गया। भव्य राम मंदिर के पहले तल पर राजा राम का दरबार सजाया गया है। वहीं 5 जून को राम दरबार में भगवान राम और माता सीता की मूर्ति को 2 फुट ऊंचे सफेद संगमरमर के सिंहासन पर स्थापित किया गया है। उनके साथ ही भगवान हनुमान और लक्ष्मण की मूर्ति भी बैठी हुई मुद्रा में विराजमान है।
राम दरबार में स्थापित हुईं इनकी मूर्तियां-
राम दरबार में भगवान राम की राजा के रूप में मूर्ति स्थापित हुई। इसके साथ ही उनके दरबार में माता सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और बजरंगबली भी विराजमान रहेंगे।
इनकी मंदिरों में हुई प्राण प्रतिष्ठा-
राम मंदिर परिसर में राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही गणपति, हनुमान जी, सूर्य देव, अन्नपूर्णा, शिवलिंग, शेषावतार आदि के मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठा प्रमुख हैं। जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 3 जून से शुरू हो चुका था प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी यह कार्यक्रम दोपहर लगभग 3 बजे तक चलेगा।
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निर्जला एकादशी पर बनेगा साल का सबसे बड़ा राजयोग

  • इन राशियों को मिलेगी अपार समृद्धि
एकादशी को भगवान विष्णु की उपासना का दिन माना गया है और इसे शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक भी कहा जाता है। विशेषकर निर्जला एकादशी को सबसे कठिन और पवित्र व्रत माना जाता है क्योंकि इस दिन पानी भी नहीं पीया जाता। यही वजह है कि यह व्रत सभी एकादशियों में सर्वोच्च स्थान रखता है। इसका नाम निर्जला इसलिए पड़ा क्योंकि इस व्रत में व्यक्ति को पूरी तरह से निर्जली अर्थात बिना पानी के व्रत रखना होता है। इस व्रत को रखने से शारीरिक और मानसिक रूप से शक्ति और पवित्रता मिलती है। कहा जाता है कि जो इस व्रत को बिना किसी उपवास तोड़े रखते हैं, उन्हें संपूर्ण वर्ष के सारे व्रतों का फल मिलता है। साल 2025 की निर्जला एकादशी पर एक शक्तिशाली राजयोग बन रहा है। इस दिन बुध ग्रह मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे।
वृषभ राशि
वृषभ राशि वाले इस वर्ष आर्थिक दृष्टि से मजबूत स्थिति में रहेंगे। उनके पुराने कष्ट दूर होंगे और निवेश व व्यापार में अच्छी सफलता मिलेगी। उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा और पारिवारिक सुख भी प्राप्त होगा। पुराने कर्ज़ या आर्थिक तंगी से मुक्ति मिलेगी। व्यापार, नौकरी या निवेश में लाभ होगा। यह राशि धैर्य और स्थिरता की प्रतीक है, जिससे उनका धन धीरे-धीरे बढ़ेगा।
कर्क राशि
कर्क राशि के जातकों के लिए यह समय नई शुरुआत और सकारात्मक परिवर्तन लेकर आएगा। उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा, साथ ही मनचाही नौकरी या व्यापारिक अवसर मिलेंगे। पारिवारिक जीवन में सुख और शांति आएगी। नई योजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा करने का मौका मिलेगा।
सिंह राशि के लोगों पर इस राजयोग का विशेष प्रभाव पड़ेगा। उनकी रचनात्मकता और नेतृत्व क्षमता निखरेगी, जिससे उन्हें सामाजिक मान-सम्मान और धन दोनों में वृद्धि होगी। सेहत को लेकर यदि कोई समस्या थी वो ठीक हो जाएगी।
मकर राशि
मकर राशि वाले कार्यक्षेत्र में उन्नति पाएंगे। निवेश के अच्छे मौके मिलेंगे, साथ ही परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी। आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलेगा।पुराने वित्तीय बाधाएं हटेंगी और निवेश के अच्छे मौके मिलेंगे।
कुंभ राशि
कुंभ राशि के लिए यह वर्ष विशेष सफलता लेकर आएगा। उनकी आर्थिक दशा मजबूत होगी और वे नए प्रोजेक्ट्स में लाभ अर्जित कर सकेंगे। पारिवारिक रिश्ते भी मजबूत होंगे। वे नए प्रोजेक्ट्स में सफल होंगे और आर्थिक लाभ अर्जित करेंगे।
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गंगा दशहरा पर काशी, प्रयागराज में हजारों की संख्या में आए श्रद्धालु

