धर्म समाज

अप्रैल में रामनवमी व हनुमान जन्मोत्सव से लेकर मनाए जाएंगे ये त्योहार...

अप्रैल का महीना सनातन धर्म में खास महत्व रखता है। इस महीने में चैत्र नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की पूजा होती है, जिसमें व्रत और कन्या पूजन का विशेष महत्व है। इसके अलावा कई अन्य व्रत और पर्व भी इस माह में मनाए जाते हैं। आइए जानते हैं कि अप्रैल 2025 के प्रमुख व्रत और त्योहारों की डेट क्या है...
अप्रैल 2025 के व्रत-त्योहार की लिस्ट-
01 अप्रैल- मासिक कार्तिगाई और विनायक चतुर्थी
02 अप्रैल - लक्ष्मी पञ्चमी
03 अप्रैल - यमुना छठ, रोहिणी व्रत और स्कन्द षष्ठी
05 अप्रैल - मासिक दुर्गाष्टमी
06 अप्रैल - राम नवमी और स्वामीनारायण जयंती
08 अप्रैल - कामदा एकादशी
09 अप्रैल - वामन द्वादशी
10 अप्रैल - महावीर स्वामी जयन्ती, प्रदोष व्रत
12 अप्रैल - हनुमान जयंती और चैत्र पूर्णिमा
13 अप्रैल- वैशाख माह की शुरुआत
14 अप्रैल- मेष संक्रान्ति
16 अप्रैल- विकट संकष्टी चतुर्थी
20 अप्रैल- भानु सप्तमी, कालाष्टमी और मासिक कृष्ण जन्माष्टमी
24 अप्रैल- वरुथिनी एकादशी व्रत
25 अप्रैल- प्रदोष व्रत
26 अप्रैल- मासिक शिवरात्रि
27 अप्रैल- वैशाख अमावस्या
29 अप्रैल- परशुराम जयंती और मासिक कार्तिगाई
30 अप्रैल- अक्षय तृतीया और रोहिणी व्रत
चैत्र नवरात्र 2025 कैलेंडर-
पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होगी।
दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी।
तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा होगी।
चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा होगी।
पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा होगी।
छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होगी।
सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होगी।
आठवें दिन मां महागौरी की पूजा होगी।
नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होगी।
कन्या पूजन 2025 की तारीख-
चैत्र नवरात्र में कन्या पूजन का बहुत महत्व होता है। कन्याओं का खाना खिलाने के बाद पूजन करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे माता रानी प्रसन्न होती है। इस साल चैत्र नवरात्र में अष्टमी 5 अप्रैल और नवमी 6 अप्रैल को मनाई जाएगी, जिसमें कन्या पूजन होगा।
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चैत्र नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्माण्डा की उपासना

  • जानिए...पूजन विधि और प्रिय भोग
आज चैत्र नवरात्र का चौथा दिन है. नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्माण्डा का पूजन  होता है. अपनी हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कुष्माण्डा हुआ. ये अनाहत चक्र को नियंत्रित करती हैं. मां की आठ भुजाएं हैं. अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं. संस्कृत भाषा में कूष्माण को कुम्हड़ कहते हैं और इन्हें कुम्हड़ा विशेष रूप से प्रिय है. ज्योतिष में इनका संबंध बुध ग्रह से है.
देवी कुष्माण्डा की पूजा विधि और लाभ
नवरात्र के चौथे दिन हरे वस्त्र धारण करके मां कुष्माण्डा का पूजन करें. पूजा के दौरान मां को हरी इलाइची, सौंफ या कुम्हड़ा अर्पित करें. इसके बाद उनके मुख्य मंत्र "ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः" का 108 बार जाप करें. चाहें तो सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें.
बुध को मजबूत करने के लिए करें मां कुष्मांडा की पूजा
मां कुष्माण्डा को उतनी हरी इलाइची अर्पित करें जितनी कि आपकी उम्र है. हर इलाइची अर्पित करने के साथ "ॐ बुं बुधाय नमः" कहें. सारी इलाइचियों को एकत्र करके हरे कपडे में बांधकर रख लें. इन्हें अपने पास अगली नवरात्रि तक सुरक्षित रखें.
मां कुष्माण्डा का विशेष प्रसाद
इस दिन मां को आज के दिन मालपुए का भोग लगाएं. इसके बाद उसको किसी ब्राह्मण या निर्धन को दान कर दें. इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता अच्छी हो जाती है. आप चाहें तो देवी को पीले रंग की मिठाई या फल का भी भोग लगा सकते हैं.
मां कुष्‍मांडा पूजा मंत्र
1. बीज मंत्र: कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
2. ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
3. पूजा मंत्र: ॐ कुष्माण्डायै नम:
4. या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
5. ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
 
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विनायक चतुर्थी पर सुनें ये व्रत कथा, वैवाहिक जीवन होगा सुखमय

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत आज सुबह 5 बजकर 42 मिनट पर हो चुकी है. वहीं इस तिथि का समापन कल 2 अप्रैल को देर रात 2 बजकर 32 मिनट पर होगा. हिंदू धर्म उदया तिथि मान्य है. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, आज विनायक चतुर्थी है. इसका व्रत भी आज है|
हिंदू धर्म में चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की पूजा और व्रत किया जाता है. हर माह की चतुर्थी तिथि संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है. वहीं हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि विनायक चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है. विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत करने से जीवन के सभी विघ्न दूर हो जाते हैं. इस दिन पूजा के समय विनायक चतुर्थी की कथा भी अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए. ऐसा करने पूजा और व्रत का पूरा फल मिलता है. साथ ही वैवाहिक जीवन खुशहाल रहता है|
विनायक चतुर्थी व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक धर्मनीष्ठ राजा राज किया करते थे. वो राजा बहुत आदर्शवादी और धर्मात्मा थे. उनके राज्य में एक विष्णु शर्मा नाम के ब्राह्मण थे. वो भी सज्जन और धर्मात्मा थे. वो सामान्य तरह से जीवन यापन करते थे. उनके सात पुत्र थे. विवाह के बाद सभी पुत्र अलग हो गए. विष्णु शर्मा भगवान गणेश के भक्त थे. वो हमेशा संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा करते थे, लेकिन बुढ़ापे की अवस्था में उनके लिए गणेश चतुर्थी के व्रत का पालन करना मुश्किल हो रहा था. इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न मेरे स्थान पर मेरी बहुएं इस व्रत को रखें|
एक दिन उन्होंने सभी पुत्रों को अपने घर बुलाया. शाम को भोजन के बाद उन्होंने अपनी सभी बहुओं से यह व्रत करने को कहा. बहुओं ने व्रत करने से सिर्फ मना किया बल्कि ब्राह्मण अपने ससुर जी को खूब अपमानित किया. हालांकि सबसे छोटी बहु ने उनकी बात मान ली. उसने पूजा में लगने वाली सभी सामान की व्यवस्था की. ससुर के साथ खुद भी व्रत रखा. स्वंय कुछ नहीं खाया, लेकिन सुसर जी को भोजन दे दिया|
आधी रात में ब्राह्मण की तबियत अचानक खराब हो गई. उन्हें दस्त और उल्टियां होने लगी. छोटी बहु ने मल-मूत्र से खराब हुए ससुर जी के वस्त्र साफ किए और उनके शरीर को धोया और स्वच्छ किया. वो पूरी रात बिना कुछ खाए- पिए ससुर जी की सेवा में लगी रही. व्रत के दौरान चंन्द्रोदय होने पर उसने स्नान कर भगगवान गणेश की पूजा की. व्रत का विधि पूर्वक पारण किया. छोटी बहु की व्रत और पूजा से भगवान श्री गणेश प्रसन्न हुए|
फिर भगवान गणेश की कृपा से ससुर जी के सेहत में सुधार होने लगा. व्रत और पूजा के पुण्यफल से छोटी बहु का घर धन के भंडार से भर गया. ये देख अन्य बहुओं को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा. इसके बाद उन्होंने अपने ससुर जी से क्षमा मांगी. इसके बाद उन्होंने भी शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली विनायक चतुर्थी का व्रत रखा और विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा की. ऐसे में सब पर भगवान गणेश की कृपा हुई. भगवान गणेश की कृपा से सभी के स्वभाव में सुधार आ गया|
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नवरात्रि में कब है लक्ष्मी पंचमी, जानिए...शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और नियम

