धर्म समाज

वट सावित्री व्रत 26 मई को, इन विधियों से करें पूजा

सनातन धर्म महत्वपूर्ण व्रत-त्योहार में से एक वट सावित्री का व्रत है. इसे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए करती है. हिंदी पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर वट सावित्री का व्रत रखा जाता है. इस बार यह व्रत 26 मई को रखा जाएगा. इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है और वट वृक्ष व्रत को पूर्ण करने के लिए काफी महत्वपूर्ण भी है. इस वट वृक्ष की पूजा किए बिना यह व्रत पूरा नहीं माना जाता है, लेकिन शहरों में कई बार बरगद का पेड़ नहीं मिल पाता हैं. अगर आपके साथ भी ऐसा होता है, तो आप घर पर ही इस खास विधि से पूजा कर व्रत का फल प्राप्त कर सकती हैं|
बरगद का पेड़ ना मिले तो क्या करना चाहिए-
वट सावित्री व्रत के दिन पूजा करने के लिए बरगद का पेड़ ना मिले तो आप एक दिन पहले ही किसी से बरगद के पेड़ की टहनी मंगवा लें. और इसी पूजा कर सकती है. मान्यता है कि ऐसा करने से आपको व्रत का पूरा फल प्राप्त हो सकता है|
बरगद की टहनी ना मिले तो क्या करे:
अगर पूजा करने के लिए टहनी या डाली भी ना मिले, तो तुलसी के पौधे के पास पूजा का सारा सामान रखकर वट सावित्री व्रत के नियमों का पालन करते हुए तुलसी मैय्या से अपनी कामना करते हुए पूजन कर सकती हैं|
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मई में मासिक शिवरात्रि 25 मई को, जानें शिव-पार्वती की तिथि और पूजा विधि

हिंदू धर्म में मासिक शिवरात्रि का विशेष महत्व माना गया है। यह पर्व हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना करने से साधक को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से यह अविवाहित युवक-युवतियों के लिए फलदायी होता है। इस व्रत को करने से योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति और विवाहित लोगों को वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियों से मुक्ति मिलती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि मई के महीने में मासिक शिवरात्रि किस दिन मनाई जाएगी।
मासिक शिवरात्रि मई 2025 की तिथि-
दृक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 25 मई को दोपहर 3:51 बजे होगा और इसका समापन 26 मई को दोपहर 12:11 बजे होगा। इस दिन निशिता काल पूजा मुहूर्त 25 मई की रात 11:58 बजे से 12:39 बजे तक रहेगा। ऐसे में ज्येष्ठ माह की मासिक शिवरात्रि इस वर्ष 25 मई 2025 को मनाई जाएगी।
पंचांग अनुसार विशेष समय-
सूर्योदय: सुबह 5:26 बजे
सूर्यास्त: शाम 7:11 बजे
चंद्रोदय: सुबह 4:16 बजे
चंद्रास्त: शाम 5:22 बजे
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:04 से 4:45 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 2:36 से 3:31 बजे तक
गोधूलि मुहूर्त: शाम 7:09 से 7:30 बजे तक
इस दिन शिवलिंग का अभिषेक करना अत्यंत शुभ माना जाता है। दूध, दही, शहद, गंगाजल और बेलपत्र जैसी पवित्र वस्तुओं से भगवान शिव को स्नान कराकर आरती की जाती है। ऐसा करने से जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति का अनुभव होता है।
कैसे करें शिव-पार्वती की पूजा-
अगर आपके वैवाहिक जीवन में तनाव है या विवाह में विलंब हो रहा है, तो मासिक शिवरात्रि पर शिव-पार्वती की विशेष पूजा करें। शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, बेलपत्र अर्पित करें और मिठाई का भोग लगाएं। सच्चे मन से की गई यह आराधना जीवन की उलझनों को दूर कर सकती है और घर में सुख-शांति ला सकती है।
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शनिवार को काले तिल से करें ये खास उपाय, शनि की बाधाएं होंगी दूर

यदि जीवन में बार-बार रुकावटें आ रही हैं, कार्य बनते-बनते बिगड़ रहे हैं, या फिर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव आपको परेशान कर रहा है, तो शनिवार के दिन काले तिल से किए गए उपाय आपकी परेशानियों को काफी हद तक दूर कर सकते हैं. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, काले तिल शनि देव को विशेष प्रिय होते हैं और इनके माध्यम से शनिदोष का शमन संभव होता है|
काले तिल का दान करें-
शनिवार को काले तिल किसी गरीब, जरूरतमंद या मंदिर में दान करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं. यह उपाय शनि दोष और पाप कर्मों के प्रभाव को कम करता है|
पीपल पर तिल युक्त जल अर्पित करें-
पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाते समय उसमें काले तिल मिलाएं. इससे पितृ दोष भी शांत होता है और मानसिक तनाव में राहत मिलती है|
तिल और तेल का दीपक जलाएं:
शनिवार की शाम को पीपल के पेड़ या शनि मंदिर में तिल के तेल का दीपक जलाएं और उसमें थोड़े काले तिल डालें. यह उपाय जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है|
तिल मिले जल से स्नान करें-
स्नान के जल में काले तिल डालकर स्नान करने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है, साथ ही बुरी नज़र से भी बचाव होता है|
काले तिल व गुड़ का लड्डू चींटियों को अर्पित करें:
शनिवार को गुड़ और काले तिल से बने लड्डू चींटियों को खिलाने से अज्ञात बाधाएं दूर होती हैं और शनि ग्रह का कुप्रभाव कम होता है|
काले तिल और आटे की गोलियां मछलियों को खिलाएं :
आटे में काले तिल मिलाकर गोलियां बनाएं और शनिवार को किसी तालाब या नदी में मछलियों को डालें. यह उपाय शत्रुओं से रक्षा करता है और रोग व ऋण से मुक्ति दिलाता है|
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"मनुस्मृति" में बिना भेदभाव के सबका धर्म बताया गया है : स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द