वाराणसी/ प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के काशी और प्रयागराज में गंगा दशहरा के पावन अवसर पर गुरुवार को आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। यह उत्‍सव ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर मनाया जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन मां गंगा का अवतरण स्‍वर्ग लोक से धरती पर हुआ था। गुरुवार की सुबह तड़के से ही दशाश्वमेध घाट सहित अन्य प्रमुख घाटों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।
दूर-दराज से आए हजारों श्रद्धालुओं ने मां गंगा की आराधना और पवित्र स्नान कर पुण्य अर्जित किया। गंगा स्नान के साथ ही श्रद्धालुओं ने दीपदान, गंगा आरती और मंत्रोच्चार के माध्यम से गंगा मैया से सुख-शांति और मोक्ष की कामना की। घाटों पर सुरक्षा और व्यवस्था के लिए प्रशासन मुस्तैद रहा। एनडीआरएफ और जल पुलिस की टीमें भी घाटों पर तैनात की गईं। काशी की गलियों से लेकर घाटों तक आज का दिन भक्ति भाव और गंगा मैया की जयकारों से गुंजायमान रहा। श्रद्धालुओं का कहना है कि गंगा दशहरा पर काशी में गंगा स्नान का विशेष महत्व है, जिससे सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। गंगा दशहरा वह दिन है जब गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था, और इसी दिन को मां गंगा के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
दशाश्वमेध घाट के तीर्थपुरोहित विवेकानंद ने समाचार एजेंसी आईएएनएस से कहा कि ज्येष्ठ माह का शुक्ल पक्ष है। इस दिन को गंगा दशहरा के उत्‍सव के रूप में मनाया जाता है। भागीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए मां गंगा की आराधना कर उनको प्रसन्न किया और मां गंगा को धरती पर लेकर आए। श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं और मोक्ष पाने के लिए गंगा जी में डुबकी लगाते हैं। गुजरात के राजकोट से आए महंत विजय महाराज ने बताया कि सनातन धर्म में गंगा दशहरा का बहुत महत्‍व है। आज ही के दिन गंगा जी धरती पर अवतरित हुईं थीं।
इसी क्रम में गंगा दशहरा का पर्व संगम नगरी प्रयागराज में भी पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। इस मौके पर प्रयागराज में गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर आस्था की डुबकी लगाने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु आए हुए हैं और ब्रह्म मुहूर्त से ही श्रद्धालु गंगा में आस्था की डुबकी लगाने के साथ ही पूजा अर्चना और दान पुण्य भी कर रहे हैं।
श्रद्धालु महंत गोपाल ने कहा कि गंगा दशहरा के दिन भागीरथ के पूर्वजों के मोक्ष के लिए मां गंगा स्‍वर्ग लोक से मृत्युलोक में आईं। हम सब भाग्‍यशाली है जो इस दिन गंगा मां की पूजा अर्चना कर मोक्ष की याचना करते हैं। इस उत्‍सव के दौरान लोगों के 10 तरह के पाप से मुक्ति मिलती है। इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा नाम दिया गया है। गंगा स्‍थान करने वाले श्रद्धालु के पितरों को भी मुक्ति मिलती है। प्रयागराज में एक रुपये के दान का लाभ एक लाख रुपये के बराबर माना जाता है। सीता जी ने मां गंगा को जगत जननी का नाम दिया है।
एक श्रद्धालु का कहना है, "हम गंगा दशहरा के अवसर पर पवित्र स्नान करने के लिए संगम में मां गंगा, मां यमुना और मां सरस्वती के तट पर आए हैं। इस स्नान से पितर भी प्रसन्न होते हैं। महाकुंभ के आयोजन के बाद से लोगों में अध्यात्म बढ़ा हुआ है।"
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राज्यपाल रमेन डेका ने राजीव लोचन भगवान के किए दर्शन

रायपुर। राज्यपाल श्री रमेन डेका ने गरियाबंद जिले के प्रवास के दौरान  आज राजिम में भगवान श्री राजीव लोचन एवं कुलेश्वर महादेव मंदिर में दर्शन एवं पूजा अर्चना कर देश एवं प्रदेश की सुख समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की। उन्होंने लोमष ऋषि आश्रम का भी  अवलोकन किया।

 

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शिव के पंचतत्व रूपों से करें आत्मिक जुड़ाव, "नमः शिवाय" मंत्र के साथ विशेष अनुभव