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 2 अप्रैल को बुधवार देर रात 2 बजकर 32 मिनट पर हो जाएगी. वहीं इस तिथि का समापन 2 अप्रैल को ही रात में 11 बजकर 49 मिनट पर हो जाएगा. ये ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, 2 अप्रैल बुधवार को ही लक्ष्मी पंचमी का व्रत रखा जाएगा और माता लक्ष्मी का पूजन किया जाएगा|
हिंदू धर्म में लक्ष्मी पंचमी का व्रत बहुत विशेष माना जाता है. दरअसल, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि लक्ष्मी पंचमी के रूप में मनाई जाती है. चैत्र नवरात्रि की पंचमी तिथि लक्ष्मी पंचंमी कही जाती है. इस दिन इसका व्रत और माता लक्ष्मी का पूरे विधि-विधान से पूजन किया जाता है. इस दिन पूजन करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. उनके आशीर्वाद से घर धन-धान्य से भर जाता है. चैत्र नवरात्रि शुरू हो चुकी है. ऐसे में आइए जानते हैं कि कब है लक्ष्मी पंचमी. इसका शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और नियम क्या हैं|
लक्ष्मी पंचमी पूजा विधि-
लक्ष्मी पंचमी के दिन सर्वप्रथम जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए. फिर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए. फिर पूजास्थल की साफ-सफाई करनी चाहिए. इसके बाद एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर, माता लक्ष्मी की प्रतिमा या तस्वीर रखनी चाहिए. इसके बाद पहले भगवान गणेश की उपासना करनी चाहिए. फिर माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए. पूजा के दौरान माता लक्ष्मी को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए. माता लक्ष्मी को गंध, पुष्प, फल, चंदन, सुपारी, रोली और मोली चढ़ानी चाहिए. माता को मिठाई का भोग भोग लगाना चाहिए. उसके सामने धूप-दीप जलाना चाहिए. पूजा के समय लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. माता लक्ष्मी के विभिन्न मंत्रों का जाप करना चाहिए. लक्ष्मी पंचमी कथा का पाठ करना या सुनना चाहिए. फिर माता की आरती कर पूजा का समापन करना चाहिए|
लक्ष्मी पंचमी के नियम-
इस दिन व्रत में फल, दूध, और मिठाई का सेवन करें.
ब्राह्मणों को भोजन कराएं.
माता लक्ष्मी को पीली कौड़ी चढ़ाएं.
चांदी से संबंधित चीजों का दान न करें.
तेल का दान न करें.
व्रत में मांसाहार और मदिरा का सेवन न करें. लहसुन प्याज खाने से बचें|
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हर मंगलवार रखें हनुमान जी का व्रत, दूर होगी हर समस्या

मंगलवार का दिन हनुमान जी के लिए समर्पित होता है, ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से बजरंगबली अपने भक्तों पर खास कृपा बरसाते हैं. वैसे हनुमान जी की हर दिन पूजा की जाती है, लेकिन मंगलवार को हनुमान जी की पूजा का खास महत्व है. मान्यता है कि जो लोग शनि से पीड़ित हैं, वो मंगलवार का व्रत करें तो उनके ऊपर से शनि का दोष खत्म हो जाएगा|
मंगलवार को व्रत रखने के फायदे-
मान्यता है कि अगर आप मांगलिक दोष से पीड़ित हैं, तो आपके लिए मंगलवार का व्रत करना काफी फायदेमंद हो सकता है. पूरे श्रद्धा के साथ हनुमान जी की आराधना करते हैं, तो आपका मांगलिक दोष दूर हो जाएगा. अगर आपके घर में आर्थिक तंगी हैं और कर्ज के बोझ तले दबे हैं, तो अगर आप मंगलवार को व्रत करें. व्रत करने से आपकी आर्थिक परेशानियां दूर हो जाएंगी. शादीशुदा जिंदगी में चली आ रही परेशानियों से भी मंगलवार को व्रत रखने से छुटकारा मिलता है. हनुमान जी को संकट मोचन कहा जाता है, इसलिए उनका व्रत रखने से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं|
कैसे शुरू करें व्रत-
मंगलवार का व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार से शुरू कर सकते हैं, आप 21 व्रत रख सकते हैं. मान्यता है कि 21 व्रत करने से सारी मनोकामना पूरी होती है. मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना शुभ माना जाता है. इसके अलावा मंगलवार के दिन बजरंग बाण और सुंदरकांड का पाठ भी करना शुभ माना जाता है|
मंगलवार पूजा विधि-
मंगलवार के दिन आप ब्रह्म मुहू्र्त में उठकर नहाकर सूर्यदेव को जल चढ़ाकर व्रत की शुरुआत करें. आप अपने घर में ईशान कोण में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर हनुमान जी की तस्वीर रखें. हनुमान जी के साथ भगवान श्री राम और सीता की पूजा करने से व्रत का फल जल्द मिलता है. भोग में बूंदी के लड्डू जरूर चढ़ाएं. इसके साथ तुलसी के पत्ते का भी इस्तेमाल करें|
ऐसी मान्यता है कि बजरंग बली को तुलसी के पत्तों से काफी लगाव है. पूजा में रोली अक्षत जरूर रखें और बजरंग बली को लाल रंग का फूल चढ़ाएं. पूजा के दौरान हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करें. पूजा करने के बाद आरती करें और सबको प्रसाद बांटे शाम को भी बजरंगबली की एक बार फिर पूजा और आरती करके आप शाम को मीठा भोजन कर सकते हैं|
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तीसरे दिन ऐसे करें मां चंद्रघंटा की पूजा, मिलेगा भरपूर शुभता

Chaitra Navratri : आज चैत्र नवरात्रों के दो दिन पूरे हो चुके हैं, जबकि तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। माना जाता है कि इस दिन माता चंद्रघंटा की पूजा-उपासना करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसलिए तो चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन मां की पूजा अर्चना करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है, जीवन में खुशहाली आती है और सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ती है। मां चंद्रघंटा की पूजा से न केवल भौतिक सुख में वृद्धि होती है, बल्कि समाज में आपका प्रभाव भी बढ़ता है। बता दें कि इस बार द्वतीया और तृतीया नवरात्री व्रत एक ही दिन किया जाएगा। आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा की पूजाविधि, भोग, पूजा मंत्र और आरती के बारे में।
मां चंद्रघंटा की पूजा से जीवन के सभी पहलुओं में सफलता प्राप्त होती है। विशेष रूप से, इस दिन सूर्योदय से पहले पूजा करनी चाहिए, क्योंकि इस समय मां की विशेष कृपा प्राप्त होती है। पूजा में लाल और पीले गेंदे के फूल चढ़ाने का महत्व है, क्योंकि ये फूल मां की ममता और शक्ति का प्रतीक हैं। मां चंद्रघंटा के मस्तक पर अर्द्धचंद्र के आकार का घंटा स्थित है, जो उनकी महिमा और तेजस्विता को दर्शाता है। यही कारण है कि देवी का नाम चंद्रघंटा पड़ा।
चंद्रघंटा मां का मंत्र-
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
पूजा के उपाय-
सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठे : सुबह जल्दी उठें और स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहने।
मां चंद्रघंटा को पीले रंग की मिठाई और दूध से बनी खीर का भोग अर्पित करें।
पूजा के दौरान मां के मंत्रों का जाप करें।
इसके बाद पूजा में मां को लाल और पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें ।
इसके बाद मां को कुमकुम और अक्षत अर्पित करें।
फिर मां चंद्रघंटा को पीला रंग अत्यंत प्रिय है, इसलिए पूजा में पीले रंग के फूलों और वस्त्रों का प्रयोग करें।
साथ ही दुर्गा सप्तशती और अंत में मां चंद्रघंटा की आरती का पाठ भी करें
इन सभी विधियों को विधिपूर्वक करने से मां चंद्रघंटा प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं।
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उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा कबीरधाम जिला के ग्राम मदनपुर में आयोजित भागवत गीता महापुराण में हुए शामिल