  • "वेदों का जो सार है उसी को मनुस्मृति कहा जाता है"
वाराणसी/रायपुर। ‘परमाराध्य’ परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ‘1008’ ने गंगा के तट पर स्थित श्रीविद्यामठ में मनुस्मृति पर व्याख्यान करते हुए बताया कि लोग कहते है कि बाबा साहेब अंबेडकर ने मनुस्मृति को जलाया, लेकिन हम स्पष्ट कर दें कि उन्होंने मनुस्मृति को नहीं जलाया, वो तो संविधान जलाना चाहते थे। शंकराचार्य जी ने आगे स्पष्ट करते हुए बताया कि बाबा साहेब ने मनुस्मृति को नहीं जलाया। वह एक ब्राह्मण गंगाधर सहस्रबुद्धे ने जलाई थी, लेकिन उस वक्त वो भी वहाँ मौजूद थे इसलिए उनका नाम आ गया।
शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद महाराज जी ने बताया कि अम्बेडकर संविधान जलाना चाहते थे। जब उनसे पूछा गया कि संविधान बनाने में तो आपकी विशेष भूमिका रही है फिर आप उसे क्यों जलाना चाहते हैं तो इस पर उन्होंने जवाब दिया कि मैंने एक मन्दिर बनाया लेकिन उसमें यदि शैतान आकर रहने लगे तो फिर मुझे क्या करना चाहिए? बाबा साहब बाद में खुद संविधान से सन्तुष्ट नहीं थे। मनुस्मृति में तो बिना भेदभाव के सबका धर्म बताया गया है। सनातन ही एकमात्र धर्म है जिसमें यदि बेटा भी कुछ गलत करता है तो उसे भी वही सजा दी जाती है जो किसी अन्य को दी जाती। शंकराचार्य जी ने कहा कि अम्बेडकरवादी लोगों को बाबा साहेब के उद्देश्यों को पूरा करने को आगे आना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हर धर्म का एक ग्रन्थ होता है। जैसे इसाईयों का धर्मग्रन्थ बाइबिल है, मुसलमानों का कुरान है, इसी प्रकार हमारा भी एक ग्रन्थ वेद है, लेकिन वेद को यदि पढ़ा जाए तो 4524 पुस्तकें मिलाकर 4 वेद बनते हैं और इन्हें समझने के लिए वेदांग की आवश्यकता होती है। और ज्यादा भी नहीं एक वेदांग की यदि 500 भी पुस्तकें मानी जाए तो करीब 3000 पुस्तकें वेदांग की हो गई। इस तरीके से कुल मिलाकर 7524 पुस्तकें हो गईं। यदि वेद को भी पढ़ा जाए तो पूरा जीवन भी कम पड़ जाता है। इसलिए इसका सार जानने की आवश्यकता होती है और वेदों का जो सार है उसी को मनुस्मृति कहा जाता है।
शंकराचार्य महाराज जी ने कहा कि बुद्ध ब्राह्मण कुल में पैदा हुए फिर भी हम उनको पूजते नहीं हैं। राम व कृष्ण को क्षत्रिय कुल में पैदा होने के बाद भी हम पूजते हैं। यदि धर्म का पालन करते वक्त मौत भी आ जाए तो भी उसमें हमारा कल्याण है। इसलिए धर्म कभी नहीं छोड़ना चाहिए। धर्म से ही प्रतिष्ठा मिलती है। यदि स्वर्ग में भी जाएंगे तो वहाँ भी प्रतिष्ठा मिलेगी।
उन्होंने कहा कि श्रुति व स्मृति वचन में श्रुति का ज्यादा महत्व होता है। पशु धार्मिक नहीं होता, इसलिए उसके लिए कोई धर्मशास्त्र नहीं होता। जो जैसा है उसकी प्रतिभा को समझकर उसके हिसाब से काम करवाना भी एक कला है। हमारा भारत का संविधान मनुस्मृति को पूरा सम्मान देता है। परम धर्म संसद १००८ के संगठन मंत्री साईं जलकुमार मसन्द साहिब के माध्यम उक्त जानकारी देते हुए शंकराचार्य जी महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पाण्डेय ने बताया कि श्रीविद्यामठ काशी में शङ्कराचार्य जी महाराज का प्रवचन प्रतिदिन सायंकाल 5 बजे से हो रहा है।
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खाटू श्याम जी के मंदिर में प्रवेश से पहले करें ये 5 काम

  • श्याम बाबा की कृपा बरसेगी
खाटू श्याम जी को हारे का सहारा, तीन बाण धारी और शीश का दानी जैसे कई नामों से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि खाटू श्याम जी हारे हुए का साथ देते हैं और अपने भक्तों को सभी संकटों से बचाते हैं। दरअसल खाटू श्याम जी भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक हैं, जिनका जिक्र महाभारत युद्ध के दौरान मिलता है। ऐसे में अगर आप भी सीकर में स्थित खाटू श्याम जी के मंदिर में दर्शन करने की योजना बना रहे हैं तो ये काम जरूर करें, ताकि आपको खाटू नरेश का आशीर्वाद मिल सके।
मिले ये वरदान-
बर्बरीक को अपना शीश दान करने पर भगवान कृष्ण ने उसे आशीर्वाद दिया कि कलियुग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे और प्रसिद्धि पाओगे। इसीलिए आज हम सभी उन्हें खाटू श्याम (बाबा खाटू श्याम) के नाम से जानते हैं।
इस तरह चढ़ाएं अरदास-
सबसे पहले बाबा के चरणों में अपनी अरदास या अर्जी चढ़ाने के लिए आपको लाल रंग की कलम, सूखा नारियल और लाल रंग का धागा खरीदना चाहिए। इसके बाद अपने घर के पूजा स्थल पर बैठकर एक नए पन्ने पर लाल कलम से अपनी मनोकामना लिखें। इसके बाद इस पन्ने को जिस पर मनोकामना लिखी हो मोड़ लें और अपनी श्रद्धा अनुसार दक्षिणा रख लें। इसके बाद पन्ने और दक्षिणा के साथ नारियल को लाल धागे से बांध दें। अब अपनी मनोकामना बाबा खाटू श्याम जी के मंदिर में अर्पित करें और उसकी पूर्ति की कामना करें।
इन बातों का रखें ध्यान-
अपनी मनोकामना लिखते समय ध्यान रखें कि एक बार में केवल एक ही मनोकामना लिखनी है। साथ ही ऐसी कोई भी मनोकामना न लिखें, जिसके पूर्ण होने की संभावना न हो या जिसमें किसी का अहित छिपा हो। हमेशा साफ मन से बाबा के चरणों में प्रार्थना करें और पूरी आस्था रखें।
आप ये काम कर सकते हैं-
अगर आप किसी कारणवश खाटू श्याम जी के मंदिर नहीं जा पा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में आप अपने घर पर ही प्रार्थना कर सकते हैं। इसके लिए बाबा खाटू श्याम की मूर्ति या तस्वीर के सामने अपनी अर्जी अर्पित करें और खाटू बाबा से अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करें।
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कब रखा जाएगा निर्जला एकादशी व्रत, जानें इस दौरान जल ग्रहण करने के नियम

