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आषाढ़ गुप्त नवरात्रि शुरू, राशि के अनुसार करें ये उपाय, परेशानियां होंगी

मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि का त्योहार साल में चार बार मनाया जाता है, जिसमें दो प्रकट और दो गुप्त नवरात्रि होती है. आषाढ़ महीने में पड़ने वाली नवरात्रि को आषाढ़ गुप्त नवरात्रि कहा जाता है. इसमें 10 महाविद्या की पूजा होती है|
इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत आज गुरुवार 26 जून 2025 से हो चुकी है और 4 जुलाई को इसका समापन होगा. इस नौ दिनों में चारों ओर भक्ति-भाव का माहौल रहेगा. शास्त्रों में नवरात्रि के दौरान पूजा, व्रत, दान आदि के महत्व के बारे में बताया गया है. इसी तरह ज्योतिष में भी ऐसे चमत्कारिक उपाय बताए गए हैं, जिन्हें राशिनुसार करने से मां भवानी की कृपा मिलती है औऱ सारे संकट दूर हो जाते हैं. ज्योतिषाचार्य पंडित सुरेश श्रीमाली से जानते हैं आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में किए जाने वाले उपायों के बारे में|
मेष राशि के लिए उपाय:- मां चंद्रघंटा को लाल चुनरी, लाल पुष्प अर्पित करते हुए हल्दी की माला से ऊँ देवी चन्द्रघण्टायै नमः मंत्र का जप करें. घंटा उस ब्रह्मनाद का प्रतीक है, जो साधक के भय एवं विघ्नों को अपनी ध्वनि से समूल नष्ट कर देता है|
वृषभ राशि के लिए उपाय:- मां कालरात्रि को सफेद पुष्प, फल अर्पित करते हुए क्लीं ऊँ ऐं श्री कालिकायै नमः मंत्र की एक माला का जाप करें साथ ही देवी कवच का पाठ करना आपके लिए लाभदायक रहेगा|
मिथुन राशि के लिए उपाय:- मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें और सफेद मिठाई का भोग लगाते हुए ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः मंत्र का जाप करें. दुर्गा सप्तशती का पाठ करें. विद्यार्थियों हेतु देवी की साधना फलदायी है|
कर्क राशि के लिए उपाय:- मां शैलपुत्री को गुलाब के पुष्प, चुनरी अर्पित कर खीर का भोग लगाते हुए ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे मंत्र का जाप करें. लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करें. भगवती की वरद मुद्रा अभय दान प्रदान करती है|
सिंह राशि के लिए उपाय:- महागौरी की पूजा-आराधना करते हुए ऊँ श्रीं क्लीं हृं वरदायै नमः मंत्र का जाप करें साथ ही काली चालीसा या सप्तशती के प्रथम चरित्र का पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं|
कन्या राशि के लिए उपाय:- माता कात्यायनी की पूजा करें और हरे वस्त्र अर्पण करते हुए ऊँ देवी कात्यायन्यै नमः मंत्र का जाप करें. दुर्गा चालीसा का पाठ करें. विवाह संबंधित बाधाएं दूर होंगी और स्वास्थ्य सुधरेगा|
तुला राशि के लिए उपाय:- स्कंदमाता को सफेद पुष्प की माला अर्पित कर खीर का भोग लगाते हुए ऊँ हृ क्लीं स्वमिन्यै नमः मंत्र की एक माला का जाप करने के साथ ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से मां श्रेष्ठ फल प्रदान करती है|
वृश्चिक राशि के लिए उपाय:- मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना करते समय ऊँ ऐं हृं देव्यै नमः मंत्र का जप करने पर मां आपको विशेष फल प्रदान करेगी. ऐसा माना जाता है कि, देवी मां के हास्य मात्र से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई|
धनु राशि के लिए उपाय:- शैलपुत्री की पूजा-उपासना करते हुए ऊँ ऐं हृं क्लीं शैलपुत्र्यै नमः मंत्र की एक माला का जाप करते हुए. लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करें. भगवती की वरद मुद्रा अभय दान प्रदान करती है|
मकर राशि के लिए उपाय:-देवी यंत्र स्थापित कर ब्रह्मचारिणी की उपासना करते हुए ऊँ हृं श्री अम्बिकायै नमः मंत्र का जाप करें. साथ ही तारा कवच पाठ करें. मां ब्रह्मचारिणी ज्ञान प्रदाता व विद्या के अवरोध दूर करती है|
कुंभ राशि के लिए उपाय:- महागौरी स्वरूप की उपासना करते हुए ऊँ श्री क्लीं हृं वरदात्र्यै नमः मंत्र का जाप करने से विशेष फल प्राप्त होते हैं. दुर्गा सप्तशती के कवच का पाठ करें और माता को तिल के लड्डू अर्पित करें|
मीन राशि के लिए उपाय:- शैलपुत्री माता की चौकी के सामने देसी घी का एक मुखी दीपक जलाएं और केसरयुक्त खीर का भोग लगाते हुए माँ दुर्गा का मंत्र “ऊं ऐं हृं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्र की एक माला जाप करें|
 
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कल से शुरू होगी भव्य जगन्नाथ रथ यात्रा