रायपुर। प्रदेश के उपमुख्यमंत्री श्री विजय शर्मा अपने कबीरधाम जिला के प्रवास के दौरान ग्राम मदनपुर में आयोजित भागवत गीता महापुराण में शामिल हुए। उन्होंने विधिवत पूजा-अर्चना कर प्रदेश की सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना की। धार्मिक आयोजन में भाग लेते हुए उन्होंने श्रद्धालुओं के साथ भक्ति और आध्यात्मिकता का अनुभव किया। उपमुख्यमंत्री ने जमीन पर बैठकर श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण किया और आयोजन समिति के सदस्यों से भेंट कर उनका कुशलक्षेम जाना।
इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री श्री शर्मा ने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव जीवन को सही दिशा देने वाला पवित्र मार्गदर्शक है। यह धर्म, कर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उन्होंने इस आयोजन के सफल संचालन के लिए समिति और ग्रामवासियों को बधाई देते हुए इसे समाज में संस्कारों और सद्भाव को बढ़ाने वाला महत्वपूर्ण प्रयास बताया।
कार्यक्रम में स्थानीय जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। ग्रामीणों ने उपमुख्यमंत्री श्री शर्मा का आत्मीय स्वागत किया और उनसे अपने क्षेत्र की विभिन्न आवश्यकताओं को लेकर संवाद किया। उनके आगमन से ग्राम में उत्साह और भक्ति का विशेष माहौल बना रहा।
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विनायक चतुर्थी कल 1 अप्रैल को, जानिए...शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 1 अप्रैल को सुबह 5 बजकर 42 मिनट पर हो जाएगी. वहीं इस शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का समापन 2 अप्रैल को देर रात 2 बजकर 32 मिनट पर होगा. हिंदू धर्म उदया तिथि देखी जाती है. ऐसे में 1 अप्रैल यानी कल विनायक चतुर्थी रहेगी. कल ही विनायक चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा..हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी विनायक चतुर्थी कहलाती है. इस दिन विधि-विधान से भगवान गणेश का पूजन और व्रत किया जाता है. इस दिन जो भी भगवान गणेश का व्रत और पूजन करता है उसके सभी विघ्न बप्पा दूर करते हैं. इस साल चैत्र माह की विनायक चतुर्थी कल है. ऐसे में आइए जानते हैं इसका शुभ मुहूर्त, पूजा विधि से व्रत पारण तक सब कुछ|
विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त-
विनायक चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 39 मिनट से शुरू होगा. ये 5 बजकर 25 मिनट तक रहेगा. विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 10 मिनट से शुरू होगी. ये 3 बजकर 20 मिनट तक रहेगा. गोधूलि मुहूर्त शाम 6 बजकर 38 मिनट से शुरू होगा. ये शाम 7 बजकर 1 मिनट तक रहेगा. निशिता मुहूर्त रात 12 बजकर 1 मिनट से शुरू होगा. ये 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा|
पूजा विधि-
विनायक चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए. स्नान आदि कर साफ कपड़े पहनकर बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. फिर मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की प्रतीमा को गंगाजल से स्नान कराना चाहिए. इसके बाद भगवान गणेश को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए. इसके बाद भगवान को साफ जल से स्नान कराना चाहिए. भगवान गणेश को चंदन, रोली, कुमकुम और फूल चढ़ाने चाहिए. फिर उन्हें लड्डू और मोदक का भोग लगाना चाहिए. भगवान गणेश के मंत्रों का जाप करना चाहिए. इसके बाद विनायक चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करना चाहिए. अंत मे भगवान गणेश की आरती कर पूजा समाप्त करनी चाहिए. पूरा दिन व्रत करना चाहिए|
क्या खाएं क्या नहीं-
विनायक चतुर्थी के दिन फल में केला, सेब, अनार, अंगूर खाने चाहिए. दूध, दही, पनीर, श्रीखंड आदि खाना चाहिए. साबूदाना की खिचड़ी या खीर खानी चाहिए. सिंघाड़े के आटे की पूड़ी या हलवा खाना चाहिए. आलू की सब्जी या टिक्की खानी चाहिए. मूंगफली के दाने या मूंगफली की चिक्की खानी चाहिए. नारियल पानी पीना चाहिए. इस दिन चावल, गेहूं, दालें आदि का सेवन करने से बचना चाहिए. प्याज और लहसुन नहीं खाना चाहिए. मांस और मदिरा का भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए. तली हुई चीजें नहीं खानी चाहिए|
इन दिन क्या करें क्या नहीं-
इस दिन पर सात्विक जीवनशैली अपनानी चाहिए. इस दिन धार्मिक काम करने चाहिए. इस दिन भगवान गणेश को पूजा में दूर्वा चढ़ाना चाहिए. गरीबों और जरूरतमंदों को दान करना चाहिए. इस दिन किसी से वाद-विवाद नहीं करना चाहिए. किसी को दुख नहीं देना चाहिए. भगवान की पजा में तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए. इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए|
इन चीजों का करें दान-
विनायक चतुर्थी के दिन फलों का दान करना चाहिए. गरीबों और जरूरतमंदों को वस्त्रों और अन्न का दान करना चाहिए. धन का दान अवश्य करना चाहिए. प्रसाद के रूप में मोदक देना चाहिए|
इन मंत्रों का करें जाप-
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
ऊँ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥
सर्व राज्य वश्यकरणाय सर्वजन सर्वस्त्री पुरुष आकर्षणाय श्रीं ॐ स्वाहा ॥
विनायक चतुर्थी का महत्व-
हिंदू धर्म में विनायक चतुर्थी का व्रत बहुत महत्वपूर्व माना जाता है. हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, विनायक चतुर्थी के दिन पूजन और व्रत करने से बप्पा प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं. उनके आशीर्वाद से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास बना रहता है. ज्ञान और बुद्धि प्राप्त होती है. सभी कार्योंं में सफलता मिलती है. साथ ही सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं|
व्रत का पारण-
हिंदू धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि जिस दिन विनायक चुतुर्थी का व्रत रखा जाता है, उसके अगले दिन व्रत का पारण किया जाता है. ऐसे में चैत्र माह की विनायक चतुर्थी के व्रत का पारण दो अप्रैल को सूर्योदय के बाद किया जाएगा. विनायक चतुर्थी व्रत के पारण से पहले शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए. गणेश जी की प्रतिमा के सामने धूप-दीपक जलाना चाहिए. हाथ में जल लेकर पारण का संकल्प लेना चाहिए. फल, दूध, दही, पनीर खाकर व्रत का पारण करना चाहिए. व्रत के पारण के बाद ब्राह्मणों को दान देना चाहिए|
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चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन करे ब्रह्माचरिणी देवी की पूजा, जानिए...पूजा विधि

नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की पूजा के लिए शुभ माने जाते हैं। इस दौरान मां शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री माता तक की पूजा की जाती है। दुर्गा नवमी के दिन हवन और विसर्जन के साथ इसका समापन होता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा के 51 शक्तिपीठ हैं। नवरात्रि के दौरान भारत में स्थापित शक्तिपीठों के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। आइए जानते हैं मां दुर्गा के 9 शक्तिपीठों और उनसे जुड़ी पौराणिक कथाओं के बारे में। नवरात्रि हिंदू धर्म के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। इस साल चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से शुरू हो रही है और 06 अप्रैल को समाप्त होगी। यह नौ दिनों का त्योहार है जो दिलचस्प उत्सव अनुष्ठानों से भरा होता है। नवरात्रि देवी दुर्गा और उनके नौ अवतारों की पूजा के लिए समर्पित है। क्या आप जानते हैं कि साल में चार नवरात्रि होती हैं, लेकिन केवल दो शरद नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि ही बड़े पैमाने पर मनाई जाती हैं। व्रत के दौरान नौ दिनों तक मांस, अनाज, शराब, प्याज और लहसुन का सेवन वर्जित होता है।
शक्तिपीठ से जुड़ी कथा-
माता शक्तिपीठ से जुड़ी कथा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के शव को लेकर धरती पर तांडव करने लगे थे। तब भगवान विष्णु ने शिव के क्रोध को शांत करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े कर दिए। इस क्रम में जहां-जहां सती के शरीर के अंग और आभूषण गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। मां दुर्गा के 9 प्रमुख शक्तिपीठ
1. कालीघाट मंदिर कोलकाता - चार उंगलियां गिरी
2. कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर - त्रिनेत्र गिरा
3. अंबाजी मंदिर गुजरात - हृदय गिरा
4. नैना देवी मंदिर - आंखें गिरना
5. कामाख्या देवी मंदिर - यहां गुप्तांग गिरे
6. हरसिद्धि माता मंदिर उज्जैन - यहां बायां हाथ और होंठ गिरे
7. ज्वाला देवी मंदिर - सती की जीभ गिरी
8. कालीघाट में मां के बाएं पैर का अंगूठा गिरा।
9. वाराणसी - उत्तर प्रदेश के काशी में मणिकर्णिक घाट पर विशालाक्षी की मां की माला गिरी।
घट स्थापना मुहूर्त-
इस साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 29 मार्च को शाम 04:27 बजे से शुरू होगी. वहीं, यह तिथि 30 मार्च को दोपहर 12:49 बजे समाप्त होगी. ऐसे में उदया तिथि के अनुसार चैत्र नवरात्रि 30 मार्च से शुरू होने जा रही है. इस दिन घट स्थापना का समय कुछ इस प्रकार रहने वाला है-
अष्टमी और नवमी कब है
इस बार चैत्र नवरात्रि की महाअष्टमी और महानवमी का संयोग देखने को मिल रहा है, क्योंकि इस बार पंचमी तिथि क्षय हो रही है। ऐसे में 8 दिनों तक मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाएगी। इस प्रकार 5 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि की पूजा की जाएगी और उसी दिन कन्या पूजन भी किया जाएगा. इसके साथ ही अगले दिन यानी 6 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि की पूजा और राम नवमी का त्योहार मनाया जाएगा।
1. त्रिपुर सुंदरी शक्ति पीठ मंदिर, बांसवाड़ा
दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल जिले बांसवाड़ा में 52 शक्ति पीठों में से एक सिद्ध माता श्री त्रिपुर सुंदरी का शक्ति पीठ मंदिर है। मान्यता है कि मंदिर में मांगी गई मुरादें देवी पूरी करती हैं, यही वजह है कि आम लोगों से लेकर नेता तक सभी माता के दरबार में पहुंचकर मत्था टेकते हैं।बांसवाड़ा जिले से 18 किलोमीटर दूर तलवाड़ा गांव में अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के बीच माता त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर है। मुख्य मंदिर के दरवाजे चांदी से बने हैं। मां भगवती त्रिपुर सुंदरी की मूर्ति की 18 भुजाएं हैं। मूर्ति में देवी दुर्गा के 9 स्वरूपों की प्रतिकृतियां हैं। मां शेर, मोर और कमल के आसन पर विराजमान हैं। नवरात्रि के दौरान त्रिपुर सुंदरी मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, जिससे मेले जैसा माहौल बन जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे समेत कई अन्य नेता, सांसद, विधायक, मंत्री मंदिर में दर्शन करने पहुंचे। बांसवाड़ा में चुनावी रैलियों की शुरुआत नेताओं ने माता के मंदिर में दर्शन कर की।
गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक थे त्रिपुरा सुंदरी शक्तिपीठ के उपासक-
इस मंदिर के उत्तरी भाग में सम्राट कनिष्क के समय का शिवलिंग है। माना जाता है कि यह स्थान कनिष्क काल से पहले से ही प्रसिद्ध रहा होगा। वहीं, कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि यहां देवी मां के शक्तिपीठ का अस्तित्व तीसरी शताब्दी से पहले का है। उनका कहना है कि पहले यहां 'गढ़पोली' नाम का ऐतिहासिक नगर था। 'गढ़पोली' का मतलब दुर्गापुर होता है। माना जाता है कि गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक त्रिपुरा सुंदरी के उपासक थे।
2. कैला देवी मंदिर, शक्तिपीठ, करौली
करौली जिले में स्थित कैला देवी मंदिर सौ साल पुराना मंदिर है। इस प्राचीन मंदिर में चांदी के आसन पर सोने की छतरियों के नीचे दो मूर्तियां विराजमान हैं। एक बाईं ओर है, जिसका मुंह थोड़ा टेढ़ा है, यानी कैला मैय्या, दूसरी दाईं ओर माता चामुंडा देवी की छवि है। कैला देवी की आठ भुजाएं हैं। यह मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां यहां प्रचलित हैं। मान्यता है कि भगवान कृष्ण के पिता वसुदेव और देवकी को कैद करके जिस पुत्री योगमाया को कंस मारना चाहता था, वही योगमाया कैला देवी के रूप में इस मंदिर में विराजमान हैं। मंदिर के पास स्थित कालीसिल नदी को भी चमत्कारी नदी कहा जाता है। कैला देवी मंदिर करौली जिले से 30 किमी और हिंडौन रेलवे स्टेशन से 56 किमी दूर है। नवरात्रि के दौरान यहां दूर-दूर से श्रद्धालु माता के मंदिर में दर्शन करने आते हैं।
4. श्री शिला माता मंदिर, आमेर
जयपुर के राजघराने के कछवाहा राजवंश द्वारा पूजी जाने वाली देवी शिला माता आजादी के बाद जयपुर के लोगों की प्रमुख शक्तिपीठ है। इस मंदिर की महिमा बहुत अधिक है और इसे चमत्कारी भी कहा जाता है। तंत्र साधकों और साधकों के बीच भी यह प्रसिद्ध है। जयपुर की स्थापना से पहले आमेर रियासत थी, जहां के यशस्वी शासक राजा मानसिंह प्रथम ने शिला माता के आशीर्वाद से मुगल शासक अकबर के प्रमुख सेनापति के रूप में 80 से अधिक युद्ध जीते थे। आजादी से पहले आमेर महल परिसर में स्थित शिला माता मंदिर में केवल राजपरिवार के सदस्य और प्रमुख सामंत ही जा सकते थे, अब प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं।
नवरात्रि के दौरान माता के दर्शन के लिए लंबी कतारें लगती हैं और छठ के दिन मेला लगता है। जयपुर के प्राचीन प्रमुख मंदिरों में से एक इस शक्तिपीठ की स्थापना पंद्रहवीं शताब्दी में आमेर के तत्कालीन शासक राजा मानसिंह प्रथम ने की थी। मंदिर का मुख्य द्वार चांदी से बना है। इसमें नवदुर्गा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री अंकित हैं। काली, तारा, षोडशी, भुनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरा, भैरवी, धूमावती, बगुलामुखी, मातंगी और कमला को दस महाविद्याओं के रूप में दर्शाया गया है। दरवाजे के ऊपर गणेश जी की लाल पत्थर की मूर्ति है। दरवाजे के सामने चांदी का नग्गर रखा जाता है। प्रवेश द्वार के पास दाहिनी ओर महालक्ष्मी और बायीं ओर महाकाली की नक्काशीदार आकृतियाँ हैं।
5. श्री चामुंडा माता मंदिर, मेहरानगढ़, जोधपुर
जोधपुर में चामुंडा माता मंदिर राजपरिवार की इष्ट देवी का मंदिर है। यह मेहरानगढ़ किले के दक्षिणी भाग में स्थित है। जोधपुर शहर के संस्थापक राव जोधा ने 1460 में पुरानी राजधानी मंडोर से अपनी इष्ट देवी चामुंडा की मूर्ति खरीदी थी। उन्होंने मेहरानगढ़ किले में चामुंडा देवी की मूर्ति स्थापित की और तब से चामुंडा यहां की देवी बन गईं। दशहरे के दौरान जोधपुर शहर के बाहर और अंदर से लोगों द्वारा पूजे जाने वाले इस किले में लोगों और भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
6. श्री जीण माता मंदिर, सीकर
शेखावाटी क्षेत्र के सीकर जिले में स्थित जीण माता मंदिर लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। नवरात्रि के दौरान यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। शेखावाटी क्षेत्र में सीकर-जयपुर मार्ग पर जीण माता गांव में मां का अति प्राचीन मंदिर भक्तों की आस्था का मुख्य केंद्र है। यह मंदिर न केवल एक खूबसूरत जंगल के बीच बना है बल्कि तीन छोटी पहाड़ियों के बीच भी स्थित है। देश के प्राचीन शक्तिपीठों में से एक जैन माता मंदिर दक्षिण मुखी है। मंदिर की दीवारों पर तांत्रिकों की मूर्तियां हैं, जिससे पता चलता है कि यह तांत्रिकों की पूजा का केंद्र रहा होगा। मंदिर के अंदर जैन भगवती की अष्टकोणीय मूर्ति है। पहाड़ के नीचे बने मंडप को गुफा कहा जाता है।
7. अर्बुदा देवी मंदिर, शक्तिपीठ, माउंट आबू
अर्बुदा देवी मंदिर राजस्थान के माउंट आबू में स्थित है। अर्बुदा देवी मंदिर को अधर देवी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर राजस्थान के माउंट आबू से 3 किलोमीटर दूर है। यह एक पहाड़ी पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यहां देवी पार्वती के होंठ गिरे थे, इसलिए यहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। यहां मां अर्बुदा देवी को मां कात्यायनी देवी के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि अर्बुदा देवी को मां कात्यायनी का ही रूप कहा जाता है। यहां साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।
8. ईडाणा माता मंदिर, उदयपुर
राजस्थान के गौरवशाली मेवाड़ के सबसे प्रमुख शक्तिपीठों में से एक ईडाणा माता मंदिर में जब माता प्रसन्न होती हैं तो स्वयं अग्नि स्नान करती हैं। यह मंदिर उदयपुर शहर से 60 किलोमीटर दूर कुराबड़-बम्बोरा मार्ग पर विशाल अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित है। ईडाणा माता राजपूत समाज, भील ​​आदिवासी समाज सहित पूरे मेवाड़ की पूजनीय माता हैं। मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था। अनेक रहस्यों को समेटे इस मंदिर में नवरात्रि के दौरान भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
9. श्री कृष्णाय अन्नपूर्णा माताजी मंदिर, बारां
यह मंदिर बारां से करीब 40 किलोमीटर दूर रामगढ़ की पहाड़ी पर है। प्रसिद्ध रामगढ़ क्रेटर का बड़ा गड्ढा भी इसके पास ही है, जो कभी उल्कापिंड के गिरने से बना था। मंदिर में दर्शन के लिए 900 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, जो घुमावदार हैं। जो जमीन से 1000 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ी पर स्थित है। मान्यता है कि देवी स्वयं एक गुफा से प्रकट हुई थीं। यहां मां दुर्गा कन्या रूप में हैं। नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन या कंजके पूजन का बहुत महत्व माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण जयपुर और कोटा रियासतों के बीच हुए युद्ध के बाद हुआ था। नवरात्रि के दौरान लोग दूर-दूर से मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।
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अप्रैल 2025 का पहला प्रदोष व्रत कब है? जानिए...तिथि, समय और शुभ मुहूर्त