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है, जिसे भगवान विष्णु की कृपा पाने का एक प्रमुख माध्यम माना गया है। वर्षभर में कुल 24 एकादशियां आती हैं, लेकिन इन सभी में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी, जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है, सबसे कठिन और फलदायक मानी जाती है।
इस व्रत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें अन्न और फल तो दूर की बात है, पानी तक ग्रहण नहीं किया जाता, इसलिए इसका नाम 'निर्जला' पड़ा। यह व्रत केवल शारीरिक तपस्या नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक अनुशासन का प्रतीक है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को अपने भीतर संयम, श्रद्धा और भक्ति का समुच्चय लाकर भगवान विष्णु की उपासना करनी होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस व्रत को सबसे पहले भीमसेन ने किया था, जो अपने भोजन प्रेम के कारण अन्य एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। लेकिन जब उन्होंने इस निर्जला व्रत का पालन किया, तो उन्हें वर्षभर की सभी एकादशियों के बराबर फल की प्राप्ति हुई। इसलिए इस व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी न केवल कठिन तप का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में धैर्य, त्याग और आस्था के गहन भाव को जागृत करती है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों से मुक्ति मिलती है और अंत में वैकुण्ठधाम की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी तिथि इस वर्ष 6 जून 2025 को देर रात 2:15 बजे से शुरू होकर, अगले दिन 7 जून को सुबह 4:47 बजे तक रहेगी। चूंकि तिथि का उदय 6 जून को हो रहा है, इसलिए व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा।
क्या निर्जला एकादशी पर पानी पिया जा सकता है?
हालांकि इस दिन जल ग्रहण नहीं किया जाता, परन्तु कुछ स्थितियों में जल का प्रयोग मान्य है।
पूजा के समय आचमन हेतु-
व्रतधारी व्यक्ति को पूजा के समय तीन बार आचमन करना होता है, इसमें थोड़ा-सा जल लिया जाता है।
दवा या शारीरिक कमजोरी की स्थिति में
यदि व्रतधारी अस्वस्थ है या कमजोरी अधिक हो जाए, तो थोड़ी मात्रा में जल पीना धर्मसम्मत माना गया है, लेकिन इसे व्रत का पूर्ण पालन नहीं माना जाता।
व्रत का पारण-
अगले दिन द्वादशी तिथि के समय व्रत का पारण (उपवास का समापन) जल और फलाहार से किया जाता है।
जल ग्रहण करने का सही समय:
यदि बहुत आवश्यक हो, तो जल सूर्यास्त के बाद नहीं, बल्कि दिन के समय, अधर्य या पूजा के समय लिया जा सकता है।
आचमन या भगवान को जल अर्पित करते समय थोड़ा-सा जल ग्रहण करना व्रत को भंग नहीं करता।
निर्जला एकादशी का आध्यात्मिक महत्व-
इस एकादशी को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि पांडवों में सबसे बलशाली भीमसेन ने इस कठिन व्रत को रखा था और उन्हें वैकुंठ की प्राप्ति हुई थी। यह व्रत न केवल संयम का अभ्यास कराता है, बल्कि यह माना जाता है कि इसे करने से सालभर की सभी एकादशियों का फल एकसाथ मिल जाता है, यहां तक कि अधिकमास की एकादशियों का भी। यही कारण है कि इसे साल की सबसे पुण्यदायक एकादशी माना जाता है।
निर्जला एकादशी व्रत का मूल उद्देश्य इंद्रियों पर संयम और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण है। जो व्यक्ति साल भर की एकादशियाँ नहीं कर पाते, वे सिर्फ इस एक निर्जला एकादशी को करके पूरा पुण्य अर्जित कर सकते हैं। इसलिए इसे महाएकादशी भी कहा जाता है।
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शुक्रवार को करें लक्ष्मी माता चालीसा का पाठ

  • मिलेगा धन, वैवाहिक सुख और संतान का आशीर्वाद
सनातन परंपरा में शुक्रवार का दिन देवी लक्ष्मी और माता संतोषी की पूजा-अर्चना के लिए विशेष माना गया है। मान्यता है कि यदि इस दिन श्रद्धा और विश्वास के साथ देवी लक्ष्मी की उपासना की जाए, तो जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है और दरिद्रता दूर हो जाती है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्रवार को व्रत रखना और देवी का ध्यान करना शुभ फल देने वाला होता है। इससे न केवल घर की परेशानियां दूर होती हैं, बल्कि संतान सुख और वैवाहिक जीवन में भी शुभता आती है। विशेष रूप से अविवाहित कन्याओं के लिए यह दिन मनचाहा जीवनसाथी पाने की कामना के लिए उत्तम माना गया है।
ऐसे में इस दिन यदि लक्ष्मी चालीसा का विधिपूर्वक पाठ किया जाए, तो मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आइए पढ़ते हैं सम्पूर्ण लक्ष्मी चालीसा यहां।
दोहा
मातु लक्ष्मी करि कृपा, करो हृदय में वास।
मनोकामना सिद्घ करि, परुवहु मेरी आस॥
॥ सोरठा॥
यही मोर अरदास, हाथ जोड़ विनती करुं।
सब विधि करौ सुवास, जय जननि जगदंबिका॥
॥ चौपाई ॥
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही।
ज्ञान बुद्घि विघा दो मोही॥
श्री लक्ष्मी चालीसा
तुम समान नहिं कोई उपकारी। सब विधि पुरवहु आस हमारी॥
जगत जननि जगदम्बा। सबकी तुम ही हो अवलम्बा॥1
तुम ही हो सब घट घट वासी। विनती यही हमारी खासी॥
जगजननी जय सिन्धु कुमारी। दीनन की तुम हो हितकारी॥2॥
विनवौं नित्य तुमहिं महारानी। कृपा करौ जग जननि भवानी॥
केहि विधि स्तुति करौं तिहारी। सुधि लीजै अपराध बिसारी॥3॥
कृपा दृष्टि चितववो मम ओरी। जगजननी विनती सुन मोरी॥
ज्ञान बुद्घि जय सुख की दाता। संकट हरो हमारी माता॥4॥
क्षीरसिन्धु जब विष्णु मथायो। चौदह रत्न सिन्धु में पायो॥
चौदह रत्न में तुम सुखरासी। सेवा कियो प्रभु बनि दासी॥5॥
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा। रुप बदल तहं सेवा कीन्हा॥
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा। लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा॥6॥
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं। सेवा कियो हृदय पुलकाहीं
अपनाया तोहि अन्तर्यामी। विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी॥7॥
तुम सम प्रबल शक्ति नहीं आनी। कहं लौ महिमा कहौं बखानी॥
मन क्रम वचन करै सेवकाई। मन इच्छित वांछित फल पाई॥8॥
तजि छल कपट और चतुराई। पूजहिं विविध भांति मनलाई॥
और हाल मैं कहौं बुझाई। जो यह पाठ करै मन लाई॥9॥
ताको कोई कष्ट नोई। मन इच्छित पावै फल सोई॥
त्राहि त्राहि जय दुःख निवारिणि। त्रिविध ताप भव बंधन हारिणी॥10॥
जो चालीसा पढ़ै पढ़ावै। ध्यान लगाकर सुनै सुनावै॥
ताकौ कोई न रोग सतावै। पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै॥11॥
पुत्रहीन अरु संपति हीना। अन्ध बधिर कोढ़ी अति दीना॥
विप्र बोलाय कै पाठ करावै। शंका दिल में कभी न लावै॥12॥
पाठ करावै दिन चालीसा। ता पर कृपा करैं गौरीसा॥
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै। कमी नहीं काहू की आवै॥13॥
बारह मास करै जो पूजा। तेहि सम धन्य और नहिं दूजा॥
प्रतिदिन पाठ करै मन माही। उन सम कोइ जग में कहुं नाहीं॥14॥
बहुविधि क्या मैं करौं बड़ाई। लेय परीक्षा ध्यान लगाई॥
करि विश्वास करै व्रत नेमा। होय सिद्घ उपजै उर प्रेमा॥15॥
जय जय जय लक्ष्मी भवानी। सब में व्यापित हो गुण खानी॥
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं। तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहिं॥16॥
मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै। संकट काटि भक्ति मोहि दीजै॥
भूल चूक करि क्षमा हमारी। दर्शन दजै दशा निहारी॥17॥
बिन दर्शन व्याकुल अधिकारी। तुमहि अछत दुःख सहते भारी॥
नहिं मोहिं ज्ञान बुद्घि है तन में। सब जानत हो अपने मन में॥18॥
रुप चतुर्भुज करके धारण। कष्ट मोर अब करहु निवारण॥
केहि प्रकार मैं करौं बड़ाई। ज्ञान बुद्घि मोहि नहिं अधिकाई॥19॥
दोहा
त्राहि त्राहि दुख हारिणी, हरो वेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लक्ष्मी, करो शत्रु को नाश॥
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
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शनि जयंती पर करें ये आसान उपाय