भारत की पवित्र भूमि पर अनगिनत तीर्थ, शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग स्थित हैं, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा, शांति और आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाते हैं। इन्हीं दिव्य स्थलों में विशेष स्थान रखते हैं पंचभूत स्थल — यानी भगवान शिव के वो पवित्र मंदिर जो पाँच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) के प्रतीक माने जाते हैं। इन पंचभूत स्थलों का दर्शन यदि पंचाक्षर मंत्र "नमः शिवाय" के जाप के साथ किया जाए, तो साधक को केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक स्तर पर भी अत्यंत शुभ फल की प्राप्ति होती है।
पंचाक्षर मंत्र: आध्यात्मिक शक्ति का बीज
पंचाक्षर मंत्र "नमः शिवाय" शिव उपासना का मूल है। यह पाँच अक्षरों का मंत्र — "न", "म", "शि", "वा", "य" — ब्रह्मांड के पाँच तत्वों से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि यह मंत्र मानव के भीतर के दोषों को शुद्ध करता है, मन को एकाग्र करता है और आत्मा को शिव से जोड़ता है। जब इस मंत्र का उच्चारण भावपूर्वक किया जाता है, तो यह साधक के भीतर चेतना की तरंगें उत्पन्न करता है जो उसे दिव्य ऊर्जा से जोड़ती हैं।अब आइए जानते हैं वे पाँच पवित्र स्थल जहां पंचभूत तत्वों के रूप में शिव के दर्शन होते हैं — और जहाँ पंचाक्षर मंत्र का जाप करते हुए यात्रा करना एक अतुलनीय आध्यात्मिक अनुभव बन सकता है।
1. एकांदेश्वर (पृथ्वी तत्व) – कांचीपुरम, तमिलनाडु
पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाला यह मंदिर कांची एकांदेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां शिवलिंग मिट्टी से बना है, जो भूमि तत्व की सर्वोच्चता को दर्शाता है। इस मंदिर में पूजा के समय शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ाया जाता, क्योंकि वह मिट्टी से निर्मित है।यहां “नमः शिवाय” का जाप करते हुए धरती से जुड़ने की अनुभूति होती है। साधक को स्थिरता, धैर्य और संतुलन का अनुभव होता है। यह स्थल भक्तों को अपने अस्तित्व की गहराई में उतरने का आह्वान करता है।
2. जम्बुकेश्वर (जल तत्व) – तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु
जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है जम्बुकेश्वर मंदिर। यह मंदिर शिव और जल के गहरे संबंध को दर्शाता है। यहां शिवलिंग के नीचे निरंतर जलधारा बहती रहती है — यह जल शुद्धता और जीवन की ऊर्जा का प्रतीक है।जब भक्त पंचाक्षर मंत्र का जाप करते हुए इस स्थल का दर्शन करते हैं, तो उन्हें भीतर से शीतलता, शांति और करुणा का भाव अनुभव होता है। यह स्थल आंतरिक अशांति को धोकर मन को निर्मल करता है।
3. अर्णेश्वर (अग्नि तत्व) – तिरुवन्नामलई, तमिलनाडु
यह स्थल अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है और अर्णेश्वर या अरुणाचलेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह वही स्थान है जहाँ भगवान शिव ने अग्नि स्तंभ के रूप में ब्रह्मा और विष्णु के सामने अपना विराट रूप प्रकट किया था।यहाँ पंचाक्षर मंत्र के जाप से साधक के भीतर की जड़ता जलने लगती है, और चेतना की अग्नि जागृत होती है। अग्नि तत्व आत्मबल, साहस और ऊर्जा का प्रतीक है — और इस स्थल का अनुभव साधक को भीतर से प्रज्वलित करता है।
4. कालहस्तीश्वर (वायु तत्व) – श्रीकालहस्ती, आंध्र प्रदेश
वायु तत्व से जुड़ा हुआ यह मंदिर कालहस्तीश्वर के नाम से जाना जाता है। यहां दीपक बिना हवा के भी हिलता है, जो दर्शाता है कि यह स्थान वायु की शक्ति से ओतप्रोत है। यह स्थल उन साधकों के लिए विशेष है जो प्राणायाम, ध्यान और स्वास की साधना करते हैं।जब इस स्थल पर “नमः शिवाय” का मंत्र उच्चारित किया जाता है, तो साधक अपनी प्राणशक्ति को नियंत्रित कर पाता है और श्वास के माध्यम से शिवत्व को महसूस करता है। वायु तत्व चेतना और गति का प्रतिनिधित्व करता है।
5. चिदंबरम नटराज (आकाश तत्व) – चिदंबरम, तमिलनाडु
यह मंदिर आकाश तत्व का प्रतीक है, जहाँ भगवान शिव नटराज रूप में नृत्य करते हैं। यह नृत्य सृष्टि, स्थिति और संहार का प्रतीक है। यहाँ शिव एक रिक्त स्थान (आकाश) में निवास करते हैं, जिसे चिदंबरम रहस्य कहा जाता है — यानी शून्य में पूर्णता का अनुभव।यहां पंचाक्षर मंत्र के जाप के दौरान साधक को “शिव ही आकाश हैं, और वही शून्यता में भी व्याप्त हैं” का बोध होता है। चिदंबरम में आकाश तत्व की अनुभूति साधक को मोक्ष की ओर अग्रसर करती है।
इन पंचभूत स्थलों की यात्रा केवल भौतिक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मिक यात्रा है। जब कोई साधक “नमः शिवाय” मंत्र का सच्चे मन से जाप करते हुए इन स्थलों का दर्शन करता है, तो वह न केवल पंचतत्वों की चेतना से जुड़ता है, बल्कि स्वयं में भी शिव तत्व का जागरण करता है।शिवभक्ति का यह मार्ग, मंत्र और स्थल — तीनों मिलकर एक ऐसा दिव्य अनुभव प्रदान करते हैं जो साधक को भीतर से परिवर्तित कर देता है। पंचभूत स्थलों की यह यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए अत्यंत फलदायक है जो शांति, स्थिरता और शिव से एकत्व की तलाश में है।
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बुध करेंगे मिथुन राशि में प्रवेश, इन 4 राशियों के धैर्य और क्षमता की होगी कड़ी परीक्षा

