धर्म समाज

हर प्रदोष व्रत का है अपना अलग महत्व, जानें किस दिन व्रत करने से कौन सी मनोकामना होती है पूरी

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है और मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से महादेव भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. प्रत्येक प्रदोष व्रत, जो सप्ताह के अलग-अलग दिनों में पड़ता है, का अपना विशिष्ट महत्व और फल होता है. चलिए जानते हैं कि किस वार के प्रदोष व्रत से कौन सी मनोकामनाएं पूरी होती हैं|
किस दिन के प्रदोष व्रत से पूरी होती है कौन सी मनोकामना?
रविवार प्रदोष व्रत (रवि प्रदोष):
अगर प्रदोष व्रत रविवार को पड़ता है, तो इसे रवि प्रदोष कहा जाता है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को उत्तम स्वास्थ्य और लंबी आयु प्राप्त होती है. सूर्य देव का भी आशीर्वाद मिलता है, जिससे मान-सम्मान और तेज में वृद्धि होती है|
सोमवार प्रदोष व्रत (सोम प्रदोष):
सोमवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत सोम प्रदोष कहलाता है. यह व्रत विशेष रूप से चंद्रमा के बुरे प्रभावों को कम करने और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है. संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपतियों के लिए भी यह व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है|
मंगलवार प्रदोष व्रत (भौम प्रदोष):
मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष कहा जाता है. यह व्रत कर्ज मुक्ति और रोगों से छुटकारा पाने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है. मंगल ग्रह से संबंधित दोषों को दूर करने में भी यह प्रभावी है|
बुधवार प्रदोष व्रत (बुध प्रदोष):
जब प्रदोष व्रत बुधवार को पड़ता है, तो इसे बुध प्रदोष कहते हैं. यह व्रत ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा में सफलता के लिए किया जाता है. व्यापार में उन्नति और संतान की बुद्धि के विकास के लिए भी यह व्रत लाभकारी माना जाता है|
गुरुवार प्रदोष व्रत (गुरु प्रदोष):
गुरुवार को आने वाला प्रदोष व्रत गुरु प्रदोष कहलाता है. यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने, धन-धान्य में वृद्धि और पैतृक संपत्ति से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए किया जाता है. गुरु प्रदोष से सौभाग्य में भी वृद्धि होती है|
शुक्रवार प्रदोष व्रत (शुक्र प्रदोष):
शुक्रवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत शुक्र प्रदोष कहलाता है. यह व्रत दांपत्य जीवन में सुख-शांति, प्रेम और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है. भौतिक सुख-सुविधाओं और धन-ऐश्वर्य की इच्छा रखने वालों को भी इस व्रत से लाभ होता है|
शनिवार प्रदोष व्रत (शनि प्रदोष):
शनिवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत शनि प्रदोष कहलाता है. यह व्रत शनि दोषों से मुक्ति, साढ़ेसाती और ढैया के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. नौकरी और व्यवसाय में आ रही बाधाओं को दूर करने में भी यह सहायक है|
प्रदोष व्रत की पूजा विधि:
प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें. भगवान शिव का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. प्रदोष काल में (सूर्यास्त के 45 मिनट पहले से 45 मिनट बाद तक) शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें. शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, धूप, दीप आदि अर्पित करें. शिव चालीसा और प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें. अंत में आरती करें और प्रसाद वितरण करें|
प्रदोष व्रत का महत्व:
प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है, जो हर महीने में दो बार आती है – एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में. सूर्यास्त के बाद और रात्रि से पहले के समय को ‘प्रदोष काल’ कहा जाता है. इस काल में भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और उनकी पूजा करने से भक्तों को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है|
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गुरुवार को हल्दी और केसर से करें ये सरल उपाय

  • विवाह और करियर में आ रही रुकावटें होंगी दूर
हिंदू धर्म में बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति को समर्पित होता है। इस दिन पीला रंग और उससे संबंधित वस्तुएं जैसे हल्दी और केसर का प्रयोग विशेष रूप से शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हल्दी और केसर के कुछ विशेष उपाय अगर बृहस्पतिवार के दिन श्रद्धा से किए जाएं, तो जीवन की अनेक परेशानियां दूर होती हैं।
1. विवाह में रुकावट दूर करने के लिए हल्दी का प्रयोग:
अगर किसी कन्या या युवक का विवाह लगातार टल रहा हो या उचित रिश्ता नहीं मिल पा रहा हो, तो बृहस्पतिवार के दिन नहाने के पानी में थोड़ी सी हल्दी मिलाकर स्नान करें। इसके बाद पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा में हल्दी, चने की दाल, पीले फूल, और गुड़ अर्पित करें। फिर ‘ॐ बृं बृहस्पतये नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करें। इस उपाय को लगातार सात गुरुवार करने से विवाह में आ रही रुकावटें धीरे-धीरे दूर होती हैं।
2. करियर में तरक्की के लिए केसर का प्रयोग:
यदि नौकरी में प्रमोशन नहीं मिल रहा या प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार असफलता मिल रही हो, तो बृहस्पतिवार के दिन स्नान के बाद दूध में केसर मिलाकर माथे पर तिलक करें। यह उपाय बृहस्पति ग्रह को बल देता है और आत्मबल, बुद्धि और सौभाग्य में वृद्धि करता है। साथ ही केले के पेड़ में जल अर्पित करें।
3. घर में सकारात्मक ऊर्जा के लिए केसर जल का छिड़काव:
बृहस्पतिवार को गंगाजल में थोड़ी केसर मिलाकर पूरे घर में, विशेष रूप से कोनों और प्रवेश द्वार पर, छिड़काव करें। यह उपाय नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और घर में सुख-शांति बनाए रखता है। साथ ही भगवान विष्णु का ध्यान करके विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। ऐसा करने से पारिवारिक कलह शांत होती है और समृद्धि बनी रहती है।
4. हल्दी की गांठ मंदिर में दान करें:
बृहस्पतिवार के दिन किसी विष्णु या लक्ष्मी मंदिर में जाकर हल्दी की साबुत गांठें पीले कपड़े में लपेटकर श्रद्धापूर्वक दान करें। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है, विवाह योग्य कन्याओं को योग्य वर प्राप्त होता है और धन-धान्य में वृद्धि होती है।
5. बृहस्पति ग्रह को मजबूत करने के लिए हल्दी की माला से मंत्र जाप:
जिनकी कुंडली में बृहस्पति कमजोर हो, उन्हें गुरुवार के दिन हल्दी की माला से ‘ॐ बृं बृहस्पतये नमः’ मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। इस उपाय से शिक्षा, करियर, और सम्मान के क्षेत्र में शुभता बढ़ती है। यह उपाय विद्यार्थियों, गुरुजन और नौकरीपेशा लोगों के लिए अत्यंत फलदायक है।
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शिवमहापुराण में मनाया गया भगवान गणेश का जन्मोत्सव