पुरी। ओडिशा में स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में हर साल आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभारंभ होता है, जो एक भव्य और ऐतिहासिक उत्सव माना जाता है। इस वर्ष यह रथ यात्रा 27 जून 2025, शुक्रवार से शुरू हो रही है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र, और बहन सुभद्रा तीन भव्य रथों पर सवार होकर अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करेंगे। भगवान जगन्नाथ नंदीघोष रथ पर, बलभद्र तालध्वज पर, और सुभद्रा दर्पदलन रथ पर विराजमान होंगी।
यह रथ यात्रा कुल 12 दिनों तक चलेगी और इसका समापन 8 जुलाई 2025 को नीलाद्रि विजय के साथ होगा, जब भगवान पुनः अपने मूल मंदिर में लौटेंगे। हालांकि रथ यात्रा का आयोजन 12 दिनों का होता है, इसकी तैयारियाँ महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं। इस रथ यात्रा के दौरान कई धार्मिक रस्में, अनुष्ठान और विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। आइए आगे जानें इस यात्रा के शुभ मुहूर्त, प्रमुख रस्में और दिनवार पूरा शेड्यूल।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 तिथि-
जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है। पंचांग के अनुसार, इस बार यह तिथि 26 जून 2025 को दोपहर 1:24 बजे से शुरू होकर 27 जून को सुबह 11:19 बजे तक रहेगी। चूंकि उदयातिथि (सूर्योदय के समय की तिथि) को ही धार्मिक कार्यों के लिए मान्यता दी जाती है, इसलिए रथ यात्रा का शुभारंभ 27 जून 2025, शुक्रवार को होगा।
शुभ योग :
इस पावन दिन पर सर्वार्थ सिद्धि योग, पुनर्वसु नक्षत्र और पुष्य नक्षत्र जैसे शुभ संयोग बन रहे हैं।
सर्वार्थ सिद्धि योग: प्रातः 5:25 बजे से प्रातः 7:22 बजे तक
पुनर्वसु नक्षत्र: प्रातः 7:22 बजे तक, इसके बाद पुष्य नक्षत्र शुरू हो जाएगा
अभिजीत मुहूर्त : प्रातः 11:56 बजे से दोपहर 12:52 बजे तक
इन शुभ योगों के चलते, 27 जून को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का प्रारंभ धार्मिक दृष्टि से अत्यंत मंगलकारी रहेगा।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 का पूरा शेड्यूल:
27 जून, शुक्रवार – रथ यात्रा की शुरुआत:
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन अलग-अलग भव्य रथों पर सवार होकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से निकलते हैं और गुंडिचा मंदिर की ओर यात्रा करते हैं। हजारों भक्त भारी रस्सों से इन रथों को खींचते हैं। रथ पर चढ़ाने से पहले पुरी के राजा ‘छेरा पन्हारा’ की रस्म निभाते हैं, जिसमें वे सोने के झाड़ू से रथ का चबूतरा साफ करते हैं।
1 जुलाई, मंगलवार – हेरा पंचमी:
जब भगवान गुंडिचा मंदिर में पाँच दिन बिताते हैं, तब पाँचवें दिन देवी लक्ष्मी नाराज़ होकर भगवान जगन्नाथ से मिलने आती हैं। यह रस्म हेरा पंचमी कहलाती है।
4 जुलाई, शुक्रवार – संध्या दर्शन:
गुंडिचा मंदिर में विशेष दर्शन का आयोजन होता है। इस दिन भक्तजन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन करते हैं और इसे बड़ा शुभ अवसर माना जाता है।
5 जुलाई, शनिवार – बहुदा यात्रा:
भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ रथों पर सवार होकर वापस जगन्नाथ मंदिर की ओर लौटते हैं। इस वापसी यात्रा को बहुदा यात्रा कहा जाता है। रास्ते में वे मौसी माँ के मंदिर (अर्ध रास्ते में) रुकते हैं, जहाँ उन्हें ओड़िशा की खास मिठाई 'पोडा पिठा' का भोग लगाया जाता है।
6 जुलाई, रविवार – सुना बेशा:
इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है। यह अत्यंत भव्य श्रृंगार होता है जिसे देखने हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।
7 जुलाई, सोमवार – अधरा पना:
इस दिन भगवानों को एक विशेष मीठा पेय 'अधरा पना' अर्पित किया जाता है, जो बड़े मिट्टी के घड़ों में तैयार होता है। इसमें पानी, दूध, पनीर, चीनी और कुछ पारंपरिक मसाले मिलाए जाते हैं।
8 जुलाई, मंगलवार – नीलाद्रि विजय (समापन):
यह रथ यात्रा का अंतिम और सबसे भावनात्मक दिन होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा वापस अपने मुख्य मंदिर में लौटते हैं और गर्भगृह में पुनः स्थापित होते हैं। इसे ‘नीलाद्रि विजय’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है – "नीलाचल (पुरी) की पुनः विजय"।
जगन्नाथ रथ यात्रा का धार्मिक महत्व :
हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी माना गया है। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस यात्रा में भाग लेता है या भगवान के रथ को खींचता है, उसके जीवन के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह भी माना जाता है कि रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति को ऐसा फल प्राप्त होता है, जैसे उसने सौ यज्ञों का आयोजन किया हो। इसलिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु हर साल पुरी में इस यात्रा का हिस्सा बनने आते हैं, ताकि उन्हें आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो सके।
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सूर्य देव को जल चढ़ाने से होते हैं ये विशेष लाभ

  • जानिए...अर्घ्य देने के नियम
हिंदू धर्म में सूर्य देव को आत्मा का प्रतीक और नवग्रहों के अधिपति के रूप में पूजा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रतिदिन प्रातः सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और सुख-समृद्धि का आगमन होता है। हालांकि सूर्य को अर्घ्य देने के लिए भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है, तभी इसका शुभ फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं सही फल पाने के लिए सूर्य को अर्घ्य देने की विधि क्या है और इससे क्या लाभ मिलते हैं।
सूर्य को अर्घ्य देने के लाभ-
नियमित रूप से अर्घ्य देने से जीवन में शांति, समृद्धि और आत्मबल की वृद्धि होती है। इससे कुंडली में यदि सूर्य से संबंधित दोष हों तो वह भी दूर होते हैं। रविवार को सूर्य पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। यदि विवाह में देरी हो रही है, तो प्रतिदिन सूर्य को जल अर्पित करने से अच्छे प्रस्ताव आने लगते हैं। इससे आत्मविश्वास और मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
सूर्य को अर्घ्य देने की सही विधि-
सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें ताकि तन और मन शुद्ध रहें।
सूर्योदय के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह करके कुश के आसन पर खड़े हों।
तांबे के लोटे में जल लें और उसमें मिश्री, रोली, चंदन, लाल पुष्प और अक्षत मिलाएं।
जैसे ही सूर्य की नारंगी किरणें दिखाई दें, दोनों हाथों से इस तरह जल अर्पित करें कि जल की धार के बीच से सूर्य दिखाई दें।
कोशिश करें कि जल सीधा धरती पर न गिरे, बल्कि आसन या किसी पात्र में जाए। इससे जल में समाहित ऊर्जा व्यर्थ नहीं जाती।
अर्घ्य देते समय इन मंत्र का 11 बार जप करें- “ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते, अनुकंपय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर”
इसके बाद यह मंत्र पढ़ें- “ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्र किरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा”
अर्घ्य देने के बाद सीधे हाथ की अंजलि में थोड़ा जल लें और अपने चारों ओर छिड़कें, फिर तीन बार दाएं घूमें।
जिस स्थान पर पूजा की है, उसे नमन करें और आसन हटा लें।
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शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग : आध्यात्मिक प्रतीक और अंतर

