धर्म समाज

गुप्त नवरात्रि और मासिक दुर्गाष्टमी आज, करें 10 महाविद्याओं को प्रसन्न

मासिक दुर्गा अष्टमी और गुप्त नवरात्रि के इतने खास दिन पर मां के 10 महाविद्याओं को प्रसन्न करने का मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहिए. भक्त इस दिन मां की 10 महाविद्याओं को आसान से तरीकों प्रसन्न कर सकते हैं|
आषाढ़ के गुप्त नवरात्रि मां दुर्गा के 10 महाविद्याओं की पूजा अर्चना के लिए खास बताए जाते हैं. इन दिनों तंत्र साधनाओं के साथ ही मां की पांरपरिक साधना का भी विधान है. गृहस्थ भी इस दिन अपनी पूजा और भक्ति से मां को प्रसन्न कर सकते हैं. ऐसे में हम आपको मां के 10 रूपों को एक साथ प्रसन्न करने का एक आसान सा तरीका बता रहे हैं. वैसे तो इस दिन आप दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं. मां दुर्गा के सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं और मां की कृपा प्राप्त कर सकते हैं|
गुप्त नवरात्र की अष्टमी होती है खास-
गुप्त नवरात्रि में अष्टमी तिथि को खास माना जाता है ऐसे में मासिक दुर्गा अष्टमी भी इसी दिन पड़ रही है तो यह संयोग और भी विशिष्ट हो जाता है. इस दिन आप 10 महाविद्याओं की पूजा के लिए 10 महाविद्या स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं. जिससे आप मां के 10 रूपों की कृपा और आर्शीवाद प्राप्त कर सकते हैं. इस पाठ को करने के लिए आप स्नान ध्यान करके एक साफ आसन पर बैठ जाएं और इस स्त्रोत का पाठ करें|
दस महाविद्या स्तोत्र-
दुर्ल्लभं मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।
मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्।।
श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।
क्रियासाधनमं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्।।
तव प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः।।
नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी।।
शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।
जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।
हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्।।
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।
मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।।
प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।।
उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।
नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्।।
श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्।।
विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।
आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्।।
श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।
त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।
सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।
नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्।।
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्।।
दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।
भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्।।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।
त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।
कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसंदरीम्।।
षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।
सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्।।
प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये।।
इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।
कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।
त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि।।
चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।
निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्।।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।
जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी।।
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अमरनाथ गुफा में कबूतरों के जोड़े का क्या है रहस्य...जानिए

हिंदू धर्म में अमरनाथ गुफा मंदिर को एक पवित्र तीर्थ माना गया है, जिसके दर्शन से कई गुना पुण्य प्राप्त होता है. साल 2025 में 3 जुलाई, गुरुवार से अमरनाथ यात्रा की शुरूआत हो रही है. इस दिन पहला जत्था रवाना हो चुका है. अमरनाथ गुफा मंदिर हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है मान्यता है इसी जगह पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था|
कब से कब तक होती है अमरनाथ यात्रा-
हर साल भोलेनाथ बाबा की पवित्र गुफा में अपने आप प्राकृतिक शिवलिंग बनता है. इस हिम यानि बर्फ से बने शिवलिंग को बाबा बर्फानी के नाम से भी जाना जाता है. हर वर्ष जुलाई के पहले सप्ताह या आषाढ़ पूर्णिमा से इस यात्रा का आगाज होता है और सावन के पूरे महीने यह यात्रा चलती है और रक्षाबंधन के दिन समाप्त होती है. मान्यता है श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि के दिन शिवलिंग अपने पूरे आकार में आ जाता है|
कबूतर के जोड़े का रहस्य-
बाबा बर्फानी की गुफा में कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है. मान्यता है जब भोलेनाथ इसी गुफा में माता पार्वती को अमरत्व की कथा सुना रहे थे तो इस जोड़े ने भी अमरकथा सुन ली और अमर हुए. इन्हें अमर पक्षी माना जाता है. मान्यता है जिन श्रद्धालुओं को यह जोड़ा दिखाई देता है उन्हें भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन के सामान माना गया है. जिन लोगों को इनके दर्शन हो जाते हैं भोलेनाथ उन्हें मुक्ति प्रदान करते हैं|
यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन भी किया था. इस कथा को अमरकथा नाम से जाना जाता है|
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देवशयनी एकादशी से शुरू होगा चातुर्मास, इस विधि से करें पूजा

6 जुलाई 2025 को देवशयनी एकादशी से चातुर्मास शुरू हो जाएगा, इसका समापन 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर होगा। चातुर्मास में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक महीने शामिल होते हैं। देवशयनी एकादशी का आषाढ़ शुक्ल पक्ष चंद्र चक्र का बढ़ता चरण होता है और देवउठनी एकादशी कार्तिक शुक्ल पक्ष के साथ समाप्त होती है।
देवशयनी एकादशी पूजा विधि-
देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होते हैं। देवशयनी एकादशी व्रत की शुरूआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। दशमी तिथि की रात्रि के भोजन में नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात: काल उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर व्रत का संकल्प करें भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन कर उनका षोडशोपचार सहित पूजन करना चाहिए। पंचामृत से स्नान करवाकर, तत्पश्चात भगवान की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए।
पूजा में तुलसी का प्रयोग जरूर करना चाहिए। तुलसी के भोग के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है। भगवान को ताम्बूल, पुंगीफल अर्पित करने के बाद मंत्र द्वारा स्तुति की जानी चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु के स्रोत का पाठ भी करें। इसके अतिरिक्त शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताए गए हैं, उनका सख्ती से पालन करना चाहिए।
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी अथवा हरिशयनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी से ही भगवान विष्णु का निद्राकाल शुरू हो जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपने चित्त, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता है। एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
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गुरुवार को करें ये उपाय, बनेंगे बिगड़े काम, बढ़ेगी धन-संपत्ति

गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन श्रीहरि की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। लोगों के बिगड़े काम बन जाते हैं। अगर कोई कामना पूरी नहीं हो रही है तो गुरुवार के दिन कुछ खास उपाय कर लें। इससे मन की सभी इच्छा पूर्ण होती हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। गुरुवार के दिन इन विशेष उपायों को करने से सभी समस्याओं का समाधान मिल जाता है। तो आइए आचार्य इंदु प्रकाश से जानते हैं कि गुरुवार के दिन कौन सी समस्या के लिए कौन से उपाय करने चाहिए।
- अगर आप अपने धन-धान्य के साधनों में बढ़ोतरी करना चाहते हैं तो इसके लिए आज आपको स्नान आदि के बाद साफ कपड़े पहनकर शिव मन्दिर जाना चाहिए और भगवान की विधि-पूर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके लिए सबसे पहले शिवलिंग पर जलाभिषेक करें। फिर रोली-चावल का तिलक लगाएं। इसके बाद शक्कर से भगवान का मुंह मीठा करें और साथ ही फलों का भोग लगाएं। फिर धूप-दीप आदि से भगवान की पूजा करें और आखिर में हाथ जोड़कर प्रणाम करें।
- अगर पिता के साथ किसी बात को लेकर आपकी अनबन चल रही है तो उस अनबन को दूर करने के लिए आज आपको चींटियों के बिल में आटा डालना चाहिए। अगर भूरी या लाल चींटियों का बिल हो तो और भी अच्छा है।
- अगर आप अपने दाम्पत्य जीवन को खुशहाल देखना चाहते हैं तो आज 11 छोटी बच्चियों को दूध का पैकेट भेंट करें । अगर आप 11 बच्चियों को दूध का पैकेट भेंट न कर पाएं तो पांच को करें या फिर दो को ही कर दें लेकिन करें जरूर। आप चाहें तो दूध चावल की खीर बनाकर भी उन्हें खिला सकते हैं।
- अगर आप अपनी किसी प्रॉपर्टी की खरीद-बिक्री को लेकर कुछ समय से परेशान हैं आपको कोई अच्छा ग्राहक नहीं मिल पा रहा है तो आज के दिन आपको स्नान आदि के बाद शिव मन्दिर जाना चाहिए और भगवान शिव को प्रणाम करना चाहिए। साथ ही शिवलिंग पर गंगाजल मिला हुआ शुद्ध जल अर्पित करना चाहिए।
- अगर आप तरक्की की नई बुलंदियों को छूना चाहते हैं अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहते हैं तो आज आपको अपने हाथों से पंचामृत तैयार करना चाहिए। पंचामृत तैयार करने के लिए दूध दही शहद गंगाजल और थोड़ी-सी शक्कर लेनी चाहिए और उन्हें आपस में मिलाकर पंचामृत तैयार करना चाहिए। अब इस पंचामृत से भगवान शंकर को भोग लगाइए और अपनी तरक्की के लिए प्रार्थना करिए।
- अगर शादी के रिश्ते को लेकर आपके मन में कुछ ऊहा-पोह बनी हुई है या कुछ उलझन बनी हुई है तो उससे बाहर निकलने के लिए आज आपको दही में थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करना चाहिए। साथ ही अपनी उलझनों को दूर करने के लिए भगवान से प्रार्थना करें।
- अगर आप अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाना चाहते हैं और एक कामयाब इंसान बनना चाहते हैं तो उसके लिए आज आपको कृतिका नक्षत्र से संबंधित गुलर या गुलर के पेड़ की फोटो को डाउनलोड करके उसके दर्शन करना चाहिए और गुलर के पेड़ की तस्वीर को नमस्कार करना चाहिए। साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि कृत्तिका नक्षत्र के दौरान आप गुलर के पेड़ को किसी भी तरह से
- अगर आप सामाजिक कार्यों में अपनी सफलता सुनिश्चित करना चाहते हैं तो आज के दिन अपने घर के आग्नेय कोण यानि दक्षिण-पूर्व दिशा के कोने में घी का एक दीपक जलाएं और हाथ जोड़कर अग्नि देव को प्रणाम करें। साथ ही सामाजिक कार्यों में अपनी सफलता के लिए प्रार्थना करें।
- अगर आपको किसी के सामने अपनी प्रेजेन्टेशन देनी है और आप चाहते हैं कि आपको वहां किसी प्रकार की परेशानी न आये और आप अपनी बात को ठीक ढंग से रख पाएं तो आज प्रेजेन्टेशन के लिए जाते समय अपनी जेब में या अपने पर्स में एक लाल रंग का फूल रखकर ले जाएं।
- अगर आप अपने कॉन्फिडेंस से सबका दिल जीत लेना चाहते हैं तो आज के दिन आपको चंद्रमा के इस मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है- ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।
- अगर आप किसी से दोस्ती करना चाहते हैं या अपने दोस्ती के रिश्ते को मजबूत करना चाहते हैं तो आज के दिन आपको चन्दन का तिलक अपने मस्तक पर लगाना चाहिए और अगर संभव हो तो उस व्यक्ति को भी तिलक लगाना चाहिए जिससे आप दोस्ती करना चाहते हैं या अपने दोस्ती के रिश्ते को मजबूत करना चाहते हैं।
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विशेष संयोग, जुलाई का पहला प्रदोष व्रत चातुर्मास में पड़ेगा

  • नोट करें शुभ मुहूर्त और विधि
सावन के पावन महीने की शुरुआत के साथ ही शिव भक्तों के लिए विशेष महत्व रखने वाला प्रदोष व्रत आ रहा है. इस बार जुलाई का पहला प्रदोष व्रत एक ऐसे शुभ संयोग में पड़ रहा है जब चातुर्मास भी चल रहा होगा. यह स्थिति व्रत के महत्व को और बढ़ा देती है, क्योंकि चातुर्मास के दौरान भगवान शिव का वास कैलाश पर्वत पर माना जाता है और इस दौरान की गई पूजा-अर्चना का फल कई गुना अधिक प्राप्त होता है. आइए जानते हैं जुलाई के पहले प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि|
कब है जुलाई का पहला प्रदोष व्रत-
जुलाई का पहला प्रदोष व्रत 8 जुलाई को पड़ेगा. इस दिन मंगलवार है, इसलिए इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाएगा.जिसका धार्मिक ग्रंथों में विशेष महत्व बताया गया है|
शुभ मुहूर्त-
पूजा का शुभ मुहूर्त (प्रदोष काल) 08 जुलाई 2025, सोमवार को शाम 07 बजकर 23 मिनट से शाम 09 बजकर 24 मिनट तक रहेगा|
चातुर्मास में प्रदोष व्रत का महत्व-
इस बार का यह प्रदोष व्रत इसलिए भी खास है क्योंकि यह चातुर्मास के दौरान पड़ रहा है. चातुर्मास वह समय होता है जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव संभालते हैं. ऐसे में चातुर्मास में पड़ने वाले सभी व्रत और त्योहारों का महत्व बढ़ जाता है, खासकर शिव आराधना से जुड़े व्रतों का. सोम प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से भक्तों को सुख, शांति, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है. संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले भक्तों के लिए भी यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है|
प्रदोष व्रत की पूजा विधि-
प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें. व्रत का संकल्प लें और मन ही मन भगवान शिव का ध्यान करें. भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें. पूजा सामग्री में बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी पत्र, सफेद चंदन, अक्षत, धूप, दीप, गंगाजल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल का मिश्रण), फल, फूल और नैवेद्य (मिठाई) शामिल करें. शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा शुरू करें. शिवलिंग पर गंगाजल और पंचामृत से अभिषेक करें|
भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी पत्र, चंदन, अक्षत, फूल अर्पित करें. ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें. महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना भी अत्यंत लाभकारी होता है. प्रदोष व्रत की कथा सुनें या पढ़ें.सबसे आखिर में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें. भगवान को फल और मिठाई का भोग लगाएं. पूजा के बाद प्रसाद परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों में वितरित करें. अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण करें|
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सावन में इन राशियों के लिए शुभ, आर्थिक तंगी से मिलेगी मुक्ति