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में श्री राम मंदिर, वीआईपी रोड स्थित महर्षि वाल्मीकि मंडप में चल रहे श्री शिवमहापुराण ज्ञान यज्ञ के आठवें दिन बुधवार को श्रद्धा और आस्था का वातावरण और भी गहराया, जब आचार्य जयप्रकाश तिवारी "अयोध्या वाले" ने व्यासपीठ से भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की महिमा और भगवान गणेश के अवतरण की कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया।
कथा में आचार्य जयप्रकाश तिवारी ने श्रोताओं को शिवमहापुराण में वर्णित भगवान गणेश के जन्म की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि जब माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं, तब उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। यह पुतला ही आगे चलकर भगवान गणेश बने। माता पार्वती ने गणेश जी को द्वार पर पहरा देने का निर्देश दिया। इसी दौरान भगवान शिव वहां पहुंचे और जब गणेशजी ने उन्हें अंदर जाने से रोका, तो शिवजी क्रोधित होकर उनका सिर काट देते हैं। पार्वती के विलाप पर, शिवजी गणेशजी को हाथी का सिर लगाकर पुनर्जीवित करते हैं और उन्हें "गणपति" की उपाधि देते हैं- अर्थात् गणों के स्वामी।
द्वादश ज्योतिर्लिंग: शिवभक्ति का परम स्रोत
व्यासपीठ से आचार्यश्री ने भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की महत्ता पर विशेष प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ये 12 पवित्र मंदिर शिवभक्तों के लिए मोक्षदायी तीर्थ हैं। इन ज्योतिर्लिंगों की उपासना से न केवल जीवन के समस्त कष्ट दूर होते हैं, बल्कि आध्यात्मिक उत्थान भी सुनिश्चित होता है। उन्होंने कहा, "महादेव इतने सरल हैं कि वे केवल एक बेलपत्र और जल से भी प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन यदि मन में छल, द्वेष या दुर्भावना हो तो उनकी कृपा प्राप्त नहीं होती।" आचार्य श्री ने भक्तों से आग्रह किया कि वे इन ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं पूजन पूरी श्रद्धा और शुद्ध भाव से करें, क्योंकि शिव की कृपा से सभी प्रकार के पापों का क्षय और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
कथा के आयोजकों ने जानकारी दी कि आज 19 जून को श्री राम मंदिर परिसर में द्वादश ज्योतिर्लिंग पूजन का भव्य आयोजन किया जाएगा। आचार्य श्री ने सभी शिवभक्तों से सपरिवार इस पूजन में भाग लेने का आह्वान किया है। उन्होंने कहा, "ज्योतिर्लिंगों का पूजन एक दुर्लभ अवसर है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है। इस अवसर को किसी को भी नहीं गंवाना चाहिए।" इस 11 दिवसीय श्री शिवमहापुराण कथा यज्ञ का आयोजन 11 जून से 21 जून तक किया जा रहा है। आयोजन "अवलंबन वेलफेयर फाउंडेशन" के तत्वावधान में किया गया है। कथा स्थल पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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बुधवार को करें ये उपाय, जीवन रहेगा सुख-समृद्धि से भरपूर

घर में सुख-समृद्धि बनी रहे इसके लिए जरूरी है कि कुछ उपाय भी किए जाएं। कल यानि बुधवार का दिन बुध ग्रह को समर्पित रहता है। इस दिन किए गए उपाय आपको जिंदगी भर फल देंगे। तो जानिए वे कौन से उपाय हैं जो आपकी जिंदगी समृद्ध कर देंगे।
गणेशजी की पूजा-
मूंग की दाल का दान करें-
बुधवार को मूंग की दाल दान करने से कष्टों का निवारण होता है। किसी गरीब अथवा जरूरतमंद को मूंग दान करें और फिर देखें कि कैसे आपके सभी दुख दूर हो जाते हैं।
गणेश भगवान को मोदक का प्रसाद चढ़ाएं-
जिनकी कुंडली में बुध ग्रह दोष है वे खासकर इस दिन गणेश भगवान को मोदक का प्रसाद चढ़ाएं। इससे ग्रह के दोष खत्म हो जाएंगे।
गाय को रोटी या हरी घास खिलाएं-
गाय को हिंदू धर्म में पूजनीय माना गया है। बुधवार के दिन गाय को हरी घास खिलाने से सभी देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। अगर हरी घास खिलाना संभव ंन हो तो गाय को सुबह की पहली रोटी खिलाएं।
गणेश भगवान को सिंदूर चढ़ाएं-
बुधवार के दिन गणेश भगवान को सिंदूर चढ़ाने से लाभ मिलता है। ऐसा करने से सभी परेशानियों का भी निवारण होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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23 जून को सोम प्रदोष व्रत, जानिए...महत्व और शुभ मुहूर्त

