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बकरीद आज, जानिए...ईद-उल-अजहा का महत्व और इतिहास

बकरीद को ईद-उल-अजहा या कुर्बानी की ईद के नाम से भी जाना जाता है। यह इस्लाम के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह त्योहार हज यात्रा के अंत में मनाया जाता है, जो इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है। बकरीद हमें सिखाती है कि सच्चा धर्म वही है जिसमें त्याग, सच्चाई और मानवता की भावना हो। इस दिन, मुसलमान उस ऐतिहासिक घटना की याद में कुर्बानी की रस्म निभाते हैं जब पैगंबर इब्राहिम अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हुए थे। यह त्योहार हमें संदेश देता है कि सच्ची भक्ति अल्लाह की राह में खुद को समर्पित करना है।
बकरीद 2025 में कब मनाई जाएगी-
इस्लामी कैलेंडर चंद्रमा की स्थिति पर आधारित होता है, इसलिए त्योहारों की तिथियां हर साल बदलती रहती हैं। इस बार सऊदी अरब में 27 मई को जिल-हिज्जा का चांद दिखाई दिया, जिसके अनुसार वहां बकरीद 6 जून को मनाई जा रही है। भारत में यह पर्व 7 जून, शनिवार को मनाया जाएगा। यह दिन इस्लामी महीने जिल-हिज्जा की 10वीं तारीख को आता है, जिसे हज का अंतिम और सबसे पुण्यदायक दिन माना जाता है।
बकरीद का इतिहास-
बकरीद का मूल भाव पैगंबर इब्राहिम की उस परीक्षा से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने प्रिय पुत्र इस्माईल (अलैहिस्सलाम) की कुर्बानी देने का निश्चय किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार पैगंबर इब्राहीम को एक रात सपना आया, जिसमें उन्हें अपने सबसे प्यारे बेटे की कुर्बानी देने को कहा गया। उन्होंने इसे अल्लाह की आज्ञा मानकर पालन किया और अपने बेटे को लेकर कुर्बानी के लिए निकल पड़े। जब उन्होंने बेटे की आंखों पर पट्टी बांधी और बलिदान देने लगे, तब अल्लाह ने उनकी परीक्षा को सफल मानते हुए इस्माइल को बचा लिया और उसकी जगह एक मेंढ़ा (भेड़) भेज दिया। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि सच्चे दिल से की गई भक्ति और समर्पण को अल्लाह स्वीकार करता है।
बकरीद का महत्व-
बकरीद केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह आत्म-त्याग, सच्चे इरादों और इंसानियत की शिक्षा देने वाला पर्व है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि अल्लाह पर विश्वास बनाए रखते हुए दूसरों की मदद करना और अपने स्वार्थ को त्यागना ही असली धर्म है।

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