  • ढैय्या और साढ़ेसाती का कष्ट होगा दूर
इस साल ज्येष्ठ अमावस्या तिथि का आरंभ 26 मई को सुबह 10 बजकर 54 मिनट से होगा, वहीं 27 मई को सुबह 8 बजकर 34 मिनट तक अमावस्या तिथि रहेगी। उदयातिथि की मान्यता के अनुसार शनि जयंती 27 मई को ही मनाई जाएगी। इस दिन भक्त शनि देव को प्रसन्न करने के लिए पूजा-पाठ के ही साथ दान भी करेंगे। इस दिन शनि किए गए कुछ उपाय ढैय्या और साढ़ेसाती के बुरे प्रभाव से भी आपको बचा सकते हैं। आज हम आपको इन्हीं उपायों के बारे में जानकारी देंगे।
शनि जयंती पर करें ये उपाय~
शनि जयंती के दिन आपको सुबह के समय स्वच्छ होकर पूजा स्थल में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इसके बाद गणेश जी का ध्यान और गणेश जी के मंत्रों का जप करने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। कम से कम 7 बार इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। ऐसा करने से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का बुरा प्रभाव भी कम होता है।
इस दिन पीपल के पेड़ तले सरसों के तेल का दीपक जलाने से भी आपको लाभ मिलता है। ऐसा करने से शनि देव तो प्रसन्न होते ही हैं साथ ही आपको पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
शनि जयंती के दिन छाया दान करना भी शुभ माना जाता है। आपको किसी पात्र में सरसों का तेल लेकर उसमें अपनी छाया देखनी है और उसके बाद उस तेल का दान कर देना है। ऐसा माना जाता है कि शनि जयंती के दिन छाया दान करने से शनि ग्रह से जुड़ी बड़ी से बड़ी परेशानी का अंत हो जाता है। साथ ही आपके अटके कार्य भी पूरे होते हैं।
शनि देव को जरूरतमंदों की मदद करने वाले लोग बहुत पसंद हैं। इसलिए शनि जयंती के दिन अगर आप सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंदों को दान कर सकें या उनकी पसंद की चीजें उन्हें दे सकें तो शनि की शुभ दृष्टि आप पर पड़ती है और जीवन की विघ्न बाधाएं दूर होने लगती हैं।
इस दिन जानवारों को रोटी, दाना आदि खिलाने से भी शनि प्रसन्न होते हैं। खासकर कुत्ता, कोआ, चींटी आदि को अगर आप अन्न डालते हैं तो शनि की बुरी दृष्टि आप पर से हट जाती है। साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव भी ऐसा करने से कम हो जाता है।
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कब से होगी जेष्ठ माह की शुरुआत, धन लाभ के लिए करें तुलसी के ये उपाय

जेष्ठ माह सल के सबसे बड़े महीनों में से माना जाता है. इस माह में भीषण गर्मी पड़ती है, क्योंकि इस दौरान सूर्य अपने सबसे ताकतवर रूप में होते हैं. वहीं इसी माह में वट सावित्री व्रत, शनि जयंती, गंगा दशहरा वह निर्जला एकादशी जैसे बड़े व्रत आते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जेष्ठ माह भगवान विष्णु को अति प्रिय हैं. कहते हैं इस दौरान दान, स्नान व पूजा-पाठ करने से व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. वहीं मान्यता है कि जेष्ठ माह में तुलसी के कुछ खास उपाय करने से व्यक्ति के घर-परिवार में सुख -समृद्धि आती है|
कब शुरू होगा जेष्ठ माह?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार ज्येष्ठ माह की शुरुआत होगी. वहीं अगले महीने यानी 11 जून को जेष्ठ माह का समापन होगा|
जेष्ठ माह में करें तुलसी के ये उपाय-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, अगर आप लंबे समय से आर्थिक समस्या के जूझ रहे हैं, तो जेठ के महीने में हर रोज तुलसी में जल अर्पण अवश्य करना चाहिए. इसके साथ ही आटे का दीपक बनाकर उस दीपक में घी और हल्की सी हल्दी और दो लौंग मिलाकर तुलसी के पौधे के सामने जरूर जलाएं. ध्यान रहें दीपक का मुख उत्तर दिशा की ओर रखें|
माता लक्ष्मी को करें प्रसन्न-
जेष्ठ माह में पूजा करते समय तुलसी के पौधे में कच्चा दूध और लाल रंग की चुनरी अर्पित करें. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस उपाय को करने से साधक को मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और धन से हमेशा तिजोरी भरी रहती है|
दूर होगा हर संकट-
जेष्ठ माह के मंगलवार को बड़ा मंगल कहते हैं.ऐसे बजरंग बली हनुमान जी की कृपा पाने के लिए 11 तुलसी के पत्तों को तोड़े उसपर भगवान राम का नाम लिखकर हनुमान जी को अर्पित करें. मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती और धन लाभ के योग बनते हैं|
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शनिदेव के मंत्र से दूर करें सारे दर्द, शनिवार को करें ये उपाय