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का अत्यंत महत्व है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है और इसे एक महीने में दो बार रखा जाता है। प्रदोष व्रत के दिन विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और सफलता आती है। उज्जैन के पंडित आनंद भारद्वाज के अनुसार, जून महीने का अंतिम प्रदोष व्रत इस बार सोम प्रदोष के रूप में मनाया जाएगा।
सोम प्रदोष व्रत कब होगा?
वैदिक पंचांग के अनुसार, 23 जून, सोमवार को आषाढ़ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि शुरू होगी, जो उसी दिन रात 10 बजकर 9 मिनट पर समाप्त होगी। इस आधार पर 23 जून को सोम प्रदोष व्रत रखा जाएगा, क्योंकि यह दिन और तिथि दोनों प्रदोष व्रत के लिए शुभ माने जाते हैं।
सोम प्रदोष का अर्थ और महत्व
जब त्रयोदशी तिथि सोमवार के दिन आती है, तो इसे सोम प्रदोष कहा जाता है। इस व्रत को रखने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति अपनी कुंडली में अशुभ चंद्रमा की स्थिति से परेशान होता है, उसे विशेष रूप से यह व्रत नियमित रूप से करना चाहिए। इसके अलावा, संतान प्राप्ति के लिए भी प्रदोष व्रत अत्यंत फलदायक माना जाता है।
प्रदोष व्रत के नियम और पूजा विधि
प्रदोष व्रत का पालन करते समय कुछ खास नियमों का ध्यान रखना आवश्यक है:
स्नान और संकल्प: प्रदोष के दिन सुबह जल्दी उठकर स्वच्छता से स्नान करें। इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल की सफाई: पूजा स्थल को अच्छी तरह साफ करें और भगवान शिव की पूजा के लिए तैयार करें।
पंचामृत से अभिषेक: भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग का पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगा जल) से अभिषेक करें।
शिव परिवार की पूजा: भगवान शिव के साथ माता पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की पूजा विधि-विधान से करें।
बलि और आहुति: बेलपत्र, फूल, धूप, दीप आदि भगवान शिव को अर्पित करें।
प्रदोष व्रत कथा का पाठ: प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें जिससे व्रत का महत्व और पुण्य प्राप्त होता है।
आरती और शिव चालीसा: पूजा के अंत में भगवान शिव की आरती करें और शिव चालीसा का पाठ अवश्य करें।
उपवास का पारण: व्रत पूरा होने के बाद ही उपवास का पारण करें।
प्रदोष व्रत का आध्यात्मिक महत्व
प्रदोष व्रत भगवान शिव की अनुकम्पा और कृपा पाने का सबसे श्रेष्ठ उपाय माना जाता है। इसे करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं, मनुष्य के जीवन में समृद्धि आती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। प्रदोष व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति का चंद्रमा मजबूत होता है, जिससे मानसिक शांति और स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है। यदि आप अपने जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत को श्रद्धा और भक्ति से जरूर निभाएं। इस व्रत के द्वारा भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से न केवल आध्यात्मिक बल मिलता है, बल्कि यह पारिवारिक और व्यक्तिगत जीवन में खुशहाली का कारण भी बनता है। 23 जून, सोमवार को आने वाला सोम प्रदोष व्रत इस बार आपके लिए खुशियों और आशीर्वाद का संदेश लेकर आए।
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आषाढ़ अमावस्या पर करें ये काम, होगा लाभकारी

हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि बहुत शुभ और पुण्यदायी मानी गई है, जो कि पितरों के लिए समर्पित है. इस समय आषाढ़ का महीना चल रहा है और आषाढ़ अमावस्या 25 जून को मनाई जाएगी. वैसे तो अमावस्या तिथि पितरों के लिए समर्पित मानी गई है, लेकिन इस दिन को धन की देवी लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए भी लाभकारी माना जाता है|
ज्योतिष शास्त्र में आषाढ़ अमावस्या पर किए जाने वाले ऐसे उपायों के बारे में बताया गया है, जिनको करने से आपको देवी लक्ष्मी की कृपा मिल सकती है. देवी लक्ष्मी की कृपा से आपके घर में कभी धन की कमी नहीं रहेगी. अगर आप भी धन की देवी की कृपा पाना चाहते हैं, तो चलिए आपको बताते हैं कि आषाढ़ अमावस्या पर क्या उपाय करने चाहिए|
घी का दीपक जलाएं:
आषाढ़ अमावस्या पर घर के ईशान कोण में घी का दीपक जलाएं. मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए आप इस दीपक में 7 लौंग भी डाल सकते हैं. धार्मिक मान्यता है कि इस उपाय को करने से घर में समृद्धि और सुख-शांति का वास होता है. साथ ही, मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है|
तुलसी माला से मंत्र जाप:
आषाढ़ अमावस्या पर तुलसी की माला से गायत्री मंत्र का जाप करना काफी शुभ माना गया है. इस दिन विशेष रूप से 108 बार तुलसी की माला से मंत्र जाप करें. धार्मिक मान्यता है कि इससे मानसिक शांति और समृद्धि मिलती है. इसके अलावा, मां लक्ष्मी भी आपसे प्रसन्न हो जाती हैं|
केसर और लौंग का उपाय:
आषाढ़ अमावस्या के दिन कपूर के साथ केसर और लौंग को जलाएं. धार्मिक मान्यता है कि इस उपाय को करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है. साथ ही, यह उपाय देवी लक्ष्मी को बहुत ज्यादा आकर्षित करता है. अगर आप आषाढ़ अमावस्या पर इस उपाय को करते हैं, तो आपके घर में धन लाभ होता है|
स्नान और तर्पण:
आषाढ़ अमावस्या पर ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र नदी में स्नान करें. अगर यह संभव नहीं हो तो नहाने के पानी में गंगाजल डालर स्नान करना चाहिए. इसके बाद अभिजीत मुहूर्त में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को तर्पण करें. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है|
पीपल के पेड़ की पूजा:
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पीपल का पेड़ पितरों का प्रिय होता है. ऐसे में आषाढ़ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा करें. साथ ही, पीपल की जड़ में दूध और मिश्री मिला जल अर्पित करें. इसके बाद पीपल की 108 बार परिक्रमा करें. इस उपाय से पितृ दोष दूर होता है|
पिंडदान और तर्पण:
पितरों की आत्मा की शांति के लिए अमावस्या पर पिंडदान और तर्पण करना जरूरी होता है. आप इस काम के लिए किसी पंडित की मदद ले सकते हैं. पितरों के तर्पण के लिएतिल, कुश, जल, फूल आदि का इस्तेमाल करें. इसके बाद पिंडदान करें और पितरों के नाम से दान करें|
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कामाख्या मंदिर में 22 जून से 5 दिवसीय अंबुवाची योग पूजा