प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। इस दिन शिव परिवार की पूजा की जाती है। शिवपुराण में इस व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि श्रद्धा और भक्ति से शिव जी की आराधना करने से व्यक्ति के जीवन की सभी समस्याएं समाप्त होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
अप्रैल का पहला प्रदोष व्रत कब है-
वैदिक पंचांग के अनुसार, अप्रैल माह का पहला प्रदोष व्रत चैत्र माह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ेगा।
त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 9 अप्रैल 2025, रात 10:55 बजे
त्रयोदशी तिथि समाप्त: 11 अप्रैल 2025, रात 10:00 बजे
व्रत और पूजा तिथि: 10 अप्रैल 2025
प्रदोष काल में पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है, इसीलिए इस दिन पूजा का विशेष महत्व है।
प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार, चैत्र शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत के दिन पूजा का शुभ समय इस प्रकार रहेगा:
पूजन मुहूर्त: शाम 6:44 बजे से रात 8:59 बजे तक
भक्तगण इस समय के दौरान विधिपूर्वक भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं।
प्रदोष व्रत पूजा सामग्री-
पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री आवश्यक होती है:
- कनेर के फूल
- कलावा
- गंगाजल
- दूध
- पवित्र जल
- अक्षत (चावल)
- शहद
- फल
- सफेद मिठाई
- सफेद चंदन
- भांग
- बेल पत्र
- धूपबत्ती
- प्रदोष व्रत कथा पुस्तक
भगवान शिव के मंत्र-
पूजा के दौरान इन मंत्रों का जाप करें-
- ऊँ नमः शिवाय।
- ऊँ नमो भगवते रुद्राय नमः।
- ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र प्रचोदयात्।
- ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
प्रदोष व्रत का महत्व-
धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करता है।
- इस व्रत से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं।
- शत्रु बाधा एवं कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए भी यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
शिव कृपा प्राप्त करने और जीवन में सुख-शांति लाने के लिए इस प्रदोष व्रत को विधिपूर्वक करें और शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त करें|
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"ईद" पर सेवई क्यों बनाई जाती है?, जानिए...धार्मिक महत्व

ईद का त्योहार खुशी और आभार का प्रतीक है, और यह मुसलमानों द्वारा रमजान के महीने के उपवास के बाद मनाया जाता है। इस दिन लोग खास तौर पर सेवई (शीरखुर्मा) बनाते हैं। सेवई बनाने की परंपरा का इतिहास और धार्मिक महत्व है-
रमजान के महीने में मुसलमान दिनभर उपवासी रहते हैं, और ईद के दिन उनका यह उपवास खत्म होता है। सेवई को एक प्रकार से खुशी और संतुष्टि का प्रतीक माना जाता है, जो उपवास के बाद खाने में स्वादिष्ट और हल्की होती है। यह मीठी डिश उनके दिलों में खुशी और आभार की भावना को उजागर करती है।
भारत में और कई मुस्लिम देशों में सेवई को एक पारंपरिक मिठाई के रूप में माना जाता है, जो खासतौर पर धार्मिक अवसरों पर बनाई जाती है। यह हल्की और स्वादिष्ट होती है, और यह आमतौर पर दूध, चीनी, सूखे मेवे और इलायची के साथ बनाई जाती है, जो इसे एक खास पकवान बना देती है।
धार्मिक महत्व-
ईद पर सेवई बनाने की परंपरा का धार्मिक महत्व भी है। इसे एक तरह से अल्लाह का धन्यवाद देने के रूप में देखा जाता है। सेवई बनाने का तरीका भी एक तरह से खुशी और प्रेम का प्रतीक होता है, जिसे परिवार और समाज के लोगों के साथ बांटा जाता है।
सांस्कृतिक परंपरा-
भारत में मुस्लिम परिवारों में ईद पर सेवई बनाना एक सांस्कृतिक परंपरा बन गई है। यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह एक अवसर है जब परिवार और दोस्त एक साथ मिलकर इस मिठाई का आनंद लेते हैं। इस समय लोग एक-दूसरे से मुलाकात करते हैं और खुशियाँ बांटते हैं।
ईद पर सेवई बनाने की परंपरा में सांस्कृतिक और धार्मिक दोनों ही पहलू शामिल हैं। यह उपवास के बाद की खुशी, परिवार और समाज की एकता और आभार का प्रतीक है। सेवई का स्वादिष्ट पकवान ईद को और भी खास और यादगार बना देता है।
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हंसराज रघुवंशी ने भोरमदेव महोत्सव में भजन गाया

कवर्धा। दो दिन चलने वाले भोरमदेव महोत्सव का बुधवार को रंगारंग शुभारंभ हुआ. शिव भजन गायक हंसराज रघुवंशी ने अपनी प्रस्तुति से शिव भक्तों को झूमने पर मजबूर कर दिया. 30 वर्षों के इतिहास में पहली बार भोरमदेव महोत्सव में इतनी अधिक भीड़ देखने को मिली.
प्रदेश के डिप्टी सीएम विजय शर्मा, सांसद संतोष पांडे और विधायक भावना बोहरा ने दीप प्रज्ज्वलित कर भोरमदेव महोत्सव का शुभारंभ किया. कार्यक्रम के दौरान बैगा नृत्य और बांसुरी वादन के जरिए छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराया गया. इसके बाद प्रदेश के प्रसिद्ध कलाकार अनुराग शर्मा ने छत्तीसगढ़ी और हिंदी गीतों की शानदार प्रस्तुति देकर समां बांध दिया.
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बुधवार को इतने बजे तक रहेगा सिद्ध योग

  • जानिए...शुभ मुहूर्त और सूर्योदय-सूर्यास्त का समय
26 मार्च को चैत्र कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि और बुधवार का दिन है। द्वादशी तिथि आज देर रात 1 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। आज दोपहर 12 बजकर 25 मिनट तक सिद्ध योग रहेगा। आज देर रात 2 बजकर 30 मिनट तक धनिष्ठा नक्षत्र रहेगा। इसके अलावा आज से पंचक प्रारम्भ है। आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए बुधवार का पंचांग, राहुकाल, शुभ मुहूर्त और सूर्योदय-सूर्यास्त का समय।
26 मार्च 2025 का शुभ मुहूर्त-
चैत्र कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि- 26 मार्च 2025 को देर रात 1 बजकर 43 मिनट तक रहेगी
धनिष्ठा नक्षत्र- 26 मार्च 2025 को देर रात 2 बजकर 30 मिनट तक
सिद्ध योग- 26 मार्च 2025 को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट तक
आज 26 मार्च 2025 से पंचक की शुरुआत होगी। पंचक के दौरान शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।
राहुकाल का समय-
दिल्ली- दोपहर 12:27 से दोपहर बाद 01:59 तक
मुंबई- दोपहर 12:44 से दोपहर 02:16 तक
चंडीगढ़- दोपहर 12:29 से दोपहर 02:01 तक
लखनऊ- दोपहर 12:13 से दोपहर 01:44 तक
भोपाल- दोपहर 12:26 से दोपहर 01:58 तक
कोलकाता- दोपहर पहले 11:43 से दोपहर 01:14 तक
अहमदाबाद- दोपहर 12:45 से दोपहर 02:17 तक
चेन्नई- दोपहर 12:15 से दोपहर 01:46 तक
सूर्योदय-सूर्यास्त का समय-
सूर्योदय- सुबह 6:18 am
सूर्यास्त- शाम 6:35 pm
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1994 में शुरू हुआ भोरमदेव महोत्सव, 31 बरस के सफर में दर्शको से हुआ 50 फीट दूर