शनिवार का दिन शनि देव के पूजा और सम्मान का दिन होता है, क्योंकि शनि देव को न्याय के देवता माना जाता है। उनका कार्य सभी जीवों के कर्मों का हिसाब रखना और उसी आधार पर उन्हें फल देना है। शनि देव सूर्य के पुत्र होते हुए भी सूर्य देव से अधिक संबंध नहीं रखते हैं। जब शनि देव की स्थिति अशुभ होती है, तो व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे आर्थिक संकट, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां और मानसिक तनाव। लेकिन जिन पर शनि देव की कृपा होती है, वे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।
शनि देव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं और उनकी दिशा पश्चिम मानी जाती है। शनि देव का संबंध पंचतत्वों में से वायु तत्व से बताया गया है और वे आयु, जीवन, शारीरिक बल, योग, प्रभुता, ऐश्वर्य, प्रसिद्धि, मोक्ष, ख्याति, नौकरी आदि से संबंधित होते हैं। शनि देव का वाहन गिद्ध द्वारा खींचा जाने वाला रथ है, और वे धनुष, बाण और त्रिशूल धारण करते हैं। शनिवार का दिन शनि देव की पूजा के लिए सबसे उपयुक्त होता है। इस दिन विशेष उपायों से शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिल सकती है और जीवन में सफलता, यश, कीर्ति और व्यापार में वृद्धि हो सकती है।
शनिवार के उपाय :
अगर आप उन्नति के मार्ग में लगातार समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो शनिवार के दिन स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनें और एक कच्चे सूत के धागे का गोला लें। फिर उस गोले को पीपल के पेड़ के तने पर सात बार लपेटें और शनि देव का ध्यान करते हुए उनका मंत्र जपें - 'ऊँ ऐं श्रीं ह्रीं शनैश्चराय नमः।'
यदि आपके दांपत्य जीवन में खुशियां नहीं मिल रही हैं,तो शनिवार को कुछ काले तिल लेकर पीपल के पेड़ के पास चढ़ाएं और शनि देव के मंत्र का जप करें - 'ऊँ श्रीं शं श्रीं शनैश्चराय नमः।'
अगर आप अपनी संतान को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने का सोच रहे हैं लेकिन किसी परेशानी का सामना कर रहे हैं, तो शनिवार को शनि देव के इस मंत्र का 11 बार जपें - 'ऊँ श्रीं ह्रीं शं शनैश्चराय नमः।' यह उपाय आपकी परेशानी को दूर कर सकता है।
अगर आपकी जिंदगी में परेशानियों का अंत नहीं हो रहा और लगातार समस्याएं आ रही हैं, तो शनिवार को एक कटोरी में सरसों का तेल रखें और शनि देव के तंत्र मंत्र का जप करें - 'ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।' जप करने के बाद उस तेल का दीपक पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं, यह उपाय आपकी समस्याओं को हल कर सकता है।
अन्य उपाय :
अगर आप पढ़ाई में सफलता पाना चाहते हैं तो शनिवार को काले तिल को पीपल के पेड़ के नीचे रखें और ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करें
यदि आपको पैतृक संपत्ति से संबंधित कोई समस्या हो रही है, तो शनिवार को आटे का दीपक बनाकर उसमें सरसों का तेल डालकर शनि देव के सामने जलाएं। यह उपाय आपकी भूमि या संपत्ति से जुड़ी समस्याओं को सुलझा सकता है।
अगर सरकारी दफ्तरों में कार्यों में रुकावट आ रही हो, तो शनिवार को शनि स्तोत्र का पाठ करें।
यदि आपके जीवन में लगातार संघर्ष करना पड़ता है और मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल रही है, तो शनिवार को एक मुट्ठी काले तिल लेकर बहते जल में प्रवाहित करें और शनि देव का ध्यान करते हुए प्रार्थना करें।
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अपरा एकादशी व्रत 23 मई को, जानिए...महत्व और पूजा विधि

सनातन धर्म में एकादशी तिथि को अत्यंत पवित्र और फलदायी माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को "अपरा एकादशी" कहा जाता है। इस दिन उपवास के साथ-साथ अन्न, वस्त्र और धन का दान करना पुण्यदायी माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने और दान-पुण्य करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं वर्ष 2025 में अपरा एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि|
अपरा एकादशी 2025 तिथि-
ज्योतिषीय गणना के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 23 मई को रात 01:12 बजे प्रारंभ होगी और इसी दिन रात 10:29 बजे समाप्त हो जाएगी। सनातन धर्म में उदया तिथि को प्राथमिकता दी जाती है, अतः अपरा एकादशी व्रत 23 मई को रखा जाएगा। अगले दिन यानी 24 मई को व्रत का पारण किया जाएगा।
अपरा एकादशी पारण का समय-
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के दौरान किया जाता है। 24 मई को पारण के लिए शुभ समय सुबह 05:26 बजे से शाम 08:11 बजे तक रहेगा। इस दौरान कभी भी व्रत खोला जा सकता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:04 से 04:45 बजे तक रहेगा, जो पूजा-पाठ के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है।
अपरा एकादशी की पूजा विधि-
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और सूर्य को अर्घ्य दें।
पूजा स्थान को शुद्ध करें और गंगाजल का छिड़काव करें
स्वच्छ वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें
चंदन, फूलमाला अर्पित करें और देसी घी का दीपक जलाकर आरती करें।
भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और विष्णु चालीसा का पाठ करें।
व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें।
फल, मिठाई और तुलसी के पत्तों सहित भोग अर्पित करें।
अंत में जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
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जानें प्रदोष व्रत पूजा का महत्व और कौन सी चीजें चढ़ाने से क्या मिलता है लाभ

हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है, किंतु वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी विशेष पुण्यदायी मानी गई है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं। वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 9 मई को दोपहर 2 बजकर 56 मिनट से होगी और अगले दिन यानी 10 मई को शाम को 5 बजकर 29 मिनट पर तिथि खत्म होगी। इस प्रकार शुक्र प्रदोष व्रत 9 मई को किया जाएगा।
प्रदोष पर शिव पूजा का महत्व-
यह व्रत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावकारी माना जाता है। इस दिन व्रत, उपवास, रुद्राभिषेक और शिवलिंग पर विविध वस्तुएं अर्पित करने से समस्त दोषों का नाश होता है और जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है। स्कंद पुराण, शिव पुराण तथा लिंग पुराण में इस व्रत की महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है। वैशाख शुक्ल त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की श्रद्धा भाव से पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में हर प्रकार की शुभता प्राप्त होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायक होता है जो गृहस्थ जीवन में संतुलन, स्वास्थ्य, समृद्धि और मानसिक शांति की कामना रखते हैं।
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक विशेष रूप से किया जाता है। इस दिन शिवलिंग पर विभिन्न वस्तुएं अर्पित करने की विशेष परंपरा है, जिनका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है।
जल और गंगाजल – सबसे पहले शिवलिंग को स्वच्छ जल और गंगाजल से स्नान कराना चाहिए। इससे पापों का नाश होता है और चित्त शुद्ध होता है।
दूध – शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से चंद्र दोष समाप्त होता है और मन की शांति प्राप्त होती है।
दही – दही से अभिषेक करने पर संतान सुख की प्राप्ति होती है तथा पारिवारिक कलह समाप्त होते हैं।
घी – घी से रुद्राभिषेक करने से आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है और लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
शहद – शिवलिंग पर शहद अर्पित करने से वाणी मधुर होती है और शत्रु शांत हो जाते हैं।
शक्कर या मिश्री – इससे मनुष्य को सुख और सौभाग्य प्राप्त होता है।
बेलपत्र – बेलपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। त्रिपत्री बेल अर्पित करने से सभी पापों का क्षय होता है और शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
धतूरा और आक का फूल – यह दोनों वनस्पतियां भगवान शिव को प्रिय हैं और इन्हें चढ़ाने से ऋण, रोग और शत्रु बाधाएं समाप्त होती हैं।
भस्म और चंदन – शिव को भस्म अर्पित करने से सांसारिक मोह समाप्त होते हैं जबकि चंदन से मन को शीतलता और शुद्धता मिलती है।
नैवेद्य और फल – फल और मिठाई भगवान को अर्पित करने से सुख-समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
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शुभ योग में शुक्र प्रदोष व्रत आज, पढ़ें पूरी कथा