रायपुर। राजधानी रायपुर में गुवाहटी मां कामाख्या मंदिर के तर्ज पर हर साल 22 से 26 जून तक अंबुवाची योग पूजा की जाती है। यह मंदिर देवेंद्र नगर नारायणा अस्पताल रोड लगी फोकटपारा में स्थित है । जिसकी स्थापना आज से 58 साल पहले मां कामाख्या के उपासक आचार्य पं. हीरेंद्र विश्वकर्मा ने की । माता स्वयंभू प्राक्टय है। कोपटपारा स्थित कामाख्या मंदिर में हर साल की तरह इस साल भी 22 जून से 26 जून तक पांच दिवसीय अंबुवाची पूजा होगी।
22 जून को विधि विधान से गणेश , कच्छप, गौरी गणेश कलश, नौ कलश चक्र, नवग्रह, चर्तुदिक शिवलिंग, चौसठ योगिनी, षोेडशमातृका, सप्तघृत मातृका, क्षेत्रपाल चक्र, वास्तु चक्र, पंच लोकपाल, दस दिगपाल की गुवाहटी मंदिर की तरह पूजा होगी। 22 जून को मां कामाख्या की पूजा अर्चना का बाद तीन दिन के लिए पट बंद हो जाएगी। इस दरम्यान 22, 23 और 24 जून को जसगीत , दुर्गा सप्त सती पाठ, सुंदर कांड का पाठ होगा। वहीं 25 जून की रात माता कामाख्या का पट खोला जाएगा। माता का षोडषोउचार के साथ स्नान के बाद भन्य श्रृगार होगा। 26 जून को मां कामाख्या मंदिर में दोपहर 1 बजे हवन के बाद कलश के साथ माताएं कलशयात्रा के रूप में माता के रथ के आगे -आगे चलेंगी। माता की पालकी रथ में 5 घोड़े के साथ निकलेगी जो फोकटपारा से होते हुए देवेंद्र नगर थाना क्षेत्र से होते हुए वापस मंदिर में पहुंचेगी।इसके बाद कुंवारी कन्या पूजन होगा, जहां माता स्वरूप में विराजित माता का पूजन होगा। उसके साथ जितनी में छोटी कन्या होगी उनका भी माता स्वरूप में पूजन होगा। उसके बाद माता को भोग लगाया जाएगा। फिर प्रसादी वितरण होगा। मंदिर में इस मंदिर में देश-प्रदेश के बड़े-बड़े राजनेता, समाजसेवी और सामान्यजन माथा टेक कर मनोरथ की सिद्धि प्राप्त किए है। गुवाहटी की तरह ही पांच दिवसीय अंबुवाची योग पूजा में माता कामाख्या की तांत्रिक मंत्रोच्चार के साथ हवन पूजन हो रहा है। इस मंदिर की विशेषता यहीं है कि यहां जो भी आया वो खाली हाथ नहीं लौटा है। मंदिर प्रबंधन समिति ने समस्त श्रद्धालुओ् से अपील की है कि इस अंबुवाची पूजा में शामिल होवे और हवन में पांच-पांच आहूति देकर अपनी मनोरथ सिद्धि औऱ मनोकामना पूर्ण करें।
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योगिनी एकादशी पर करें ये खास उपाय, पापों और रोगों से मिलेगी मुक्ति

हर साल आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी व्रत रखा जाता है। यह दिन भगवान विष्णु की आराधना के लिए विशेष माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी का व्रत रखने से जीवन में आई बीमारियों से राहत मिलती है और पूर्व जन्मों के पापों से भी मुक्ति प्राप्त होती है। पुराणों में योगिनी एकादशी को रोगों को दूर करने वाली सबसे प्रभावशाली तिथि बताया गया है, खासकर उन लोगों के लिए जो लंबे समय से मानसिक या शारीरिक पीड़ा से जूझ रहे हैं।
व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त:
साल 2025 में योगिनी एकादशी का व्रत 21 जून को रखा जाएगा, जो शनिवार का दिन है। एकादशी तिथि की शुरुआत 21 जून की सुबह 7:18 बजे से होगी और इसका समापन 22 जून की सुबह 4:27 बजे तक होगा। उदया तिथि के आधार पर 21 जून को ही योगिनी एकादशी का व्रत मनाया जाएगा।
योगिनी एकादशी के दिन करें ये उपाय:
इस विशेष दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ माता तुलसी की पूजा का भी अत्यंत महत्व होता है। दिन की शुरुआत स्नान करके साफ वस्त्र पहनने से करें। फिर भगवान विष्णु और तुलसी माता का विधिवत पूजन करें। तुलसी को जल अर्पित करें, दीपक और अगरबत्ती जलाएं और "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें। तुलसी की सात बार परिक्रमा करना भी शुभ माना जाता है।
विष्णु भगवान को अर्पित किए जाने वाले भोग में तुलसी के पत्तों जरूर रखें, क्योंकि मान्यता है कि तुलसी के बिना भगवान विष्णु भोग स्वीकार नहीं करते। आप चाहें तो इस दिन तुलसी की माला का उपयोग पूजा या जप के लिए कर सकते हैं। यदि आपके घर में तुलसी का पौधा नहीं है, तो इस दिन एक नया पौधा लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
व्रत का महत्व:
योगिनी एकादशी का व्रत मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने वाला माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से न केवल रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि पितृ दोष, पारिवारिक कलह और नकारात्मक ऊर्जा से भी छुटकारा मिलता है। भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
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मंगलवार को करें ये आसान उपाय, मिलेगी हनुमान जी की विशेष कृपा

मंगलवार को बजरंग बली की पूजा की जाती है। हनुमान जी को कलयुग का देवता कहा जाता है। मान्यता है कि अगर आप सच्चे मन से भगवान श्री राम की पूजा करते हैं तो हनुमान जी बहुत प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं। मंगलवार का दिन बहुत खास माना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आपको मंगलवार के दिन कौन से उपाय अपनाने चाहिए...
मंगलवार को करें ये उपाय
इस जगह जाकर करें पाठ
अगर संभव हो तो मंगलवार को सुबह और शाम हनुमान या श्री राम के मंदिर जाएं और वहां हनुमान चालीसा के साथ-साथ राम चालीसा का पाठ करें। इससे हनुमान जी प्रसन्न होंगे और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करेंगे।
गुड़ और चना खिलाएं
मंगलवार के दिन मंदिर जाएं और वहां हनुमान जी को गुड़ और चना चढ़ाएं। साथ ही मंदिर परिसर में मौजूद बंदरों को भी गुड़ और चना खिलाएं। इससे हनुमान जी प्रसन्न होंगे और आपको आशीर्वाद देंगे।
हनुमान जी को ये चीजें चढ़ाएं
हनुमान मंदिर जाएं और सिंदूर, चोला, लाल फूल और लाल झंडा के साथ प्रसाद (लड्डू या चना) चढ़ाएं। इससे हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और वे भक्त के सभी संकट दूर करते हैं।
गरीबों को दान करें
मंगलवार के दिन मंदिर के बाद भक्त को गरीबों को भोजन कराना चाहिए या यथाशक्ति अन्न दान करना चाहिए। इसके साथ ही लाल वस्त्र और बादाम दान करना शुभ होता है।
पान का बीड़ा चढ़ाएं
अगर आप धन की कामना रखते हैं तो मंगलवार के दिन हनुमान जी को पान का बीड़ा चढ़ाएं। ध्यान रहे कि यह पान मीठा होना चाहिए और इसमें चूना, सुपारी और तंबाकू नहीं डालना चाहिए। मान्यता है कि इससे भक्त के शत्रुओं का नाश होता है।
राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें
हनुमान मंदिर जाएं और वहां मूर्ति के सामने बैठकर राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। इससे हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और वे भक्तों के सभी संकट पल भर में दूर कर देते हैं।
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आषाढ़ अमावस्या पर करें दीपक से ये उपाय