  • शिवलिंग के प्रकार- स्वयंभू, देव, असुर और मनुष्य शिवलिंग
नई दिल्ली। सनातन धर्म में शिवलिंग की अपनी महिमा है। शिवलिंग को साक्षात आत्म रूप माना गया है। लिंग पुराण के अनुसार शिवलिंग के तीन मूल भाग हैं, जिनके मूल में ब्रह्मा, मध्य भाग में विष्णु और ऊपर के भाग में महादेव स्थित हैं। इसके साथ ही वेदी में महादेवी विराजती हैं। शिव पुराण के अनुसार 10 तरह के शिवलिंग बताए गए हैं। शिवलिंग को परम ब्रह्म तथा संसार की समस्त ऊर्जा का प्रतीक भी बताया गया है।
'शिव' एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ 'कल्याणकारी' या 'उपकारी' होता है। यजुर्वेद में शिव को शांतिदूत माना गया है। 'शि' का अर्थ है 'पापों का नाश करने वाला', जबकि 'वा' का अर्थ है 'दाता'। संस्कृत में 'लिंग' का अर्थ है 'चिन्ह'। मतलब 'शिवलिंग' का अर्थ है 'प्रकृति के साथ एकीकृत शिव', यानी 'परम पुरुष का प्रतीक'।
वैसे शिवलिंग को सही अर्थ में समझा जाए तो शिव का अर्थ शुभ और लिंग का अर्थ ज्योति पिंड होता है। शिवलिंग ब्रह्मांड और उसकी समग्रता का प्रतिनिधित्व करता है। जो शिवलिंग स्वयं प्रगट हुए हैं, उन्हें स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं। इसके साथ ही प्राचीन काल में मनुष्य द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग कहा गया है। असुरों के द्वारा स्थापित शिवलिंग को असुर लिंग कहा गया है। वहीं, जिस शिवलिंग को देवताओं द्वारा स्थापित किया गया, उसे देव लिंग कहा गया है।
प्राचीन काल में अगस्त्य मुनि जैसे संतों द्वारा स्थापित शिवलिंग को अर्श शिवलिंग कहा गया। वहीं, प्राचीन काल या मध्य काल में ऐतिहासिक मनुष्यों, राजा-महाराजाओं या महापुरुषों द्वारा स्थापित शिवलिंग को मनुष्य शिवलिंग कहा गया है।
वैसे शास्त्रों में 5 प्रमुख प्रकार के शिवलिंग का जिक्र है, जिसमें पत्थर से बने शिवलिंग को शैलजा शिवलिंग, रत्नों से बने शिवलिंग को रत्नजा, धातु से बने शिवलिंग को धातुजा, लकड़ी से बने शिवलिंग को दारुजा, और मिट्टी से बने शिवलिंग को मृतिका शिवलिंग कहते हैं।
शिवपुराण के विश्वेश्वर संहिता के अनुसार शिवलिंग तीन प्रकार के बताए गए हैं, जिन्हें उत्तम, मध्यम और अधम कहा गया है। उत्तम शिवलिंग उसे कहते हैं जिसके नीचे वेदी बनी हो और वह वेदी से चार अंगुल ऊंचा हो। जो शिवलिंग वेदी से चार अंगुल से कम होता है, वह मध्यम कोटि का माना गया है, और जो इससे भी कम हो, वह अधम श्रेणी का माना गया है।
अब आपको हम बताते हैं कि शिवलिंग के जो दो प्रकार विशेष हैं, वे हैं शक्ति शिवलिंग और विष्णु शिवलिंग। शक्ति शिवलिंग वह शिवलिंग है जो सीधे जमीन पर स्थित हो या जमीन से सटा हो और जिसके नीचे डमरू की आकृति नहीं हो। जो शिवलिंग डमरू की आकृति पर टिका है, वह विष्णु शिवलिंग है। ऐसे में शक्ति शिवलिंग की पूजा हमेशा बैठकर और विष्णु शिवलिंग की पूजा हमेशा खड़े होकर करनी चाहिए।
ज्योतिर्लिंग के बारे में जान लें कि यह भगवान शिव का स्वयंभू अवतार है। ज्योतिर्लिंग का अर्थ है भगवान शिव का ज्योति के रूप में प्रकट होना। ज्योतिर्लिंग मानव द्वारा निर्मित नहीं होते हैं बल्कि वे स्वयंभू होते हैं और उन्हें सृष्टि के कल्याण और गतिमान बनाए रखने के लिए स्थापित किए गए हैं। ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है कि इन जगहों पर भगवान शिव ने स्वयं दर्शन दिए हैं और वहां एक ज्योति के रूप में वह उत्पन्न हुए थे।
12 ज्योतिर्लिंगों का शिव पुराण में जिक्र है। ये 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जहां शिव स्वयं लिंग स्वरूप में प्रकट हुए। इनके नाम सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओमकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमाशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, और घृष्णेश्वर हैं।
शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है। इसलिए सभी ज्योतिर्लिंग शक्ति शिवलिंग हैं। इनमें से नागेश्वर का ज्योतिर्लिंग अपवाद है। ऐसे में जान लें कि शिवलिंग भगवान शिव के निराकार स्वरूप का प्रतीक होता है, जबकि ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के ज्योति स्वरूप का प्रतीक होता है।
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आषाढ़ अमावस्या पर करें ये पांच महत्वपूर्ण काम, दूर होंगी सभी बाधाएं

हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को महत्वपूर्ण माना जाता है। हर माह इस तिथि पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर भी स्नान, दान और पूजा का विधान है। अमावस्या तिथि पितरों को प्रसन्न करने से लिए भी सबसे उत्तम मानी जाती है। आज आषाढ़ मास की अमावस्या है। इस दिन चंद्रमा मिथुन राशि में रहेंगे और मृगशिरा नक्षत्र का प्रभाव रहेगा। ऐसे में यह तिथि पितृ तर्पण, कालसर्प योग निवारण, तंत्र-शांति और दरिद्रता नाश के लिए विशेष मानी गई है। कहा जाता है कि इस दिन किए गए पांच कार्य जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं और पितरों की कृपा प्राप्त होती है। आइए जानते हैं कि इस दिन कौन से पांच काम करने चाहिए।
पितृ तर्पण करें:
सुबह स्नान के बाद कुशा, काले तिल और जल से तर्पण करें। यह पितृ दोष से मुक्ति दिलाता है और पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही “ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः” मंत्र का जप करें।
पीपल की पूजा करें:
इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना गया है। पीपल पर जल चढ़ाकर दीप जलाएं और सात बार परिक्रमा करें।
पुण्य हेतु दान:
आषाढ़ अमावस्या के दिन तिल, अन्न, वस्त्र, जूते, छाता, दक्षिणा आदि का दान करें। दान किसी जरूरतमंद या वृद्ध ब्राह्मण को करें। इसका अलावा आप उन्हें भोजन भी करवा सकते हैं।
जल स्रोतों की सफाई:
जल शुद्धि इस दिन का एक महत्वपूर्ण अंग है। तालाब, कुएं आदि की सफाई करें या वहां दीप जलाएं। गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक भी लाभकारी होता है।
कालसर्प और राहु-केतु दोष निवारण:
इस रात्रि को हनुमान जी या कालभैरव की पूजा विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। इससे राहु-केतु और कालसर्प दोष से राहत मिलती है, साथ ही जीवन की बाधाएं भी दूर होती हैं।
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26 जून से शुरू हो रहे हैं आषाढ़ गुप्त नवरात्रि, भूलकर भी न करें ये गलती