इस साल आज 9 मई 2025 को प्रदोष व्रत है। इस दिन शुक्रवार का संयोग होने के कारण यह शुक्र प्रदोष कहलाएगा। मान्यता है कि इस तिथि पर महाकाल की पूजा-अर्चना करने से सभी इच्छाएं पूरी होती हैं, साथ ही कर्ज, तनाव, क्लेश से भी मुक्ति मिलती हैं। यह दिन सुहागिनों के लिए और भी खास है। इस दिन भोलेनाथ को जल, बेलपत्र और शमी का फूल अर्पित करने से माता पार्वती प्रसन्न होती हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति को मानसिक शांति मिलती हैं। इस बार शुक्र प्रदोष पर हस्त नक्षत्र और वज्र योग बन रहा है। ऐसे में प्रदोष व्रत की संपूर्ण कथा का पाठ अवश्य करें। इससे पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। आइए इस कथा को जानते हैं।
शुक्र प्रदोष व्रत कथा-
प्रदोष व्रत महादेव की पूजा और उनकी कृपा पाने का सबसे शुभ दिन होता है। लेकिन इस दिन की उपासना बिना व्रत कथा के अधूरी मानी जाती है। ऐसे में आइए शुक्र प्रदोष व्रत की संपूर्ण कथा के बारे में जानते हैं। दरअसल, प्रदोष व्रत की कथा को लेकर यह कहा जाता है कि एक समय की बात है जब एक नगर में तीन खास दोस्त रहते थे, जिनका नाम राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और धनिक पुत्र था। इन तीनों में से राजकुमार और ब्राह्मण कुमार दोनों की शादी हो चुकी थी। हालांकि कुछ समय बाद धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था। परंतु उसका गौना शेष था। यही कारण है कि उसकी पत्नी मायके में रहा करती थी।
फिर एक बार तीनों दोस्त बैठकर स्त्री विषय पर बात कर रहे थे कि तभी ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की तारीफ करते हुए कहा कि नारीहीन घर एक भूतों का डेरा होता है। दोस्त ब्राह्मण कुमार की यह बात सुनकर धनिक पुत्र ने अपनी पत्नी को घर लाने का निर्णय बना लिया है। इस दौरान धनिक पुत्र के माता-पिता ने उसे यह समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हैं और इस अवधि में बहू-बेटियों को घर से विदा कराकर उन्हें लाना अशुभ होता है इसलिए अभी रुकना ठीक रहेगा।
लेकिन धनिक पुत्र ने किसी की नहीं मानी और पत्नी को लेकर ससुराल पहुंच गया। हालांकि ससुराल पहुंचने के बाद भी धनिक पुत्र को समझाने का लाख प्रयास किया गया है। लेकिन उसकी जिद्द के कारण सभी को उसकी बातें माननी पड़ी। कुछ देर बाद धनिक पुत्र अपनी पत्नी के साथ घर की ओर निकल पड़ता है। वह शहर से बाहर आया ही था कि उसकी बैलगाड़ी का पहिया निकल गया। इससे बैल की टांगें टूट गई। इस घटना से दोनों पति-पत्नी को चोट पहुंच चुकी थी। परंतु फिर भी वह घर की ओर आने के लिए आगे बढ़ें।
कुछ दूर चलते ही उनका सामना डाकूओं से हो गया और वह उनका सभी सामान और धन लूटकर ले गए। जैसे तैसे दोनों घर पहुंचे ही थे कि धनिक पुत्र को सांप ने काट लिया। घटना के तुरंत बाद धनिक पुत्र के पिता ने वैद्य को बुला लिया। इस दौरान वैद्य ने कहा कि तीन दिन बाद धनिक पुत्र की मृत्यु हो जाएगी। इस बात की जानकारी जैसे ही उसके मित्र ब्राह्मण कुमार हुई, तो वह सीधा धनिक पुत्र के घर आ गया है। इसी बीच उसने धनिक पुत्र के माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत रखने के कहा। इसके अलावा उसने बोला कि धनिक पुत्र और उसकी पत्नी को वापस ससुराल ही भेज दें। ब्राह्मण कुमार की बात मानकर वह दोनों वापिस ससुराल चले गए और वहां जाते ही धनिक पुत्र की हालत भी सुधर गई। तभी से ऐसा माना जाता है कि शुक्र प्रदोष व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
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वट सावित्री व्रत 26 मई को, करें ये उपाय

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का बहुत खास महत्व होता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और वटवृक्ष की पूजा करती हैं. ऐसा करने से उन्हें अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है. मान्यता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव का वास होता है. कई महिलाएं जिनके वैवाहिक जीवन में समस्याएं चल रही हों या जो अपने दाम्पत्य जीवन को खुशहाल रखना चाहती हैं, वे वट सावित्री के दिन कुछ खास उपाय कर सकती हैं|
आइए जानते हैं देवघर के ज्योतिषाचार्य से कि क्या उपाय करें| इस साल 26 मई को वट सावित्री व्रत रखा जाएगा. इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर अखंड सौभाग्यवती के लिए वटवृक्ष की पूजा करती हैं. ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे उपाय बताए गए हैं जिन्हें वट सावित्री के दिन अपनाकर महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को और खुशहाल बना सकती हैं|
वट सावित्री के दिन क्या करें ये उपाय-
ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं वटवृक्ष के नीचे भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें. साथ ही श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें और शोडशोपचार विधि से वटवृक्ष की पूजा करें. वटवृक्ष में कच्चा सूत या मौली 108 बार लपेटें और अपनी वैवाहिक जीवन की खुशहाली की कामना करते हुए 108 बार प्रदक्षिणा करें. ऐसा करने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होंगे और आपकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होंगी. पूजा समाप्ति के बाद 11 घी के दीपक वटवृक्ष के नीचे जलाएं. ऐसा करने से आपके वैवाहिक जीवन में हमेशा खुशहाली बनी रहेगी|
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आज मोहिनी एकादशी पर करें इन चीजों का दान