  • मां लक्ष्मी भर देंगी आपका खजाना
आषाढ़ अमावस्या को दर्श अमावस्या भी कहते हैं, जो कि पितरों को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस साल आषाढ़ अमावस्या 25 जून को मनाई जाएगी. अगर आप इस दिन दीपक के कुछ खास उपाय अपनाते हैं, तो आपके घर में सुख-समृद्धि आती है और माता लक्ष्मी का वास होता है. ऐसे में अगर आप भी माता लक्ष्मी की कृपा पाना चाहते हैं, तो आषाढ़ अमावस्या पर दीपक के ये उपाय जरूर करें|
अमावस्या के दिन कौन सा दीपक जलाना चाहिए?
आषाढ़ अमावस्या के दिन चौमुखी दीपक जलाना शुभ माना जाता है. अमावस्या पर चौमुखी दीपक जलाने से पितर प्रसन्न होते हैं. इसके अलावा, अमावस्या पर तेल का दीपक भी जलाया जा सकता है. आषाढ़ अमावस्या पर आप नीचे दिए गए आसान उपाय अपना सकते हैं|
पितरों के लिए:- आषाढ़ अमावस्या के दिन दक्षिण दिशा में तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए. धार्मिक मान्यता है कि इससे पितर प्रसन्न होते हैं और साथ ही पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है|
घर में सुख-शांति के लिए:- आषाढ़ अमावस्या पर घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में दीपक जलाएं. इससे देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है और घर में सुख-शांति का वास होता है|
घर में बरकत के लिए:- आषाढ़ अमावस्या की रात को किचन में घी का दीपक जलाएं. अमावस्या पर किचन में दीपक जलाने से मां अन्नपूर्णा की कृपा मिलती है, जिससे घर में हमेशा अन्न में बरकत बनी रहती है|
पितृ दोष निवारण के लिए:- आषाढ़ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं. ऐसा माना जाता है कि अमावस्या पर पीपल के नीचे दीपक जलाने से पितृ दोष दूर होता है|
धन-धान्य की वृद्धि के लिए:- आषाढ़ अमावस्या के दिन घर के ईशान कोण में घी का दीपक जलाना चाहिए. वास्तु की मानें तो इस दिन घी का दीपक जलाने से माता लक्ष्मी की कृपा घर पर बनी रहती है|
नकारात्मकता दूर करने के लिए:- आषाढ़ अमावस्या की शाम घर के मुख्य दरवाजे पर सरसों के तेल का दीपक जलाएं. इससे नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश नहीं कर पाती और सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है|
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महाकालेश्वर के दर्शन को उज्जैन पहुंचे रवि किशन, भस्म आरती में हुए शामिल

उज्जैन। अभिनेता, भाजपा सांसद रवि किशन सोमवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर पहुंचे, जहां उन्होंने बाबा का दर्शन-पूजन किया। रवि किशन भस्म आरती में भी शामिल हुए। उन्होंने भगवान महाकाल के दर्शन-पूजन किए और मंदिर परिसर में विकसित महाकाल कॉरिडोर की जमकर तारीफ की।
रवि किशन ने कहा, "इतना भव्य महाकाल कॉरिडोर बनाने के लिए मैं प्रशासन, मध्य प्रदेश सरकार, पीएम मोदी और डबल इंजन सरकार का आभारी हूं। श्रद्धालुओं के लिए अब अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हैं।" अहमदाबाद विमान हादसे को लेकर उन्होंने कहा, "भगवान महाकाल इस दुख को हरे और हादसे में मृत लोगों की आत्मा को शांति मिले। यही अर्जी लगाने आया हूं।"
पूजन, अर्पित पुजारी ने सम्पन्न करवाया। वहीं, श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की ओर से सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल ने रविकिशन का स्वागत व सम्मान किया। रवि किशन ने नंदी हॉल से शिव साधना की चांदी से माथा टेक आशीर्वाद लिया। मंदिर पहुंचे रवि किशन पीले रंग का 'महाकाल' के नाम का दुपट्टा ओढ़े और माथे पर रोली का तिलक लगाए नजर आए।
रवि किशन ने दर्शन के बाद कहा, "महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन कर मन को अपार शांति मिली। इतना भव्य और सुंदर महाकाल कॉरिडोर बनाने के लिए मैं स्थानीय प्रशासन, मध्य प्रदेश सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डबल इंजन सरकार का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। अब श्रद्धालुओं के लिए यहां विश्वस्तरीय सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिससे दर्शन और अधिक सुगम और सुखद हो गए हैं।"
उन्होंने आगे कहा, “महाकाल कॉरिडोर परियोजना न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रही है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान कर रही है। यह कॉरिडोर उज्जैन की शान बढ़ाने के साथ-साथ लाखों भक्तों के लिए आस्था का नया केंद्र बन गया है। मैं महाकालेश्वर समिति का भी आभार जताता हूं।”
महाकाल कॉरिडोर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2022 में किया था। इससे मंदिर परिसर को भव्य और आधुनिक स्वरूप प्रदान किया गया है। परियोजना के तहत मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्र को विकसित किया गया है, जिसमें भक्तों के लिए बेहतर दर्शन व्यवस्था, विश्राम स्थल, स्वच्छता और अन्य सुविधाएं भी शामिल हैं।
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कब है मिथुन संक्रांति, जानें तिथि, स्नान मुहूर्त और शुभ समय