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि नौ दिवसीय दुर्गा पूजा का प्रतीक है. हिंदू धर्म में नवरात्रि को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. हर वर्ष 4 बार नवरात्रि का पर्व पड़ता है. जिसमें 2 नवरात्रि सार्वजनिक होती हैं और 2 गुप्त नवरात्रि. सार्वजनिक नवरात्रि में शारदीय और चैत्र नवरात्रि होती हैं और गुप्त नवरात्रि में आषाढ़ और माघ के महीने में पड़ती हैं. इसमे मां दुर्गा की साधना गोपनीय तरह से की जाती है. आषाढ़ माह की नवरात्रि 26 जून, गुरुवार से शुरू हो रहे हैं|
आषाढ़ गुप्त नवरात्रि में देवी ने नौ स्वरुपों की आरधना की जाती है. इस बार गुप्त नवरात्रि 26 जून से शुरू होकर 4 जुलाई तक रहेंगे, जिसमें देवी की गुप्त साधना की जाएगी. जानते हैं इस दिन घटस्थापना का मुहूर्त और साथ ही गुप्त नवरात्रि के दौरान किन बातों की सावधानी रखनी चाहिए|
घटस्थापना का मुहूर्त-
इस दिन घटस्थापना का मुहूर्त शुभ सुबह 05:45 to 07:14 तक रहेगा.
घटस्थापना का अभिजित मुहूर्त- 11: 46 से 12:38 तक रहेगा.
अवधि अवधि कुल 52 मिनट रहेगी|
इन बातों का रखें ख्याल-
गुप्त नवरात्रि के दौरान मांस-मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन ना करें. इस दौरान तंत्र साधना की जाती है.इसीलिए जरूरी है पवित्रता बनाएं रखें. इसका सेवन करने से रोग, दरिद्रता आ सकती है|
गुप्त नवरात्रि के दौरान साफ सफाई का विशेष ख्याल रखें. इस दौरान अपवित्र और गंदे स्थान पर पूजा-अर्चना ना करें. तन, मन और स्थान को पवित्र करके ही पूजा पाठ करें. ऐसा करने से मां दुर्गा का आशीर्वाद बना रहेगा. अव्यवस्थित स्थान पर भी पूजा ना करें, ऐसा करने से आर्थिक हानि होने की संभावना है|
गुप्त नवरात्रि के दौरान क्रोध और वाणी की कटुता, और अपशब्दों से दूरी बनाकर रखें. गुप्त नवरात्रि के दौरान किसी का अपमान ना करें, झूठ ना बोलें. ऐसा करने से मां का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता और विभिन्न कार्यों में मुश्किलें आ सकती है
पूजा की सामग्री और माता की मूर्ति को गंदे हाथों से स्पर्श ना करें. ऐसा करने से देवी मां की कृपा नहीं मिलती. देवी मां और उनकी से जुड़ी किसी भी चीज का अनादर ना करें. ऐसा करने से घर में अशांति आ सकती है|
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दुर्घटना और अकाल मृत्यु के भय को दूर करने प्रेमानंद महाराज ने बताए 5 उपाय

प्रेमानंद महाराज ने एक कथा के दौरान दुर्घटना व अकाल मृत्यु के भय को दूर करने के लिए कुछ आसान से उपाय बताए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति ने अगर इन उपायों को अपना लिया तो उसका कभी अमंगल नहीं होगा।प्रेमानंद महाराज आधुनिक समाज के उन चुनिंदा गुरुओं में से एक हैं जिनके ज्ञान को हर तबके के लोग ग्रहण कर रहे हैं। महाराज वृंदावन में निवास करते हैं और हजारों की संख्या में भक्त उनके दरबार में माथा टिकाने आते हैं। उनका आध्यात्मिक ज्ञान और सरल स्वभाव हर किसी को मोहित कर देता है। राधा रानी के परम भक्त प्रेमानंद जी की बातों को आत्मसात करके आप भी अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लेकर आ सकते हैं।
प्रेमानंद ने बताए 5 उपाय-
रोज ठाकुर जी के चरणामृत पियो, समस्त रोगों का नाश चरणामृत है।
घर से निकलने से पहले कम से कम 11 बार इस मंत्र का जप करें- ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत: क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:।। इसके जप से कभी आपका एक्सीडेंट नहीं होगा। कभी आप दुर्घटना में नहीं फंसेगे और फंसेंगे को आसानी से निकल आएंगे।
इसके अलावा, 24 घंटे में 20 मिनट निकालो और भगवान के नाम का जप करो। प्रभु का नाम संकीर्तन करो।
अपने घर में विराजमान ठाकुर जी को रोजाना 11 बार साष्टांग दंडवत प्रणाम करो। कहते हैं कि कृष्ण को जो प्रणाम करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता।
वृंदावन की रज ले लो और उसे अपने सिर पर स्थान दो। फिर आपकी रक्षा स्वंय कृष्ण करेंगे और आपका जीवन मंगलमय होगा।
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CM विष्णुदेव साय ने काशी में बाबा विश्वनाथ के दिव्य दर्शन किए

रायपुर। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने काशी में बाबा विश्वनाथ के दिव्य दर्शन किए। मुख्यमंत्री साय ने x में बताया, आज देवाधिदेव महादेव की पावन नगरी काशी में बाबा विश्वनाथ जी के दिव्य दर्शन और पूजन का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ। सनातन संस्कृति की धरा, प्राचीन सभ्यता की गौरवगाथा और आध्यात्मिक चेतना की अनंत ज्योति से आलोकित अनुपम काशी में बाबा के श्रीचरणों में नमन कर संपूर्ण सृष्टि के कल्याण, जन-जन के मंगल एवं विश्व शांति की कामना की।
आज देवों के अधिदेव, भगवान शंकर की पावन नगरी काशी में स्थित ‘काशी के कोतवाल’ श्री काल भैरव जी महाराज के मंदिर में दर्शन और पूजन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस पावन अवसर पर बाबा की आराधना की और संपूर्ण राष्ट्र के कल्याण के लिए प्रार्थना की। बाबा भैरवनाथ की कृपा समस्त देशवासियों पर बनी रहे और सभी के जीवन में सुरक्षा, समृद्धि व मंगल का आलोक निरंतर प्रसारित होता रहे यही कामना है।
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गृहमंत्री विजय शर्मा ने श्री काल भैरव मंदिर के दर्शन किए

रायपुर/यूपी। गृहमंत्री विजय शर्मा ने श्री काल भैरव मंदिर के दर्शन किए। X पोस्ट में गृहमंत्री विजय शर्मा ने लिखा, आज वाराणसी प्रवास के दौरान काशी कोतवाल श्री काल भैरव मंदिर में दर्शन एवं पूजन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। श्री काल भैरव जी से समस्त प्रदेशवासियों के सुख, शांति एवं सभी के कल्याण के लिए प्रार्थना की।
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सोम प्रदोष व्रत पर करें इन मंत्रों का जाप