  • घर से दूर होगी दरिद्रता
हिंदू धर्म में मोहिनी एकादशी का व्रत हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है. पंचांग के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत आज यानी 08 मई 2025 दिन गुरुवार को रखा जा रहा है. इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उनके लिए व्रत रखते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी इस दिन मोहिनी एकादशी व्रत की कथा सुनता है, उसके जीवन से सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं. इसके अलावा मोहिनी एकादशी के दिन कुछ चीजों का दान करने से घर धन-संपत्ति से भरा रहता है. आइए जानते हैं इसके बारे में|
वस्त्र का दान करें-
मोहिनी एकादशी के दिन गरीब और जरूरतमंदों को वस्त्र दान करना बहुत शुभ और फलदायी माना जाता है. ऐसा करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है|
अन्न का दान करें-
मोहिनी एकादशी के दिन गरीबों को भोजन अवश्य दान करें. अन्न दान करने से घर पर देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती है और धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती है|
धन का दान करें-
मोहिनी एकादशी के दिन अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों को धन दान करें. इस दिन धन का दान करने से आर्थिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है|
गुड़ का दान करें-
एकादशी के दिन गुड़ का दान अवश्य करें. गुड़ का दान करने से जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है|
मोहिनी एकादशी पर इन चीजों का भी दान करें-
मोहिनी एकादशी के दिन इन चीजों के अलावा जल, घड़ा, फल, अनाज और मिठाई का दान करें. इस दिन इन चीजों का दान करना भी बेहद शुभ माना जाता है. इसलिए मोहिनी एकादशी के दिन इन चीजों का दान करें|
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शुक्र प्रदोष व्रत के दिन करें एक उपाय, धन से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या होगी दूर

प्रत्येक महीने के कृष्ण और शुक्ल, दोनों पक्षों की त्रयोदशी को किया जाने वाला प्रदोष व्रत 9 मई के दिन किया जायेगा। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर की पूजा करनी चाहिए। कहते हैं प्रदोष व्रत के दिन जो व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करता है और प्रदोष व्रत करता है, उसकी समस्त समस्याओं का अंत होता है और उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है। त्रयोदशी तिथि में रात्रि के प्रथम प्रहर, यानि सूर्योदय के बाद जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है- भगवान शिव की कृपा उसपर सदैव बनी रहती है। साथ ही प्रदोष व्रत के दिन कुछ ऐसे उपाय भी हैं जिनको करने से धन-धान्य की प्राप्ति भक्तों को जीवन में हो सकती है। आइए जानते हैं इन उपयों के बारे में।
शुक्र प्रदोष व्रत के उपाय 
अपनी धन-सम्पत्ति में वृद्धि के लिये आज के दिन सवा किलो साबुत चावल और कुछ मात्रा में दूध लेकर शिव मन्दिर में दान करें। प्रदोष व्रत के दिन ऐसा करने से आपकी और आपके परिवार की धन-सम्पत्ति में वृद्धि होगी।
अगर लाख कोशिशों के बाद भी आपकी आर्थिक स्थिति डामाडौल बनी हुई है और आपको धन लाभ नहीं हो पा रहा है, तो आज पीले रंग के रेशमी कपड़े में सात हल्दी की गांठें बांधकर केले के पेड़ के नीचे रख आयें। प्रदोष व्रत के मौके पर ऐसा करने से आपकी आर्थिक समस्याओं का हल जल्द ही निकलेगा।
अगर आपको लंबे समय से अच्छी नौकरी नहीं मिल पा रही है या आपका प्रमोशन किसी कारण से अटका हुआ है, तो आज के दिन एक कच्चे मिट्टी के घड़े में गेहूं भरकर, उस पर ढक्कन लगाकर, घड़े को किसी सुपात्र ब्राह्मण को दान कर दें और अपनी बेहतरी के लिये उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। प्रदोष व्रत के दिन ऐसा करने से आपको जल्द ही अच्छी नौकरी मिलेगी और आपके प्रमोशन में आ रही परेशानी भी जल्द ही दूर होगी।
अपने करियर की बेहतरी के लिये या अपने बिजनेस को एक नये मुकाम तक पहुंचाने के लिये आज एक पीपल का पत्ता लेकर, उस पर हल्दी से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और भगवान के चरणों में ‘ऊँ नमो भगवते नारायणाय’ कहते हुएअर्पित कर दें । साथ ही किसी पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। अगर मीठाई का भोग नहीं लगा सकते तो केले का फल चढ़ा दें। प्रदोष व्रत के दिन ऐसा करने से आपके करियर की अच्छी शुरुआत होगी और बिजनेस में आपको मनचाहा मुकाम हासिल होगा।
अगर आप अपने शत्रुओं से परेशान हैं और उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं तो आज के दिन शमी पत्र को साफ पानी से धोकर शिवलिंग पर अर्पित करें और ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का 11 बार जप करें। प्रदोष व्रत के दिन ऐसा करने से आपको अपने शत्रुओं से जल्दी ही मुक्ति मिलेगी।
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जानिए... कब है मई का पहला और वैशाख का आखिरी प्रदोष व्रत

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, प्रदोष व्रत प्रत्येक माह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों त्रयोदशी को मनाया जाता है. मई 2025 का पहला प्रदोष व्रत वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को पड़ रहा है. इस बार व्रत शुक्रवार के साथ पड़ रहा है, जिससे यह शुक्र प्रदोष बन गया है|इस दिन, भक्त दिन भर उपवास रखते हैं और संध्या या प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करते हैं, इससे सुख-समृद्धि और सफलता मिलती है. ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन की सभी नकारात्मकताएं और बाधाएं दूर होती हैं और शिव के आशीर्वाद से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं|
प्रदोष व्रत कब मनाया जाएगा-
मई 2025 में प्रदोष व्रत कब है? वैदिक पंचांग के अनुसार, त्रयोदशी तिथि 09 मई 2025 को दोपहर 02:56 बजे से शुरू होकर 10 मई 2025 को शाम 05:29 बजे समाप्त होगी. क्योंकि इस व्रत की पूजा सांय काल होती है इसलिए प्रदोष व्रत 9 मई 2025 को मनाया जाएगा|
यह शुक्र प्रदोष वज्र योग और हस्त नक्षत्र के साथ मेल खाता है, जिसे अत्यधिक शुभ माना जाता है। शाम की पूजा अवधि (प्रदोष काल) दो घंटे से अधिक समय तक चलेगी – शाम 7:01 बजे से रात 9:08 बजे तक। यह 2 घंटे 6 मिनट की अवधि प्रदोष पूजा करने के लिए सबसे अनुकूल समय माना जाता है।
प्रदोष पूजा का शुभ मुहुर्त-
वैदिक पंचांग के अनुसार प्रदोष पूजा गोधूलि वेला में की जाती है. ये समय शिव पूजा के लिए शुभ होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस समय शिव को की गई प्रार्थना शक्तिशाली होती है|
शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व-
शुक्रवार के प्रदोष को शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं. कहा जाता है शुक्र प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सभी कष्ट मिट जाते हैं. इसे करने से घर में खुशहाली आती है. शत्रु नाश होता है. वहीं प्राचीन कथाओं के अनुसार, एक बार जब चंद्रदेव क्षय रोग से पीड़ित हो गए और उन्होंने राहत के लिए भगवान शिव की पूजा की. शिव के आशीर्वाद से उनके सभी कष्ट दूर हो गए. इसी तरह, माना जाता है कि जो लोग प्रदोष व्रत रखते हैं, वे दुखों से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है|
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बुधवार और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के संयोग में जरूर करें ये उपाय