भोलेनाथ का प्रिय माह 11 जुलाई से शुरू होने वाला है. इस माह में शिव जी की आरधना और भक्ति से शुभ फल की प्राप्ति होती है. लोग अलग-अलग तरह से इस माह में भोलेनाथ की भक्ति करते हैं और उनका आशीर्वाद पाते हैं. सावन में सोमवार के व्रत का विशेष महत्व है, साथ ही शिवलिंग जल चढ़ाना, कांवड़ यात्रा, श्रावण माह के व्रत त्योहार को महत्व दिया जाता है. सावन का पवित्र माह कई राशियों के लिए शुभ रहेगा. यहां पढ़ें श्रावण माह की लकी राशियां-
मेष राशि-
मेष राशि वालों के लिए सावन का महीना शुभ रहेगा इस माह में आपके बिगड़े काम बन सकते हैं. तरक्की मिलेगी की संभावना है. जॉब में लंबे समय से चल रही मेहनत आपको परिणाम दिला सकती है|
कर्क राशि-
कर्क राशि वालों के लिए सावन का महीना अति शुभ रहेगा. इस माह में आपके लिए नए रास्ते खुल सकते हैं. आपकी प्लैनिंग सफल होगी. आपके सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होगी. आप नए फैसले लेंगे और नई राह पर आगे बढ़ सकते हैं|
सिंह राशि-
सावन का महीना सिंह राशि वालों के लिए मान-सम्मान लेकर आएगा. इस माह में समाज में आपका प्रभाव बढ़ेगा. इस महीने आपकों नई योजनाओं में लाभ होगा. साथ ही आपकी हेल्थ में भी सुधार संभव है. लव लाइफ में लाइफ पार्टनर से भावनात्मक जुड़ाव बढ़ेगा|
मकर राशि-
मकर राशि वालों को सावन के महीने में महादेव की कृपा प्राप्त होगी. इस माह में बिजनेस में उन्नति के अवसर प्राप्त होंगे और शिव जी के साथ-साथ शनि देव का भी आशीर्वाद प्राप्त होगा. इस माह दान-पुण्य के काम में अपने आप को लगाएं रखें, आपका भाग्योदय होगा|
कुंभ राशि-
कुंभ राशि वालों पर भी शनि देव के साथ-साथ भोलेनाथ की कृपा रहेगा. किसी से ईर्ष्या ना करें, अपनी वाणी को मधुर रखें, कटू शब्द ना बोले. आर्थिक स्थिति में पहले से सुधार होगा. जीवन में मुश्किलों का अंत होगा|
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इस गुरुवार करें ये खास उपाय, चमक उठेगा आपका भाग्य!

गुरुवार को भगवान विष्णु का दिन माना जाता है; इस दिन विधि-विधान से पूजा-पाठ और व्रत करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में बुद्धि, वाणी और व्यापार में वृद्धि होती है। अग्नि पुराण के अनुसार, देवगुरु बृहस्पति ने काशी में शिवलिंग की स्थापना और तपस्या का उल्लेख किया है, जिससे गुरुवार के दिन भगवान बृहस्पति की पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है।
अग्नि पुराण और स्कंद पुराण के अनुसार गुरुवार के दिन व्रत रखने से धन, समृद्धि, संतान और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इस व्रत को किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले गुरुवार से शुरू कर सकते हैं। व्रत 16 गुरुवार तक करना चाहिए। व्रत रखने के लिए इस दिन पीले वस्त्र धारण करने और पीले फल और पीले फूलों का दान करने से भी लाभ होता है। गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को हल्दी चढ़ाने से मनोकामना पूरी होती है और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, इस दिन विद्या की पूजा करने से भी ज्ञान में वृद्धि होती है। गुरुवार के दिन किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को अन्न और धन का दान करने से भी पुण्य प्राप्त होता है। मान्यता है कि केले के पत्ते में भगवान विष्णु का वास होता है। इसलिए गुरुवार के दिन केले के पत्ते की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत शुरू करने के लिए आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर पूजन सामग्री रखें, इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें। फिर केले के वृक्ष की जड़ में चने की दाल, गुड़ और मुनक्का चढ़ाकर भगवान विष्णु की पूजा करें। दीपक जलाएं और कथा सुनें और भगवान बृहस्पति भगवान की आरती करें। उसके बाद आरती का आचमन करें। इस दिन पीले रंग के खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि (दोपहर के 2 बजकर 6 मिनट तक) 3 जुलाई को पड़ रही है। इसी दिन सूर्य देव मिथुन राशि में रहेंगे, वहीं चंद्रमा कन्या राशि से तुला में प्रवेश करेंगे। दृक पंचांगानुसार, 3 जुलाई को अष्टमी तिथि सुबह 2 बजकर 6 मिनट तक रहेगी, फिर उसके बाद नवमी तिथि शुरू हो जाएगी। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।
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सावन में इन जगहों पर जलाएं दीपक, भोलेनाथ भर देंगे आपकी झोली

सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस दौरान की गई पूजा-अर्चना, व्रत और साधना विशेष फलदायी मानी जाती है. इस बार 11 जुलाई 2025 से सावन की शुरुआत हो रही है और यह महीना भक्तों के लिए विशेष ऊर्जा, आध्यात्मिकता और पुण्य लेकर आता है. माना जाता है कि सावन में सच्चे मन से की गई आराधना से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.इस पावन समय में दीपक जलाना न केवल वातावरण को शुद्ध करता है, बल्कि घर में सुख-समृद्धि और भगवान शिव की कृपा को भी आकर्षित करता है. जानते हैं कि सावन में घर में किन खास जगहों पर दीपक जलाने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं|
सावन में इन जगहों पर दीपक जलाना शुभ माना जाता है!
मेन डोर के पास:
सावन के प्रत्येक सोमवार को या पूरे सावन भर आप अपने घर के मुख्य द्वार पर घी का दीपक जला सकते हैं. मान्यता है कि इससे नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश नहीं करती और सकारात्मकता का संचार होता है. मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद घर पर बना रहता है|
बेलपत्र के पेड़ के नीचे:
बेलपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. यदि आपके घर में या आसपास बेलपत्र का पेड़ है, तो सावन में प्रतिदिन या कम से कम प्रत्येक सोमवार को बेलपत्र के पेड़ के नीचे एक दीपक अवश्य जलाएं. इससे भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं और आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.
शिवलिंग के पास:
अगर आपके घर में शिवलिंग स्थापित है, तो सावन में नियमित रूप से शिवलिंग के पास एक दीपक जलाएं. यह भगवान शिव की पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग है. इससे आपकी सभी बाधाएं दूर होती हैं और घर में शांति बनी रहती है|
तुलसी के पौधे के पास:
हिंदू धर्म में तुलसी को पूजनीय माना गया है. हालांकि तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है, लेकिन सावन में भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है. माना जाता है कि इससे भगवान शिव और माता पार्वती दोनों प्रसन्न होते हैं|
रसोई घर में:
सावन में आप अपने रसोई घर में भी एक दीपक जला सकते हैं. रसोई को अन्नपूर्णा का स्थान माना जाता है. यहां दीपक जलाने से अन्न और धन की कभी कमी नहीं होती और घर में बरकत बनी रहती है. यह घर की सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है|
पीपल के पेड़ के नीचे:
पीपल के पेड़ को धार्मिक दृष्टि से बहुत पवित्र माना जाता है. यदि आपके घर के पास पीपल का पेड़ है, तो सावन में पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाना शुभ फलदायी होता है. ऐसी मान्यता है कि पीपल के पेड़ में देवी-देवताओं का वास होता है और यहां दीपक जलाने से सभी कष्ट दूर होते हैं|
दीपक जलाते समय क्या करें:
दीपक जलाते समय अपनी मनोकामना भगवान शिव से अवश्य कहें. दीपक में शुद्ध घी या तिल के तेल का उपयोग करें. साथ ही पूजा के समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप याद से करें|
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हरियाली तीज, नाग पंचमी और देवशयनी एकादशी कब है? जानिए...

सनातन धर्म की परंपरा में हर महीना अपनी अलग धार्मिक गरिमा और आध्यात्मिक ऊर्जा लेकर आता है। जुलाई का महीना भी कुछ ऐसा ही है, जो न सिर्फ पंचांग में विशेष स्थान रखता है, बल्कि श्रद्धा और भक्ति के लिहाज से भी अत्यंत शुभ माना जाता है। इस वर्ष जुलाई की शुरुआत के साथ ही 11 तारीख से सावन मास का आगमन हो रहा है , वह पावन काल जिसमें शिवभक्त पूरे मन, वचन और कर्म से महादेव की आराधना में लीन हो जाते हैं।सावन के साथ ही जुलाई में देवशयनी एकादशी, हरियाली तीज, मंगला गौरी व्रत, नाग पंचमी और सावन शिवरात्रि जैसे पर्वों की सजीव झांकी देखने को मिलेगी। यह महीना व्रत, उपवास और अनुष्ठानों के साथ आत्मिक शुद्धि और पारिवारिक सुख-समृद्धि का प्रतीक है। मान्यता है कि इस मास में भगवान शिव की पूजा विशेष फलदायी होती है और वैवाहिक जीवन में आ रही अड़चनें भी दूर होती हैं। ऐसे में आइए जानें जुलाई के धार्मिक कैलेंडर में किन-किन पर्वों और तिथियों का है महत्व।
जुलाई माह के व्रत त्योहार :-
6 जुलाई- देवशयनी एकादशी, गौरी व्रत
8 जुलाई- भौम प्रदोष व्रत,
9 जुलाई -आषाढ़ चौमासी चौदस
10 जुलाई -कोकिला व्रत, गुरु पूर्णिमा
11 जुलाई -सावन की शुरुआत
14 जुलाई – सावन का पहला सोमवार
15 जुलाई- मंगला गौरी व्रत
16 जुलाई – कर्क संक्रांति
21 जुलाई – सावन का दूसरा सोमवार
22 जुलाई- दूसरा मंगला गौरी व्रत, सावन प्रदोष व्रत
23 जुलाई – सावन की शिवरात्रि
24 जुलाई – हरियाली अमावस्या
27 जुलाई – हरियाली तीज
28 जुलाई -सावन का तीसरा सोमवार, विनायक चतुर्थी
29 जुलाई -नाग पंचमी
30 जुलाई को स्कंद षष्ठी
31 जुलाई – तुलसीदास जयंती
6 जुलाई 2025 : देवशयनी एकादशी :-
यह एकादशी न केवल व्रतों में विशेष मानी जाती है, बल्कि इस दिन से देवताओं का शयनकाल यानी चातुर्मास भी आरंभ हो जाता है। अगले चार महीनों तक कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किए जाते, क्योंकि देवी-देवता विश्राम करते हैं। इस एकादशी का व्रत रखने से जीवन में पुण्य, संयम और आत्मिक उन्नति का द्वार खुलता है।
10 जुलाई 2025: कोकिला व्रत, गुरु पूर्णिमा, आषाढ़ पूर्णिमा
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन वेद व्यास जी के प्राकट्य के उपलक्ष्य में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। साथ ही, कोकिला व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा, जो विशेष रूप से सुहागिनों और विवाह की इच्छुक कन्याओं द्वारा किया जाता है। यह व्रत जीवन में सुख-शांति, प्रेम और उत्तम दांपत्य सुख प्रदान करता है।
11 जुलाई 2025: सावन मास प्रारंभ :-
श्रावण मास, भगवान शिव को समर्पित वह दिव्य समय है जब आकाश भी जलाभिषेक करता है। इस माह शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र अर्पित करने से समस्त पाप क्षय होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह मास विशेषकर सोमवार व्रत और रुद्राभिषेक के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है।
27 जुलाई 2025: हरियाली तीज :-
शृंगार, समर्पण और प्रेम का प्रतीक हरियाली तीज विवाहित और अविवाहित दोनों स्त्रियों के लिए मंगलदायक होती है। इस दिन माता पार्वती और शिव जी की पूजा कर सौभाग्य, प्रेम और उत्तम वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखा जाता है। यह पर्व प्रकृति की हरियाली और नवजीवन के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है।
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सावन में पुत्रदा एकादशी मंगलवार 5 अगस्त को