  • दांपत्य जीवन में आएगी शुभता
इस वर्ष आषाढ़ मास का पहला प्रदोष व्रत सोमवार को पड़ रहा है, जिसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। इस दिन कुछ मंत्रों का जाप कर आप कई समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं।
प्रदोष व्रत की तिथि-
पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 23 जून को रात 1:21 बजे होगी और यह तिथि उसी दिन रात 10:09 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए व्रत 23 जून को ही रखा जाएगा। इस दिन पूजा के लिए शुभ समय शाम 07:22 बजे से 09:23 बजे तक रहने वाला है।
शिव जी के मंत्र-
“ॐ नमः शिवाय”
यह भगवान शिव का सर्वाधिक प्रसिद्ध पंचाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र का जाप मानसिक शांति के साथ-साथ जीवन की सभी बाधाओं को दूर करता है और वैवाहिक जीवन से जुड़ी समस्याओं को दूर करता है।
“ॐ पार्वतीपतये नमः”
यह मंत्र शिव को माता पार्वती के पति के रूप में स्मरण करता है, जिससे शिव और शक्ति दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। प्रेम, विवाह और दांपत्य जीवन में मधुरता लाने के लिए यह मंत्र अत्यंत फलदायी है।
“ॐ महादेवाय नमः”
यह मंत्र भगवान शिव के व्यापक, करुणामय स्वरूप को समर्पित है। इसके नियमित जाप से जीवन की समस्त बाधाएं शांत होती हैं।
शिव गायत्री मंत्र-
“ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥”
यह मंत्र ध्यान, विवेक और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ाता है। यह विवाह से जुड़े उचित निर्णय लेने में सहायता करता है।
शीघ्र विवाह हेतु विशेष मंत्र-
“हे गौरी शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकरप्रिया। मां कुरु कल्याणि कांत कांतां सुदुर्लभाम्॥”
इस मंत्र के माध्यम से माता पार्वती से प्रार्थना की जाती है कि जिस प्रकार वे शिव की प्रिय हैं, उसी प्रकार साधक को भी मनोनुकूल जीवनसाथी मिले। यह मंत्र शीघ्र विवाह और वैवाहिक जीवन में सुख की कामना के लिए अति प्रभावशाली माना जाता है।
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सोम प्रदोष व्रत पर सिर्फ इतने घंटे का शुभ मुहूर्त

  • जानें प्रदोष काल का समय
आषाढ़ माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन यानी 23 जून को सोम प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। यह तिथि व दिन भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। सोमवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण सोम प्रदोष व्रत कहा जा रहा है। हिंदू पंचांग की मानें तो सोम प्रदोष व्रत पर धृति योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। इस दिन भगवान शिव व मां पार्वती की आराधना की जानी है। माना जाता है कि इस दिन जातक की हर मनोकामना पूर्ण होती है। ऐसे में आइए जानते हैं सोम प्रदोष पूजा विधि,उपाय और शुभ मुहूर्त|
प्रदोष काल का समय-
भगवान शिव की पूजा निशित काल यानी रात में की जाती है। ऐसे में सोम प्रदोष व्रत पर शिवपूजन के लिए शुभ मुहूर्त शाम 07.22 बजे से 09.23 बजे तक रहेगा। इन्हीं 2 घंटों में भगवान शिव की पूजा की जानी फलदायी साबित होगी। पंचांग में कहा गया धृति योग दोपहर 01.17 बजे तक, सर्वार्थ सिद्धि योग दोपहर 03.16 बजे से 24 जून की सुबह 05.25 तक रहेगा।
पूजा विधि-
स्नान करने के बाद जातक साफ वस्त्र धारण करें और शिव-परिवार समेत अन्य देवी-देवताओं की पूजा करें। अगर व्रत रख रहे हैं तो हाथ में पवित्र जल, फूल और चावल लेकर व्रत रखने का संकल्प लें। फिर शाम के समय में घर के मंदिर में गोधूलि बेला में दीया जलाएं। फिर शिव मंदिर या घर में भगवान शिव की जलाभिषेक या रुद्राभिषेक करें और पूजा-अर्चना करें। इसके बाद सोम प्रदोष व्रत कथा कहें। अंत में पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव की आरती करें और अंत में पूजा में किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा याचना करें। इसके बाद जातक शिव गायत्री मंत्र का भी जप कर सकते हैं। साथ ही शिव आरोग्य और शिव स्तुति मंत्र भी पढ़ सकते हैं।
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प्रदोष व्रत के दिन परिवार, संतान और संबंधों में सुख-शांति के लिए करें उपाय

सोमवार का प्रदोष व्रत और मासशिवरात्रि पड़ रही है। यह दिन शिवभक्तों के लिए बेहद खास है। मान्यता है कि इस दिन जो भी भक्त भगवान शिव को सच्चे मन से एक लोटा जल भी अर्पित कर दें तो भगवान उसकी मनोकामना झट से पूरी कर देंगे। इसके अलावा, इस दिन उपाय भी जरूर करने चाहिए इससे जातक के जीवन की सभी परेशानियां दूर हों जाएंगी।
क्या हैं उपाय-
अगर आप अपने परिवार की समृद्धि बनाये रखना चाहते हैं, तो आज के दिन भगवान शिव को दही में थोड़ा-सा शहद डालकर भोग लगाएं और भगवान को हाथ जोड़कर प्रणाम करें। आज के दिन ऐसा करने से आपके परिवार की समृद्धि बनी रहेगी।
अगर आप कुछ दिनों से किसी पुरानी बात को लेकर परेशान हैं, तो उससे छुटकारा पाने के लिए आज के दिन एक मुट्ठी चावल लें। अब उनमें से कुछ चावल शिव मंदिर में चढ़ाएं और बाकी चावलों को किसी जरूतमंद को दे दें। आज के दिन ऐसा करने से आपको जल्द ही परेशानियों से छुटकारा मिलेगा
अगर आप अपने किसी शत्रु से परेशान हैं, तो उससे मुक्ति पाने के लिए आज के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाएं। साथ ही शिव जी के मंत्र ॐ शं शं शिवाय शं शं कुरु कुरु ॐ का 11 बार जप करें। आज के दिन ऐसा करने से आपको अपने शत्रुओं से जल्द ही छुटकारा मिलेगा।
अगर आप अपने धन- धान्य और भौतिक सुखों में बढ़ोत्तरी करना चाहते हैं, तो आज के दिन सुबह स्नान आदि के कार्यों से निवृत्त होकर अपने घर के आस-पास किसी शिव मंदिर में जाकर, जल में थोड़ा गंगाजल डालकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। साथ ही भगवान से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। आज के दिन ऐसा करने से आपके धन-धान्य और भौतिक सुखों में बढ़ोत्तरी होगी।
अगर आपको कोई परेशानी है और आप उसका हल नहीं निकाल पा रहे हैं, तो अपनी परेशानी का हल निकालने के लिए आज के दिन शिवलिंग पर दूध अर्पित करें। साथ ही 11 बेलपत्र पर चंदन से ॐ लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं और धूप-दीप आदि से विधिवत शिवलिंग की पूजा करें। आज के दिन ऐसा करने से आपकी जो भी परेशानी होगी, उसका हल जल्द ही निकलेगा।
अगर आप अपनी आमदनी को बढ़ाना चाहते हैं, तो आज के दिन शिवलिंग पर दूध अर्पित करें। अगर संभव हो तो गाय का दूध अर्पित करें। साथ ही शिव जी के मंत्र ॐ नमः शिवाय का 11 बार जप करें। इस प्रकार जप पूरा होने के बाद अपनी आमदनी में बढ़ोतरी के लिए भगवान के सामने हाथ जोड़कर विनती करें। आज के दिन ऐसा करने से आपकी आमदनी में बढ़ोत्तरी होगी।
अगर आप कर्ज से मुक्ति पाने के साथ ही अपना आर्थिक पक्ष मजबूत करना चाहते हैं, तो आज के दिन शिवलिंग पर तिल चढ़ाएं। भगवान को मिश्री का भोग लगायें। आज के दिन ऐसा करने से आपको कर्ज से छुटकारा मिलेगा। साथ ही आपका आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।
अगर आप अपनी सभी मनोकामनाओं को पूरा करना चाहते हैं, तो आज के दिन शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग पर धतूरा चढ़ाएं। साथ ही शिव जी को प्रणाम करें और उनके सामने आसन बिछाकर बैठ जाएं। फिर शिव जी के मंत्र ॐ नम: शिवाय का 108 बार जप करें। आज के दिन ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होगी।
अगर आपको अपनी पढ़ाई-लिखाई से संबंधित किसी प्रकार की परेशानी आ रही है, तो उस परेशानी से बाहर निकलने के लिए आज के दिन सुबह स्नान आदि के बाद आपको शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। साथ ही शिवलिंग पर चंदन का टीका लगाना चाहिए। आज के दिन ऐसा करने से पढ़ाई-लिखाई से संबंधित आपकी सभी परेशानियों का हल निकलेगा।
अगर आपका जीवन तरक्की के रास्ते की ओर बढ़ता-बढ़ता बीच में कहीं अटक गया है, तो जीवन में तरक्की को बनाये रखने के लिए आज के दिन सुबह के समय शिव जी को पंचामृत और सफेद फूल चढ़ाएं। आज के दिन ऐसा करने से जीवन में आपकी तरक्की बनी रहेगी।
अगर आपको हर छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आता है, तो अपने गुस्से को कंट्रोल में रखने के लिए आज के दिन शिव मंदिर जाएं और शिव जी को जौ के आटे से बनी रोटियों का भोग लगाएं | अगर जौ की रोटियां ना बना सके, तो केवल जौ के दाने चढ़ा दें। आज के दिन ऐसा करने से आप अपने गुस्से को कंट्रोल में रख पायेंगे।
अगर आप चाहते हैं कि आपकी संतान आपके सभी कामों में मदद करे और उनसे आपका संबंध बेहतर बना रहे, तो आज के दिन शिव जी को नारियल अर्पित करें। साथ ही भगवान को सूखे मेवे का भोग लगाएं। ऐसा करने से आपकी संतान सभी कामों में आपकी मदद करेगी और उनसे आपका संबंध बेहतर बना रहेगा।
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देवशयनी एकादशी का व्रत 6 जुलाई रविवार को