इस वर्ष मिथुन संक्रांति के दिन 2 घंटे 20 मिनट का महा पुण्य काल रहेगा। यह समय अत्यंत पावन और फलदायी होता है, और इसमें स्नान, दान व जप आदि धार्मिक कार्य करना विशेष फलदायक माना गया है। यदि कोई व्यक्ति किसी कारणवश महा पुण्य काल में यह कर्म न कर पाए, तो वह पुण्य काल के दौरान भी इन शुभ कार्यों को कर सकता है। यह दिन अध्यात्म और धर्म के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, इसलिए इसका सदुपयोग अवश्य करना चाहिए।
इस दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान कर के दान करते हैं। मान्यता है कि इस दिन स्नान और दान से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि जीवन में चल रहे ग्रह दोष भी शांत होते हैं। विशेषकर सूर्य और अन्य ग्रहों की स्थिति से जुड़े दोषों के निवारण के लिए यह दिन शुभ माना जाता है।
मिथुन संक्रांति 2025 की तिथि:
मिथुन संक्रांति: 15 जून 2025, रविवार
15 जून 2025 को अष्टमी तिथि समाप्त होकर नवमी तिथि प्रारंभ होगी।
समय: सुबह 6:53 बजे
संक्रांति नाम: घोर संक्रांति
सौर कैलेंडर: 15 जून से मिथुन मास (तीसरा माह) प्रारंभ होगा।
मिथुन संक्रांति 2025 महा पुण्य काल:
15 जून 2025 को मिथुन संक्रांति का महा पुण्य काल लगभग 2 घंटे 20 मिनट का रहेगा। यह शुभ समय सुबह 6:53 बजे शुरू होकर सुबह 9:12 बजे समाप्त होगा। इस दौरान स्नान और दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है, इसलिए इस समय का अधिकतम लाभ उठाना चाहिए।
मिथुन संक्रांति 2025 पुण्य काल और स्नान-दान का समय:
मिथुन संक्रांति का कुल पुण्य काल लगभग 7 घंटे 27 मिनट तक रहेगा, जो सुबह 6:53 बजे से शुरू होकर दोपहर 2:20 बजे तक चलेगा। इस समय में स्नान और दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। खासकर सुबह 6:53 बजे से 9:12 बजे तक का समय स्नान और दान के लिए सबसे उत्तम माना गया है। इस दौरान अपनी सामर्थ्य अनुसार दान करें और अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएं।
मिथुन संक्रांति पर क्या दान करें:
मिथुन संक्रांति के दिन सूर्य देव से जुड़े वस्तुओं का दान करना विशेष फलदायक होता है।
इस अवसर पर आप गेहूं, तिल, गुड़, लाल वस्त्र, लाल रंग के फल और लाल चंदन का दान कर सकते हैं।
सा करने से आपकी कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है और सूर्य दोष कम होता है। साथ ही, स्नान और दान से पाप भी नष्ट होते हैं।
मिथुन संक्रांति के दिन कपड़ों का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
मिथुन संक्रांति 2025 का विशेष योग और नक्षत्र:
इस बार की मिथुन संक्रांति पर इंद्र योग रहेगा जो सुबह से दोपहर 12:20 तक प्रभावी होगा, उसके बाद वैधृति योग बना रहेगा। इस दिन श्रवण नक्षत्र सुबह से लेकर रात 1 बजे तक रहेगा। मिथुन संक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव बाघ पर विराजमान होंगे और पीले वस्त्र पहनेंगे। वे पूर्व दिशा की ओर नैऋत्य दृष्टि से यात्रा करेंगे। इस दिन सूर्य देव को चांदी के पात्र में पायस का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
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आज कृष्णपिंगला संकष्टी चतुर्थी के दिन करें ये उपाय

  • पूरी होगी हर मनोकामना
हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है। 14 जून यानी की आज कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी मनाई जा रही है। इस दिन देवों के देव महादेव के पुत्र गणेश जी की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन बप्पा की सच्चे मन से पूजा करने और व्रत रखने से इच्छाओं की पूर्ति होती है और शारीरिक और मानसिक ऊर्जा में वृद्धि होती है। इस दिन पर चंद्र दर्शन करने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। साथ ही इस दिन गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए कुछ उपाय और उनके नामों और मंत्रों का भी जाप किया जाता है। तो आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी पर किए जाने वाले उपायों के बारे में-
भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाएं-
संकष्टी चतुर्थी के दिन 21 दूर्वा की गठरी गणेश जी को अर्पित करना शुभ माना जाता है। यह उपाय बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है।
चंद्रमा को अर्घ्य दें-
संकष्टी चतुर्थी की रात चंद्रमा को जल चढ़ाकर अर्घ्य देना व्रत की पूर्णता का संकेत होता है। इससे मानसिक तनाव कम होता है और सौभाग्य बढ़ता है।
मोदक का भोग लगाएं-
गणेश जी को मोदक बहुत प्रिय हैं। मोदक बनाकर या बाजार से लाकर उन्हें भोग लगाएं। माना जाता है कि इससे मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं।
गणेश जी के मंत्रों का जाप करें-
"ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा" मंत्र का जाप करें। यह विशिष्ट गणेश मंत्र है जो विशेष इच्छाओं की पूर्ति में सहायक होता है। इसका 108 बार जाप करें।
गरीबों को भोजन कराएं या फल दान करें-
इस दिन दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। किसी जरूरतमंद को भोजन, फल या वस्त्र देने से जीवन में सुख-शांति आती है।
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शनिवार को भूलकर भी न करें ये 7 काम