  • जानिए...सही तिथि और पूजा विधि
सनातन परंपरा में एकादशी तिथि का विशेष धार्मिक महत्व है। सालभर में कुल 24 एकादशी तिथियां आती हैं, और हर एकादशी भगवान विष्णु तथा देवी लक्ष्मी को समर्पित होती है। इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत रखने और विधिवत पूजा-अर्चना करने से साधक को इच्छित फल की प्राप्ति होती है। सावन मास भगवान शिव को समर्पित होता है, उसमें आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने और श्री हरि की उपासना करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
कब रखा जाएगा पुत्रदा एकादशी व्रत-
दृक पंचांग के अनुसार सावन शुक्ल पक्ष की शुरुआत 4 अगस्त 2025 को प्रातः 11:41 बजे से हो रही है, जो कि 5 अगस्त दोपहर 1:12 बजे तक जारी रहेगी। ऐसे में 5 अगस्त 2025, मंगलवार को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है।
दुर्लभ योग में मिलेगा कई गुना पुण्य-
पुत्रदा एकादशी के दिन भद्रा काल के साथ-साथ रवि योग का संयोग बन रहा है। रवि योग को अत्यंत शुभ माना जाता है। इस योग में श्री हरि की आराधना करने से स्वास्थ्य लाभ, सुख-समृद्धि और कार्यक्षेत्र में प्रगति के योग बनते हैं। साथ ही पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है।
पुत्रदा एकादशी व्रत पारण-
पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण उपवास के अगले दिन किया जाएगा। पारण के लिए 6 अगस्त को सुबह 05:45 बजे से सुबह 08:26 बजे तक का समय बताया गया है। पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय दोपहर 02:08 बजे है।
पुत्रदा एकादशी का महत्व-
शास्त्रों के अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से जीवन में भौतिक सुख-सुविधाएं बढ़ती हैं और घर में लक्ष्मी-नारायण की कृपा बनी रहती है। विशेषकर वे दंपत्ति जो संतान सुख की इच्छा रखते हैं, उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायक माना गया है।
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आषाढ़ मास की दुर्गाष्टमी का व्रत 3 जुलाई को

  • जानिए...शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी मनाई जाती है, जो मां दुर्गा को समर्पित होती है. आषाढ़ मास की दुर्गाष्टमी का विशेष महत्व है, यह दिन देवी दुर्गा के भक्तों के लिए बेहद पावन होता है, जब वे मां की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. आइए जानते हैं आषाढ़ दुर्गाष्टमी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसके महत्व के बारे में विस्तार से|
आषाढ़ माह की मासिक दुर्गा अष्टमी कब है:
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 2 जुलाई 2025 को रात 10 बजे से होगा और यह 3 जुलाई 2025 को रात 11:30 बजे समाप्त होगी. उदया तिथि के अनुसार, आषाढ़ दुर्गाष्टमी का व्रत 3 जुलाई 2025 को रखा जाएगा|
मासिक दुर्गाष्टमी के दिन कैसे करें मां दुर्गा को प्रसन्न:
दुर्गाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद, पूजा का संकल्प लें. घर के पूजा स्थल को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करें. एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. मां दुर्गा को लाल चुनरी, सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, मेहंदी आदि से श्रृंगार करें. एक दीपक प्रज्ज्वलित करें और धूप-अगरबत्ती जलाएं. मां दुर्गा को लाल गुड़हल के फूल विशेष रूप से पसंद हैं. उन्हें अर्पित करें. फल, मिठाई और हलवा-पूरी का भोग लगाएं|
दुर्गा चालीसा का पाठ करें और “ॐ दुं दुर्गायै नमः” या “या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः” जैसे मंत्रों का जाप करें. आखिर में मां दुर्गा की आरती करें और परिवार सहित आरती में शामिल हों. पूजा के दौरान हुई किसी भी गलती के लिए मां से क्षमा याचना करें. पूजा के बाद प्रसाद सभी में बांट दें|
आषाढ़ दुर्गाष्टमी का महत्व:
दुर्गाष्टमी का पर्व मां दुर्गा की शक्ति और उनके नौ स्वरूपों को समर्पित है. यह दिन भक्तों को भय, बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा का सच्चे मन से पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. मां दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है. इस दिन उनकी पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं. जो भक्त सच्ची श्रद्धा से मां की आराधना करते हैं, उनके घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है|
मासिक दुर्गाष्टमी पर व्रत रखने और मां दुर्गा की पूजा करने से शारीरिक कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है. मां दुर्गा भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती हैं. संतान प्राप्ति, विवाह संबंधी बाधाएं और करियर में सफलता जैसी इच्छाएं इस दिन पूजा से पूरी हो सकती हैं. मां दुर्गा की उपस्थिति नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों को दूर करती है, जिससे घर में सकारात्मकता का संचार होता है|
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मुख्यमंत्री साय से निरंजन पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी कैलाशनंद गिरी जी महाराज ने की सौजन्य भेंट

रायपुर। मुख्यमंत्री श्री साय ने निरंजन पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी कैलाशनंद गिरि जी महाराज के साथ विभिन्न आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इस अवसर पर महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े, केंद्रीय राज्य मंत्री महिला एवं बाल विकास श्रीमती सावित्री ठाकुर, राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. वर्णिका शर्मा, वन विकास निगम के अध्यक्ष श्री रामसेवक पैंकरा, मुख्यमंत्री के सचिव श्री राहुल भगत सहित अन्य प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
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सावन में कुछ कामों को करने से बचना चाहिए