  • जानिए...शुभ मुहूर्त और पारणा
देवशयनी एकादशी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. देवशयनी एकादशी के दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. इस दिन से विष्णु जी 4 महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन से सभी देवता चार माह के लिए सो जाते हैं, जिसके कारण कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है. आइए जानते हैं साल 2025 में कब मनाई जाएगी देवशयनी एकादशी और इसका शुभ मुहूर्त क्या है|
कब है देवशयनी एकादशी-
साल 2025 में देवशयनी एकादशी 5 जुलाई को है या 6 जुलाई को? ज्योतिषाचार्य के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत आषाढ़ शुक्ल तृतीया तिथि को रखा जाता है. इस बार आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि 5 जुलाई को शाम 6:58 बजे से 6 जुलाई को रात 9:14 बजे तक है. जो लोग देवशयनी एकादशी की तिथि को लेकर असमंजस में है, तो बता दें कि देवशयनी एकादशी का व्रत 6 जुलाई, रविवार को रखा जाएगा|
देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त-
इस साल देवशयनी एकादशी की पूजा रवि योग में होगी. उस दिन ब्रह्म महोत्सव सुबह 04:08 बजे से शाम 04:48 बजे तक है. उस दिन का शुभ मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:58 बजे से दोपहर 12:54 बजे तक है. विजय मुहूर्त दोपहर 02:45 बजे से दोपहर 03:40 बजे तक है|
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शनिवार को करें पीपल के पेड़ का ये उपाय, शनिदेव का मिलेगा आशीर्वाद