  • जीवन में बढ़ जाती हैं मुश्किलें
शनि देव कर्मफल दाता और न्याय के देवता कहे गए हैं. शनि देव कर्म प्रधान ग्रह हैं. व्यक्ति जैसे कर्म करता है शनि देव उसको वैसा ही फल प्रदान करते हैं. अगर व्यक्ति मेहनत करता है, गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करता है, तो शनिदेव उसपर प्रसन्न होते हैं|
वहीं अगर अगर व्यक्ति धर्म के अनुसार, आचरण नहीं करता और नियमों को तोड़ता है, तो शनि देव उसको दंडित भी करते हैं. आइए अब जानते हैं कि वो कौनसे काम हैं, जिन्हें अगर शनिवार के दिन कर दिया जाता है, तो शनि देव नाराज हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति के जीवन की मुश्किलें बढ़ जाती हैं|
डाढ़ी बाल और नाखून न काटें-
हिंदू धर्म शास्त्रों में शनिवार के दिन डाढ़ी बाल और नाखून काटना वर्जित किया है. मान्यता है कि इस दिन डाढ़ी बाल और नाखून काटने शनि देव नाराज होते हैं. जो भी व्यक्ति शनिवार के दिन ये काम करता है उसको शनि देव कष्ट देते हैं|
बेटी को ससुराल न भेजें-
मान्यता है कि शनिवार के दिन अपनी बेटी को ससुराल नहीं भेजना चाहिए. कहा जाता है कि बेटी को शनिवार के दिन ससुराल भेजने पर उसका वैवाहित जीवन अच्छा नहीं रहता और अलगाव होता है|
तेल और काली उड़द की दाल न खरीदें-
शनिवार के दिन तेल और काली उड़द की दाल खरीदने से बचना चाहिए. माना जाता है कि जो शनिवार के दिन तेल और काली उड़द की दाल खरीदता है उससे शनि देव नाराज होते हैं. हालांकि इस दिन तेल और काली उड़द का दान अवश्य करना चाहिए|
मांस मदिरा के सेवन की मनाही:
शनिवार के दिन भूलकर भी मांस-मंदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए. जो लोग भी शनिवार के दिन ऐसा करते हैं उनपर शनि देव बहुत क्रोधित होते हैं और पीड़ा देते हैं|
गरीबों को न सताएं-
शनि देव न्याय प्रिय हैं. इसलिए शनिवार के दिन गरीब और बेबस लोगों को सताना नहीं चाहिए. जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें शनि देव के भारी प्रकोप का सामना करना पड़ता है. उनके जीवन में कई तरह की परेशानियां आ जाती हैं|
नमक न खरीदें-
शनिवार के दिन नमक खरीदने से बचना चाहिए. माना जाता है कि जो लोग शनिवार के दिन नमक खरीदते हैं उनके साथ कोई न कोई अशुभ घटना हो जाती है. शनिवार के दिन नमक खरीदने वालों से शनि देव नाराज हो जाते हैं. ऐसा करने वाले शनि देव की टेढ़ी दृष्टि का प्रकोप झेलते हैं|
लोहा न खरीदें-
शनि देव को लोहे की धातु पसंद है, लेकिन शनिवार के दिन लोहा खरीदने और बेचने की मनाही है. यही नहीं इस दिन लोहा घर भी नहीं लाना चाहिए. ऐसा करने से शनि देव नाराज होते हैं|
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12 जून को गुरु अस्त होने से मांगलिक कार्यों पर लगेगी रोक

  • न करें ये काम
मंगल कार्यों के लिए विशेष माने जाने वाले गुरु ग्रह 12 जून गुरुवार को अस्त हो जाएंगे। इसके साथ ही विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, मंदिर प्राण प्रतिष्ठा, शिलान्यास जैसे मांगलिक कार्यों पर पूर्ण विराम लग जाएगा। गुरु के अस्त रहते कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। उसके बाद देवशयनी एकादशी के साथ चातुर्मास शुरू हो जाएगा, जिसके कारण 1 नवंबर तक शुभ कार्य वर्जित माने जाएंगे।
पंडित विनोद गौतम के अनुसार, जब गुरु अस्त हो जाता है, तो विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत (जनेऊ), मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा, भवन प्रवेश, नया घर खरीदना या कोई नई योजना शुरू करना अशुभ माना जाता है। यह धार्मिक रूप से मान्यता प्राप्त समय होता है जिसमें भगवान की कृपा बाधित मानी जाती है।
गुरु ग्रह 9 जुलाई को भले ही उदय हो जाएंगे, लेकिन तब तक चातुर्मास लग चुका होगा। इस कारण 1 नवंबर देवउठनी एकादशी तक कोई मांगलिक कार्य नहीं होंगे।
चातुर्मास में होते हैं ये कार्य
पंडित रामजीवन दुबे के अनुसार, चातुर्मास में कुछ कार्यों की अनुमति होती है। इनमें तीर्थ यात्रा, दान, व्रत, उपवास, धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ, अन्नप्राशन, पुराने निर्माण कार्य (जो पहले से चल रहे हों), वाहन या गहनों की खरीदारी, घर की मरम्मत या रेनोवेशन शामिल हैं। इनके लिए कोई विशेष मुहूर्त आवश्यक नहीं होता और गुरु अस्त या चातुर्मास का प्रभाव इन कार्यों पर नहीं पड़ता।
भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाएंगे
हिंदू पंचांग के अनुसार, 6 जुलाई को देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। इस समय से चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी तक चलता है। इस अवधि को धार्मिक अनुशासन, साधना, संयम और उपवास के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
चातुर्मास के दौरान न केवल विवाह आदि पर रोक होती है, बल्कि साधु-संत भी एक ही स्थान पर चार माह तक प्रवास करते हैं। मान्यता है कि इस दौरान भगवान के सोने के कारण शुभ कार्य करना अनिष्टकारी होता है।
अगला शुभ मुहूर्त
गुरु के 9 जुलाई को उदय होने के बाद भी शुभ कार्यों की शुरुआत नहीं होगी, क्योंकि चातुर्मास पहले ही आरंभ हो चुका होगा। अगला प्रमुख मुहूर्त 1 नवंबर को देवउठनी एकादशी के दिन आएगा। इस दिन भगवान विष्णु के जागने के साथ ही शुभ कार्यों की फिर से शुरुआत हो सकेगी।
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भगवान गणेश की विशेष कृपा पाने का सबसे सरलतम उपाय