बुद्धि, वाणी और व्यवसाय के कारक ग्रह बुध 6 जून को वृषभ राशि से निकलकर अपनी स्वराशि मिथुन में गोचर कर जाएंगे। बुध का गोचर सुबह 9 बजकर 27 मिनट पर होगा। बुध का यह गोचर मिथुन राशि में होगा इसलिए ज्यादातर इसके परिणाम शुभ ही होंगे। हालांकि राशिचक्र की कुछ राशियों के लिए बुध की यह स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती है। बुध के मिथुन राशि में गोचर के चलते कर्क समेत 3 राशियों को प्रतिकूल प्रभाव मिल सकते हैं। इसलिए कुछ उपाय इन राशियों को बुध गोचर के दौरान करने चाहिए। आइए जान लेते हैं इन राशियों के बारे में।
मेष राशि-
बुध ग्रह का गोचर मेष राशि के जातकों के लिए मिलाजुला रहेगा। पारिवारिक जीवन में आपको तभी अच्छे फल प्राप्त होंगे जब आप वाणी पर नियंत्रण रखेंगे। आर्थिक पक्ष में उतार-चढ़ाव का सामना आपको करना पड़ सकता है हालांकि धन प्राप्ति के स्रोत भी आपको मिलेंगे। गलत लोगों की संगति से दूर रहने की आवश्यकता है अन्यथा समय, स्वास्थ्य और धन की हानि आपको हो सकती है। उपाय के तौर पर गाय को हरा चारा आपको खिलाना चाहिए।
कर्क राशि-
आपके द्वादश भाव में बुध ग्रह का गोचर होगा। इस भाव में बुध के होने से आप झूठ का सहारा लेकर अपना काम बनाने की कोशिश कर सकते हैं, हालांकि ऐसा करना भविष्य में आपको नुकसान पहुंचाएगा। आमदनी पर्याप्त होने पर भी आर्थिक तंगी का सामना आप कर सकते हैं। कारोबार में हानि इस राशि के कुछ लोगों को मानसिक रूप से परेशान कर सकती है। इस अवधि में लाभ पाने के लिए आपकी योग्यता की कड़ी परीक्षा बुध देव लेंगे। अत्यधिक सोच-विचार करने से आपके कई काम इस दौरान अटक सकते हैं, इसलिए सोचने से ज्यादा काम पर ध्यान दें। उपाय के तौर पर आपको हरे रंग की चीजें किसी मंदिर में दान करनी चाहिए।
वृश्चिक राशि-
बुध के गोचर के बाद वृश्चिक राशि के जातकों के स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं। बाहर का तला-भुना भोजन आपके पाचन तंत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। इस दौरान करियर और पारिवारिक जीवन को लेकर असमंजस की स्थिति भी बनी रह सकती है। सही निर्णय लेने में आपको परेशानियां होंगी। अनुभवी लोगों की सलाह आपके काम आ सकती है। सफलता पाने के लिए आपको आवश्यकता से अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है, धैर्य बनाए रखें। उपाय के तौर पर आपको केसर का तिलक इस दौरान लगाना चाहिए।
मकर राशि-
बुध ग्रह आपकी राशि से षष्ठम भाव में संचार करेंगे। यह भाव शत्रु और रोग का कारक माना जाता है। कोई पुरानी बीमारी इस राशि के जातकों को परेशान कर सकती है। जिन लोगों पर आप अधिक भरोसा करते हैं वो ही आपके काम में रुकावटें इस दौरान ला सकते हैं, इसलिए बेहद सतर्कता से हर कार्य करेंगे। कार्यक्षेत्र में अपनी राज की बातें शेयर करना आपको भारी पड़ सकता है। बेरोजगार लोगों के धैर्य की परीक्षा बुध लेंगे। इस दौरान समाज से दूर रहकर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें। उपाय के तौर पर भगवान गणेश की पूजा आपको करनी चाहिए।
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गंगा दशहरा कल, इस चीजों से करें शिवलिंग का अभिषेक