कवर्धा। भोरमदेव में प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तेरस को दशकों से बैगा आदिवासी बाबा भोले नाथ जिसे वे आदि देव बूढ़ादेव के रूप में पूजते है की विशेष पूजा अर्चना करते आ रहे है। इस दिन यहाँ दशको से भव्य और विशाल मेला भी भरते आ रहा है । इस मेले में शामिल होने आज भी दूर-दूर से बीहड़ जंगलो व दुर्गम पहाड़ीयो में बसे बैगा आदिवासी रात दिन पैदल, दुपहिया वाहन, ट्रेक्टर, मालवाहक वाहन के जरिये सपरिवार बाबा भोरमदेव का दर्शन कर पारंपरिक रीती रिवाजो से पूजन कर आशीर्वाद लेने एवं मेले का लुफ्त उठाने पहुचते है। मेले में शामिल होने बैगा आदिवासी अपनी परंपरिक वेश भूषा में साज श्रृंगार के साथ पहुंचते थे और अपनी पारंपरिक रितिरिवाजो से पूजा अर्चना करते थे। पर समय के साथ बदलाव भी आये है। आधुनिकता की छाप भी धीरे धीरे पड़ने लगी है।
ज्ञातव्य हो की पहली बार भोरमदेव महोत्सव वर्ष 1994 में 27 ,28 व् 29 मार्च को अविभाजित मध्यप्रदेश में तत्कालीन राजनांदगांव कलेक्टर अनिल जैन की अध्यक्षता में प्रारम्भ हुआ था। उस समय कवर्धा के एस डी ओ राजस्व निसार अहमद हुआ करते थे। पहले भोरमेदेव महोत्सव में 2 दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम तो भोरमेदेव मंदिर क्षेत्र में होते थे, परंतु तीसरे दिन साहित्यिक गतिविधिया कवि सम्मेलनकवर्धा में हुआ करती थी जो अब जिला मुख्यालय बन चुका है। प्रथम भोरमदेव महोत्सव में साऊथ ईस्टर्न कल्चरल सोसायटी द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमो को काफी सराहा गया था। विशेष रूप से माया जाधव और उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमो को सराहा गया था जिसकी चर्चा काफी दिनों तक होती रही। महाराष्ट्रियन लोक नृत्य व गीत लावणी ने बेतहाशा तालिया बटोरी थी । महीनो उक्त कार्यक्रम आम लोगो के बीच चर्चा का विषय बना रहा था।
भोरमेदेव महोत्सव के इन 31 बरस के सफ़र में समय के साथ आदिवासियों के पारंपरिक मेले का सरकारीकरण होने से समय के साथ साथ शास्त्रीय संगीत व नृत्य लोक गीत नृत्य के साथ साथ मुम्बइया ठुमके भी लगने लगे और आदिवासियो का पारंपरिक मेला आज भोरमेदेव महोत्सव के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर अपनी पहचान बना चुका है परंतु रंगबिरंगी लाईटो और डीजे आर्केस्ट्रा की धुन और मुम्बईया ठुमके के बीच आधुनिकता की दौड़ , विकास की चकाचौंध के आगे टिमटिमा रही आदिवासी संस्कृति व सभ्यता अपनी पहचान धीरे धीरे खोती जा रही है। खाना पूर्ति के नाम पर कुछ वर्षो से प्रशासन व जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप के चलते भोरमदेव महोत्सव के मूलरूप रंग और ढाल आधुनिक तौर तरीको से आयोजित करने की परम्परा शुरू हुई । शुरूआत के कुछ वर्षों में बैगा आदिवासियों को अपने मूल संसकृति से जुड़े नृत्य रीती रिवाज एवं गीतों को प्रदर्शन करने मंच मिलता रहा परंतु धीरे-धीरे महोत्सव आयोजन में घुसी राजनीति में बैगा आदिवासियों को मंच से दूर कर दिया गया। नाम को एकाध कार्यक्रम वह भी प्राइम टाइम को छोड़ कर जब भीड़ कम हो या शहरिया लोग कम होते है तब एकाध कार्यक्रम करा खाना पूर्ति कर ली जाती है।
शासन प्रशासन की ओर से भले ही छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं सभ्यता को बचाने के नाम पर लाखों रूपये पानी की तरह बहाये जा रहा हैं परंतु विगत के कुछ वर्षों के अनुभव से भोरमदेव महोत्सव छत्तीसगढ़ की सभ्यता एवं सस्कृति से दूर बालीवुड की चमक-धमक की ओर आकर्षित हो मुंबईया ठुमकों का मंच बनता दिख्र रहा है । पुर्व के वर्षो से आयोजन के दौरान फिल्मी गानों पर भोरमदेव महोत्सव आयोजन समिति एवं तीर्थ प्रबंधकारिणी कमेटी के साथ-साथ अधिकारी भी बीड़ी जलइले ले जैसे संस्कृति और सभ्यता पर बदनुमा दाग रूपी गानो पर झूमते देखे जा चुके है। तत्कालीन जी हुजूरी में लगे अधिकारी एवं चाटुकार जनप्रतिनिधियों की टोली व प्रबंधन समिति की कथित सहमति से 3 दिवसीय होने वाला भोरम देव महोत्सव 2 दिवसीय कर दिया गया। जबकि गणमान्य नागरिक तीन दिवसीय करने की माग आज भी करते आ रहे है। जी हुजूरी में लगे समिति के तत्कालीन सचिव नक्सलियों का खतरा बता कर 2 दिन करने की बात करते थे तो तत्कालीन जिलाधीश महोदय वित्तीय वर्ष मार्च की समाप्ति का सप्ताह का हवाला दे दो दिन करने का तर्क देते रहे थे। काबिले गौर है कि भोरमदेव महोत्सव अक्सर मार्च के अंतिम सप्ताह और अप्रैल के प्रथम सप्ताह में ही अक्सर होते रहा है।
वैसे अबकी बार शिव भजनों से चर्चा में आये अंतरराष्ट्रीय गायक हंसराज रघुवंशी के गीतों से भोरमदेव परिसर गूंजेगा तो शास्त्रीय गीत गजल व नृत्य के जरिये भी कलाकार अपनी कला प्रदर्शन करेंगे साथ ही स्थानीय संस्कृति के मद्देनजर नाचा का रातभर का मंचन मेले में रुकने वालो के लिए मनोरंजन का साधन होंगे। नृत्य भजन और मनोरंजन के बीच नेताओ की चिंता में नक्सलियों का हवाला दे महोत्सव के 31 बरस के सफर में पहली बार मुख्यमंत्री व मंत्री की सुरक्षा के नाम पर महोत्सव मंच के सामने लगभग 45 से 50 फिट का सुरक्षा घेरा प्रशासनिक भाषा मे डी का निर्माण दर्शकों को मंच से 45 से 50 फिट दूर कर दिया गया। बेहतर यातायात व्यवस्था व व्ही व्ही आई पी की सुरक्षा के मद्देनजर अलग अलग रूट तय किये गए है। मंदिर तक पहुंच मार्ग प्रदेश के राजनीति के सिरमौर जनप्रतिनिधियों के आगमन व स्वागत की तैयारियों के बीच अपनी बदहाली को ले आँसु बहा रहा है फंड का रुदाली रुदन के बीच डामर और सीसी की जगह स्टोनडस्ट व मुरम से काम चलाया जा रहा है जो लक्जरी ऐसी युक्त चार पहिया वाहनों में आने वाले माननीयों के पैरों में तो नही किंतु पैदल दर्शन को आने वाले आम भक्तों के पैरों जरूर चुभेंगे।
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आज का राशिफल