सावन का महीना देवों के देव महादेव की आराधना करने के लिए समर्पित होता है. भोलेनाथ को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए सावन अत्यंत पावन माना जाता है. यह महीना व्रत-उपवास के लिए खास माना गया है. साल 2025 में सावन की शुरुआत 11 जुलाई से होने वाली है. शिव भक्त इस पूरे महीने भोलेनाथ की पूजा-अर्चना में लीन रहते हैं. सावन के महीने में पूजा-पाठ के साथ कुछ विशेष नियमों का पालन करना भी जरूरी होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन में कुछ काम करने से बचना चाहिए. अगर आप इन कार्यों को करते हैं, तो भगवान शिव की कृपा से वंचित रह सकते हैं|
बाल और दाढ़ी न कटवाएं-
सावन में बाल या दाढ़ी कटवाना शुभ नहीं माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि सावन में बाल या दाढ़ी कटवाने से कार्यों में रुकावटें आ सकती हैं और सकारात्मक ऊर्जा में कमी हो सकती है|
शरीर पर तेल न लगाएं-
स्कंद पुराण के मुताबिक, सावन में शरीर या सिर पर तेल लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता है. सावन के सोमवार के दिन शरीर पर तेल लगाना पूरी तरह वर्जित माना गया है. सावन में तेल के मालिश भी नहीं करनी चाहिए|
दही का सेवन न करें-
सावन के महीने में दही खाना वर्जित माना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, सावन में दही खाने से शुक्र दोष उत्पन्न हो सकता है. इसके अलावा, व्यक्ति को भाग्य का साथ भी नहीं मिलता है|
जमीन पर सोने की सलाह-
सावन में जो व्यक्ति सावन में व्रत करते हैं, उन्हें बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए. इसके अलावा, सावन के महीने में कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए. ऐसा करना धार्मिक दृष्टि से अशुभ होता है|
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शनिदेव को शांत करने के उपाय

हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव की पूजा के लिए शनिवार का दिन विशेष माना जाता है। शनिदेव को न्याय का देवता और कर्मफलदाता कहा जाता है। वे व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार दंड या पुरस्कार देते हैं। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि की साढ़े साती, ढैय्या या महादशा चल रही हो तो उसका जीवन संघर्ष, बाधाओं और आर्थिक संकटों से घिर सकता है। खासकर जिन लोगों को बार-बार धन की हानि हो रही हो, व्यापार में घाटा हो रहा हो या नौकरी में स्थिरता नहीं मिल रही हो, उनके लिए शनिदेव की कृपा पाना बहुत लाभकारी होता है। शनिवार के दिन किए जाने वाले कुछ खास उपाय शनिदेव की अशुभ दृष्टि को शांत कर जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता ला सकते हैं। ये उपाय व्यक्ति को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में भी सहायक होते हैं। आइए जानते हैं ऐसे 5 कारगर उपाय, जिन्हें शनिवार के दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक करने से शनिदेव की कृपा प्राप्त की जा सकती है।
सरसों का तेल और काली वस्तुओं का दान करें-
शनिवार की शाम शनि मंदिर जाकर शनिदेव की प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाएं और “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का जप करें। इसके बाद गरीबों या जरूरतमंदों को काले कपड़े, काले तिल, उड़द की दाल, जूते-चप्पल, या कंबल का दान करें। माना जाता है कि इन चीजों के दान से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है और धन संबंधी रुकावटें दूर होती हैं।
पीपल के पेड़ की पूजा करें-
शनिवार के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं और उसे जल अर्पित करें। इसके बाद सात परिक्रमा करें और शनिदेव का ध्यान करते हुए प्रार्थना करें। यह उपाय शनि दोष को शांत करने और घर में सुख-समृद्धि लाने में सहायक माना जाता है।
हनुमान जी की पूजा करें-
हनुमान जी को शनिदेव का परम मित्र माना जाता है। शनिवार के दिन सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करने से शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचा जा सकता है। इससे मानसिक शांति मिलती है और जीवन की चुनौतियां कम होती हैं।
शनि चालीसा और मंत्र जाप करें-
शनिवार को स्नान आदि के बाद शांत मन से शनि चालीसा पढ़ें। साथ ही “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” या “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें। यह साधारण और प्रभावी तरीका है शनि की कृपा पाने का।
गरीबों और ज़रूरतमंदों की सेवा करें-
शनिदेव को न्यायप्रिय और गरीबों का संरक्षक माना जाता है। शनिवार को भूखों को भोजन कराना, दिव्यांगों या सफाई कर्मचारियों की मदद करना शनिदेव को अत्यंत प्रिय है। यह सेवा भाव शनि दोष को कम करता है और जीवन में आर्थिक स्थिरता लाने में मदद करता है।
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पुरी में रथ यात्रा का दूसरा दिन : भगवान जगन्नाथ निकले मौसी के घर

  • भक्तों का उत्साह चरम पर
पुरी। विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी पुरी में जगन्नाथ महोत्सव रथ यात्रा का दूसरा दिन है। ये रथ यात्रा अगले पड़ाव के लिए निकल चुकी है। शनिवार को भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के तीन रथों को खींचने का काम परंपरा के अनुसार आज सुबह 9:30 बजे फिर से शुरू हुआ।
इस रथयात्रा का शुक्रवार शाम 4 बजे शुभारंभ हुआ। पहले भगवान बलभद्र का रथ खींचा गया, फिर सुभद्रा और जगन्नाथ के रथ खींचे गए। भक्तों की भारी भीड़ रही और इस दौरान कुछ लोगों की तबीयत बिगड़ी। इस वजह से रथयात्रा को बीच में ही विश्राम दे दिया गया। अगले दिन यानी शनिवार को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा को आगे बढ़ाया जा रहा है।
इस रथ यात्रा को सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था और भक्ति का महासागर माना जाता है। लाखों लोग हर साल इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं, जब भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं। इस बार पहले साल की तुलना में भक्तों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि देखी गई है।
पूरा शहर भगवान जगन्नाथ की भक्ति में सराबोर है। रथ खींचने के दूसरे दिन का हिस्सा बनने के लिए हजारों लोग पुरी में पहले ही जमा हैं। कार्यक्रम के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा व्यवस्था और भीड़ प्रबंधन की व्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओं में उत्साह चरम पर है, और चारों ओर "जय जगन्नाथ" के उद्घोष गूंज रहे हैं।
भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा पुरी स्थित गुंडिचा मंदिर की ओर बढ़ रही है, जिसे भगवान की मौसी का घर माना जाता है। हर साल भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और देवी सुभद्रा के रथों को जगन्नाथ मंदिर से लगभग 2.5 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर तक खींचकर लाया जाता है। भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा यहां एक हफ्ते के लिए ठहरेंगे। इसी तरह के जश्न के साथ भगवान वापस जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह लौटेंगे।
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12 ज्योतिर्लिंग में किसका किस राशि से है संबंध, जानें अपनी राशि के शिवलिंग के बारे में