  • पूरी होगी हर मनोकामना
हिंदू धर्म में गंगा दशहरे का विशेष महत्व है. कहते हैं इस दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था. यह पर्व हर साल ज्येष्ठ माह शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाया जाता है इस बार यह तिथि 5 जून को है. इस दिन सभी गंगा घाटों पर श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं. कहते हैं कि मां गंगा को धरती पर आने से पहले भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया था. ऐसे में इस दिन भगवान शिव की पूजा की करना महत्वपूर्ण होता है. कहते हैं कि गंगा दशहरा के दिन शिवलिंग पर कुछ खास चीजों से अभिषेक करने वाले को भोलेनाथ का कृपा प्राप्त होती है|
इस चीजों से करें शिवलिंग का अभिषेक
गंगा दशहरा के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर गंगाजल से अभिषेक अवश्य करें. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति के सभी दोष मिटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है|
भगवान शिव को दूध अति प्रिय हैं, इसलिए गंगा दशहरे दिन शिवजी की पूजा के दौरान शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करें. मान्यता है कि ऐसा करने वाले को शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है.
गंगा दशहरा के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पित करना शुभ होता है. मान्यता है कि ऐसा करने से घर नें सुख-समृद्धि आती है|
गंगा दशहरे के दिन भोलेनाथ की पूजा के दौरान शिवलिंग पर अक्षत, सफेद चंदन, सफेद फूल और शमी के पत्ते अर्पित करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है. कहते हैं इससे घर-परिवार में खुशहाली और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है|
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कितने बजे से शुरू होगी दशमी तिथि, गंगा दशहरे के दिन कब करें ब्रह्म मुहूर्त स्नान, जानिए...

प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गंगा का जन्मोत्सव गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। गंगा दशहरा के दिन शुभ कर्म करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
इस साल गंगा दशहरा पर कुछ दुर्लभ योग बनने जा रहे हैं। मध्य प्रदेश में जबलपुर के ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ दुबे ने बताया कि गंगा दशहरा के दिन देवी गंगा धरती पर आई थीं। माना जाता है कि इसी दिन गायत्री मंत्र का प्रकटीकरण भी हुआ था।
इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि मां गंगा की गोद में जाकर या किसी पवित्र नदी में डुबकी लगाने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है।
दशमी तिथि कब से कब तक
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि की शुरुआत चार जून बुधवार 2025 की रात 11: 34 मिनट पर होगी और समापन पांच जून गुरुवार की रात 02:56 मिनट पर होगा।
गंगा दशहरा के दिन स्नान करने का ब्रह्म मुहूर्त पांच जून की सुबह 05: 12 मिनट से लेकर सुबह 08:42 मिनट तक रहेगा।
ज्योतिष गणना के अनुसार इस दिन रवि योग, दग्ध योग, राजयोग और सिद्धि योग का दुर्लभ संयोग भी बनेगा। पांच जून की सुबह 9:14 तक सिद्धि योग रहेगा।
 
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