  • हर परेशानी होगी दूर
सप्ताह का बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन गणपति जी आराधना करने से भक्तों के सभी विघ्न दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही बुधवार को शाम 6 बजकर 17 मिनट तक पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र रहेगा। आकाशमंडल में स्थित 27 नक्षत्रों में से पूर्वाफाल्गुनी ग्यारहवां नक्षत्र है। इस नक्षत्र की राशि सिंह है, जबकि इसके स्वामी शुक्र हैं। साथ ही ढाक, जिसे पलाश भी कहते हैं, उसके साथ पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र का संबंध बताया गया है।
बता दें कि पलाश के फूलों का इस्तेमाल रंग बनाने के लिए किया जाता है। लिहाजा जिन लोगों का जन्म पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में हुआ हो, उन लोगों को ढाक या पलाश के वृक्ष को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचानी चाहिए और साथ ही उसकी लकड़ियों, फूलों या उससे बनी किसी अन्य चीज को इस्तेमाल में नहीं लेना चाहिए। इसके बजाय ढाक या पलाश के पेड़ को नमस्कार करना चाहिए और उसकी पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको शुभ फलों की प्राप्ति होगी। साथ ही आपके सुख सौभाग्य में वृद्धि भी होगी।
बुधवार और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के संयोग में करें ये उपाय
- अगर आपके परिवार के सदस्यों के बीच आपसी अनबन होती रहती हैं, जिससे घर का माहौल भी अशांत रहता है, तो बुधवार के दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में एक मिट्टी का दिया लें और उसमें चार कपूर की टिकियां रखकर जलाएं। अब उस दिये से पूरे घर में धूप दिखाएं और बाद में उसे अपने घर के मंदिर में रख दें, बुझाएं नहीं।
- अगर कुछ दिनों से आपको नौकरी से संबंधित किसी प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, तो बुधवार घी, पिसी हुई शक्कर और सफेद तिल मिलाकर लड्डू बनाएं और भगवान गणेश को भोग लगाएं। अगर आप तिल के लड्डू न बना पाएं, तो सफेद तिल, थोड़ासा घी और थोड़ी पिसी हुई शक्कर अलग अलग लेकर मंदिर में दान कर दें।
- अगर आप राजनीतिक या सामाजिक क्षेत्र में अपनी पैंठ जमाना चाहते हैं तो बुधवार के दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में एक खाली मटका लें, लेकिन ध्यान रहे कि मटके पर ढक्कन लगा होना चाहिए। अब ढक्कन गिर न जाये, इसके लिए किसी कपड़े या धागे की सहायता से उस ढक्कन को मटके से अच्छे से बांध दें और मन ही मन अपने इष्ट देव का ध्यान करते हुए, उस मटके को बहते जल में प्रवाहित कर दें।
- अगर आप जीवन में खुशियों का संचार बढ़ाना चाहते हैं, जिससे पारिवारिक रिश्तों में भी प्यार बना रहे, तो इसके लिए बुधवार के दिन केतु के मूल मंत्र का जप करें। मंत्र इस प्रकार है- ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम:'।
- अगर आप अपने जीवन में हर काम की बेहतरी के लिए और शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए बुधवार के दिन आपको ढाक या पलाश के वृक्ष की उपासना करनी चाहिए। अगर आसपास कहीं वृक्ष उपलब्ध हो तो उसकी जड़ में जल भी डालना चाहिए। साथ ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप बुधवार के दिन ढाक या पलाश के वृक्ष को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचाएं और उससे संबंधित चीजों का उपयोग करने से बचें। इससे आपको शुभ फल मिलेंगे, लेकिन अगर आपको आसपास कहीं ढाक या पलाश का वृक्ष न मिले तो आप वृक्ष की फोटो डाउनलोड करके उसको अपने पास संजोकर रखें और प्रणाम करें।
- अगर आपके व्यापार में मंदी चल रही है और आप अपने काम को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं तो बुधवार के दिन एक मिट्टी का बर्तन लें और उसमें शहद भरकर, उस पर ढक्कन लगाकर घर के उत्तर पश्चिम कोने में रख दें और बुधवार पूरा दिन रखा रहने दें। अगले दिन उस शहद से भरे मिट्टी के बर्तन को मन ही मन अपने व्यापार की बढ़ोतरी के लिए प्रार्थना करते हुए किसी एकांत स्थान पर छोड़ दें।
- अगर आप धन धान्य और भौतिक सुखों की बढ़ोतरी चहाते है तो बुधवार एक पलाश का फूल और साथ ही एक एकाक्षी नारियल लें। अगर आपको पलाश का ताजा फूल न मिले तो आप पंसारी के यहां से सूखा हुआ पलाश का फूल भी ला सकते हैं। वो आपको आसानी से मिल जायेगा। अब उस पलाश के फूल और एकाक्षी नारियल को एक सफेद रंग के कपड़े में बांधकर अपनी तिजोरी में या आप घर में जिस स्थान पर धन रखते हैं, वहां पर रख दें।
- अगर आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में तरक्की पाना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन किसी कुम्हार या कृषक या जो मिट्टी से जुड़ा कोई कार्य करता हो, उसे एक सफेद रंग का कपड़ा गिफ्ट करें। अगर कपड़ा गिफ्ट करने में समर्थ न हो, तो दही से बनी कोई चीज उन्हें खिलाएं।
- अगर आपकी तबीयत कुछ दिनों से ठीक नहीं चल रही है, तो अपनी तबीयत में सुधार के लिए या अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए बुधवार के दिन ज्वार के आटे की रोटी बनाकर गाय को खिलाएं और पैर छूकर आशीर्वाद लें। लेकिन अगर आप ज्वार के आटे की रोटी न बना पाएं तो ज्वार का आटा या साबुत ज्वार के दाने किसी मंदिर में दान कर दें।
- अगर आप अपने दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाये रखना चाहते हो और उसमें प्यार की कोई गुंजाइश नहीं रखना चाहते हो, तो बुधवार के दिन कोई दो अच्छी-सी खुशबू वाले इत्र की शीशी खरीदें और उसमें से एक शीशी को किसी मंदिर में दान कर दें और दूसरी शीशी को अपने जीवनसाथी को गिफ्ट कर दें।
- अगर आप अपने सुख सौभाग्य की वृद्धि चाहते हैं तो बुधवार गाय का शुद्ध देसी घी और एक कपूर की डिब्बी मंदिर में दान करें। साथ ही मंदिर जाकर उस कपूर की डिब्बी में से एक कपूर की टिकिया निकालकर अपने हाथों से जलाएं और भगवान की आरती करें। बाकी मंदिर में ही रखी रहने दें।
- अपनी धन संपत्ति में वृद्धि के लिए बुधवार के दिन सवा किलो साबुत चावल और कुछ मात्रा में दूध लेकर शिव मंदिर में दान करें। बुधवार के दिन ऐसा करने से आपकी और आपके परिवार की धन संपत्ति में वृद्धि होगी।
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