शनिवार का दिन भगवान शनि देव को समर्पित है। इस दिन सूर्य पुत्र शनि देव की उपासना करने से ढैय्या, साढ़ेसाती जैसे दोषों से मुक्ति मिलती है। शनिवार के दिन सरसों तेल और काला तिल चढ़ाने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही इस दिन पीपल पेड़ की पूजा करने से भी शनि दोष से छुटकारा मिलता है। तो आइए अब आचार्य इंदु प्रकाश से जानते हैं शनिवार के दिन किए जाने वाले विशेष उपायों के बारे में, जिन्हें करने से समस्त परेशानियां दूर हो जाती हैं।
- अगर आपको उन्नति के मार्ग में आये दिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तो शनिवार के दिन आपको स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनकर एक कच्चे सूत के धागे का गोला लेना चाहिए। इसके बाद पीपल के पेड़ के पास जाना चाहिए और उसके तने पर सात बार वो कच्चा सूत लपेटना चाहिए। फिर दोनों हाथ जोड़कर शनि देव का ध्यान करते हुए उनके मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र है- 'ऊँ ऐं श्रीं ह्रीं शनैश्चराय नमः।'
- अगर आपके दांपत्य जीवन से खुशियां कहीं गायब हो गई हैं तो दांपत्य जीवन में फिर से खुशियां भरने के लिए शनिवार के दिन आपको थोड़े-से काले तिल लेने चाहिए और पीपल के पेड़ के पास चढ़ाने चाहिए। साथ ही पीपल की जड़ में पानी चढ़ाना चाहिए और शनि देव के इस मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र है- 'ऊँ श्रीं शं श्रीं शनैश्चराय नमः।'
- अगर आप अपनी संतान को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजना चाहते हैं, लेकिन आपको किसी न किसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो इस परेशानी से बाहर निकलने के लिए शनिवार के दिन आपको शनि के मंत्र का 11 बार जप करना चाहिए। शनि देव का मंत्र इस प्रकार है- 'ऊँ श्रीं ह्रीं शं शनैश्चराय नमः।'
- अगर आपके घर को किसी की काली नजर लग गई है, जिससे आपके परिवार के सदस्यों की तरक्की नहीं हो पा रही हैं तो इसके लिए शनिवार के दिन स्नान आदि के बाद आपको शनि देव के इस मंत्र का 31 बार जप करना चाहिए। मंत्र है-'ऊँ श्रीं शं श्रीं शनैश्चराय नमः।' और जप के बाद एक नीला फूल लेकर गंदे नाले में प्रवाहित कर दें।
- अगर आपके जीवन में परेशानियों का अंत नहीं हो रहा है, एक के बाद एक परेशानियां आती जा रही हैं तो उनसे छुटकारा पाने के लिए शनिवार के दिन आपको एक कटोरी में सरसों का तेल लेकर और उसको अपने सामने रखकर, उस पर शनि देव के तंत्रोक्त मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र है- 'ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।' कटोरी में रखे सरसों के तेल पर कम से कम 11 बार इस मंत्र का जप करना है और जप के बाद उस कटोरी को ढक्कर एक तरफ रख दें। कटोरी में रखे इस तेल का उपयोग आपको शनिवार के दिन करना है। शनिवार शनिवार के दिन आपको इस तेल का दीपक पीपल के पेड़ के नीचे जलाना है।
- अगर आप पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्र में मजबूत बने रहना चाहते हैं तो इसके लिए शनिवार के दिन आपको शनि देव के इस मंत्र का जप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है- 'ऊँ ऐं शं ह्रीं शनैश्चराय नमः।' आपको इस मंत्र का 21 बार जप करना चाहिए और जप के वक्त हाथ में काले तिल लेकर रखने चाहिए। जब जप पूरा हो जाये तो उन तिलों को अपने पास संभालकर रख लें और शनिवार शनिवार के दिन उन्हें पीपल के पेड़ के नीचे रख आएं।
- अगर आपको पैतृक जमीन जायदाद से संबंधी किसी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है तो उस परेशानी से बाहर निकलने के लिए शनिवार के दिन आपको आटे का दीपक बनाना चाहिए और उसमें सरसों का तेल डालकर, बाती लगाकर शनि देव के आगे जलाना चाहिए।
- अगर आपको किसी सरकारी दफ्तर में कोई अर्जी डालनी है और आपको उससे संबंधित कार्यों में परेशानी आ रही हैं तो इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए शनिवार के दिन आपको शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। शनिवार के दिन आप किसी भी वक्त शनि स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि पाठ करते समय अपना मुंह पश्चिम दिशा की तरफ रखना है क्योंकि पश्चिम दिशा शनि की दिशा है।
- अगर आपको अपने जीवन में हर काम के लिए बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ता है या बहुत मेहनत करने के बाद ही आपको कोई सफलता मिल पाती है तो शनिवार के दिन आपको एक मुट्ठी काले तिल लेने चाहिए और बहते जल में प्रवाहित करना चाहिए। साथ ही शनि देव का ध्यान करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए।
- अगर आप समाज में यश और सम्मान पाना चाहते हैं तो इसके लिए शनिवार के दिन आपको स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनने चाहिए और फिर शनि देव के मंत्र का 51 बार जप करना चाहिए। शनि देव का मंत्र इस प्रकार है- ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।
- अगर आप एक सुंदर, स्वस्थ, निरोगी काया की कामना करते हैं तो इसके लिए शनिवार के दिन आपको गेहूं से बनी एक रोटी पर गुड़ रखकर किसी नर भैंसे को, यानि भैंस को नहीं, केवल नर भैंसे को खिलानी चाहिए। नर भैंसे को खिलाने से ही आपके काम बनेंगे।
- अगर आप आर्थिक रूप से बड़ा लाभ पाना चाहते हैं तो लाभ पाने के लिए शनिवार के दिन आपको एक रुपये का सिक्का लेना चाहिए। अब उस सिक्के पर सरसों के तेल से एक बिन्दु लगाइए और शनि मंदिर में रख आइए। साथ ही शनि देव से आर्थिक लाभ पाने के लिए प्रार्थना भी करिये।
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योगिनी एकादशी पर भद्रा का साया, जानें कब करें पूजा

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत ही खास महत्व माना जाता है। यह व्रत हर महीने में दो बार रखा जाता है- एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। इस प्रकार एक वर्ष में कुल 24 एकादशी होती हैं, जबकि अधिक मास लगने पर इनकी संख्या 26 हो जाती है। धार्मिक मान्यता है कि हर एकादशी अपने नाम और गुणों के अनुसार व्रत करने वाले को फल प्रदान करती है। इन व्रतों के प्रभाव से व्यक्ति को सांसारिक सुख, समृद्धि और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इस वर्ष आषाढ़ महीने की योगिनी एकादशी को लेकर भक्तों में तिथि और मुहूर्त को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है. ऐसे में हम यहां आपको योगिनी एकादशी की सटीक तिथि, पूजा विधि, पारण का समय और भद्रा काल से जुड़ी संपूर्ण जानकारी प्रदान कर रहे हैं, ताकि आप व्रत को विधिपूर्वक कर सकें और इसका पुण्य लाभ प्राप्त कर सकें|
योगिनी एकादशी के दिन भद्रा काल का साया:
हिंदू पंचांग के अनुसार, योगिनी एकादशी के दिन भद्रा काल का प्रभाव सुबह 5 बजकर 24 मिनट से लेकर 7 बजकर 18 मिनट तक रहेगा. इस अवधि में शुभ कार्यों को करने से बचना चाहिए, क्योंकि भद्रा को अशुभ काल माना गया है|
व्रत, पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों की शुरुआत भद्रा समाप्त होने के बाद करना अधिक फलदायी होता है. ऐसे में व्रती 7:18 AM के बाद ही भगवान विष्णु की पूजा और एकादशी व्रत की विधियां आरंभ करें|
कब है योगिनी एकादशी:
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी तिथि की शुरुआत 21 जून 2025 को सुबह 7 बजकर 18 मिनट पर हो रही है, और इसका समापन 22 जून 2025 को सुबह 4 बजकर 27 मिनट पर होगा|
हालांकि, 21 जून को एकादशी तिथि का क्षय होने के कारण व्रत इसी दिन यानी 21 जून को रखा जाएगा. शास्त्रों के अनुसार, क्षय वाली एकादशी पर ही व्रत करना पुण्यकारी होता है. इस दिन विधिवत व्रत, उपवास और भगवान विष्णु की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है|
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योगिनी एकादशी पर करें तुलसी के ये उपाय, बढ़ेगा धन और सुख