भारतवर्ष में गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता के रूप में पूजा जाता है। किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले श्री गणेश जी की वंदना की जाती है ताकि सारे विघ्न दूर हों और कार्य निर्विघ्न सम्पन्न हो सके। पौराणिक ग्रंथों, पुराणों और शास्त्रों में भगवान गणेश के कई मंत्र, स्तोत्र और चालीसाएं वर्णित हैं, लेकिन उन सभी में ‘गणेश अष्टकम स्तोत्रं’ को एक विशेष स्थान प्राप्त है। यह स्तोत्र भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल, सुलभ और प्रभावशाली उपाय माना जाता है।
क्या है ‘गणेश अष्टकम स्तोत्रं’?
गणेश अष्टकम एक संस्कृत स्तोत्र है जिसमें आठ श्लोक होते हैं। यह स्तोत्र भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करता है और उनके स्वरूप, शक्ति, और कृपा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित माना जाता है और इसमें भगवान गणेश की स्तुति के माध्यम से भक्त अपने कष्टों, विघ्नों और बाधाओं से मुक्ति की प्रार्थना करता है।
पाठ का महत्व
‘गणेश अष्टकम स्तोत्रं’ का नियमित पाठ करने से व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है बल्कि मानसिक शांति, बुद्धि, विवेक और स्मरण शक्ति को भी बढ़ाता है। यह स्तोत्र विद्यार्थियों, व्यापारियों, नौकरीपेशा लोगों और साधकों के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है।
क्यों है यह स्तोत्र सबसे सरल उपाय?
संक्षिप्त और प्रभावशाली: अन्य मंत्रों की तुलना में यह स्तोत्र मात्र आठ श्लोकों का है जिसे कोई भी व्यक्ति कुछ ही समय में स्मरण कर सकता है।
भावनात्मक जुड़ाव: इसमें भगवान गणेश की सजीव छवि उभरती है, जिससे पाठ करते समय भक्त भाव-विभोर हो उठता है।
बाधा निवारण: माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन के सारे विघ्न समाप्त होते हैं।
श्रद्धा से युक्त: यह स्तोत्र न केवल शब्दों का संगम है बल्कि श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक भी है।
कब और कैसे करें पाठ?
समय: प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में या संध्या के समय यह स्तोत्र पढ़ना श्रेष्ठ रहता है।
स्थान: शांत, पवित्र और स्वच्छ स्थान पर बैठकर पाठ करें।
विधि: पहले हाथ-पैर धोकर भगवान गणेश का ध्यान करें, उन्हें दूर्वा, लाल फूल और मोदक अर्पित करें, फिर श्रद्धा पूर्वक स्तोत्र का पाठ करें।
श्रद्धालुओं के अनुभव
अनेक भक्तों का मानना है कि ‘गणेश अष्टकम स्तोत्रं’ का पाठ करते ही उनके जीवन में अद्भुत परिवर्तन हुआ। विद्यार्थी कहते हैं कि इससे उनकी स्मरण शक्ति और एकाग्रता में वृद्धि हुई, वहीं व्यापारी वर्ग ने बताया कि अड़चनों के बावजूद कारोबार में तरक्की मिलने लगी। कई लोगों ने इसे मानसिक तनाव से मुक्ति का एक साधन भी बताया।
विज्ञान क्या कहता है?
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो नियमित मंत्रोच्चारण, विशेषकर संस्कृत श्लोकों का पाठ, मस्तिष्क में सकारात्मक कंपन उत्पन्न करता है। इससे मानसिक शांति, आत्मविश्वास और ऊर्जा का स्तर बढ़ता है, जो किसी भी चुनौती का सामना करने में सहायता करता है।
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आषाढ़ माह की शुरूआत 12 जून से, भूलकर भी न करें ये काम

हिंदू नव वर्ष का चौथा महीना आषाढ़ जल्द ही शुरू होने वाला है. आषाढ़ माह में भगवान विष्णु और भगवान सूर्य देव की आराधना का विशेष महत्व है. साल 2025 में आषाढ़ माह की शुरूआत 12 जून, गुरुवार के दिन से हो रही है. इस माह में पड़ने वाली देवश्यनी एकादशी के बाद भगवान विष्णु 4 माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और इस दौरान शुभ कार्य करने पर रोक लग जाती है|
आषाढ़ का महीना क्यों खास होता है और इस माह में किन कामों को करने पर रोक होती है, साथ ही किन काम को करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है, यहां पढ़ें आषाढ़ माह के नियम|
आषाढ़ माह में शिव जी पूजा करने का विशेष महत्व है. इस माह में भोलेनाथ के साथ विष्णु जी और सूर्य की आराधना करनी चाहिए|
आषाढ़ माह में रोज नियम से सूर्य देव अर्घ्य दें|
इस माह में धार्मिक यात्रा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है.
आषाढ़ माह में दान देने का विशेष महत्व है इस माह में छाता, पानी से भरे घड़ा, खरबूजा, तरबूज, नमक, आंवले का दान करें.
आषाढ़ माह में तुलसी में जल में थोड़ा दूध मिलाने से घर में बरकत होती है. ऐसा माना जाता है इससे पैसों की तंगी कभी नहीं आती|
आषाढ़ माह में पड़ने वाली देवश्यनी एकादशी के बाद चातुर्मास आरंभ हो जाता है, जिसमें शुभ और मांगलिक कार्य करने पर रोक लग जाती है, इसीलिए इन कार्यों को नहीं करना चाहिए.
इस माह में विवाह, गृहप्रवेष, मुंडन जैसे कार्य करना वर्जित होता है|
आषाढ़ माह में मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए|
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आज ज्येष्ठ पूर्णिमा पर करें ये खास उपाय

11 जून 2025 को हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ पूर्णिमा मनाई जाएगी। धार्मिक दृष्टि से इस दिन का अत्यधिक महत्व है। इस रोज कुछ खास उपाय कर लेने से लाइफ में पॉजिटिविटी के साथ दुश्मनों पर विजय और मेंटल स्ट्रेस से राहत प्राप्त की जा सकती है। इस रोज चन्द्रमा पूरे आकार में अपनी छटा बिखेरता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2025 उपाय-
धन की देवी लक्ष्मी को ये दिन बहुत प्रिय है। कुछ विशेष उपाय करके मां लक्ष्मी को अपने घर चरण डालने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। इससे आपके उज्जवल भविष्य का निर्माण होगा। शास्त्र कहते हैं, आज के दिन देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के संग पीपल के पेड़ पर आती हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए सूर्यास्त से पूर्व किसी भी मिष्ठान के साथ जल अर्पित करें। शाम में दीप दान करें।
दांपत्य में मधुरता बनाए रखने के लिए पति-पत्नी मिलकर चांद को अर्घ्य दें।
आर्थिक अभाव लाख प्रयत्न करने पर भी खत्म नहीं हो रहे हैं तो चंद्रोदय पर चांद को कच्चे दूध में चीनी और चावल मिलाकर अर्घ्य दें। शुभ फलों की प्राप्ति के लिए ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमासे नम: अथवा ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम: मंत्र का जाप करें।
घर में धन का प्रवाह बनाए रखने के लिए श्री यंत्र, व्यापार वृद्धि यंत्र, कुबेर यंत्र, एकाक्षी नारियल, दक्षिणावर्ती शंख और कौड़ियां स्थापित करें।
पूर्णिमा की रात कुछ पलों के लिए चन्द्रमा को एकटक निहारें इससे नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी। चन्द्रमा की चांदनी में सुई में धागा डालने का प्रयास करें, इससे नेत्र ज्योति बढ़ेगी।
पूर्णिमा की रात चन्द्रमा की चांदनी को अपने शरीर पर पड़ने दें। इससे रोगों का शमन होता है। गर्भवती महिला की नाभि पर इसकी रोशनी पड़ने से जच्चा और बच्चा स्वस्थ रहते हैं।
कुंडली में चंद्र दोष है तो रात को चंद्रमा में दूध और मिश्री मिलाकर अर्घ्य दें। मेंटल स्ट्रेस से राहत मिलेगी।
पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। ऐसा करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश होता है और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
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