मेष- मेष राशि के जातक के लिए आज का दिन कामकाज के मामले में अच्छा रहने वाला है। आप काम को लेकर भागदौड़ में लगे रहेंगे और अपने बिजनेस की योजनाओं को आगे तक लेकर जाएंगे। संतान किसी नए कोर्स में दाखिला ले सकती हैं। आपका आस-पड़ोस में किसी बात को लेकर कहासुनी होने की संभावना है। आप अपने किसी काम को दूसरे के भरोसे ना छोड़े और आप अपने घर किसी नये इलेक्ट्रॉनिक आइटम को लेकर आ सकते हैं।
वृषभ- वृषभ राशि के जातक अपने शत्रुओं पर आसानी से विजय प्राप्त कर सकेंगे। वैवाहिक जीवन में चल रही समस्याओं से आपको छुटकारा मिलेगा। आपको अपने कामों में समस्या आ रही थी, तो वह भी दूर होंगी आपके किसी पुराने मित्र से लंबे समय बाद मुलाकात होगी। जो लोग सिंगल हैं, उनकी अपने साथी से मिलने का मौका मिलेगा। आपको किसी विरोधी की बातों में आने से बचना होगा।
मिथुन- मिथुन राशि के जातकों के ऊपर काम का दवाब अधिक रहेगा। परिवार के सदस्यों का आपको पूरा सहयोग मिलेगा। राजनीतिक में सामाजिक कार्यक्रमों में आपको जुड़ने का मौका मिलेगा। परिवार के सदस्यों के साथ आप किसी मांगलिक कार्यक्रम को करने की योजना बना सकते हैं। आपको किसी नए काम में सोच समझकर हाथ बढ़ाना होगा। कार्यक्षेत्र में कोई आपको कोई बहलाने की कोशिश कर सकता है।
कर्क- कर्क राशि के जातकों के लिए आज का दिन ऊर्जावान रहने वाला है। आप यदि पार्टनरशिप में कोई काम करेंगे, तो वह आपके लिए अच्छा रहेगा। किसी धार्मिक कार्यक्रम में आपको सम्मिलित होने का मौका मिलेगा। आपके चारो ओर का वातावरण खुशनुमा रहेगा। आपको बेवजह किसी बात को लेकर क्रोध नहीं करना है। प्रेम जीवन जी रहे लोगों की अपने साथी से खूब पटेगी। आपका कोई पुराना लेनदेन चुकता होगा।
सिंह- सिंह राशि के जातकों के लिए आज का दिन मिलाजुला रहने वाला है। यदि आपकी कोई डील लंबे समय से अटकी हुई थी, तब वह भी फाइनल हो सकती है। आपके कामों में यदि कुछ समस्याएं आ रही थी, तो वह भी दूर होगी। आपको संतान की सेहत पर पूरा ध्यान देना होगा। आपको घर परिवार में छोटो की गलतियों को अनदेखा करके माहौल को शांत बनाने की कोशिश करनी होगी। परिवार में किसी सदस्य के लिए कोई विवाह प्रस्ताव आ सकता है।
कन्या- कन्या राशि के जातकों के लिए आज का दिन चिंताओं से छुटकारा दिलाने वाला रहेगा। आप अपने भाइयों से काम को लेकर सलाह ले सकते हैं। आप अपनी आय और व्यय मे भी संतुलन बनाकर चले, तो आपके लिए बेहतर रहेगा। कारोबार में आपको योजना बनाकर चलनी होगी। आपकी सेहत में उतार-चढ़ाव रहने से आपका मन परेशान रहेगा। समाज में आपका मान-सम्मान और बढ़ेगा। आप किसी से कोई जरूरी जानकारी शेयर ना करें।
तुला- तुला राशि के जातकों के लिए आज का दिन प्रॉपर्टी संबंधित मामलों में अच्छा रहने वाला है। जीवनसाथी का सहयोग आपको भरपूर मात्रा में मिलेगा। आप अपने बढ़ते खर्चों को कंट्रोल करने की कोशिश करें। किसी पुराने लेनदेन से आपको छुटकारा मिलेगा। आप अपने घर किसी पूजा-पाठ का आयोजन कर सकते हैं। आपको किसी यात्रा पर जाते समय सावधान रहना होगा। आपके शौक मौज की चीजों में इजाफा होगा।
वृश्चिक- वृश्चिक राशि के जातकों के लिए आज का दिन सुख-साधनों में वृद्धि लेकर आने वाला है। धार्मिक कार्य में आपका काफी रुचि रहेगी। पारिवारिक जीवन में आपको तालमेल बनाकर चलना होगा। आपके मन में कुछ उलझनें रहने के बाद भी आप अपने कामों को समय से निपटाने की कोशिश करेंगे। आपका कोई पुराना मित्र आपसे लंबे समय बाद मिलने आ सकता है। आपको किसी विरोधी की बातों में आने से बचना होगा।
धनु- धनु राशि के जातकों को कुछ नए संपर्कों से लाभ मिलेगा। आप अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों को आसानी से पूरा कर सकेंगे। तकनीकी क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की समस्याएं बढ़ेंगी। आपको किसी की कहीसुनी बातों पर भरोसा करने से बचना होगा। आपका कोई पुराना लेनदेन चुकता होगा। आप किसी जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करेंगे, जिससे आपको मानसिक शांति मिलेगी। आप रुके हुए कामों को भी पूरा करने की कोशिश में लगे रहेंगे।
मकर- मकर राशि के जातकों की इनकम के सोर्स बढ़ेंगे। आपको आर्थिक योजनाओं पर पूरा ध्यान देना होगा। परिवार में किसी सदस्य के विभाग में आ रही बाधा दूर होगी। आप किसी नई नौकरी की तलाश कर सकते हैं। घूमने-फिरने के दौरान आपको कोई महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी। विद्यार्थियों की लापरवाही की आदत के कारण पढ़ाई-लिखाई में समस्याएं बढ़ेगी। आपको किसी पुराने मित्र की याद सता सकती है।
कुंभ- कुंभ राशि के जातकों के लिए आज का दिन प्रभाव और प्रताप में वृद्धि लेकर आने वाला है। वैवाहिक जीवन में आपको तालमेल बनकर चलने की आवश्यकता है। आप मनपसंद भोजन का आनंद लेंगे और आपको कार्यक्षेत्र में किसी काम के लिए कोई सम्मान की प्राप्ति हो सकती है। सामाजिक कार्यक्रमों से जुड़े लोगों की छवि और निखरेगी और उनके जन समर्थन में भी इजाफा होगा। आपकी संतान आपकी किसी मन की इच्छा को पूरा कर सकती हैं।
मीन- मीन राशि जातकों के लिए आज का दिन खर्चा भरा रहने वाला है। आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। साझेदारी में यदि आप कोई व्यापार को कर रहे हैं, तो उसमें कोई गड़बड़ी होने की संभावना है। आपका किसी से कोई बेवजह का लड़ाई झगड़ा हो सकता है। आप किसी को धन उधार देने से बचें। आपकी इनकम के सोर्स बढ़ेंगे, जो आपको खुशी देंगे। आपके कुछ नए विरोधी आपको परेशान कर सकते हैं।
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पापमोचनी एकादशी के दिन पूजा के दौरान सुनें ये व्रत कथा, मिलेगी पापों से मुक्ति