योगिनी एकादशी का व्रत 21 जून को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा करने से भी लाभ की प्राप्ति होती है। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और साथ ही दान-पुण्य भी करते हैं। इसके साथ ही तुलसी से जुड़े उपाय इस दिन करने से भी आपको लाभ की प्राप्ति होती है। तुलसी भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी दोनों को ही प्रिय है ऐसे में कौन से उपाय करने से आपको जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त हो सकती है, आइए जानते हैं।
सुख-समृद्धि के लिए करें ये उपाय :
योगिनी एकादशी के दिन आपको भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही उनके भोग में तुलसी के कुछ पत्ते भी अवश्य डालने चाहिए। यह आसान सा कार्य आपको भगवान विष्णु की कृपा का पात्र बनाता है। हालांकि इस बात का ध्यान रखें कि एकादशी से एक दिन पहले ही तुलसी के पत्ते तोड़कर रख दें।
माता लक्ष्मी की कृपा के लिए उपाय :
एकादशी के दिन आपको तुलसी की पूजा भी अवश्य करनी चाहिए। इस दिन तुलसी के निकट दीपक और धूप जलाएं और तुलसी से जुड़े मंत्रों का जप करें। इसके बाद तुलसी की परिक्रमा भी आपको करनी चाहिए। पूजा के दौरान तुलसी को छूने से बचें और ना ही एकादशी के दिन तुलसी पर जल चढाएं।
तुलसी मंत्र- 'महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते'
'वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी'
वैवाहिक सुख के लिए उपाय :
अगर आप योगिनी एकादशी के दिन तुलसी माता को 16 श्रृंगार अर्पित करते हैं तो वैवाहिक जीवन से जुड़ी सभी समसस्याओं का अंत हो सकता है। साथ ही जो लोग योग्य जीवनसाथी की तलाश कर रहे हैं वो भी इस उपाय को कर सकते हैं।
सूर्यास्त के बाद जलाएं दीपक:
तुलसी के पास सूर्यास्त के बाद आपको दीपक अवश्य जलाना चाहिए। इस समय को प्रदोष काल कहा जाता है, इसे दौरान अगर आप तुलसी के पास दीपक जलाते हैं तो घर में सकारात्मकता आती है और जीवन में धन-धान्य और सुखों की आप प्राप्ति करते हैं।
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शुक्रवार को इस विधि से करें गुप्त लक्ष्मी की पूजा

  • धन से भरी रहेगी आपकी तिजोरी
हिंदू धर्म शास्त्रों में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित किया गया है. शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी को समर्पित किया गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता लक्ष्मी समुद्र मंथन के समय प्रकट हुईं थीं. हिंदू धर्म शास्त्रों में माता लक्ष्मी को धन, वैभव की देवी मााना गया है. शुक्रवार के दिन विधि-विधान से माता लक्ष्मी का पूजन और व्रत किया जाता है|
मान्यताओं के अनुसार:
मान्यताओं के अनुसार, जिस पर माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती है उसके घर में धन और वैभव की कोई कमी नहीं रहती. घर में हमेशा खुशहाली रहती है. शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के पूजन और व्रत के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शुक्रवार के दिन गुप्त लक्ष्मी की पूजा की जाती है. दरअसल, गुप्त लक्ष्मी, जिन्हें धूमावती भी कहा जाता है. ये अष्ट लक्ष्मी के रूप में भी जानी जाती हैं.मान्यता है कि जो भी शुक्रवार को गुप्त लक्ष्मी (अष्ट लक्ष्मी) की पूजा करता है उसके घर की तीजोरी हमेशा धन-दौलत से भरी रहती है|
पूजा विधि:
शास्त्रों में बताया गया है कि मां लक्ष्मी के पूजन के लिए रात का समय शुभ माना गया है.
शुक्रवार की रात 9 से 10 बजे के बीच मां लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए.
पूजा के लिए सबसे पहले स्वस्छ वस्त्र धारण करने चाहिए.
फिर पूजा की चौकी पर गुलाबी कपड़ा बिछाकर श्रीयंत्र और गुप्त लक्ष्मी (अष्ट लक्ष्मी) की प्रतीमा या तस्वीर रखनी चाहिए.
फिर उनके माता के सामने 8 घी के दीपक जलाने चाहिए.
फिर अष्टगंध से श्रीयंत्र और अष्ट लक्ष्मी को तिलक लगाना चाहिए.
मां को लाल गुडहल के फूलों की माला पहनानी चाहिए.
खीर का भोग लगाना चाहिए
ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्मीयै ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा मंत्र का जाप करना चाहिए.
अंत में माता की आरती करनी चाहिए.
फिर आठों दीपक को घर की आठ दिशाओं में रख देना चाहिए.
माता लक्ष्मी की पूजा का महत्व
हिंदू धर्म में मां लक्ष्मी की पूजा सिर्फ घर में धान-धान्य की बढ़ोतरी के लिए ही नहीं की जाती, बल्कि माता लक्ष्मी इसलिए भी होती है कि समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त हो सके. माता लक्ष्मी की पूजा से नकारात्मक शक्तियां भी नष्ट हो जाती हैं|
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जगन्नाथ मंदिर से 27 जून को भगवान जगन्नाथ की 148वीं रथ यात्रा शुरू होगी

अहमदाबाद। अहमदाबाद के जमालपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर से 27 जून को भगवान जगन्नाथ की 148वीं पारंपरिक रथ यात्रा शुरू होगी। 14 किलोमीटर लंबे इस रथ यात्रा मार्ग का निरीक्षण अहमदाबाद की मेयर प्रतिभा बेन जैन, नगर निगम के अधिकारियों, विभिन्न समितियों के अध्यक्षों, मध्य क्षेत्र के उप नगर आयुक्त और ट्रस्टियों ने संयुक्त रूप से किया। इस दौरान मार्ग की तैयारियों और व्यवस्थाओं का जायजा लिया गया।
मेयर प्रतिभा बेन जैन ने बताया कि रथ यात्रा के लिए मार्ग को पूरी तरह तैयार किया जा रहा है। रथ यात्रा के मार्ग को सुगम बनाने के लिए अहमदाबाद नगर निगम ने व्यापक इंतजाम किए हैं। सड़कों की मरम्मत, बड़े पेड़ों की छटाई, जलापूर्ति, हैलोजन लाइट्स, स्वास्थ्य सेवाएं और अग्निशमन व्यवस्था जैसे कार्य तेजी से किए जा रहे हैं। लगभग 500 जर्जर मकानों में से 200 को हटा दिया गया है, ताकि यात्रा के दौरान किसी को असुविधा न हो। जहां भी कमियां दिखीं, उन्हें तुरंत सुधारने के निर्देश दिए गए हैं। सभी नगरवासियों से रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के दर्शन कर आशीर्वाद लेने की मैं अपील करती हूं।
जगन्नाथ मंदिर के ट्रस्टी मोहन झा ने कहा कि भगवान जगन्नाथ की 148वीं रथ यात्रा 27 जून को अहमदाबाद शहर के इसी प्रांगण से शुरू होगी। यह रथ यात्रा मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि भक्ति का एक अनुपम रूप है। जब भगवान अपने भक्तों का हालचाल जानने मंदिर से बाहर निकलते हैं, तो भक्तों के सारे दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। रथ यात्रा शहर के विभिन्न क्षेत्रों से होकर गुजरेगी और हजारों भक्त इसमें शामिल होंगे।
यह रथ यात्रा अहमदाबाद की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है। हर साल की तरह इस बार भी शहरवासी उत्साह के साथ इस पर्व की तैयारी में जुटे हैं। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता और भाईचारे का भी संदेश देती है। नगर निगम और मंदिर ट्रस्ट ने मिलकर यह सुनिश्चित किया है कि यात्रा शांतिपूर्ण और व्यवस्थित रूप से संपन्न हो।
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