नई दिल्ली शिव पुराण के 6 खण्ड और 24,000 श्लोक में भगवान शिव के महत्व को समझाया गया है। इसी शिव महा पुराण में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग के बारे में भी वर्णन मिलता है। शिव महा पुराण में वर्णित 12 ज्योतिर्लिंग में से एक यूपी में, एक उत्तराखंड में, एक झारखंड में, एक आंध्र प्रदेश, एक तमिलनाडु, दो मध्य प्रदेश में, तीन महाराष्ट्र में और दो गुजरात में स्थित है। इनको क्रमवार सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, काशी विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वरम और घृष्णेश्वर के नाम से जाना और पूजा जाता है।
शिव महा पुराण के कोटिरुद्र संहिता में भगवान शिव के इन द्वादश ज्योतिर्लिंग का विस्तृत वर्णन मिलता है। जिसमें साक्षात भगवान शिव का वास बताया गया है। इसमें वर्णित है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन से पापों का नाश, मानसिक शांति और मुक्ति की प्राप्ति होती है।
ऐसे में यह भी बताया गया है कि इनमें से किस ज्योतिर्लिंग का संबंध किस राशि से है और इनके दर्शन-पूजन से किस तरह का फल मिलता है। ऐसे में ज्योतिष के अनुसार रामेश्‍वरम ज्‍योतिर्लिंग का संबंध मेष राशि से है। ऐसे में माना जाता है कि रामेश्‍वरम ज्‍योतिर्लिंग की पूजा करने से मेष राशि के जातकों के जीवन में सद्भाव और स्थिरता बढ़ती है। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग वृषभ राशि से संबंधित है। वृषभ राशि के जातकों को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने और कल्याण का अनुभव करने के लिए सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा करने की सलाह दी जाती है।
बुध द्वारा शासित मिथुन राशि का संबंध नागेश्वर ज्योतिर्लिंग से है। यहां पूजा करने से मिथुन राशि के जातकों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आने के साथ उनका आध्यात्मिक विकास होता है। ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का संबंध कर्क राशि से है। ऊँ यहां ज्योतिर्लिंग के ज्ञान और आध्यात्मिक क्षमता को व्यक्त करता है। ऐसे में कर्क राशि के जातकों को इस ज्योतिर्लिंग का दर्शन और पूजन करना चाहिए।
सिंह राशि का संबंध वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग से है, सिंह राशि के जातक इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करके स्वास्थ्य, परिवार और राजनीतिक मुद्दों के लिए समाधान पा सकते हैं। यहां महादेव अपने भक्तों को अच्छे स्वास्थ्य, संतान और मंत्र सिद्धि का आशीर्वाद देते हैं। कन्या राशि से संबंधित ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन है। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है और विवाह संबंधित समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
तुला राशि का संबंध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से है। यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है जहां दर्शन करने से तुला राशि के जातकों के जीवन से सभी भय और काल के भय दूर हो जाते हैं। श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग वृश्चिक राशि से संबंधित हैं। मान्यता है कि श्री घृष्णेश्वर के दर्शन से संतान सुख, विवाह योग और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होती है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का संबंध धनु राशि से है। धनु राशि का स्वामी ग्रह बृहस्पति जीवन का प्रतिनिधित्व करता है और केतु मोक्ष का प्रतिनिधित्व करता है। यह ज्योतिर्लिंग व्यक्तियों को मोक्ष प्राप्त करने की दिशा में उनकी आध्यात्मिक यात्रा में मदद करता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का संबंध मकर राशि से है। मंगल मकर राशि में उच्च का हो जाता है और इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से उन व्यक्तियों को राहत मिल सकती है जिनकी जन्म कुंडली में मंगल कमजोर स्थिति में है।
कुंभ राशि से संबंधित ज्योतिर्लिंग केदारनाथ है। यहां पूजा-दर्शन करने से कुंभ राशि के जातक को आध्यात्मिक विकास और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। वहीं मीन राशि से संबंधित ज्योतिर्लिंग त्र्यंबकेश्वर है। मीन राशि में उच्च का शुक्र विलासिता, आराम और सांसारिक सुख देता है। ऐसे में माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से जीवन के इन पहलुओं से संबंधित आशीर्वाद मिलता है। जिन जातकों की जन्म कुंडली के छठे घर में शुक्र है, उन्हें त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा करने की सलाह दी जाती है।
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विनायक चतुर्थी कल, जानिए...शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत

हिंदू धर्म में विनायक चतुर्थी एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ तिथि है, जो हर महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है. यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है, जिन्हें प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता माना जाता है. विनायक चतुर्थी का व्रत रखने और इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करने लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है. इसके अलावा जीवन में आने वाली परेशानियों से छुटकारा मिलता है. आषाढ़ मास की विनायक चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा करने से बुद्धि, समृद्धि और सभी कार्यों में सफलता मिलती है|
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि 28 जून दिन शनिवार को सुबह 07 बजकर 17 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन 29 जून दिन रविवार को सुबह 06 बजकर 56 मिनट पर समाप्त होगी. विनायक चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा मध्याह्न (दोपहर) काल में करना शुभ माना जाता है. इसलिए दिन के 11 बजकर 25 मिनट से दोपहर 01 बजकर 56 मिनट तक का शुभ मुहूर्त बप्पा की पूजा के लिए शुभ रहेगा|
विनायक चतुर्थी पूजा विधि-
विनायक चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
पूजा स्थल को साफ करें और गणेश जी का स्मरण करते हुए हाथ में जल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें.
मन में कहें कि ‘मैं भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यह विनायक चतुर्थी का व्रत कर रहा/रही हूं.’
एक चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाएं और भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
यदि मूर्ति छोटी हो, तो उसे जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कराएं.
गणेश जी के साथ रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ की भी स्थापना करें.
‘ॐ गं गणपतये नमः’ या ‘वक्रतुंड महाकाय’ मंत्र का जाप करते हुए भगवान गणेश का आह्वान करें.
यदि मूर्ति हो, तो पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से अभिषेक करें. उसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराएं.
भगवान को नवीन वस्त्र (पीले या लाल रंग के) पहनाएं और लाल चंदन या कुमकुम का तिलक लगाएं.
लाल रंग के फूल (जैसे गुड़हल) और 21 दूर्वा (दूब घास) की गांठें अर्पित करें. दूर्वा गणेश जी को अत्यंत प्रिय है.
धूप-दीप: शुद्ध घी का दीपक और धूप जलाएं.
गणेश जी को मोदक या लड्डू अति प्रिय हैं, इसलिए इसका भोग अवश्य लगाएं. इसके अलावा, केला, गुड़, नारियल, और मौसमी फल भी चढ़ा सकते हैं.
अक्षत (साबुत चावल) और सुपारी अर्पित करें और गणेश जी को सिंदूर चढ़ाना भी शुभ माना जाता है.
पूजा के दौरान गणेश जी के मंत्रों का जाप करें, जैसे: “ॐ गं गणपतये नमः”, “श्री गणेशाय नमः” और वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
पूजा के अंत में अपनी पूजा में हुई किसी भी भूल-चूक के लिए भगवान से क्षमा याचना करें और अपनी मनोकामनाएं उनके समक्ष रखें|
विनायक चतुर्थी व्रत पारण विधि:
विनायक चतुर्थी का व्रत चंद्र दर्शन के बिना नहीं तोड़ा जाता है, लेकिन चतुर्थी पर चंद्रमा के दर्शन वर्जित माने जाते हैं. (क्योंकि इससे कलंक लगने की मान्यता है). इसलिए, गणेश भक्त इस दिन रात्रि में चंद्रमा के दर्शन से बचते हैं और व्रत का पारण अगले दिन करते हैं. विनायक चतुर्थी की रात को चंद्रमा के दर्शन से बचें. व्रत का पारण अगले दिन (29 जून, रविवार) सूर्योदय के बाद और चतुर्थी तिथि के समाप्त होने से पहले करें. सुबह स्नान करके गणेश जी की पूजा करें. ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराएं या दान दें. इसके बाद, स्वयं सात्विक भोजन (बिना प्याज-लहसुन का) ग्रहण करके व्रत खोलें|
विनायक चतुर्थी का महत्व:
भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है. इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्यों में सफलता मिलती है. गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के दाता हैं. इस दिन पूजा करने से बुद्धि तेज होती है और शिक्षा में सफलता मिलती है. यह व्रत घर में सुख-समृद्धि लाता है और धन-धान्य की वृद्धि करता है. सच्चे मन से यह व्रत करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यह व्रत भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करने और जीवन में शुभता लाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है|
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आज से शुरू हो रही है जगन्नाथ रथ यात्रा

  • आज मंदिरों से निकलेगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, करेगी नगर भ्रमण
जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू हो रही है। 27 जून 2025 को भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री जगन्नाथ जी यानी श्री कृष्ण अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर निकलेंगे। जहां भक्त भगवान के दर्शन के लिए मंदिर जाते हैं, वहीं साल में एक बार भगवान अपने भक्तों से मिलने ओडिशा के पुरी में रथ यात्रा के जरिए नगर भ्रमण पर आते हैं और इस दौरान वे अपनी मौसी के घर भी जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को जगन्नाथ रथ यात्रा कहा जाता है।
यह परंपरा न केवल एक धार्मिक उत्सव है बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी है। हर साल आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होती है और शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को जगन्नाथ जी की वापसी के साथ यात्रा का समापन होता है। रथ यात्रा में शामिल होने के लिए देश-दुनिया से भक्त पुरी पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होता है और भगवान का रथ खींचता है, उसे 100 यज्ञ करने के बराबर पुण्य मिलता है।
आज मंदिरों से निकलेगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, करेगी नगर भ्रमण
रामनगरी अयोध्या में जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर भव्य रथयात्रा निकालने की परंपरा है। यह परंपरा हर साल बड़ी भव्यता के साथ निभाई जाती है। इस साल भी शुक्रवार को रामनगरी के 10 मंदिरों से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाएगी। आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी से बीमार चल रहे भगवान जगन्नाथ गुरुवार को स्वस्थ हो गए। 10 दिनों से उनका इलाज चल रहा था। बीमारी के कारण भगवान जगन्नाथ दर्शन नहीं दे रहे थे। मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए थे। इससे पहले भगवान का भव्य श्रृंगार कर आरती-पूजन किया गया। शुक्रवार को भगवान रथ पर सवार होकर निकलेंगे और भक्तों को दर्शन देंगे।
राम मंदिर के पास स्थित प्राचीन जगन्नाथ मंदिर के महंत राघव दास ने बताया कि प्रतिपदा यानी गुरुवार को भगवान स्वस्थ हो गए हैं। विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद उन्हें खिचड़ी का भोग लगाया गया। इससे पहले पंचामृत अभिषेक के बाद भव्य श्रृंगार हुआ।
नाम संकीर्तन का क्रम जारी है। बताया गया कि शुक्रवार को धूमधाम से शोभा यात्रा निकाली जाएगी। दशरथ महल, मणिरामदास छावनी, चारधाम मंदिर समेत अन्य मंदिरों में रथयात्रा महोत्सव की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। भगवान राम और भगवान जगन्नाथ में एकता है। भगवान जगन्नाथ को भगवान कृष्ण का उत्तराधिकारी माना जाता है, जिनके पूर्ववर्ती भगवान राम हैं। जगद्गुरु रत्नेश प्रपन्नाचार्य के अनुसार युग और लीला में अंतर है, लेकिन भगवान राम, भगवान कृष्ण या जगन्नाथ एक ही हैं। यह एकता रामनगरी के प्राचीन जगन्नाथ मंदिर, मणिरामदास छावनी परिसर स्थित जगन्नाथ मंदिर और राम कचहरी मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियों से स्थापित होती है।
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