हिंदू धर्म में साल भर में एकादशी के 24 व्रत पड़ते हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों में एकादशी के व्रत का बहुत महत्व बताया गया है. एकादशी के व्रत जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित हैं. चैत्र माह में पड़ने वाली एकादशी पापमोचनी एकादशी कहलाती है. मान्यताओं के अनुसार, पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से मृत्यु के बाद मोक्ष और वैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होता है. इस दिन पूजा के समय व्रत कथा भी अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए. इससे व्रत और पूजा का पूरा फल प्राप्त होता है और पापों से मुक्ति मिलती है|
हिंदू पंचांग के अनुसार, पापमोचिनी एकादशी तिथि आज सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर शुरू हो चुकी है. वहीं इस तिथि का समापन कल 26 मार्च को सुबह 3 बजकर 45 मिनट पर होगा. ऐसे में पापमोचिनी एकादशी का व्रत आज रखा जाएगा. पापमोचिनी एकादशी व्रत के साथ वैष्णव जनों की पापमोचनी एकादशी भी है. इस दिन वैष्णव समुदाय के लोग भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं. हालांकि वैष्णव पापामोचिनी एकादशी का व्रतकल रखा जाएगा|
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में चैत्ररथ नाम के एक वन में हमेशा वसंत का मौसम रहता था. इस वन में कभी गंधर्व कन्याएं विहार किया करती थीं. कभी-कभी वन में देवता भी क्रीडा किया करते थे. चैत्ररथ वन में मेधावी नाम के एक ऋषि भी तपस्या में लीन रहा करते थे. वो भगवान शिव के परम भक्त थे. एक दिन मंजुघोषा नाम की अप्सरा वन से जा रही थी. उसी समय उसकी नजर ऋषि मेधावी पर पड़ी. मंजुघोषा उनको देखते ही उनपर मोहित हो गई|
इसके बाद मंजुघोषा ने ऋषि मेधावी को अपनी सुंदरता से अपनी ओर आकर्षित करने की कई कोशिशें की, लेकिन ऋषि मेधावी पर इसका कोई असर नहीं हुआ. इसी बीच कामदेव वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने अप्सरा मंजुघोषा की भावनाएं समझीं और उसकी सहायता की. इसके परिणामस्वरूप मेधावी भगवान शिव की तपस्या से विमुख होकर मंजुघोषा के प्रति आकर्षित हो गए. इसके बाद ऋषि मेधावी काम में वशीभूत होकर अप्सरा मंजुघोषा के साथ रमण करने लगे|
इतना ही नहीं ऋषि बहुत समय तक अप्सरा मंजुघोषा से रमण करते रहे. फिर एक दिन अप्सरा ने ऋषि से कहा कि बहुत समय बीत गया है, इसलिए आप मुझे अब स्वर्ग लोक जाने की आज्ञा दीजिए. इस पर ऋषि ने कहा कि अप्सरा शाम को ही तो आई हो, सुबह होने पर चली जाना. ऋषि के मुख से ये बातें सुनकर अप्सरा फिर से उनके साथ रमण करने लगी. इसके बाद अप्सरा ने कुछ समय बाद एक बार फिर से ऋषि से स्वर्ग लोक जाने की आज्ञा मांगी|
इस पर ऋषि ने अप्सरा से फिर रुकने की बात कही. तब अप्सरा ने कहा कि आप स्वंय सोचिये मुझे यहां आए कितने दिन हो गए हैं. अब मेरा और यहां रुकना ठीक नहीं है. तब ऋषि को समय का ज्ञात हुआ कि उन्हें अप्सरा मंजुघोषा से रमण करते और शिव जी के तप से विमुख हुए 57 साल हो गए हैं. इसके बाद क्रोध में आकर ऋषि ने अप्सरा मंजुघोषा को पिशाचिनी बन जाने का श्राप दे दिया. इससे अप्सरा बहुत दुखी हुई और ऋषि से क्षमा मांगी|
इसके बाद ऋषि ने उसे पापमोचनी एकादशी का व्रत करने को कहा. फिर अप्सरा ने चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी का विधि-पूर्वक व्रत और भगवान विष्णु का पूजन किया. व्रत के प्रभाव से उसके सभी पापों का नाश हो गया और उसे पिशाच योनी से मुक्ति मिल गई. यही नहीं ऋषि ने भी पाप मुक्त होने और अपनी ओज और तेज को वापन पाने के लिए पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा. व्रत के प्रभाव से उन्हें भी अपने पापों से मुक्ति के साथ ही अपनी ओज और तेज वापस मिल गया|
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मार्च महीने का आखिरी प्रदोष व्रत कब है? जानिए...तिथि, मुहूर्त, विधि और नियम

इस व्रत में विशेष रूप से भगवान शिव का पूजन, शिवलिंग का अभिषेक, बेलपत्र, आक के फूल चढ़ाना और शिव मंत्रों का जाप करना आवश्यक होता है। प्रदोष व्रत के दिन पूजा का समय प्रदोष काल में होता है।
आइए जानते हैं, इस माह का आखिरी प्रदोष व्रत कब होगा, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या होगा, और इस व्रत को करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
प्रदोष व्रत तिथि
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 26 मार्च 2025, देर रात 1 बजकर 42 मिनट पर
चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि समाप्त: 27 मार्च 2025, रात 11 बजकर 3 मिनट पर
प्रदोष व्रत की पूजा विशेष रूप से प्रदोष काल में की जाती है, जो सूर्यास्त के बाद का समय होता है। इस दिन पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त
प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त: 27 मार्च 2025, सायं 6 बजकर 35 मिनट से रात्रि 8 बजकर 57 मिनट तक रहेगा।
इस अवधि में पूजा करना अत्यधिक शुभ और फलदायी माना जाता है। इस समय में भगवान शिव का ध्यान और पूजा विशेष रूप से प्रभावशाली होती है।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
सबसे पहले, सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान शिव का ध्यान करते हुए प्रदोष व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल पर शिवलिंग स्थापित करें और उस पर जल, बेलपत्र, आक के फूल, गुड़हल के फूल और मदार के फूल चढ़ाएं।
पूजा के दौरान ॐ नमः शिवाय और ॐ त्र्यम्बकं यजामहे जैसे शिव मंत्रों का जाप करें।
पूजा के बाद, प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती करें और उनका प्रिय भोग अर्पित करें।
पूरे शिव परिवार की पूजा करें, जिसमें भगवान शिव के साथ-साथ माता पार्वती, गणेश जी और कार्तिकेय जी की पूजा भी शामिल हो।
प्रदोष व्रत के अगले दिन व्रत का पारण करें।
प्रदोष व्रत पर ध्यान रखें ये बातें
प्रदोष व्रत के दिन तामसिक भोजन, मांसाहार और मादक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
व्रत रखने वाले भक्तों को दिनभर भगवान महादेव का ध्यान और स्मरण करना चाहिए।
किसी के प्रति गुस्सा या द्वेष की भावना नहीं रखनी चाहिए और नकारात्मक सोच को मन से दूर रखना चाहिए।
व्रत के दौरान झूठ बोलने से बचना चाहिए और किसी का अपमान या अनादर करने से परहेज करना चाहिए।
पूरी श्रद्धा और भक्ति से व्रत करें, ताकि महादेव की कृपा प्राप्त हो सके।
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राम नवमी 6 अप्रैल को, करें इन मंत्रों का जाप

  • जानिए...पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान राम ने धरती पर अधर्म का नाश करने और धर्म की पुनः स्थापना के लिए अवतार लिया था। इस दिन को हिंदू धर्म में बहुत ही शुभ माना जाता है। राम नवमी का पर्व हर हिंदू परिवार में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है, लेकिन अयोध्या में इसकी भव्यता देखते ही बनती है।
इस साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का प्रारम्भ 5 अप्रैल की शाम को 07:26 बजे होगा और समाप्त 6 अप्रैल की शाम 07:22 बजे होगा। ऐसे में इस साल राम नवमी का पर्व 6 अप्रैल को मनाया जाएगा। इस दिन चैत्र नवरात्रि का समापन भी होगा, इसलिए यह दिन और अधिक पावन माना जाएगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त-
राम नवमी के दिन मध्याह्न पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11:08 बजे से लेकर दोपहर 1:39 बजे तक रहेगा। यह अवधि 2 घंटे 31 मिनट की रहेगी। हालांकि, मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म दोपहर 12 बजे हुआ था, इसलिए 12:34 का समय विशेष रूप से शुभ माना जाता है और इस समय पूजन और अभिषेक करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
राम नवमी पूजा मंत्र-
इस दिन श्रीराम के विभिन्न मंत्रों का जाप करने का विशेष महत्व होता है।
"ॐ श्री रामचन्द्राय नमः"
"ॐ रां रामाय नमः"
श्रीराम तारक मंत्र "श्री राम, जय राम, जय जय राम"
श्रीराम गायत्री मंत्र "ॐ दाशरथये विद्महे, सीतावल्लभाय धीमहि। तन्नो रामः प्रचोदयात्॥"
इस दिन इन मंत्रों का जाप करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि-
राम नवमी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने और सूर्यदेव को जल अर्पित करने का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत का संकल्प लेने के बाद घर के मंदिर को अच्छे से साफ कर भगवान राम की प्रतिमा स्थापित की जाती है। दोपहर 12 बजे के करीब श्रीराम का गंगाजल, पंचामृत और शुद्ध जल से अभिषेक किया जाता है।
पूजा में तुलसी पत्ता और कमल का फूल रखना शुभ माना जाता है। फिर षोडशोपचार विधि से भगवान राम की पूजा की जाती है और खीर, फल एवं अन्य मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। इस दिन राम रक्षा स्तोत्र, सुंदरकांड और रामायण का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। अंत में आरती करने के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है और भक्तों को आशीर्वाद दिया जाता है।
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